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Dr Jogender Singh(Jaggu)

Drama Tragedy

4.4  

Dr Jogender Singh(Jaggu)

Drama Tragedy

कौआ

कौआ

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क्या कर रही हो छोटी? सुनपा ने भक्ति को आवाज़ लगाई ।

कुछ नहीं! कुछ तो कर रही हो? इतनी आवाज़े लगाई, सुनती ही नहीं। अरे मैं कौए को दूध/भात खिला रही थी। आप की आवाज़ सुन कर उड़ गया, अभी पूरा खा भी नहीं पाया था। आप थोड़ी देर रुक नहीं सकती थी?  अरे, क्या करूँ मैं इस चुड़ैल का। एक तो लड़की हो गई पैदा, वो भी ऐसी ? कौए को कोई दूध भात खिलाता है, रोज़,रोज़। कनागत (पित्रपक्ष) की बात हो तो ठीक है। क्या मां ----क्या कौए को साल में सिर्फ कनागत में भूख लगती है?  अरे मरी, बाकी दिन वो अपना खाना ख़ुद ढूंढ़ता है। तो क्या कनागत में नहीं ढूंढ सकता ? तब हम लोग क्यों खिलाते हैं उसे? तेरे बाप ने, दिमाग ख़राब कर दिया है। उठ चल जल्दी से नहा, स्कूल नहीं जाना है? नहाती हूं।

देख बेटा तू हम लोगों की इकलौती बिटिया है, ध्यान से पढ़ा कर। मां ने चोटी बनाते हुए कहा। मां यह काला रिबन ही क्यों बांधती हो मेरी चोटी में ? अरे पागल यह तुम्हारी ड्रेस है? दो चोटी और काला रिबन। और यह सौ ग्राम तेल जो रोज़ सिर में ठोक देती हो, यह भी ड्रेस है। इस से दिमाग तेज़ होता है, बाल लंबे हो जाते है और मजबूत भी। पर मुझे तो छोटे बाल रखने है ?धर्मेन्द की तरह। पागल है तू, जा जल्दी देखो लक्ष्मी भी आ गई।


दोनों सहेलियाँ उछलती /कूदती स्कूल की तरफ़ जा रही थी। क्यों लड़कियों बहुत खुश हो ? कुलदीप ने पूछा। अरे कुल्ला चाचा मैं तो खुश ही रहती हूं, भक्ति ने जवाब दिया, और मेरे साथ लक्ष्मी खुश रहती है। क्यों लक्ष्मी? हां चाचा इसके साथ बहुत अच्छा लगता है। जल्दी जाओ तुम दोनों, राम प्रसाद मास्टर जी आ गए हैं। अरे लक्ष्मी जल्दी चल, अच्छा चाचा। पागल लड़कियाँ।

गुरुजी आ जाऊं ? आ जाओ, जल्दी से बैठो सारे बच्चे आ गए हैं तुम दोनों जल्दी से अपनी जगह बैठ जाओ। भाग कर अपनी अपनी जगह बैठ गई। तो आज हम सीखेंगे दो का पहाड़ा--- दो इकम दो, दो दूनी चार --- दो नमे अठरह, अब तेजवीर आगे आगे बोलेगा , बाकी सब दोहराएंगे।  गुरु जी ऊंघने लगे, तुम लोग पढ़ते रहो, तेजवीर के बाद पराक्रम दोहराएगा। मैं प्रिंसिपल साहब को मिल के आता हूं। लक्ष्मी तुम्हें याद हो गया? हां लगता तो है। चलो फिर स्लेट पर कौआ बनाते हैं, यह पंजे, चोंच, पूंछ और बन गया। तुम हर वक़्त कौआ ही क्यों बनाती रहती हो, एक तो काला, ऊपर से बोलता इतना गंदा है। अरे बहुत अकलमंद होता है। भक्ति ने कहा, सबसे अकलमंद। मेरे बापू कहते है, अक्ल की कीमत सबसे ज़्यादा होती है। अरे और भी पंछी अकलमंद होते हैं, लक्ष्मी बोली। पर सबसे अलग कौआ।

यह जो बिजूका है, थकता नहीं बेचारा, ऐसे बांहे ताने ताने? अरे डंडे को कुर्ता पहना कर, मटकी पर मूछें बना कर लटका देते हैं, भक्ति ने कहा, तू चल जल्दी , घर जाकर पहाड़ा याद करना है।

मां मैं आ गई। खाना दो। अरे हाथ मुंह धोले पहले, और बस्ता खूंटी पर टांग देना । बापू किधर है। वो देख नीचे खेत में, खरपतवार निकाल रहें है। यह घास कौन बीजता है मां? गेंहू के बीज तो बापू ने डाले, पर घास के बीज ? कैसे आते हैं मां। खाना खा ले। दिमाग बापू का खा जाकर , मेरे पास इतना नहीं है, कि तुझ में खपाऊं। और सुन थाली मांज कर रख देना, राख वही रखी है। थाली नहीं मांजूंगी, मैं तो बापू का लड़का हूं। जा रही हूं खेत पर। अरे सुन, बापू की चाय लेती जा, बना रही हूं।  जल्दी बनाओ ! थोड़ा सब्र कर। यह ले संभाल कर ले जाना।

