खिलवाड़ ---लघु कहानी
खिलवाड़ ---लघु कहानी
सारे अस्पताल में हड़कंप मच गया था, अभी अभी अस्पताल के डायरेक्टर डाक्टर अनुभव शर्मा की पत्नी को एंबुलेंस से लाया गया था। वह अपने भाई की शादी में गयी हुईं थी और वहां पर उन्हें कोराना हो गया, घर पर आइसोलेट किया गया तथा दवा दी गयी किंतु आक्सीजन लेबल कम हो गया, लंगस में इन्फेक्शन हो गया तो यहां लाना पड़ा।
डाक्टर शर्मा मजबूरी बस नहीं जा पाये थे क्योंकि बहुत सालों बाद डाक्टरों की भाषा में कमाने का सीजन आया था।
कोराना की वीभत्स नजरें मानवों को डस रहीं थीं और इसी का फायदा कुछ डाक्टरों और अस्पतालों द्वारा उठाया जा रहा था। यह डाक्टर शर्मा का अस्पताल बिकने की कगार पर आ गया था किंतु अचानक आयी कोराना महामारी ने आय के स्रोत खोल दिये थे। खाली पड़े अस्पताल को कोविड अस्पताल घोषित करवा दिया था। सारे पलंग और सारे कमरे भर गये थे।
जांच के घपले शुरू हो गये, निगेटिव और पोजिटिव का खेल तेजी से चलने लगा। साधारण आदमी या तो कोराना से मर रहा था या उसके इलाज के खर्चे से। आक्सीजन की आवश्यकता हो या न हो लेकिन बिल बढ़ाने के लिए लगाई जा रही थी, रेमडेसिवर इंजेक्शन की आवश्यकता न होने पर लगवाये जा रहे थे।
डाक्टर शर्मा जैसे सभी डाक्टर देखते देखते रूपयों से खेल रहे थे। अब नया खेल अस्पताल में शुरू हो गया। देखा देखी रेमडेसिवर इंजेक्शन की कालाबाजारी होने लगी। रू2000 से 6000 में बिकने वाला पचास पचास हजार में बिकने लगा तो डाक्टर शर्मा का लालची मुंह सुरसा की तरह फैल गया। सभी मरीजों से रेमडेसिवर इंजेक्शन मंगवाये जाने लगे तथा जिनको आवश्यकता भी नहीं थी, उनको कोई भी इंजेक्शन लगा कर रेमडेसिवर लगाया बताया जाने लगा और वह ओरिजल इंजेक्शन फिर अपने ही एंजेटों से मुंह मांगी कीमत पर बिकवाया जाने लगा।
अब डाक्टर शर्मा के मुंह में खून लग गया था, अब गुप्त तरीके रेमडेसिवर के खाली शीशी में पुनः डिस्टिल वाटर या ग्लुकोज या कोई विटामिन मिला कर भर दिया जाने लगा और अनाप-शनाप दामों में बिकवा दिया जाता। जिनको सच में आवश्यकता होती उनको ओरिजनल लगवाया जाता और बाकी को नकली।
इस की पहचान के लिए नकली वाले में एक रेड बिंदु बहुत छोटी बना दी जाती।
डाक्टर शर्मा अपनी पत्नी की हालत देखकर टेंशन में थे। उनको उनके केबिन में आराम करने दिया और सारे डाक्टरों की टीम मिसेज शर्मा के इलाज में लग गयी थी। आक्सीजन लगा दिया गया था और रेमडेसिवर का इंजेक्शन भी लगाने के लिए स्टोर से मंगाया गया और सिस्टर ने लाकर दिया। इंजेक्शन लगा दिया गया। थोड़ी देर डाक्टर शर्मा ने आकर पोजीशन देखी और उन्हें बताया गया कि रेमडेसिवर इंजेक्शन भी स्टोर से मंगा कर लगा दिया गया। कुछ देर बाद अचानक रियेक्शन होने लगा और हार्ट स्टोक आया। तमाम कोशिशों के बाद भी बचाया न जा सका। डाक्टर शर्मा ने वहां रखे रेमडेसिवर इंजेक्शन की शीशी देखी तो सर पकड़ कर बैठ गये। दुर्भाग्य बस पुरानी सिस्टर छुट्टी पर थी और नई को इस गोरखधंधे का पता नहीं था।
दूसरों के लिये खोदी गयी खाई में डाक्टर शर्मा खुद गिर गये थे। अब न किसी से कुछ कह सकते, अब क्या हो सकता था जब चिड़िया चुग गयी खेत। लालच में लोग भूल जाते हैं कि दूसरों की जिंदगी से खिलवाड़ कर भले ही यहां किसी की नजरों में न आओ लेकिन तुम्हारे साथ खिलवाड़ करने के लिए कोई ऊपर बैठा है, जब उसकी लाठी पड़ती है तो शोर नहीं होता।
अमानवीय लिखे गये इतिहास का अंत ऐसा दारुण ही होता है। जो कलम दूसरों की तकदीर लिख रही थी, वहीं विधाता उसी कलम से उनकी तक़दीर भी लिख रहा था। सच कहते हैं उसकी लाठी में आवाज नहीं होती, दूसरों के लिए खोदे गड्ढे में वह स्वयं गिर गये थे।
