Apoorva Singh

Drama Romance Tragedy

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Apoorva Singh

Drama Romance Tragedy

कैसा ये इश्क़ है....? (भाग 3)

कैसा ये इश्क़ है....? (भाग 3)

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किरण और अर्पिता दोनों ही घर के लिए निकलती है।

कुछ ही देर में दोनों घर पहुंच जाती है। जहां बीना दोनों का इंतजार कर रही होती है।

आ गई दोनों। मैं कब से राह देख रही थी। बीना ने चिंतित होते हुए दोनों से कहा।

वो मासी अब मॉल में गए थे शॉपिंग के लिए तो समय तो लगना ही है। आप चिंता न किया करे अगर फिर भी मन नहीं माने न तो बस एक फोन कॉल और आपको हमारी पूरी खबर मिल जाएगी। जिससे आपकी चिंता कम हो जाएगी। अर्पिता ने बीना के गले लगते हुए कहा।


हां अर्पिता ये बात तो मैं भूल ही गई। तू तो मेरी लाडली बच्ची है और जिम्मेदार भी। फिर मुझे सोचने की जरूरत ही नहीं। बीना मुस्कुराते हुए कहती है।

अच्छा अब बातें बाद में अभी के लिए तुम दोनों हाथ मुंह धुल चेंज कर लो फिर नीचे आओ।

ओके मासी। अर्पिता कहती है और किरण को लेकर कमरे में चली जाती है। अर्पिता अपना बैग खूंटी पर लटका देती है और चेंज कर नीचे चली आती है। किरण उपर ही होती है और अर्पिता के जाने का इंतज़ार करते हुए सारे कार्य धीरे धीरे करती है।

अर्पिता गई। सोचकर किरण खुश होते हुए उछलती है और फटाक से उसका बैग उतारती है एवम् एक कुशल जासूस की तरह जासूसी करने लगती है।

बैग को चेक करती हूं। जरा पता तो करूँ मैडम जी क्या छुपा रही है मुझसे। कहते हुए पहले आगे वाली पॉकेट चेक करती है। उसमे कुछ नहीं मिलता फिर दूसरे में चेक करती है जहां उसे प्रशांत का आईडी कार्ड मिलता है।

तो ये तुम्हारे प्रशांत जी है अर्पिता। किरण उस पर लिखे शब्द पढ़ती है जिसमें उसके ही कॉलेज कैंपस का नाम लिखा होता है। जिसे देख किरण हैरान हो जाती है।


किरण चल नीचे मासी जी बुला रही है। अर्पिता ने दरवाज़े से अंदर आते हुए कहा।

ओह नो किरण ने अर्पिता को देख कहा और उस कार्ड को अपने पीछे छिपा लिया। लेकिन अर्पिता कार्ड देख चुकी होती है।

अर्पिता - जब देख ही लिया है तो छिपा क्यों रही हो किरण।

ओह गॉड पकड़े ही गए किरण खुद से ही फुसफुसाते हुए कहती है और स्माइल करते हुए हाथ आगे ले आती है। प्रशांत के लाइब्रेरी कार्ड को देख अर्पिता उससे पूछती है तो तेरी जासूसी ख़तम हुई कि नहीं।

सॉरी यार! वो बस ऐसे ही मन में....! किरण धीरे से कह जाती है जिसे सुन अर्पिता कहती है मतलब अभी भी नहीं समझी।

ये कार्ड हमें लाइब्रेरी में मिला था। हम लौटाने के लिए गए तब तक वो जा चुके थे और फिर शाम को जब हम उनसे टकराए तब भी वो जा ही चुके थे इसीलिए हम उनका नाम जानते है समझी कि नहीं। अगर तेरी जासूसी ख़तम हो गई हो तो हम दोनों नीचे चले। अर्पिता किरण से छोटा सा झूठ बोल देती है।

हां चलो चलते है किरण कहती है। दोनों नीचे चली आती है जहां बीना ने दोनों के लिए लंच लगा कर रखा होता है।


अर्पिता और किरण चुपचाप खाना फिनिश करते है।

मां मेरा खाना तो फिनिश हो गया अब मैं तो अपने कमरे में जा रही हूं स्टडी करने किरण ने कहा। और वहां से चली जाती है। और मासी हम दादी मां के पास जाते है। अर्पिता ने मुस्कुराते हुए कहा और दया जी के पास चली जाती है। दया जी इस समय बैठी हुई अपने लड्डू गोपाल के वस्त्र बनाने की तैयारी कर रही होती है।

क्या कर रही है दादी मां आप! अर्पिता ने कमरे से अंदर आते हुए पूछा।

मैं बाल गोपाल जी के सुंदर से वस्त्र बनाने की कोशिश रही हूं लाली। देख ये एक बनाए भी है। दादी मां ने हरे रंग के सुंदर से वस्त्र दिखाते हुए अर्पिता से कहा।