अरे मेरा बेटा, चाय ले कर आया, गरीबा राम ने भक्ति को देख कर कहा। ला चाय पी लेता हूं । बापू यह बताओ गेंहू के बीच घास कैसे उग आती है, जबकि घास के बीज तो डाले ही नहीं थे। बेटा यह ईश्वर की माया है, उसको सबका पेट भरना होता है , जानवर खेती तो कर नहीं सकते ना, तो उनके लिए भगवान घास पैदा कर देते हैं, बिना बीज के। अच्छा फिर गेंहू क्यों पैदा नहीं करते, भगवान जी को गेंहू पैदा करना नहीं आता क्या? अरे नहीं बेटा, भगवान ने आदमी को सबसे ज्यादा बुद्धि दी ना , इसलिए आदमी को बुद्धि का प्रयोग करके गेंहू और बाकी चीजें पैदा करनी पड़ती है। बापू क्या आदमी में सबसे ज़्यादा बुद्धि होती है? हां बेटा। कौए से भी ज्यादा? हां कौए से भी ज्यादा। तभी तो भाग जाता है, बेचारा आवाज़ सुनते ही, भक्ति बड़बड़ाई थी।

सुनो तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही, सांस फूलने लगती है, जरा सा काम करते ही, आज छाती में दर्द भी हो रहा है। गरिबा राम सुनपा से बोला। बीड़ी पीना तो बंद करोगे नहीं, शहर जाकर बड़े अस्पताल में दिखा लो। अरे जगदीप डाक्टर से दवा लाया तो हूं, पर इस बार फ़ायदा नहीं कर रही उनकी दवा। एक दो दिन खा कर देख लूं, नहीं तो शहर चला जाऊंगा। अरे कल ही चले चलिए, मैं भी चलती हूं साथ में। नहीं भक्ति का स्कूल है, तुम उसको देखो, मैं चला जाऊंगा। तो मैं विष्णु भैया को बुला लेती हूं, दो लोग रहोगे तो ठीक रहेगा। विष्णु को क्यों परेशान कर रही हो? क्यों तुम नहीं खड़े होते उनके साथ उनके सुख/दुःख में , मैं अभी उनको बोल कर आती हूं, सुनो रहने दो, मैं चला जाऊंगा। मैं अभी आती हूं।

मंगला भाभी, इनकी तबियत ठीक नहीं है, जगदीप डाक्टर से दवा लाए थे, पर आराम नहीं मिल रहा। अरे तो शहर दिखा लाओ सूनपा। हां भाभी कल जाने की सोच रहे हैं, भक्ति का स्कूल है, मुझे घर पर ही रहना पड़ेगा। लड़की जात को पढ़ा कर क्या करना। भाभी विष्णु भैया इनके साथ चले जाते तो सहारा रहता। अरे बिल्कुल चलें जाएंगे, मैं बोल दूंगी इनको। जाओ गरीबू से कह दो कल तैयार रहना, आठ बजे की बस से निकल जाना। जी भाभी।

पैसे रख लिए ना? ये दो पोटली हैं , एक में रोटी/सब्जी है। दूसरी में चना/भुजा । नमस्ते विष्णु भैया, लो भैया भी आ गए। चलो भाई गरीबु , चलते हैं।

शाम को बुझे बुझे विष्णु और गरीब राम घर में घुसे। क्या हुआ बापू? भक्ति ने पूछा। ठीक है बेटा, तुम जाओ लक्ष्मी के साथ खेलो। क्या हुआ जी, सुणपा बोली। डॉक्टर ने फेफड़े का कैंसर बताया है, ज़्यादा से ज़्यादा छह महीने। ऐसे कैसे कोई इलाज तो होगा ? है बहुत महंगा, और फिर भी कोई गारंटी नहीं । अरे कोई न कोई रास्ता तो होगा। अब भगवान ही जाने।

दो महीने बाद, गरिबू की मिट्टी आंगन में रखी थी, सुनपा का रो रो कर बुरा हाल था। भक्ति को कुछ समझ नहीं आ रहा था। लोग दाह संस्कार कर आए।

मां सफ़ेद साड़ी क्यों पहनी तुमने? बेटा तेरे बापू अब नहीं रहे, सुनपा ने रोते हुए बताया। क्यों ? क्या हुआ उन्हें? वो कौए बन गए बेटा, सुनपा ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। 

भक्ति छत पर इंतजार कर रही थी , कौए का? या बापू का ? कौआ आ ही नहीं रहा था । शाम के बाद रात भी आ गई। बस कौआ नहीं आया।



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