कड़वाहट का लॉकडाउन
कड़वाहट का लॉकडाउन
"तुमने वो जीवन बीमा की पॉलिसी निकाल कर रखी?"- ऋषि ने घर में घुसते ही पूछा।
"ओह! मैं तो बिल्कुल ही भूल गई अभी निकाल देती हूं।"- रीना ने अपनी गलती स्वीकार की। "वैसे भी अभी 10 दिन है उसका प्रीमियम भरने के लिए"
"3 दिन हो गए बोलते हुए पर तुम्हारे कान पर जूं नहीं रेंगती। आखरी दिन दौड़ेंगे क्या? फिर तो तुमने मेरी पैंट में भी बटन नहीं टांका होगा"-ऋषि ने व्यंग से कहा
"सॉरी! वो आज धोने में डाली है। सूखने पर आज पक्का टांक दूंगी" - रीना रुआंसी हो गई।
"तुमको तीन काम बता कर जाओ, एक भी पूरा नहीं होता। क्या करती रहती हो दिन भर। घर में हर काम करने के लिए नौकर है। तुमको करना ही क्या होता है! बस इधर-उधर गप्पें लगाना, दोपहर को दो-तीन घंटे तान के सोना और दिन भर व्हाट्सएप पर बैठे रहना"- ऋषि गुस्से से लाल-पीला हो गया।
"आप शांति से बैठो। पानी तो पी लो। अभी घर में घुसे ही हो" -रीना में पानी का गिलास देते हुए कहा।
"क्या शांति से बैठूं? एक तो ऑफिस में दिनभर मगज पच्ची करके आओ और घर में देखो तो एक काम भी ढंग का नहीं होता। 2 दिन ऑफिस जाना पड़े तो पता चले कि कितना काम करना पड़ता है" - ऋषि का गुस्सा अब सातवें आसमान पर पहुंच गया था।
रीना के घर आए दिन इसी बात को लेकर झगड़ा होता था। सुबह 5:00 बजे से उसका दिन शुरू होता था तो रात में 11:00 बजे थक के चूर होकर बिस्तर पर गिरती थी। फिर भी यह रोज के ताने। घर के अलावा बाहर के सभी काम भी उसे ही करने पड़ते थे। सुबह सभी के चाय-नाश्ते, टिफिन से उसकी शुरुआत होती थी। फिर सास, ससुर को समय पर दवाईयां देना, उनका परहेज वाला अलग खाना बनाना, दूध, सब्जी, राशन, सब सामान बाजार से लेकर आना,पलक को स्कूल से लाना - ले जाना, उसका होमवर्क, उसके आए दिन मिलने वाले नए-नए प्रोजेक्ट करवाना, म्यूजिक, डांस और ड्राइंग की क्लास लाना - ले जाना, बैंकों के काम…
ऐसे बहुत से काम थे जो उसकी दिनचर्या में शामिल थे। घर में भले ही झाड़ू-पोंछा, बर्तन और साफ-सफाई के लिए नौकर थे पर खाना उसे खुद ही बनाना पसंद था। वैसे भी उनसे काम कराना खुद एक बड़ा सिरदर्द का काम रहता था। उसका दिन कब शुरू होकर खत्म हो जाता था पता ही नहीं चलता। दिन तो कैलेंडर के पन्ने जैसे हवा में उड़ते चले जा रहे थे और बढ़ती जा रही थी दिन पर दिन ऋषि की नाराजगी और उनक
े आपसी संबंधों में कड़वाहट।
रीना हमेशा कोशिश करती थी कि सबसे पहले ऋषि के बताए काम पूरे कर ले पर अक्सर दूसरे जरूरी काम सामने आ जाने पर वो रह ही जाते थे।
उसे दोपहर में 10 मिनट भी लेटने की फुर्सत नहीं मिलती थी। पलक को वह खुद ही पढ़ाती थी और जरूरी काम हो तो ही फोन हाथ में आता था। पहले तो वह ऋषि को अपनी सफाई देने की कोशिश करती थी पर फिर धीरे-धीरे उसे समझ में आ गया कि कोई फायदा नहीं है शायद सभी गृहणियों को यही सुनना पड़ता है।
इसी तरह उनकी गृहस्थी की गाड़ी चल रही थी कि पूरे विश्व में महामारी फैल गई। धीरे-धीरे भारत भी कोरोना की चपेट में आ रहा था। महामारी से बचने का एक ही उपाय था अपने घर में बंद रहना इसीलिए सरकार ने 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा कर दी थी। सभी स्कूल, कॉलेज, ऑफिस, बस, ट्रेन, प्लेन सब कुछ बंद! जीवन जैसे थम सा गया था। पलक और ऋषि की भी छुट्टियां हो गई थी। अब वो दोनों भी दिन भर घर में ही रहते थे। सावधानी के रूप में सभी काम वालों की छुट्टी कर दी थी। अब सारे काम रीना खुद ही करती थी। ऋषि और पलक भी घर के कामों में उसका थोड़ा-थोड़ा हाथ बंटाने लगे थे।
आज ऋषि के दोस्त का फोन आया। उससे बातें करते हुए ऋषि कह रहे थे- "अरे कहां यार! हां! ऑफिस तो पूरी तरह से बंद है पर पिक्चर-विक्चर देखने का टाइम ही नहीं मिलता है। घर में श्रीमती जी की थोड़ी मदद भी करानी पड़ती है। घर में भी बहुत से काम होते हैं। सुबह से रात कब होती है पता ही नहीं चलता। चल फिर बाद में बात करते हैं"- सुनते ही रीना के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।
सुबह तेज अदरक वाली चाय की खुशबू से रीना की नींद खुली। वो चौंक कर उठी- " ओह! 7:00 बज गए। आज तो बहुत देर हो गई उठने में।"
तभी ऋषि मुस्कुराते हुए चाय की ट्रे लेकर कमरे में आए- " उठिए मैडम! गरमा-गरम चाय तैयार है।"
रीना झेंप गई"अरे तुमने मुझे उठाया क्यूँ नहीं ?मैं चाय बना देती !मम्मी जी पापाजी की दवाई का भी टाइम हो गया !
"मैंने दे दी है उन्हें। और चाय तो रोज तुम ही बनाती हो ना। मैं तो 8:00 बजे उठता हूं। आज से मुझे भी सेवा का मौका दो"
और दोनों खिलखिला कर हंस पड़े।
इस लॉकडाउन से उनके आपसी संबंधों में बढ़ने वाली कड़वाहट का भी आज हमेशा के लिए लॉकडाउन हो गया था।