Bindiya rani Thakur

Tragedy

4.4  

Bindiya rani Thakur

Tragedy

काश तुम समझ पाते

काश तुम समझ पाते

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सावन का महीना है बादल बाहर बरस रहे हैं और अंदर मेरी आँखें,बहुत मुश्किल से रोक रही थी इन आँसुओं को बरसने से,लेकिन दिल का दर्द जब सीमा पार कर गया तो आँसूओं ने मेरी एक न सुनी और सारे बाँध जैसे ढह से गए। कितना भी रो लूँ ये दर्द शायद ही कभी कम हो पाएगा। 

तुमसे मुलाकात भी तो इसी सावन के मौसम में हुई थी,एक ही ऑफिस में काम करते थे हम,मैं नयी थी तो बाॅस ने मुझे काम समझाने की जिम्मेदारी तुम्हारे कंधों पर डाल दी,काम समझाते हुए कब तुम मुझे समझने की कोशिश में लग गए पता ही नहीं चला। मैं भी तो तुम्हारी होने लगी थी,तुम औरों से कुछ हटकर थे तो मैं भी खुद को तुम्हारी ओर आकर्षित होने से रोक नहीं पायी।तुम्हारा एकटक देखना बेचैन ही तो कर जाता था।

आज मेरे आँसुओं की वजह ये प्यार ही तो है जो मुझे तुमसे हो गया है, तुम्हारी नज़रों में जो प्यार था उसे मैं तो समझ गई लेकिन मेरा प्यार तुम न देख पाए और न ही महसूस कर पाए और आज किसी और को अपने लिए चुन लिया।

तुम्हारी सगाई है आज! तुम लोगों से घिरे होगे और यहाँ मैं अकेली बैठी आँसू बहा रही हूँ। चलो खुश रहो अपनी दुनिया में, मैंने तो प्यार किया था और तुम्हारा शायद आकर्षण था। 


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