Akanksha Gupta

Drama Crime Thriller

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Akanksha Gupta

Drama Crime Thriller

कातिल (हू नेवर मर्डर्ड) भाग-4

कातिल (हू नेवर मर्डर्ड) भाग-4

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दीप्ति अपने घर की रसोई में खड़ी कप में कॉफी फेंट रही थीं। पिछले दिनों बहुत कुछ ऐसा हुआ था उसकी जिंदगी में, जिसके बारे में वह कभी सोच भी नहीं सकती थीं। मिस्टर सिंघानिया की मौत से अब तक उबरी नही थी। खासकर अब जबकि उसे पता चला था कि उनका मर्डर हुआ था। उसके लिए यह मानना मुश्किल था कि कोई उनकी हत्या कर सकता था क्योंकि जो इंसान अपनी जान बचाने के बदले में उसे कम्पनी के बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर में शामिल कर सकता है, उसकी किसी से क्या दुश्मनी हो सकती हैं ?

उसने यह सब सोचते हुए अपनी कॉफी बनाई और अपने लिविंग रूम में आ गई। उसने कप टेबल पर रखा ही था कि घर की डोरबेल बजी। उसने दरवाजा खोला तो सामने अर्जुन और प्रिया खड़े थे। उसने उन दोनों को घर के अंदर बुलाया और आकर सोफे पर बैठ गई।

“कहिये एसीपी अर्जुन, कैसे आना हुआ ? कही इस टेबल ने तो कोई गुनाह नही किया?” कहकर दीप्ति हँस दी।

“नही मिस दीप्ति, यह गुनाह तो किसी इंसान ने किया है जिसकी वजह से हमारी मुलाकात इस तरह हो रही है।” अर्जुन ने कहा तो दीप्ति के चेहरे पर गम्भीरता छा गई।

“यू आर राइट मिस्टर अर्जुन, यह गुनाह तो किसी इंसान का ही है जिसकी वजह से आज एक अच्छा इंसान इस दुनिया में नहीं है। खैर कहिये मैं आपकी क्या मदद कर सकती हूँ?” दीप्ति ने पूछा।

“देखिए मिस दीप्ति, हम आपसे ढाई साल पहले हुए मिस्टर सिंघानिया के उस एक्सीडेंट के बारे में पूछने आये हैं जिसमें आपने उनकी जान बचाई थीं। अच्छा होगा अगर आप कुछ बता सके तो।” अर्जुन ने कहा और दीप्ति के जवाब का इंतजार करने लगा।

“वो दिन मैं कभी नहीं भूल सकती एसीपी अर्जुन। आखिर उसी दिन की वजह से मेरी जिंदगी आज इस मुकाम पर है। बहुत कुछ ऐसा है जो उन्होंने मुझे दिया है।” कहकर दीप्ति कुछ देर तक चुप रहती हैं और फिर कहना शुरू करती हैं- “उस दिन जब मैं अपने पहले जॉब इंटरव्यू के लिए उस नेशनल हाईवे पर से गुजर रही थी तो मुझे सड़क के किनारे एक गाड़ी खड़ी हुई दिखाई दी। उसका दरवाजा खुला हुआ था और उसमें से एक खून से लथपथ हाथ बाहर निकला हुआ था। वहाँ लोग आ जा रहे थे लेकिन कोई भी उनकी मदद के लिए आगे नही आ रहा था।”

“मुझे भी अपने जॉब इंटरव्यू के लिए देर हो रही थीं। पहले तो मन मे आया कि मुझे वहाँ से चले जाना चाहिए। मैं भी उन्हें छोड़कर जाने ही वाली थी लेकिन मुझे यह सही नही लगा इसलिए मैं वही रुक गई। जैसे ही मैं कुछ कदम आगे बढ़ी तो मुझे किसी के कराहने की आवाज सुनाई दी। आवाज इतनी धीमी थीं कि मैं डर गई कि कही किसी को कुछ ना हो जाए।”

“इसके बाद तो मैं अपना इंटरव्यू भूल ही गई। मैने सबसे पहले पुलिस को कॉल किया और फिर गाड़ी के पास पहुंची। अंदर झांक कर देखा तो दो आदमी खून में लथपथ गाड़ी के अंदर थे। मैं वही पर रुक कर उन लोगों को जगाये रखने की कोशिश करने लगी। उसके कुछ देर बाद जब एम्बुलेंस और पुलिस वहाँ पर आई तब मुझे पता चला कि वे दोनों पुरषोत्तम जी और उनका ड्राइवर था।” दीप्ति ने बात पूरी की।

”हहहह.. तो आपको ये सी.ए. का जॉब आपके उस इंटरव्यू के मिस होने के एवज में दी गई थी।” प्रिया ने सवाल किया

“जी आप कह सकते है। यह जॉब मेरे लिए बहुत मायने रखती थी तो मैंने उनका ऑफर ठुकराया नही।\" दीप्ति ने कहा।

“लेकिन ढाई साल में सी.ए. से कम्पनी के बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर की पोस्ट, आपको नही लगता कि आपके इस सुपर फास्ट प्रमोशन से किसी को कोई एतराज भी हो सकता है?” अर्जुन कुछ टटोलना चाहता था।

“जी मैं जानती हूँ, आप माधवी जी के बारे पूछना चाहते है। मुझे पता है कि वे बिल्कुल भी नहीं चाहती थी कि मैं उनकी कम्पनी का अहम हिस्सा बनूं और उन्होंने मुझे इसके लिए नतीजा भुगतने की धमकी भी दी थीं लेकिन पुरषोत्तम जी रिक्वेस्ट की तो मैं मना नही कर पाई।” दीप्ति ने कहा और शांत हो गई।

