sneh goswami

Tragedy

4  

sneh goswami

Tragedy

और इंतजार जारी है

और इंतजार जारी है

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सुबह जैसे ही मोहन ने आफिस का ताला खोला , एक बुढिया लपक कर अंदर घुसने लगी । मोहन ने सिर से पाँव तक उसे घूर कर देखा । साफ धुली पर जगह - जगह से फटी साङी , माथे पर बङी सी गोल बिंदी , तेजस्वी चेहरे पर उदास उदास आँखें और नंगे पैर बिवाइयों से भरे ....। 

“ अम्मा यहाँ भीख नहीं मिलती । ये दफ्तर है दफ्तर । लोगों को विदेश भेजने का जिसे बाहर के देशों में जाना है , वे यहाँ आते हैं । तुम कहाँ घुसी चली आ रही हो । साहब ने देख लिया तो मुझ गरीब को नौकरी से निकाल देंगे “ ।

तब तक साहब भी आ गये । बूढी औरत चपरासी को छोङ साहब के सामने हो ली ।

“ साहब मेरा नाम हिन्दी है । यहाँ घर में मेरे बेटे मेरी कदर नहीं करते । 

 सोच रही हूँ , विदेश में रहने लगूँ । वहाँ के लोग मुझसे प्रेम करते हैं । वे मुझे जानना समझना चाहते हैं ।

यह सच है माँ , भारत में तुम्हारे चाहनेवाले हैं ही , बाहर नेपाल, फ़िज़ी, पाकिस्तान, दक्षिण अफ़्रीका , बांग्लादेश, त्रिनिदाद व टोबैगौ, सिंगापुर, अमेरिका, युगांडा, जर्मनी, मॉरिशस आदि देशों में बोली जाती हो ।

पर अपने देश के पढे लिखे युवक खास तोर पर सरकारी अफसर तो मुझे पहचानने से इंकार कर रहे हैं ।

ऐसा नहीं है माँ , अंग्रेजी पढे बिना नौकरी नहीं मिलती , इसलिए उसे सीखना जरुरी है ।

और जनता पर रौब झाङकर काला अंग्रेज बनने के लिए भी .. इसलिए आपसे मिलने आई हूँ । सुना है आप मुझे बाहर भेज दोगे “ । बुढिया व्यंग्य में मुस्काई ।

अफसर झेंप कर जमान ताकने लगा ।

 “ दुनिया भर के लोग तुम्हे प्यार करते हैं माँ , यह तो अच्छी बात है । देर सवेर तुम्हारे बच्चे भी तुम्हारी महिमा को समझ लेंगे । तुम बाहर जा के क्या करोगी । आराम से यहाँ रहो “ ।

“ ठीक है साहब । आप कहते हो तो कुच दिन और इंतजार कर लेती हूँ , वरना ये विदेशी बच्चे तो अपने साथ ले ताने को बेताब हैं ही “ ।

और हिन्दी रानी अपनी लाठी संभालती धीरे धीरे साहब की आँखों से ओझल हो गयी ।



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