कौन हारा कौन जीता
कौन हारा कौन जीता
पवन और नीता एक दूसरे के लिए तो बिल्कुल नहीं बने थे। हालांकि उनका घर सुचारु रूप से चल रहा था लेकिन फिर भी हर छोटी छोटी बात पर उन दोनों में बहस शुरू हो जाती थी। दोनों को ही क्रिकेट मैच देखने का शौक था और मैच को वे दोनों बहुत लगन से देखते थे। यदि इस बीच में किसी ने भी किसी को कोई काम बतला दिया तो लड़ाई का अनुपात इतना बढ़ जाता था कि मानो वे एक दूसरे की हत्या ही कर देंगे। मैच से पहले ही इलेक्ट्रिक कैटल में चाय बना कर रखी जाती थी और साथ में कुछ खाने के लिए भी रख लिया जाता था। यदि इन दोनों ने कुछ बाहर से भी मंगवाया हो तो मैच के बीच में जोमैटो से आए हुए उस सामान को लेने कौन जाएगा? इन दोनों में से जो भी मैच में से उठा समझो उसने बहुत बड़ा त्याग किया है, हालांकि जाते हुए उसने दूसरे को घूर के जरूर देखा होगा।
यह तो एक छोटा सा किस्सा है, इन दोनों के बीच लड़ाई के तो कारणों की कमी ही कोई नहीं थी। पिछली बार जब पवन की मम्मी घर आई थी और इन लोगों का लड़ता हुआ रूप देखा था तो वह अब तक भी फोन पर पवन और नीता को अपनी तरफ से तो समझाती थी लेकिन दोनों को वह डांट ही लगती थी और फिर दोनों ही एक दूसरे पर चिल्लाने का और घर की शांति भंग करने का आरोप लगाते हुए यह भूल जाते थे कि उनकी आवाज की वॉल्यूम इतनी ज्यादा है कि पड़ोसियों ने भी टीवी बंद करके फ्री का मनोरंजन सुनना शुरू कर दिया। बाकी पड़ोस के कुछ लोग जो उनकी लड़ाई से पक चुके थे उन्होंने टीवी चलाना शुरु कर दिया था।
लेकिन अब बात थोड़ा सीरियस हो चुकी थी। बराबर लड़ने के बाद नीता जब भी खुद को हारता हुआ महसूस करती तो सहानुभूति पाने के लिए वह अपनी मां को भी फोन करना नहीं भूलती थी। हमेशा मां उसको उसकी गलती का ही अहसास करवाते हुए घर को शांतिपूर्वक चलाने के लिए ही प्रवचन देती और अपनी तरफ से पूरी कोशिश करती कि इन दोनों की गृहस्थी आराम से चलती रहे। लेकिन इस बार मालूम नहीं नीता की माता जी को नीता की कही बात में क्या दिखा और उन्होंने ऐसा क्या समझा जो कि फोन करके पवन को डांटने और समझाने लगी।
उनके सामने तो पवन चुप रहा लेकिन घर आने के बाद से बात बढ़ती ही जा रही थी। सासू मां से कुछ भी सुनने के बाद पवन को बहुत अपमानित महसूस हो रहा था। हालांकि इस बार पवन को गुस्सा होते देख नीता को भी दुख तो हो रहा था लेकिन फिर भी हार मानना तो दोनों को ही मंजूर नहीं था।
बात बढ़ते बढ़ते गुस्से में नीता ने पवन से कहा मैं जानती हूं तुम्हें बहुत दुख हो रहा होगा कि तुम्हारी शादी मुझसे हुई है। तुम्हें मैं कभी भी अच्छी नहीं लगी ना !मेरी हर बात तुम्हें बुरी लगती है ना? मुझ में बहुत सी कमियां है ना ? जानती हूं मुझसे शादी करके तुम बहुत दुखी हो और मुझसे शादी करने के बाद तुम्हें ऐसा लगता है कि तुम्हारा जीवन नष्ट हो चुका है। जानती हूं मैं, इतनी जोर जोर से चिल्लाने के बाद नीता की आवाज भी रूंध गई थी। पड़ोसी भी उनकी लड़ाई को बड़े ध्यान से सुन रहे थे कि तभी पवन बोला, नहीं ऐसा कुछ नहीं है। तुमसे अच्छी पत्नी तो मुझे कोई मिल ही नहीं सकती थी। तुमको पाकर मैं खुद को बहुत भाग्यशाली समझता हूं। तुम बहुत अच्छी हो। पर फिलहाल रोने की जरूरत नहीं है, मुद्दे से ना भटको ना भटकाओ, हम लोग लड़ रहे हैं और लड़ाई को आगे बढ़ाओ।
नीता रोते-रोते मुस्कुरा दी, पड़ोसियों ने भी अपने दरवाजे बंद कर दिए और नीता को यूं ही पवन पर बहुत प्यार आया और उसने मुस्कुराते हुए कहा ठीक है, मैं हार गई अब मेरा लड़ने का मूड नहीं है। पाठकगण, यह बहुत बड़ी उलझन है कि यह कैसी लड़ाई और कौन हारा और कौन जीता? तभी तो कहते हैं पति-पत्नी की लड़ाई जैसे दूध की मलाई।