काश! मां तुम लड़ती !
काश! मां तुम लड़ती !
" क्यूं नहीं मां ! औरत की कमाई से घर नहीं बसते, ऐसा कहने वाले लोग खुद अब नौकरी वाली बहू ढूंढ़ते हैं। फिर मुझे इतनी अच्छी नौकरी मिल रही है तो तुम कह रही हो कि अध्यापक बन जाऊं; या बैंक में नौकरी कर लूं।" - स्वाति ने अपनी मां सुमन जी से कहा।
सुमन जी ने अपने कॉलेज के दिनों में एल. एल. बी की थी, परंतु शादी तय होने के वक़्त ही योगेश जी ने कह दिया -" औरतों की कमाई से घरों में बरकत नहीं होती। इसलिए मैं शादी के बाद वकालत या किसी भी नौकरी करने के पक्ष में नहीं हूं।"
सुमन जी जब भी पुराने दिन याद करती खूब समझाती अपनी बेटी को। ये एम.बी.ए छोड़ो और कोई अध्यापक बनने का कोर्स कर लो।
वरना इतनी मेहनत भी करोगी और फिर मेरी तरह पूरी उम्र मन मारकर घर के कामों में उलझी रहोगी।
अपनी कमाई सिर्फ कमाई नहीं होती । औरत के लिए अपनी कमाई उसका आत्म सम्मान होती है, उसकी पहचान होती है ।
ऐसी जगह जहां वो पिता या पति के नाम से नहीं , अपने नाम से पहचानी जाती हैं।
ये कंपनी की नौकरी में बेटा, घर नहीं बसते।
दुनिया कहीं भी पहुंच जाए, पर जब भी बच्चों के लिए नौकरी दांव पर लगाने की बात आती है तो औरत ही पहला और आखिरी चुनाव होती है सबके लिए।
बाद में पछताओगी इससे अच्छा है अभी समझ लो मेरी बात।
पर स्वाति को कहां मां की बातों में ज़िन्दगी की वास्तविकता दिखती थी।
पापाभी बहुत साथ देते थे स्वाति के हर फैसले में। इसलिए स्वाति को लगता मां ही पुराने विचारों की है।
मां स्वाति को समझाती इससे पहले स्वाति ही मां को समझाने बैठ जाती।
स्वाति की पढ़ाई पूरी हुई, दूसरे शहर से नौकरी के अच्छे ऑफर आए।
स्वाति की मां , स्वाति को समझाती रही। पर स्वाति ने ज़िद्द पकड़ ली थी ,मुझे दूसरे शहर जाकर नौकरी करनी ही है । आप मेरा साथ दो या ना दो , पापा मेरी बात सुनेगे।
सुमन जी ने समझाया- "बेटा पढ़ाई करने तक दूसरी बात थी। तेरे पापा को मैं जानती हूं उनसे तू ये जिक्र भी मत करना। "
स्वाति -" मां ! ! आप रहने दो। सारी उम्र तो अपने डर में गुजार दी। तुम्हें क्या पता पढ़ाई लिखाई में कितनी मेहनत लगती है। अब जब फल मिल रहा है तो तुम मुझे ये सब बोल रही हो। नानी ने तुम्हें 12वी पास करते ही ब्याह दिया अब मुझे तो ऐसे मत बनाओ।"
सुमन जी को स्वाति की बातों का बहुत आघात पहुंचा। जिस घर गृहस्थी के लिए अपने सपने , पढ़ाई सब छोड़ दिया । आज उसका ये सिला मिल रहा है।
इतने में योगेश जी भी आ गए, ऑफिस से।
योगेश जी -" अरे ! भई ! ! मां बेटी में कैसी तकरार हो रही है ये।"
स्वाति -" देखिए ना पापा ! ! मां मुझे अपने जैसा बनाने पर तुली हुई हैं।"
सुमन जी ने बीच में बात काटते हुए कहा -" आप हाथ मुंह धो लो। थक गए होगे। ये तो बस यूंही नाराज होती रहती है। स्वाति मेरे साथ अंदर चलो ज़रा !"
स्वाति -" मां ! तुम इतना क्यों डरती हो? मुझे बात करने दो पापा से। आपसे ज्यादा उन्हें मेरी फिक्र है।"
योगेश जी -" बोलो बेटा क्या हुआ ! तुम्हारी मां की बात ना सुना करो। इसे क्या पता घर के बाहर की दुनिया। इसके लिए तो कुएं की मेंढक की तरह है ये घर !"