बहुत सुंदर है दादी मां कैसे बनाए आपने। अर्पिता ने दया जी से कहा।

अर्पिता की बात सुनकर दयाजी मुस्कुराते हुए कहती है ये तो बहुत आसान है लाली चल बैठ यहां मै सिखाती हूं तुझे।

ठीक है दादी मां। कहते हुए अर्पिता वहीं बैठ जाती है और ध्यान से देखने लगती है। एक बार देखने के बाद वो खुद से कोशिश करती है और कामयाब भी होती है।

अर्पिता आपके घर से फोन है बीना ने नीचे आवाज़ देते हुए अर्पिता से कहा। आई मासी कहते हुए अर्पिता कमरे से चली आती है और घर बात करने लगती है।

कुछ देर बात करने के बाद अर्पिता बीना के पास रसोई में चली जाती है।


कुछ चाहिए बेटा। बीना ने बड़े ही प्यार से अर्पिता से पूछा। नहीं मासी वो हमारे करने के लिए कुछ कार्य नहीं था तो हमने सोचा आपकी मदद कर देते है। वो क्या है न हमें कुछ न कुछ कार्य करते रहने की आदत है।

ये तो अच्छी आदत है बेटा! लेकिन यहां तो कोई कार्य करने के लिए नहीं है। यही एक कार्य है रसोई का अब इसमें भी आप मदद करोगी तो फिर मैं तो आलसी हो जाऊंगी न। इसीलिए आप बस अपनी पढ़ाई और कोचिंग पर ध्यान दीजिए। अगर फिर बोर हो रही हो तो एक कार्य कीजिए आप कोई भी एक क्लास ज्वाइन कर लीजिए। जिससे आपको खुशी मिलती हो। बीना ने चाय गैस पर चढ़ाते हुए कहा।

मासी वो भी कर लेंगे लेकिन अभी हमे आपकी मदद करनी है अर्पिता ने कहा और रसोई के कार्य में बीना की मदद करने लगती है।


शाम हो जाती है और हेमंत जी भी अपना ऑफिस का कार्य निबटा कर घर आ जाते है। उनके हाथ में ऑफिस बैग होता है जिसे बीना जी लेकर सोफे पर रख देती है। अर्पिता रसोई से ही हेमंत जी को देख लेती है। वो रसोई से पानी का गिलास ले कर बाहर आती है। और हेमंत जी को पानी देती है।

अर्पिता - मौसा जी पानी!

हेमंत जी जो सोफे पर बैठ अपनी गर्दन पीछे रख कर थोड़ा रेस्ट कर रहे होते है अर्पिता की आवाज़ सुन आंखे खोल देखते है। अर्पिता को खड़ा देख मुस्कुराते हुए कहते है अरे अर्पिता आप यहां। अच्छा लगा आपको यहां देखकर। हेमंत जी ने पानी का गिलास उठाते हुए कहा।



अर्पिता वापस रसोई में चली जाती है। हेमंत जी कमरे में चले जाते है और बीना जी बैग रखने के लिए कमरे में जाती है।

अर्पिता ने रसोई में रखी चाय कप में निकाली और उसे लेकर दया जी को देने चली जाती है।

दादी मां आपकी चाय! अर्पिता ने चाय का कप टेबल पर रखते हुए कहा। आप ले आई अर्पिता। कब से इसकी तलब लग रही है। दादी ने कहा।

हां दादी मां! वो मासी ने चढ़ा दी थी तब तक मौसा जी आ गए थे तो हम ले आए आपके लिए।

ठीक किया लाली। ठीक है दादी मां हम अभी जाते है। वो हमे अभी पढ़ाई करनी है।

ठीक है लाली जाओ। दादी ने कहा। और अर्पिता वहां से चली आती है। एवम् कमरे जा कर अपनी किताबें निकाल कर पढ़ने लगती है। किरण भी कमरे में ही होती है और किताबो के साथ घिरी हुई बैठी होती है।



उधर बीना जी हेमंत जी से अर्पिता के दाखिले के विषय में बातचीत करती है। जहां हेमंत जी उसे बताते है कि अर्पिता का दाखिला कल करा देंगे कॉलेज भी देख लिया है। वो निश्चिंत रहे। और हां अर्पिता से कह देना कि वो कल सुबह दस बजे तक तैयार हो जाए। कॉलेज निकलना है दाखिले के लिए।

ठीक है जी हम बोल देंगे बच्ची को। मुझे एक बात और कहना था आपसे। बीना ने बिस्तर की सलवटे ठीक करते हुए कहा।

हेमंत जी जो उस समय अपने फोन के नोटिफिकेशन को देख रहे है कहते है। हां कहो बीना क्या कहना है।

