खाना बनाना तो लड़कियों का काम है !!!
खाना बनाना तो लड़कियों का काम है !!!
"मम्मा आप बुआ के साथ बैठकर बात करो। मैं चाय बनाकर लाता हूँ।" अंकुर ने अपनी मम्मी नीता से कहा।
"क्या भाभी, एक तो अंकुर लड़का है और ऊपर से इसके 12th के बोर्ड के एग्जाम है और आप इसे किचन में घुसाए रखती हो।" अंकुर की बुआ रेखा ने मुँह बनाते हुए कहा।
"अरे बुआ ,पढ़ते -पढ़ते बोर हो गया था। फिर चाय पीने की इच्छा हो रही थी, इसलिए मैंने सोचा आप लोगों के लिए भी बना दूँ। ",अंकुर ने किचेन में जाते हुए कहा।
अंकुर की मम्मी नीता की ननद रेखा
आयी हुई थी। रेखा को ज़रा भी नहीं सुहाता था कि उसके भैया या भतीजा घर के कामकाज में ज़रा भी हाथ बंटाएं। वह अपनी भाभी को कहती रहती थी कि ," आदमी लोग तो बाहर के काम करते हुए ही अच्छे लगते हैं। "
लेकिन नीता एक समझदार और सुलझे हुए विचारों की महिला थी। वह जानती थी कि इसमें रेखा दीदी की कोई गलती नहीं है। उन्होंने जब से होश सम्हाला है तब से यही देख है कि लड़कियाँ ही घर का काम करती हैं और लड़के हमेशा बाहर का। लड़कियाँ तो बाहर जाकर काम करने लग गयी हैं, लेकिन अभी भी लड़कों से घर का काम कराना स्वीकार नहीं किया जाता। इसलिए नीता कभी भी रेखा दीदी की इस बात का बुरा नहीं मानती थी।
वह जानती थी लोगों की सोच को बदलना इतना आसान नहीं है। लेकिन वह खुद अपने बेटे अंकुर की ऐसी परवरिश करना चाहती थी ताकि वह सशक्त हो चुकी महिलाओं स्वीकार करना सीखे।
इसलिए नीता रेखा दीदी की बात मुस्कुराकर टाल गयी थी। रेखा का भी बेटा अनुज अंकुर का ही हमउम्र था, लेकिन मज़ाल रेखा उससे घर में एक पत्ता भी हिलवाये।
गुजरते वक़्त के साथ अंकुर और अनुज दोनों का ही स्नातक हो गया और दोनों की ही अच्छी नौकरियां लग गयी, लेकिन दोनों की ही नौकरी दूसरे शहरों में लगी।
नीता एक बार जाकर अंकुर का पूरा घर सेट करके आ गयी थी, उसके बाद अंकुर खुद ही अपना घर व्यवस्थित कर लेता था। कुक के छुट्टी पर चले जाने पर या कुछ अलग खाने की इच्छा होने पर अंकुर अपने लिए खाना खुद बना लेता था। इससे वह टाइम पर खाना खा पाता था और दूसरा रोज़ -रोज़ बाहर के खाने से होने वाली दूसरी समस्याओं से बचा रहता था।
तब ही एक दिन रेखा का नीता के पास फ़ोन आया, रेखा बहुत ज़्यादा घबराई हुई थी ,"भाभी ,अभी अनुज के दोस्त का फ़ोन आया था। अनुज को हॉस्पिटल में भर्ती किया गया है। उसकी तबीयत बहुत ख़राब हो गयी। तुम्हारे नन्दोई जी भी ऑफिस टूर पर बाहर गए हुए हैं, उनका फ़ोन नहीं लग रहा। " रेखा जी फ़ोन पर बात करते हुए ही रोने लग गयी थी।
"दीदी, शांत हो जाइये। आप बिल्कुल मत घबराओ। आज ही हम दोनों अनुज के पास जाते हैं। आपके भाई हमारे टिकट्स करा देंगे। सब ठीक हो जायेगा। "नीता ने ऐसा कहकर फ़ोन रख दिया।
नीता और रेखा दोनों ही अनुज के पास हॉस्पिटल पहुँच गए थे। बाहर का खाना खाने से अनुज को फ़ूड पॉइज़निंग और पाचन से संबंधित समस्याओं के कारण उल्टी -दस्त हो गए थे। उल्टी और दस्त की आवृत्ति बढ़ने के कारण उसे हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया था। कुछ दिनों के बाद अनुज को हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गयी थी। रेखा और नीता दोनों अनुज के साथ घर लौट आये थे।
लौटने के बाद एक दिन रेखा ने नीता से कहा ," भाभी, अंकुर को आपने घर के काम सिखाकर अच्छा ही किया। अगर मैं भी अनुज को सिखाती तो अनुज इतना बीमार नहीं होता। "
"हाँ मामी, अब वापस लौटने से पहले घर का थोड़ा बहुत काम सीखकर जाऊँगा और खाना बनाना तो जरूर से जरूर।" अनुज ने कहा।
"हां ,दीदी, खाना बनाना लड़के या लड़की का काम नहीं होता, बल्कि भोजन तो हमारे जीवन के लिए आवश्यक होता है। वो क्या कहते हैं 'बेसिक सर्वाइवल नीड' है। "नीता ने मुस्कुराते हुए कहा।
नीता की बात पर अनुज और रेखा भी मुस्कुरा उठे।
