काशी जाएँ की काबा
काशी जाएँ की काबा


पंडित धर्मराज के तीन बेटे हिमाशु ,देवांशु ,प्रियांशु थे तीनो भाईयों में आपसी प्यार और तालमेल था पूरे गाँव वाले पंडित जी के बेटों के गुणों संस्कारों का बखान करते नहीं थकते। पंडित जी के पास एक अदद झोपड़ी कि तरह घर था खेती बारी भी नहीं थी पंडित जी के परिवार कि परवरिश आकाश बृत्ति से चलती थी, पंडित जी के यजमानों के दान दक्षिणा से परिवार का भरण पोषण होता। पंडित के बच्चे भी पंडित जी के पुश्तैनी कार्य में हाथ बंटाते। पंडित जी ने अपने बेटों को बचपन से ही पांडित्य कर्म कि शिक्षा दी थी पंडित धर्मराज जी कि गृहस्थी बड़े आराम से गुजर रही थी। पंडित जी के गांव में लगभग सौ परिवार मुस्लिम समाज का रहता था गांव का माहौल बहुत ही सौहादरपूर्ण था हिन्दू मुस्लिम सभी एक दूसरे के सुख दुःख में सम्मिलित होते आपस में कोई धार्मिक या जातीय भेद भाव नहीं था गाँव को लोग अमन चैन भाई चारे के नजीर के रूप में मानते। पंडित जी का भी परिवार इस गाँव कि शान था आर्थिक सम्पन्नता बहुत अधिक नहीं थी फिर भी पंडित जी के रसूख में कोई कमी नहीं थी।
धीरे धीरे समय बीतता गया पंडित जी के तीनों बच्चे जवान हो चुके थे, बड़े बेटे देवांशु का विवाह हो गया और परिवार में एक सदस्य संख्या बढ़ गयी आमदनी सीमित थी और खर्च बढ़ गया। देवांशु को परिवार कि आर्थिक स्थिति का अंदाज़ा था सरकारी नौकरी तो मिलने वाली नहीं थी, अतः उसने योग कि शिक्षा प्राप्त कि और पहले गाँव पर ही लोगो को इकट्ठा कर योग शिविर लगाने लगा धीरे धीरे जब गाँव वालों को योग से अनेकों बीमारियों से लाभ हुआ और लोग स्वस्थ होने लगे तब उसकी ख्याति एक दक्ष योग गुरु के रूप में होने लगी और आमदनी भी। कुछ दिनों बाद दिव्यांशु को एक अवसर शहर में योग शिविर लगाने का प्राप्त हुआ संयोग से उस शिविर में पोलेंड के ट्राम अपने कुछ मित्रों के साथ आये थे वे सभी देवांशु के योग कला से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने देवांशु को पोलैंड आने का निमंत्रण दे दिया। देवांशु लगभग एक वर्ष बाद पोलेंड गया वहाँ उसे पोलेंड वासियों ने हाथों हाथ उठा लिया। देवांशु वहां दिन रात तरक्की कि सीढ़ियाँ चढ़ता जा रहा था फिर उसने अपनी पत्नी को भी वहां बुला लिया और पूर्ण रूप से पोलेंड वासी हो गया।
पंडित जी का दूसरा बेटा मुंबई कि बड़ी कंपनी में इज़्ज़त और रसूक के पद पर कार्यरत था वैसे तो पंडित जी के दो बेटों ने पंडित जी का नाम बहुत रौशन किया लेकिन दोनों बेटे दूर थे और कोई ख़ास आर्थिक मदद नहीं करते पंडित जी ने सोचा कि तीसरे बेटे को कही नहीं जाने देंगे और उसे पुश्तैनी कार्य पांडित्य कर्म में लगा देते है।
हिमांशु और देवांशु तो दूर न चुके थे अब पंडित धर्म राज उनकी पत्नी सत्या और तीसरा बेटा प्रियंसु तक परिवार सिमट गया था प्रियांशु यजमानों के बुलावे पर उनके मांगलिक कार्य संपन्न करता दिन धीरे धीरे गुजर रहे थे कि एक दिन प्रियंसु शाम को किसी यजमान के यहाँ से लौट रहा था रास्ते में देखा कि बहुत ही खूबसूरत लड़की सड़क के किनारे कराह रही थी प्रियांशु उसके नज़दीक पहुंचा तो देखा कि लड़की के सर से खून का रिसाव हो रहा है प्रियांशु जल्दी जल्दी उसे अपने कंधे पर लादा अपनी साइकिल वही छोड़ दी और लगभग दो किलोमीटर पैदल चल कर प्राथमिक स्वस्थ केंद्र मोती चक ले गया। जहाँ ड़ॉ तौकीस ने उसका तुरंत उपचार प्रारम्भ किया और पूरी रात निगरानी में रखने को कहा प्रियांशु तो आफ़त में फँस गया क्योंकि उसके माँ बाप परेशान होंगे मरता क्या न करता वह मन मार कर उस अनजान लड़की कि देखभाल कर रहा था, रात के लगभग बारह बजे रात को उस लड़की को होश आया तब प्रियांशु ने पूछा तुम्हारा नाम क्या है ? तरन्नुम लड़की ने बताया प्रियांशु ने पूछा किस गाँव कि रहने वाली हो लड़की ने बताया बंगाई प्रियांशु ने कहा, बंगाई तो मेरा गाँव भी है मगर मैंने तुम्हें कभी नहीं देखा लड़की ने बताया वह मूसलमान है और