इसके बाद अर्जुन और प्रिया दीप्ति के घर से बाहर आते है। जीप के पास पहुंच कर प्रिया अर्जुन से सवाल करती हैं- “ तुमने दीप्ति से के.के. शर्मा के बारे मे क्यो नही पूछा? हो सकता हैं उसे कुछ पता हो।”

“बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर की पोस्ट उसे सच बताने के लिए नहीं सच छुपाने के लिए दी गई थी, मेरे ख्याल से।” अर्जुन ने कहा तो प्रिया ने कुछ सोचने के बाद फिर से पूछा- “अगर उसे सच छुपाने की यह कीमत दी गई थी तो माधवी उसके खिलाफ हमसे कुछ क्यों बोलेगी? और अगर यह कुछ नही जानती तो अब हम उस फर्जी के. के शर्मा तक कौन पहुंच सकता हैं?”

“क्योंकि उसे डर है कि दीप्ति विधान के करीब जा कर उसे अपने वश में ना कर ले जैसे उसने पुरषोत्तम सिंघानिया को किया था।” यह कहते हुए अर्जुन जीप में बैठ जाता है और प्रिया भी सवालों में उलझी हुई जीप में बैठ जाती हैं। फिर अर्जुन अपनी जैकेट की जेब से कुछ पत्तियों को निकालकर अपनी हथेली पर रखते हुए कहता हैं- “अब हमें इन पत्तियों से ही कोई रास्ता निकालना होगा।” उसके बाद दोनों वहाँ से निकल जाते है।

उधर माधवी और शैलेश इस सवाल में उलझे हुए थे कि आखिर कौन हैं जो उनके राज को जानता है और अब उनसे बदला लेने आ गया है।

माधवी ने कुछ सोचते हुए कहा- “क्या उस एसीपी ने कुछ सुन लिया होगा जब हम बात कर रहे थे?” 

“मुझे नहीं लगता कि उसने कुछ सुना होगा क्योंकि अगर उसने कुछ सुना होता तो हमसे सवाल जरूर करता।” शैलेश ने कहा

माधवी ने शैलेश से कहा- “आखिर कौन है जो हमारी जिंदगी का इतना बड़ा राज जानता है? क्या इस बारे मे तुमने किसी को बताया था शैलेश?”

“तुम पागल हो गई हो क्या माधवी, हमारा यह राज जब खुद हमें ही याद नहीं था तो दूसरे को कैसे पता चल सकता हैं? और अगर इस बारे मे किसी को कुछ भी पता होता तो भी उसे पुरषोत्तम को मारने की क्या जरूरत थी? वो उसे ब्लैकमेल करके पैसे भी तो कमा सकता था। यह तो कोई और ही है जो हमसे उस दिन का बदला ले रहा हैं।” शैलेश ने कहा और एक घूंट में अपना पैग पी गया। 

“ब्लैकमेल तो कोई कर ही रहा था उसे के.के.शर्मा के नाम से लेकिन उसने हमें बताया क्यो नहीं?” माधवी ने पूछा

“पता नहीं क्या चक्कर था जो उसने कुछ नही बताया। पिछले छः महीने से तो मेरी उससे कोई बात भी नही हुई।” शैलेश ने कहा तो माधवी चौंक गई। उसने पूछा- “छः महीने से बात नहीं हुई मतलब ? वो तो हर तीसरे दिन तुमसे बात किया करता था फोन पर।”

“क्या बकवास कर रही हो माधवी? पिछले छः महीने में एक बार भी बात नहीं हुई थी मेरी पुरषोत्तम से। उसने ही तो ईमेल करके मुझसे फोन करने के लिए मना किया था। कह रहा था कि विधान के साथ कही वर्ल्ड टूर पर जा रहा है।” अब चौंकने की बारी शैलेश की थीं।

“क्या बात कर रहे हो शैलेश? पुरषोत्तम पिछले छः महीने वर्ल्ड टूर तो क्या इस शहर से बाहर तक नहीं गए।” माधवी हैरान थी।

“तो इसका मतलब यह हुआ कि किसी ने के.के. शर्मा के नाम पर सिम रजिस्टर करवाया और फिर उस नम्बर से मेरे नाम पर पुरषोत्तम से बात करता रहा।” शैलेश ने गुत्थी सुलझा ली थी। 

“पर वो था कौन जिसने इतनी बड़ी और गहरी साजिश रची? और यही वजह थी कि हमें उन फोन कॉल्स के बारे में कुछ पता ही नही चला। पुरषोत्तम को भी कोई शक नहीं हुआ कि फोन पर तुम नही कोई और बात कर रहा हैं।” माधवी भी अब कुछ समझने लगी थी। उसने आगे कहा “चलो शैलेश हमें इस बारे में उस एसीपी को बता देना चाहिए।”

“नही माधवी हमें पहले खुद यह तसल्ली करनी होगी कि कही इससे हमारा राज खुलने का डर ना हो।” शैलेश ने कहा तो माधवी ने हाँ में हाँ मिलाई। 

“तो अब मुझे चलना चाहिए। मेरा यहां रुकना ठीक नहीं है। उस एसीपी को हम पर शक हो सकता है। टेक केयर एंड बी केयरफुल” कहकर शैलेश घर से बाहर निकल जाता हैं। कुछ दूर तक चलने के बाद किसी ने शैलेश के सिर पर किसी भारी चीज से वार किया जिससे वो बेहोश हो गया।

वो साया उसे घसीटते हुए कार तक ले जाता है। शैलेश को कार की डिकी में डालते हुए कहता है- “बी कंफर्टेबल एंड एन्जॉय डॉक्टर शैलेश।”


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