वो मैं सोच रही थी कि जब अर्पिता यहां रहेगी क्लासेज तो वो अटेंड करेगी ही इसके साथ साथ क्यूँ न वो कोई और क्लास अटेंड कर ले जैसे कि संगीत का कोई वाद्य यंत्र सीखने की क्लास या फिर कोई डांस क्लास। जिससे उसका भी मन लगा रहेगा। अब यहां तो खेत खलिहान है नहीं जहां वो घूमने जा सके। यहां तो बस ये घर है और ज्यादा हुआ तो बाहर कहीं घूम आओ। बस यही जीवन है हमारे शहरों का।

ठीक है तुम अर्पिता से पूछ लेना उसे किस चीज की कोचिंग लेनी है। मैं कल की कल उसका दाखिला करा दूंगा। दोनों कार्य एक साथ ही हो जाएंगे। हेमंत जी ने मोबाइल से नज़रे उठा बीना जी को देखते हुए कहा।

ठीक है। और हां ये बता दीजिए कि नीचे चाय तैयार की हुई है आप नीचे आएंगे या फिर मैं यही कमरे में लेकर आऊं।

चाय! बन चुकी है तो फिर मैं अभी हॉल में ही आता हूं टीवी भी ऑन कर लूंगा। वैसे भी आजकल की तो हेडलाइन ही देख पाई है। डिटेल में तो कोई न्यूज़ देखी ही नहीं है।

ठीक है । कहते हुए बीना वहां से चली जाती है। अर्पिता भी रसोई में होती है उसे वहां देख वो उससे कहती है, अरे अर्पिता आप अभी भी यहीं हो। आपसे कहा था कि आप कमरे में जाइए। और पढ़ाई कीजिए। बीना जी ने अर्पिता से कहा। उनकी आवाज़ में सख़्ती होती है। और चेहरे पर बनावटी गुस्सा होता है।

मासी हम अभी आए है। वो दरअसल हमें पानी चाहिए था तो हम वहीं लेने आए थे।


अच्छा पानी चाहिए था। हमे लगा कि आप अभी भी रसोई ही काम कर रही हो। वैसे एक बात बताओ आप किस चीज की एक्स्ट्रा क्लास लेना चाहोगी। मैंने अभी तुम्हारे मौसा जी से बात की तो उन्होंने है कहा है लाली से पूछ लेना किस चीज की एक्स्ट्रा क्लास लेनी है। बीना जी ने रसोई में बिखरा पड़ा सामान समेटते हुए अर्पिता से पूछा। बीना जी बड़ी फुर्ती और सफाई से से रसोई के कार्य निपटा रही है जो उनके एक कुशल गृहिणी होने की ओर संकेत करता है।


मासी जी हम आगे पढ़ लिख कर संगीत विषय की प्रोफेसर बनना चाहते है। हमें इसी क्षेत्र से संबंधित ही कुछ सीखना है। बस यही हमारा सपना है। अर्पिता बात करती जाती है एवम् अपनी मासी की देखा देखी कार्य भी करती जाती है। बातों ही बातों में वो सिंक वाली जगह साफ़ कर देती है और हाथ धो कर फ्रिज में से पानी की बॉटल निकाल लेती है।

वो सब ठीक है लाली। मैं सोच रही थी कि आप इसके साथ साथ कुछ और विशेष सीखो, जैसे कि अभिनय,नृत्य, सिंगिंग, कोई खेल एक्टिविटी। ऐसा कुछ। इसीलिए मैंने आपसे पूछा।

मासी आपका सोचना बिल्कुल सही है। लेकिन हमे संगीत की प्रशिक्षिका बनना है तो इन सब का सीखना थोड़ा आवश्यक भी है। फिर भी अगर आप इतना ही जोर दे रही है तो इस बारे में हम सोचकर बताते है आपको।

ठीक है लाली अभी तो समय है जब सोच लो तब आराम से बता देना। बीना मुस्कुराते हुए अर्पिता की तरफ देखते हुए कहती है।


जी मासी। कह अर्पिता वहां से अपने कक्ष में चली जाती है। सारा दिन व्यस्त रही इसीलिए उसका मन भी लगा रहा अब कुछ देर के लिए वो फ़्री होकर किताबे खोल कर पढ़ने के लिए बैठी है। पढ़ते हुए उसकी नजर टंगे हुए दुपट्टे पर जाती है और मन में फिर से प्रशांत जी के कहे वो तीन शब्द घूमने लगते है वो सोचती है कुछ तो है उनमें जो हमे उन्हें भूलने नहीं दे रहा है। वरना हमारे मन में ये ख्याल नहीं आता कि उसकी याद के लिए ही उसका लाइब्रेरी कार्ड अपने पास रख ले। वो कुछ क्या है ये हम समझ नहीं पा रहे है लेकिन कुछ तो विशेष है उनमें। अर्पिता खुद से ही बड़बड़ाती है। किरण उसकी इस हरकत को देख रही होती है लेकिन उससे कुछ कहती नहीं है। वहीं अर्पिता एक बार फिर से कोशिश करती है पढ़ने की तो उसके सामने प्रशांत जी का चेहरा आ जाता है। जो उसने मॉल से निकलते हुए देखा था। जब मन नहीं लगता है तो कमरे में ही टहलने लगती है। कुछ देर बाद उसे नींद आ जाती है और वो नींद कि आगोश में चली जाती है।  

