Prafulla Kumar Tripathi

Abstract

3.3  

Prafulla Kumar Tripathi

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खेल खेल में

खेल खेल में

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" लव , गेम और मर्डर " ...हां, यही  तो  नाम  था उस बायोपिक  फ़िल्म  का  जो किसी ज़माने के मशहूर युवा बैडमिंटन खिलाड़ी सैयद पर प्रोडयूसर ए.माही बनाने जा रहे थे।हीरो के लिए प्रशांत और हिरोइन के लिए कनिका साइन हो चुके थे।लेकिन फ़िल्म की शूटिंग शुरु हो कि इसके पहले प्रशांत ख़ुद इस दुनियां को अलविदा कर दिये थे।मामला ठंढा हो और माही किसी और हीरो को इसके लिए साइन करें कि तब तक कनिका की गिरफ्तारी हो गई । माही इन घटनाओं को अशुभ मानने लगे थे।लेकिन एडवांस में उनके लगभग पचास लाख रुपये फंस चुके थे।इसलिए वे इस प्रोजेक्ट को छोड़ना भी नहीं चाह रहे थे।बहुत चिंतन मनन के बाद एक दिन माही देश के मशहूर ज्योतिषी पं.शैलेंद्र पांडेय के पास पहुंचे।


पं.शैलेंद्र पांडेय उन दिनों एक टी.वी.चैनल पर अपना कार्यक्रम दे रहे थे जो बहुत मशहूर था।माही अब गाजियाबाद पहुंच चुके थे ।पंडित जी ने उनकी कुंडली देखी,ग्रह नक्षत्रों का मनन चिन्तन किया ढेर सारे जोड़ घटाने किये और अन्ततः यह सुझाव दिया कि उनको उस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाना चाहिए और हिरोइन के रुप में पहले से तय नायिका को ही साइन करना चाहिए।हां,उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि चूंकि फ़िल्म का कथानक गोरखपुर से शुरु हो रहा है इसलिए उसमें अचिरावती(राप्ती)नदी का दृश्य भी शुरुआत में डालना चाहिए।पंडित जी का आभार व्यक्त करते हुए माही ने उन्हें दान दक्षिणा दिया और मुम्बई वापस आ गये।


मुम्बई... तमाम उठा - पटक और नाटकीय  घटनाक्रम के बाद जिस बात का पूर्वानुमान था वही हुआ।राज्य सरकार के एक प्रभावी मंत्री के साहबजादे की वज़ह से  प्रशांत  सुसाइड केस की दिशा भटक गई और अब  जांच एजेंसियों के निशाने  पर ड्रग और ड्रग माफिया थे न कि वे गंभीर और जांच की जाने योग्य परिस्थितियां जिनकी वज़ह से प्रशांत ने सुसाइड  किया  था । कनिका को भी ज़मानत मिल चुकी थी ।  


एक सुबह खूबसूरत बुके हाथ में लेकर माही नमिता के घर पहुंचे।  कुशल क्षेम पूछकर उन्होंने  अपने प्रस्ताव पर जानकारी  दी। कनिका की खुशी का ठिकाना नहीं  था क्योंकि उस माहौल में उसे फ़िल्म करनी ज़रुरी थी..आख़िरकार उसके कैरियर का मसला था।माही ने उसे बताया कि उसके अपोजिट हीरो के रुप में शिवांक कुमार को साइन कर लिया गया है।  एक हफ्ते  के अंदर नमिता के पास फ़िल्म की स्क्रिप्ट आ गई ।

 

स्क्रिप्ट युवा प्रेम के रहस्यमय और रोमांचक कथा पर आधारित थी । असल में  उसे गोरखपुर के ही एक युवा लेखक ने लिखी भी थी जो खुद भी सैयद से कसी न  किसी प्रकार से जुड़े थे ।  वे उन दिनों मुम्बई में स्ट्रगलर थे और माही ने उन्हें पहली बार मौक़ा दिया था ।


बात 28 जुलाई 1988 की है ।  लखनऊ के के. डी. सिंह  बाबू  स्टेडियम के बाहर मशहूर बैडमिंटन खिलाड़ी सैयद की गोली मार कर हत्या हो जाती है । वे इस वारदात के वक्त स्टेडियम से प्रैक्टिस करके निकल रहे थे । इस मर्डर मिस्ट्री में एक नामी  राजघराने  के वारिस और एक राजनेता अजय

