Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

4  

Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

कौन सा घर, पत्नी का ...

कौन सा घर, पत्नी का ...

5 mins
24.7K


ठीक है, अगर तुम मेरी इक्छाओं का इतना मान नहीं कर सकती हो तो, जहाँ जाना चाहो, कल चले जाना- गुस्से में तमतमाये अनवर, कह रहे थे।

ठीक है, मैं कल दोनों बेटों के साथ चली जाऊँगी- मैंने कहा था।

मैंने, बेटों का जिक्र जानकर किया था ताकि अनवर, जो बच्चों को जान से बढ़कर चाहते थे समझ सकें कि वे, क्या कह रहे हैं।यह सुनकर, फिर अनवर अकेले हमारे शयन कक्ष में चले गए थे और मैं, सो रहे बच्चों के पास, उनके बेड पर जाकर लेट गई थी।

मेरी, आँखों से नींद गायब हो चुकी थी। बात जरा सी यह हुई थी कि एक बार हो चुकने के बाद, मेरा फिर मूड नहीं था। मैं थकी हुई भी थी और अगले दिन के क्लॉस लेक्चर की तैयारी करने, अगली सुबह जल्दी उठने के लिए, सो जाना चाहती थी।

अनवर फिर से आवेशित हुए थे। मैंने मना किया तो उन के अंदर का मर्द कुपित हो गया था। बस इतने से पर उन्होंने, इतनी तक बात कह डाली थी। जबकि मुझे मालूम था मुझे बहुत चाहते हैं। वे, स्वयं ही जज थे। मुझे विश्वास था गुस्सा उतरने के बाद, उन्हें स्वयं की गलती का एहसास हो जाएगा।

मुझे ऐसे धमकाने की भूल न करें इसलिए अगले दिन सुबह, मैंने चाय नहीं बनाई और सबक सिखाने के लिए अपने एवं बच्चों के सूटकेस तैयार करने लगी। साथ में, मैं कनखियों से, अनवर की प्रतिक्रिया देखते जा रही थी।

अनवर के मुख पर पहले विस्मय के भाव दिखे, फिर वे एकाएक उठे और उन्होंने, बेटों का सूटकेस उठाकर अलग रख दिया।

बोले- नहीं, तुम बेटों को नहीं ले जाओगी।

मैं समझ गई कि अनवर, गलती की माफी नहीं माँगना चाहते। यह तो उनकी मर्दानगी के खिलाफ की बात हो जायेगी, इसलिए मुझे रोकने के लिए, भावात्मक यह दबाव बना रहे हैं। मुझे, उनका यह दाँव, साफ समझ आ रहा था।

मैं तो, जाने का यह अभिनय सिर्फ इसलिए कर रही थी कि कितने भी रुष्ट होने पर भी फिर, अनवर आगे से इतनी घटिया बात न कहें। और आज स्पष्ट रूप से अपनी भूल की क्षमा माँगे एवं मुझ से चिरौरी करते हुए ना जाने को कहें।

प्रत्यक्ष में बेपरवाही दिखाते हुए मैं,अपना सूटकेस तैयार करने का उपक्रम करते रही और कहा- ठीक है, बेटों की जिम्मेदारी आप रखें तो मुझे आसानी ही रहेगी। 

मेरी बात का उन पर अपेक्षित प्रभाव नहीं पड़ा कंधे उचकाते हुए उन्होंने कहा - हाँ, मुझे कोई परेशानी नहीं। 

यह कह कर वॉशरूम में चले गए। तब तक बच्चे उठ गए, मैंने उनको, स्कूल के लिए तैयार किया। टिफिन लगाया और ड्राईवर के आने पर नित्य की तरह, अनवर की कार से उन्हें स्कूल भेजा।

फिर मैं, स्वयं स्नान करने गई। वस्त्र आदि पहन कर थोड़ा श्रृंगार किया। जब बाहर आई तो देखा, अनवर किचन में चाय एवं ब्रेड बटर बना रहे थे।मैं, ऐसा दिखाते रही कि मैं, उन्हें देख नहीं रही हूँ।


मैंने जानबूझकर उनके सामने जाने के लिए, फ्रिज से पानी की बोतल निकाली। फिर बेडरूम से अपना सूटकेस, जरूरत से ज्यादा शोर करते हुए बाहर लाई, अपनी कार की चाबी लेते हुए, सेंडिल बजाते हुए गेट खोला और बाहर निकली।

अब मेरे अभिनय ने काम किया, अनवर पीछे आये, मेरा सूटकेस छुड़ाया और कहते हुए- बेगम, क्यूँ इस गरीब जज की इज्जत का फालूदा बनाने पर तुली हो। 

उन्होंने, मेरा हाथ पकड़ा और खींचकर वापिस घर के भीतर ले आये। मैंने प्रतिरोध नहीं किया। सोफे पर बैठकर, कॉलेज प्रिंसिपल को मोबाइल कॉल किया। अपने, अस्वस्थ होने का बहाना करके, अवकाश की स्वीकृति प्राप्त की। 

