sneh goswami

Tragedy

3.5  

sneh goswami

Tragedy

समस्या

समस्या

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81


गजल ने करवट बदल कर देखा, साथ वाले फोल्डिंग पर पिताजी खाने से संतुष्ट गहरी नींद सो रहे थे। गजल की आँखों से ही नींद कहीं खो गयी है। जब से माँ की फ़्लू से मृत्यु हुई है तब से लगता है माँ की रूह उसमें घुस गई है। माँ की तरह पिताजी के कपड़े निकालने से लेकर उनके चाय नाश्ता खाना बिस्तर सब का ध्यान रखना उसकी दिनचर्या में शामिल हो गया है। भाई को टिफिन देना उसके नहाने का पानी गर्म करना उसने स्वेच्छा से करना शुरू कर दिया है बल्कि भाई का तो कहना है -वह सब्जी बिलकुल माँ जैसी बनाने लगी है।

पर पड़ोसी, रिश्तेदार सब ने कहना शुरू कर दिया है कि अहमद स्वार्थी हो गया है। बेटी छब्बीस साल पार कर गई बीबी को मरे पांच साल हो गए बेटी की शादी का नाम ही नहीं लेता।

उसने इन बातों पर कभी विश्वास ही नहीं किया था। पर कल हिना बुआ जो पैगाम लाई। उसके बाद तो पिताजी का भड़कना देख वह हक्का बक्का रह गई। उन्होंने बुआ को खड़े खड़े घर से निकल जाने को कह दिया। बुआ रोती रोती चली गई। पिताजी ने कहा था - लड़का एसएसपी हो या डी सी। मुझे अपनी बेटी की शादी नहीं करनी तो नहीं करनी किसी को उसकी फिकर करने की कोई जरूरत नहीं

गजल सोच रही थी -क्या लोग सही कहते हैं ? अपनी रोटियों के चक्कर में यह आदमी अपनी बेटी की शादी होने ही नहीं देगा। तभी तो इतने अच्छे रिश्ते भी ठुकरा रहा है


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