खलील कि बेटी है... इधर पंडित धर्मराज और सत्या प्रियांशु के घर न आने के कारण चिंतित थे। अब सुबह के पांच बजने वाले थे डा तौकिश ने प्रियांशु से कहा, अब आप इसे ले जा सकते है फिर डा तौकीस ने कहा वैसे आपकी ये लड़की क्या लगाती है, जोड़ी ख़ुदा के करम से बहुत शानदार खूबसूरत है ख़ुदा तुम दोनों को सकमत रखे। प्रियंशु बिना कुछ बोले डा तौकीस का धन्यवाद ज्ञापित किया और तरन्नुम को साथ लेकर प्राथमिक स्वास्थ केंद्र से बाहर निकाला। सौभाग्य से एक तांगा बंगाई गाँव जा रहा था प्रियांशु ने तरन्नुम को उस पर बैठा दिया और किराया देता बोला कि इन्हें छोड़ देना जहाँ से ये आसानी से घर पहुँच सके। प्रियांशु पैदल चला और जहाँ पिछले शाम अपनी साइकिल छोड़ कर गया था वहां पहुंचा वहां उसकी साइकिल सुरक्षित पड़ी थी साइकिल लिया और घर चल पड़ा थोड़ी देर बाद घर पहुंचा। तब माँ सत्या और पिता धर्मराज ने विलम्ब का कारण पूछा प्रियांशु ने बड़ी ईमानदारी से पूरी घटना बता दिया। पंडित धर्मराज ने पूछा मुसलमान कि लड़की को छुआ तू अपवित्र हो गया है जा जल्दी से स्नान करो मैं पंचगव्य बनाता हूँ जिससे तुम पवित्र हो सकोगे। प्रियांशु ने स्नान किया और पञ्च गव्य वैदिक रीती स ग्रहण कर पवित्र हुआ।
प्रियांशु इस घटना को भूल चुका था, लेकिन तरन्नुम प्रियांशु को नहीं भूल पायी वह कोई न कोई बहाना खोज लेती और प्रियांशु को छेड़ती, प्रियांशु तरन्नुम से दूर भागता क्योंकि पिता धर्मराज का डर उसका पीछा नहीं छोड़ रहा था। एक बार पंचगव्य से शुद्ध होकर दोबारा अशुद्ध नहीं होना चाहता था। तरन्नुम कि शोखियों शरारतें उसके मन को झकझोरती फिर भी वह दूरी बनाये रखता। एक दिन तरन्नुम ने अपनी शरारतों में कह ही दिया पोंगा पंडित, यह बात प्रियांशु को ज्यादा संजीदा कर गयी। अब वह तरन्नुम के शरारतों को निमंत्रित करता, इसी तरह धीरे धीरे दोनों में प्यार हो गया और दोनों के प्यार कि बात गांव में घर घर चर्चा का विषय बन गयी।
जब इसकी जानकारी दोनों के परिवारों में हुई तो पूरे गाँव का माहौल तनाव पूर्ण हो गया और अमन प्यार का गांव नफ़रत के जंग का मैदान बन गया।
गाँव में एक तरफ हिन्दू और दूसरी तरफ मुसलमान आपस में कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे किन्तु कुछ हिन्दू विद्वानों और कुछ मुस्लिम विद्वानों ने सर्व सम्मति से यह निर्णय दिया कि प्रियांशु और तरन्नुम गांव छोड़कर चले जाएं क्योंकि पंडित धर्मराज के यजमानों का कहना था कि आपका बेटा धर्म भ्रष्ट हो चूका है और उसे ब्राह्मण समाज में रहने का कोई हक नहीं है। उधर मुस्लिम समाज ने कहा तरन्नुम ने एक काफ़िर से मोहब्बत करने कि जरुरत कि है अतः उसे इस्लाम में रहने का हक नहीं है।
इसी बीच तरन्नुम ने प्रियांशु का हाथ पकड़ा और दोनों सम्प्रदाय के मध्य जाकर खड़ी शेरनी कि तरह दहाड़ मारती उसने अपने हाथ और प्रियांशु के हाथ कि हथेली पर चाक़ू से गहरा घाव बना दिया दोनों के हथेलियों से खून बहने लगा तब तरन्नुम ने दोनों सम्प्रदायों के लोगो से सवाल किया अब बताओ किसका खून इस्लाम का है किसका खून हिन्दू का है? जब अल्लाह ख़ुदा भगवान ने सिर्फ इंसान बनाया तब तुम लोग कौम और फिरको में बाँट कर नफरत क्यों फैलाते हो। दोनों सम्प्रदाय के लोग आवाक रह गए फिर तरन्नुम ने ही सवाल किया बताओ हम दोनों कहाँ जाये काबा या काशी।
दोनों ने एक दूसरे का हाथ थामा और गांव छोड़कर चले गए दोनों और मुम्बई पहुँच गए। तरन्नुम कपड़ों कि सिलाई करती और प्रियांशु मजदूरी करता। खाली समय में दोनों पढ़ते कहते है न कि जब सारे रास्ते बंद हो जाते है तो नई मंज़िल कि उड़ान का रास्ता खुल जाता है करीब दस सालों के कठोर परिश्रम से तरन्नुम का चयन भारतीय प्रसाशनिक सेवा में हुआ और प्रियांशु का भारतीय पुलिस सेवा में दोनों कि नियुक्ति उनके राज्य में ही हुई। आज उनके गॉव के हिन्दू मुस्लिम दोनों संप्रदाय के लोग फक्र से कहते है तरन्नुम और प्रियांशु उनके गाँव के अभिमान है।