कहाँ हो शौंटू
कहाँ हो शौंटू
"हैलो पापा, अभी चार दिन की लगातार छुट्टी है,मैं घर आ रही हूँ। मम्मी से बोल दीजियेगा, वो फ़ोन नहीँ उठा रही हैं!"कुमुद की खनखनाती आवाज़ सुनकर गिरिधरजी बहुत खुश हो गए और और सावित्रीजी को बताने चल दिए जो बालकनी में रखे पौधों में पानी दे रहीं थीं।
"सुनो, कल तुम्हारी लाडली आ रही है, अभी अभी फोन आया था!"
"अरे वाह, ये तो बड़ी ख़ुशी की बात है!"सावित्रीजी खुश होकर बोली।
थोड़ी देर बाद दोनों पति पत्नी ज़ब चाय पीने बैठे तब सावित्री ने ही आगे से बात छेड़ी।
"सुनिए, मैं चाहती हूँ इस बार कुमुद और अमन एक दूसरे से मिल लें। आरतीजी ने उस दिन भी बात छेड़ी थी। अभी अमन की ट्रेनिंग भी पूरी हो गई है, उसकी पोस्टिंग भी यहीं हो जाएगी। दोनों का रिश्ता अगर हो जाता है तो कम से कम हम बेटी की ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जायेंगे। फिर कुणाल का भी घर बसाकर बुढ़ापा आराम से काटेंगे!"सावित्रीजी बोल तो रही थीं पर दोनों के मन में एक दुविधा थी कि पता नहीँ, कुमुद माने या ना माने।
अगले दिन नियत समय पर कुमुद आ गई। उसके आते ही पूरा घर खिलखिला उठा था। दिन भर इधर उधर की बातें होतीं रही। एक दो बार गिरधारीजी ने सावित्रीजी को इशारा किया कि वो कुमुद से बात करे। पर सावित्रीजी चाह रहीं थीं कि रात को आराम से बात करेंगी।
कुमुद को ज़रा भी अंदेशा नहीँ था कि उसके मम्मी पापा उसके शादी की बात करना चाहते हैं। उसके लिए सुशांत को भुलाना आसान नहीँ था।रात में खाना खाने के बाद दोनों माँ बेटी टी. वी. देख रहीं थीं। सावित्रीजी ने गिरधारीजी को सोने भेज दिया। फिर धीरे धीरे कुमुद के बालों में हाथ फेरते हुए बोलीं,
"बेटा, अमन के घरवाले बार बार कह रहे हैं शादी के लिए। वह कब तक सुशांत की यादों को सीने से लगाए रखेगी। मेरे और तेरे पापा की अब उम्र होने चली है। अपने हाथ पैर चलते ही तेरी और तेरे भाई कुणाल का घर बसा दें, वरना बाद में शरीर साथ दे ना दे।"
"माँ, और कुछ भी बोलो पर सुशांत की जगह मैं किसीको नहीँ दे सकती। भले ही आज वो इस दुनियां में नहीँ है पर उसकी यादें हमेशा मेरे दिल के पास रहती हैं। फिर बगैर प्यार के सिर्फ एक सहारे की तलाश में शादी कर लूँ,यह अमन के प्रति भी तो अन्याय होगा!"कुमुद ने रोते रोते कहा तो सावित्रीजी ने फिलहाल और कुछ ना कहकर इस बात को वहीं खत्म कर दिया।
उस रात फिर कुमुद को नींद कहाँ आनी थी। अतीत उसके सामने एक चलचित्र की भांति उसकी आँखों के सामने गुजारता चला गया।
वैसे तो सुशांत को भी उसके माँ, पिताजी ने ही उसके लिए चुना था। पर सगाई तक दोनों एक दूसरे को काफ़ी हद तक समझ चुके थे। कुछ सपने तो दोनों के बिल्कुल साझे हो गए थे। सुशांत को भी उसकी तरह किताबें पढ़ने का बहुत शौक था। दोनों की बातें खत्म ही नहीँ होतीं थी, और वो छलिया अपनी आधी बातों की तरह कुमुद की ज़िन्दगी को भी अधूरी छोड़कर चला गया था।
(क्रमशः )