दिन निकल जाता है और अगले दिन अर्पिता हेमंत जी के साथ कॉलेज के लिए निकल जाती है। हेमंत जी उसे लखनऊ के अच्छे कॉलेज में से एक में ले जाते है और संगीत विषय से उसका दाखिला करा देते है।


हेमंत जी - अर्पिता लाली आपका दाखिला तो हो गया है आप चाहे तो अभी से ही क्लास ले सकती है या फिर चाहे तो कल से भी आ सकती हैं। अब आप बताइए आप क्या चाहती है।

अर्पिता - मौसा जी अगर अभी समय है तो हम आज से ही अटेंड कर लेते है वैसे भी कहा गया है नेक कार्य में देर नहीं करनी चाहिए।

ठीक है लाली। फिर मैं निकलता हूं तुम्हें रास्ता तो समझ आ गया है न। हेमंत जी ने कुछ पैसे अर्पिता को देते हुए उससे पूछा।

जी। हम समझ गए है मौसा जी हम घर पहुंच जाएंगे आप चिंता न कीजिए। अर्पिता ने पैसे लेते हुए हेमंत जी से कहा। ठीक है। कह हेमंत जी वहीं से वापस चले जाते है। और अर्पिता क्लास रूम के लिए बढ़ जाती है। अर्पिता अगस्त में आई होती है जिस कारण उसका थोड़ा सा सिलेबस छूट गया होता है। वो जाकर एक सीट पर बैठ जाती है जिस पर पहले से ही एक लड़की बैठी हुई होती है। वो थोड़ी परेशान होती है।

अर्पिता उसे परेशान देखती है लेकिन अभी उससे कुछ पूछना उसे ठीक नहीं लगता। तो वो उससे बातचीत करने की शुरुआत करती है।


हेल्लो। हमारा नाम अर्पिता व्यास है और आपका! 

अर्पिता ने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा।

अरे वो मैडम जी नहीं बोलेगी हम ही बता देते है इनका नाम है श्रुति मिश्रा!पीछे से कुछ लड़कों की आवाज़ आती है।

श्रुति के साथ साथ अर्पिता भी पीछे देखती है। जहां कुछ लड़के पीछे की बेंच पर बैठे हुए कहते है और साथ ही हाई फाइव कर हस भी रहे होते है। उनमें से कुछ सीट के उपर बैठे हुए है और कुछ अपनी जगह पर।

अर्पिता को ये देख कर गुस्सा आता है वो कुछ कहने वाली होती है कि श्रुति हाथ पकड़ कर उसे रोक लेती है।


श्रुति - अर्पिता मेरा नाम श्रुति है। और तुम इन लड़कों पर अपना गुस्सा जाया न करो ये सब बिगड़े हुए है। ये इनके व्यवहार से ही समझ आ रहा है। पिजी में आकर भी अगर जिम्मेदार नहीं बन रहे अपना बातचीत करने का तरीका नहीं सुधार रहे तो निश्चित ही ऐसे लोग चिकने घड़े है। इनसे कुछ भी कहेंगे इन पर कोई फर्क न पड़ना बल्कि उस घड़े से छिटके हुए पानी से हमारे ही दामन दागदार होंगे तुम समझ रही हो न हो मै कह रही हूं।

श्रुति ने धीरे से कहा। जिससे कि वो लोग उसकी बात सुन न पाए।


ठीक है श्रुति तुमने पहली बार हमे रोका है तो इस बात का मान तो रखना ही पड़ेगा। अच्छा क्या हम दोस्त बन सकते है श्रुति। अर्पिता ने दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा।

अरे र हम भी है यहां हमसे भी पूछ लीजिए थोड़ा। पीछे से आवाज़ आई। इस बार अर्पिता चुप नहीं रही। श्रुति के मना करने पर भी उन लड़कों के पास पहुंच जाती है और उनकी तरह बिंदास हो सीट पर बैठ जाती है और कहती है।


लगता है बड़ी रुचि रखते है आप सब दूसरों के मामले में पड़ने में।

हां! आगे बैठे दो लड़कों ने दाँत दिखाते हुए कहा।


क्रमशः....




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