स्वाति -" पापा मुझे शहर से नौकरी का कॉल आ गया है। 15 दिन बाद ज्वाइन करना है। मां मना कर रही है। औरत की कमाई का पता नहीं क्या जुमला लेकर बैठ गई है।"
योगेश जी ने गुस्से से सुमन जी को देखा और कहा -" कौनसी नौकरी ! ! कब भरा फार्म ! ! मुझे बताया क्यूं नहीं किसी ने ! !"
स्वाति अपने पिता के ऐसे तेवर देखकर हैरान हो गई। स्वाति ने मां के चेहरे को देखा जिसपर शमशान सी शांति थी। आंखों पे आंसू ऐसे रुके हुए थे जैसे ठंड में पेड के पत्तों पर औंस की बूंदें।
योगेश जी -" कोई नौकरी नहीं करनी दूसरे शहर जाकर। तुमने पढ़ाई की ज़िद्द की थी वो पूरी हो गई। कल ही तुम्हारे ताऊ जी ने बढ़िया रिश्ता बताया है उनसे इस रविवार मुलाकात करने जाऊंगा। संपन्न परिवार है उन्हें नौकरी वाली बहू नहीं चाहिए।
भूल जाओ तुम ये नौकरी वाैकरी।
स्वाति -" पापा आप तो पढ़े लिखे हो फिर भी मां जैसी बातें कर रहे हो । माना मां घर रहती है उन्हें नहीं पता दुनिया में क्या हो रहा है। आपको तो पता है , आपके ऑफिस में भी तो कितनी औरतें काम करती हैं।"
योगेश जी ने सुमन ही की ओर बढ़ते हुए कहा -" एल. एल. बी इसीलिए की थी क्या तुमने; घर बैठे अपनी बेटी को अधिकारों कि बातें और बहस करना सिखाती रहो।"
स्वाति ने जब सुना तो पैरों तले ज़मीन निकल गई ।
कुछ बोल नहीं पाई बस मां के गले मिलकर रोने लगी -"मां ! मुझे माफ़ कर दो ! मुझे नहीं पता था कि आप ! !"
सुमन जी -" चुप हो जाओ बेटा। मेरी पढ़ाई मेरे कुएं की दुनिया में ही रह गई। सही कहा तुमने । कब तक और डरूंगी। मेंढक को भी हक है कुंए से बाहर जाने का।
मैंने कुएं में ज़िन्दगी गुजार दी पर मेरी बेटी नहीं गुजारेगी।"
योगेश जी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया।
गुस्से में तमतमाते हुए उन्होंने कहा -" मां बेटी ! कान खोलकर सुन लो। ये घर मेरी कमाई से चलता है जो मैं चाहूंगा वहीं होगा।"
सुमन जी ने अपनी बेटी स्वाति का हाथ पकड़ा और कहा -" बेटा ! ! नौकरी ज्वाइन करने से पहले वहां एक घर भी ढूंढ लेते हैं। अब मेंढक कुएं में नहीं रहेगा ।"
योगेश जी सुमन की आंखों में यूं आत्मसम्मान देखकर चुप ही हो गए।
अब कुछ बोलने का फायदा नहीं ये सोचकर अंदर चले गए।
मां बेटी गले मिली, स्वाति ने कहा -" मां ! काश तुम पहले ही अपने लिए लड़ लेती ! इतने साल यूं घुटकर नहीं रहना पड़ता। मुझे माफ़ कर दो मां !"
सुमन जी ने बेटी के माथे को चूमा और कहा -" वो लड़ाई मैं हार जाती मेरी लाडो ! क्योंंकि मेरे साथ ना मां खड़ी थी ना पिता ! आज ये लड़ाई सार्थक हो गई !"
ये कहकर मां बेटी फिर से रोते हुए गले मिली।
दोस्तों ! सबकी ज़िन्दगी में ये पल आता है जब लगता है कि कह दूं अपने मन की बात ! पर जब कोई साथ ना दिखे तो हम चुपचाप उसे स्वीकार कर लेते हैं और उम्रभर सोचते हैं काश ! बोल दिया होता।
मेरी मानिए, जब भी ऐसा दोराहा आए बोल दीजिए। क्या पता आपका साहस देखकर साथ देने वाले भी मिल जाएं।
ना भी मिले तो उम्रभर के अफसोस से अच्छा है कुछ पल का विरोधाभास झेलना।