कुमार का  नाम आ  रहा  था ।  कभी वह नेहरू-गांधी परिवार के करीबी माने जाते थे ।   आशिक मिजाज ये राजकुमार हमेशा विवादों में रहे चाहे उनकी निजी जिंदगी हो या फिर राजनीतिक मैदान । हालांकि वे शादी शुदा और बाल बच्चेदार थे लेकिन दिल तो है दिल , इसका ऐतबार क्या कीजे ..? उनकी 

खूबसूरत पत्नी भी एक राजघराने और राजनेता से सम्बन्ध रखती थीं । सूबे के प्रतिष्ठित ठाकुर होने के नाते दरअसल, अजय कुमार को गांधी परिवार का बहुत ही करीबी माना जाता था ।  एक वक्त वो भी था जब कि वह एक पूर्व प्रधानमंत्री तक के बहुत अच्छे दोस्त हुआ करते थे ।


लेकिन वही अजय कुमार सिंह उर्फ़ राजा साहब बैडमिंटन खिलाड़ी सैयद मर्डर केस और राज घराने की विरासत को लेकर हुई जंग की वजह से खूब विवादों में रहने लगे थे । एक बार फिर लखनऊ का दृश्य ..... लखनऊ के के. डी . सिंह बाबू स्टेडियम के बाहर मशहूर बैडमिंटन खिलाड़ी सैयद मोदी की गोलीमार कर हत्या ..... इस वारदात के वक्त सैयद मोदी स्टेडियम से प्रैक्टिस करके निकल रहे थे.... अभी वे सड़क पर पहुंचे ही रहे हैं  कि वहां पहले से घात लगाए हत्यारों ने उन पर ताबड़तोड़ आठ - दस गोलियां दाग दी हैं ! ..... साफ था कि गोली चलाने वाले नहीं चाहते थे कि सैयद जिंदा रहे ।  हत्यारे अपने मंसूबे में कामयाब भी हो जाते हैं , .शुरुआती जांच के बाद मामले को सी. बी.आई . को सौंप दिया जाता है। इस हत्याकांड में शुरुआती जांच के दौरान राजघराने से ताल्लुक रखने वाले अजय कुमार सिंह और सैयद की प्रेमिका अनीता की इंट्री होती है । मध्यम ऊंचाई, बड़ी - बड़ी आँखें , मोटी मूंछ , तीखे नयन नक्श , छरहरा बदन ..............जब उनका नाम सामने आता है तो उस वक्त यूपी की राजनीति में भूचाल आता जा रहा है ,जुलूस और धरना प्रदर्शन शुरू हो चला है ........ और .. और अब तो पूरे देश की निगाहें इस हाई प्रोफाइल मर्डर केस की जांच पर टिकी है ।...गोमती नदी अपनी ही गति में बहती जा रही है लेकिन आज जाने क्यों उदास - उदास है । शायद इसलिए क्योंकि उसने अपने एक युवा खिलाड़ी को असमय ही खो दिया है । अदब , नजाकत और बेपनाह मुहब्बत के इस शहर में एक प्रेमिका ने ही अपने प्रेमी की हत्या करवा दी है ! 

                  हर कोई यही जानना चाह रहा है कि आखिर किसके इशारे पर इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया ? ....... नवंबर 1988 में सी.बी.आई. ने इस केस में चार्जशीट दाखिल कर दी जिसमें कुल सात लोगों को आरोपी बनाया गया था ।  आरोपियों में अजय कुमार सिंह, अनीता , जितेंद्र सिंह, भगवती सिंह, अखिलेश सिंह, अमर बहादुर सिंह और बलई सिंह शामिल हैं । सीबीआई का आरोप है कि अजय कुमार सिंह, अनीता और अखिलेश ने सैयद के मर्डर की साजिश रची थी...... बाकी चार लोगों ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया था।  सी. बी. आई. के मुताबिक के.डी. सिंह बाबू स्टेडियम के पास मारुति कार से जब भगवती ने सैयद पर रिवॉल्वर से फायरिंग की तो दूसरे आरोपी जितेंद्र ने उसका साथ दिया था।