फिर अनवर से कहा- आपका मान रखते हुए, अभी जाना मैं, स्थगित कर रही हूँ। लेकिन, आज रात बेडरूम में आपको, आपकी अदालत लगानी होगी, जिसमें मेरा केस सुनकर निर्णय देना होगा। आपके न्यायालय से न्याय मिलने पर ही मैं, जाने का विचार त्याग सकूँगी। अन्यथा अपना केस अन्य जज के कोर्ट में लगाऊँगी। 

कहते हुए मैं चेहरे पर यथोचित गंभीरता प्रदर्शित कर रही थी।     अनवर एक तरह समर्पण सा करते हुए बोले- हाँ, मेरी अम्मा, जो कहोगी करूँगा लेकिन आप, दिन भर घर में ही टिके रहना। 

फिर अनवर कोर्ट चले गए। मैं दिन में, अपना पक्ष प्रभावपूर्ण तरीके से रखने की दिमागी तैयारी करते रही। बेटे स्कूल से लौटे तो उनके साथ मस्ती भी की। 

डिनर के बाद बच्चे जब सो चुके तो मैं, बेडरूम में पहुँची। अनवर ने कुछ मिनट मर्दानगी से समझौते के लिए, हिम्मत बटोरी फिर बोले - कल के लिए बेगम, मुझे क्षमा कीजिये। 

मैंने कहा - नहीं ऐसे ना होगा, आप साधारण व्यक्ति नहीं एक जज हैं। आपको जज के तरह सुनवाई करते हुए निर्णय करना होगा। 

मेरी भाव-भँगिमा से अनवर को समझ आ गया था कि उनकी, मैं प्रोफ़ेसर पत्नी ऐसे ना मानेगी तो वे जज के तरह बैठ गए और उनके कोर्ट में मैंने अपने पर अत्याचार के विरुध्द न्यायालयीन लड़ाई, यूँ लड़ना प्रारंभ किया। मैं : जज साहब, मेरे मुजरिम स्वयं आप हैं, आप जानते हैं कि आपने मुझ पर क्या ज्यादती की है। 

जज : जी हाँ, आप अपनी दलील रखिये। मैं : जज साहब, एक लड़की विवाह होने के बाद, अपने मायके से विदा की जाती है इससे स्पष्ट होता है कि पीहर का घर उसका नहीं होता है। जज : हाँ, यह परंपरा से माना जाता है, आगे कहिये। मैं : जज साहब, तब ऐसे वह लड़की, अपने पति के घर को अपना मानती है। इसे आप सहमत करते हैं।  जज : जी हाँ, स्पष्ट कहें, आप सिध्द क्या करना चाहती हैं। मैं : किसी असहमति या किसी विवाद के कारण ऐसे में, कोई पति यदि पत्नी पर क्रोधित होता है तो वह पत्नी को घर से निकलने क्यों कहता है? जब, आप सहमत करते हैं कि ब्याह होकर आई लड़की का, यही घर उसका अपना होता है तो, किसी विवाद के कारण पति को यदि साथ नहीं रहना हो तो पत्नी ही घर से परित्यक्ता बतौर क्यों निकाले जानी चाहिए? क्या, न्याय यह नहीं कि, ऐसी स्थिति बनने पर खुद पति, घर से परित्यक्त हो?जज : (कुछ समय सोचने के उपरांत) आपकी दलील, न्यायोचित है, मैं अनुशंसा करूँगा कि सरकार, संशोधन बिल लाकर, संविधान में ऐसा प्रावधान करे। मैं : धन्यवाद जज साहब, अब आप मेरे मुजरिम के लिए, दंड निर्धारित करने की कृपा करे। जज (आदेशात्मक स्वर में) : संवैधानिक प्रावधानों से विलग, यह अदालत मुजरिम को चेतावनी देती है कि वह पत्नी पर ऐसे अत्याचार से बाज आये। भविष्य में यदि ऐसी अप्रिय परिस्थिति बनती है तो पत्नी को घर से निकालने की जगह वह, स्वयं घर से निकले। साथ ही यह भी आदेश करती है कि मुजरिम, कल रात की भूल के लिए पत्नी से क्षमा माँगते हुए अपना शपथ पत्र, इस अदालत में जमा करे। नाउ, कोर्ट इज अड्जॉर्नेड!तदुपरांत अनवर ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया कहा - मेरी इंटेलीजेंट वाइफ, तुम्हें साथ पाकर मैं धन्य हूँ। तुम्हें प्रोफेसर की जगह लॉयर होने पर विचार करना चाहिए। तब मैंने अपनी बड़ी बड़ी अँखियों को, प्रेम से सराबोर करते हुए, अनवर को निहारा और उन्हें मोहित कर लिया।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational