कड़वा सच
कड़वा सच
रविवार 26/ 7/2020 को शाम के समय लगभग सवा पाँच बजे के करीब अचानक हमारे श्रीमानजी श्री राकेश जौहरी जी का शरीर बुरी तरह ऐंठने लगा हम लोग उसी अवस्था में उन्हे लेकर भागे और अपोलो मेडिक में ले कर जा पँहुचे ।वहाँ इनको फौरन ही आकस्मिक विभाग में भर्ती कर लिया गया और हमें बताया गया कि इनको सीज़र अटैक पड़ा है।शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो गयी है।ऑक्सीजन देनी पड़ेगी हमारी सहमति ले कर तुरंत ही ऑक्सीज न देनी शुरू कर दी गयी।आधी रात में इनको आई सी यू में ले जा कर वेन्टीलेटर पर रख दिया गया।और उससे पहले रात में ही पचास हजार रुपये जमा करने को कहा गया। साथ ही हमसे इनके द्वारा कराये गये किसी भी इंश्योरेंस की जानकारी मांगी गयी । तत्पश्चात हमारे द्वारा यह बताने पर कि पाँच लाख का इंश्योरेंस है।जब तक इनका बिल इंश्योरेंस की सीमा में रहा अस्पताल वालों नें हमसे कुछ नहीं कहा ।लगभग दो हफ्ते बाद इन्होने और रुपये डालने को कहा । ये ठीक हो जायें पैसों की वजह से इलाज न रुके इस खातिर हम हमेंशा अपनों के सहयोग से उनके कहे बगैर पहले ही रुपये एडवांस में जमा कर देते थे।हम अपनें मरीज को रोज सुबह शाम देख कर डाक्टर से उनका हाल लेते थे । शुरू के तीन दिन आई सी यू में वेन्टीलेटर पर रखने के बाद वेन्टीलेटर से हटा कर ऑब्जेक्शन के लिये आई सी यू में ही तीन दिन और रखा गया ।वहाँ उनकी हालत सुधरती नजर आ रही थी।अपनें आप खाना भी खाने लगे थे ।आगे हमसे कहा गया कि ठीक हो जाएंगे तो देखियेगा चलते हुये घर जाएंगे । यही से डिस्चार्ज कर देंगे । तीन अगस्त को वार्ड में शिफ्ट किया गया ।और रात में खाना खाने के बाद अचानक ही तबियत खराब होने लगी तो कहा गया कि बी पी हाई हो रहा है ।चार तारीख को तबियत ज्यादा बिगड़ने पर फिर से वेन्टीलेटर पर रखा गया । दोबारा वेन्टीलेटर पर रखने के बाद जब हमनें उनको उनकी बात याद दिलाई तो डाक्टर साहब फौरन मुकर गये और बोले हम ऐसा कह ही नहीं सकते । तीन दिन बाद कहा गया कि क्रिटिकल केस है ।गले में नली डाली जायेगी उसी से प्राणों की रक्षा होगी ।हमें मजबूरी में इसके लिये सहमति देनी पड़ी । 27जुलाई से 18 अगस्त के मध्य के पूरे समय में तीन अगस्त तक आई सी यू मे ही रहे बस एक दिन के लिये एक कमरे वाले वार्ड में आये और फिर रात में ही आई सी यू में शिफ्ट कर दिये गये। शुरू के तीन दिन वेन्टीलेटर फिर तीन दिन नार्मल आई सी यू के बाद एक दिन वार्ड और फिर वेन्टीलेटर पर ही पूरे समय रख कर करीब चौबीस दिन बाद शनिवार इतवार को इंतजार कराने के बाद सोमवार सत्रह अगस्त की सुबह गले में ऑपरेशन कर के नली डाली गयी और फिर शाम के समय डाक्टर नें हमसे हमारी आर्थिक स्थिति के बारे में बात करते हुए कहा कि यहाँ अभी हफ्ता दस दिन और लगेगा। लाखों का बिल आयेगा ।यहाँ आगे का इलाज कराना आपके बस का नहीं है।हमारा दिमाग यह सब सुन कर सन्न रह गया । अब तक ये हमसे इंश्योरेंस के अलावा लगभग पाँच लाख रु और यानी दस लाख ले चुके थे।हम समझ गये कि हम इनके शिकंजे में बुरी तरह फंस चुके है । आगे डाक्टर द्वारा यह कहने पर कि मेडिकल कॉलेज या पीजी आई में ही सिर्फ सही इलाज होगा ।पर वहाँ एसी हालत में एडमिट नहीं किया जायेगा ।हम आपको सस्ते प्राइवेट अस्पताल का पता बता देंगे। हमारे दिमाग के तो ताले खुल ही चुके थे ।हमनें सोंचा पहले यहाँ से निकलो वरना खुद भी बिक कर कुछ हासिल नहीं होने वाला। अस्पताल से डिस्चार्ज होते समय लगभग एक लाख का बिल और पकड़ा दिया गया ।यानी अब तक पूरे पौने ग्यारह लाख का बिल अदा करके हम लोग यहाँ से निकाल कर इनको सीधे आस्था अस्पताल ले कर भागे ।जहाँ इनकी फिर से पूरी जाँच हुई ।उन्होंने जो निष्कर्ष निकला उसका सार यह है कि *26 जुलाई को एक अच्छे भले आदमी को जिसके सभी अंग सलामत थे डेंगू का सीजर अटैक पड़ने पर अपोलो अस्पताल में लाया गया और अट्ठारह अगस्त को जब वह बाहर निकला उसके शरीर के सभी महत्वपूर्ण अंग किडनी,मस्तिष्क, हृदय, लीवर,आदि बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके थे। साथ ही ये कोरोना पाॅजिटिव भी हो गये थे ।* साथ ही हमारा छोटा बेटा जो एक रात वार्ड में साथ में रुका था वह भी कोरोना पाॅजिटिव हो गया है । ग्यारह लाख के बिल के साथ दो ज़िन्दगियों को एक तरह से दांव पर लगा कर हम वहाँ से निकल भागे। कोविड होने पर आस्था अस्पताल से ही फौरन ही आनन फानन में रात में मेडिकल कॉलेज में एडमिट किये गये।तब कहीं जान में जान आई कि अब शायद अपनें सुहाग को बचा पायें ।