                  बताया जाता है कि सैयद , अनीता और अजय कुमार सिंह के बीच गहरी  दोस्ती थी और  इसी  दोस्ती की  वजह से अजय कुमार सिंह और सैयद की प्रेमिका का एक दूसरे के बेहद करीब भी आ गए थे । लखनऊ में हुए इस कत्ल के बाद खेल, राजनीति और रिश्तों की एक उलझी हुई कहानी भी सामने आ रही है .... कहानी रिश्तों की उलझन की ..कहानी गोरखपुर जैसी छोटी जगह से उठकर उभर रहे इस मध्यमवर्गीय परिवार के होनहार खिलाड़ी की जो अब विश्व का नंबर वन बैडमिन्टन खिलाड़ी बनने की और अग्रसर था ..कहानी छोटे और संसाधनविहीन युवा और उसके सपनों के असमय मृत्यु की.... 

                 सी.बी.आई. का कार्यालय .....आरोप है कि अजय कुमार सिंह और अनीता के बीच पनप रहा संबंध ही सैयद के मर्डर की वजह बन रही है । . सी.बी. आई. ने जो केस बनाया उसके मुताबिक ये पूरा मामला प्रेम-त्रिकोण का था ।  सी. बी. आई. ने सैयद की प्रेमिका अनीता को हिरासत में लेकर उनसे कड़ी पूछताछ कर रही है .... जांच के दौरान सी.बी.आई. ने उस की डायरी भी जब्त की है जिसे दिखा कर उसके और अजय कुमार सिंह से उनके नजदीकी रिश्ते की बातें खंगाली जा रही हैं ...सी.बी.आई. का कहना है कि अजय कुमार सिंह ने ही सैयद की हत्या के लिए अपने साथी अखिलेश सिंह की मदद ली. ......उन्हें मारने के लिए भाड़े के हत्यारे भेजे थे !


आगे अदालत का सीन .....अपराधी पक्ष की पैरवी दिग्गज वकील राम मंगलानी कर रहे हैं ...... इसके बाद राजनीति, खेल और रिश्तों में उलझी हुई एक कानूनी जंग छिड़ गई है लेकिन ये वे दिन हैं जब सी.बी.आई.पर केंद्र सरकार का कब्जा था और केंद्र सरकार में दशकों से एक ही पार्टी की सरकार काबिज थी जिसके मधुर सम्बन्ध इस विवादास्पद राजघराने से थे । कोर्ट में इस मर्डर केस में सी.बी.आई . के एक एक दावों की धज्जियां उड़ती जा रही हैं ... सी.बी.आई. को पहला झटका उस वक्त लग रहा है जब अभियुक्तों की ओर से चार्जशीट को ही अदालत में चुनौती दे दी गई है .... फिर इन सभी के खिलाफ पुख्ता सबूत न होने की वजह से सेशन कोर्ट ही सितंबर 1990 में अजय कुमार सिंह और अनीता का नाम केस से अलग कर देती है ..... दूसरा झटका 1996 में लगता है , जब इलाहाबाद हाईकोर्ट एक और अहम आरोपी अखिलेश को बरी कर डालती है ...अब तक राजनीतिक तूफ़ान भी शांत हो चला है .....एक और आरोपी जितेंद्र को भी बेनेफिट ऑफ डाउट देकर रिहा कर दिया जाता है .... इस केस के सात में से चार आरोपी तो पहले ही रिहा हो जाते हैं बाकी बचे अमर बहादुर सिंह का संदिग्ध हालत में मर्डर हो जाता है ।  एक और आरोपी बलई सिंह की नेचुरल डेथ हो जाती है । सैयद मर्डर के आखिरी आरोपी भगवती को लखनऊ के सेशन कोर्ट से दोषी करार दिया जाता है और उसे आजीवन कारावास की सजा सुना दी जा रही है। अदालत ने सी.बी.आई. की  फांसी  की सजा  की मांग को खारिज कर दिया है ...


फिल्म का अंत वर्ष 1995 के उस दृश्य से होता है जब शहनाई की धुन के साथ लखनऊ के मंहगे होटल क्लार्क अवध में बने खूबसूरत मंडप में फेरे ले रहे अजय कुमार सिंह और मृतक सैय्यद की प्रेमिका अनीता से शादी का है ।  उधर अजय कुमार सिंह की पहली पत्नी गरिमा और उनके तीनों बच्चे अमेठी राजघराने की दावेदारी को लेकर सशंकित हैं और टी.वी पर अपने मुखिया की इस शादी का सजीव समाचार बाईट देख रहे हैं ....



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