दूब जमाने का प्रयास
दूब जमाने का प्रयास
पत्थर पर दूब
विदूषी ने अपनी कलाई घुमा कर रिस्ट वाच पर निगाह डाली और कुर्सी से उठ खड़ी हुई। टैंडर खुलने और उनकी औपचारिकताओं के चलते आज विदूषी को दफ्तर में ही सात बज गये थे पर एक संतुष्टि थी कि सही से सारा काम खत्म हो गया । थकावट से उसका पूरा बदन दर्द करने लगा था । मोबाइल उठाते हुए उसने स्टिल को खाने का आर्डर दिया । दफ्तर से निकल कर गाड़ी की चाबी लगायी और कार घर की ओर मोड़ दी ।अब खाने की चिंता तो है नहीं , उसके घर पहुंचने के साथ ही खाना होटल से डिलीवर हो जाएगा। वह जाते ही नहा कर फ्रैश होगी और खाना खा कर आराम करेगी ।संतुष्ट होकर उसने गाने लगा लिए। दस मिनट बाद वह अपने घर पहुंच गई।
गाड़ी गैराज में पार्क कर वह अंदर आई और ड्राइंगरूम में सोफे पर ही अधलेटी हो गयी।
"यार चाय तो नौकरों के हाथ की पीनी पड़ी , अब खाना भी खिलाने का इरादा है या नहीं" । सोहन उसे यूं लेटे हुए देख कर भड़क गया।
आवाज सुन कर बेटा भी बाहर आ गया - "मम्मी कल कालेज में अठारह सौ रुपए फीस जमा कराना है ।"
बिना बोले बिना पूछे उसने अपने पर्स में से चैकबुक निकाली और भरनी शुरु की ।
" तुम्हारे बस का नहीं है ये सब । तुम बस साईन करके इधर पकड़ा दो। मैं भर देता हूँ ।
उसने चौंक कर देखा । कहना चाहा - अभी अभी बीस करोड़ के टैंडर पास करके आ रही है । लाखों रुपये के चैक हर रोज उसके साईन से कैश होते है । अपना इतना छोटा चैक उससे नहीं होगा क्या पर वह कुछ नहीं कहती । चुपचाप चैकबुक बढ़ा देती है क्योंकि बोलने का मतलब लड़ाई और सिर्फ लड़ाई होता है । और इस समय लड़ने या सुनने की उसमें हिम्मत बिल्कुल नहीं है।
"और सुनो आज पनीर कोफ्ते बना लो। मैं पनीर लाया हूँ ।"
"पर मैंने तो स्टिल को डिनर आर्डर कर दिया है । वही स्टिल जहाँ तुम अक्सर पार्टी किया करते हो ।"
"मोबाइल लाओ, मैं आर्डर कैंसिल कर दूँ ।"
आज खाना वहीं से आने दो। मैं बहुत थकी हूँ । फिर कभी बना के खिला दूँगी ।"
"थकी तुम कब नहीं होती हो । घूमने वाली कुर्सी मिल गयी है तो दिमाग सातवें आसमान पर हो गया है । तुम्हारा आर्डर मैंने कैंसिल कर दिया है और सुनो साथ में माँह मखनी भी बना लेना ।"
अपनी बात कह कर वे उसका जवाब सुने बिना टी वी की खबरों में डूब चुके हैं ।
कोई सुनवाई नहीं। कोई वकील नहीं। कोई दलील नहीं।
विदूषी चुपचाप उठी और वाशरूम में घुस गयी । शावर खोल कर सिर पर पानी डलने दिया ।
मालिक ने हुक्म दिया है , मानना तो पड़ेगा ही । पनीर कोफ्ते बनेंगे ही बनेंगे और साथ में दाल मक्खनी भी। फिर फुल्के भी सिंकेंगे। कोई छूट मिलने की कोई संभावना नहीं है।
पानी लगातार सिर पर पड़ रहा था । पड़े जा रहा था ।
