Priyanka Gupta

Drama Tragedy

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Priyanka Gupta

Drama Tragedy

काश माँ को वही ख़ुशी दे पाती !

काश माँ को वही ख़ुशी दे पाती !

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कामिनी जी की कामकाजी शादीशुदा बेटी दिव्या के पास उनसे बातें करने का वक़्त नहीं होता है। दिव्या अपनी व्यस्तता के कारण 5-10 मिनट से ज्यादा बात नहीं कर पाती है। वीकेंड्स पर वह कामिनी जी से घंटों बातें कर लेती है, वीडियो कॉल भी कर लेती है। कामिनी जी को वीकेंड्स और दिव्या के वीडियो कॉल का बेसब्री से इंतज़ार रहता है। कामिनी जी के लिए भी उम्र के इस पड़ाव पर अपनी खुद की माँ की तरह खुशियों के मायने हैं, "अपनी बेटी से दिल खोलकर बात हो जाना। "

"दिव्या, तकनीकी कितने काम की चीज़ है, हमारे ज़माने में तो महीनों गुजर जाते थे और मैं अपनी माँ की शक्ल तो दूर आवाज़ भी नहीं सुन पाती थी। फिर लैंडलाइन लगे तो बिल की वजह से बस कुशलक्षेम ही पूछ पाते थे। आज तो ऐसा लगता है तू सामने ही बैठकर बात कर रही है। अब तकनीकी है तो वक़्त नहीं है। पहले हमारे पास वक़्त होता था तो संवाद करने का जरिया नहीं था।" कामिनी जी ने एक बार दिव्या से बातें करते हुए कहा था।

"मम्मी आप और आपकी बातें" दिव्या ने हँसते हुए कहा था।

"क्या मैं और मेरी बातें?" कामिनी जी ने नकली गुस्सा दिखाते हुए बोला।

"दोनों ही बहुत क्यूट हो। "दिव्या ने बाय कहते हुए कॉल डिसकनेक्ट कर दिया था।

"यह लड़की तो पूरी बात सुने बिना ही फ़ोन काट देती है। "कामिनी जी ने तब अपने आप से कहा था।

आज वीकेंड पर कामिनी जी को दिव्या के फ़ोन का वैसे ही इंतज़ार है, जैसे उनकी माँ को उनके ससुराल से मायके आने का इंतज़ार रहता था। जब तक कामिनी जी के भाई की शादी नहीं हुई थी, तब तक कामिनी जी अपनी माँ के पास बैठकर घंटों उनकी बातें सुनती थी और अपने मन की बातें उनसे कहती थी।

भाभी के आने के बाद उन्होंने माँ के पास बैठना कम कर दिया था। उन्हें डर था कि," कहीं भाभी को यह न लगे कि दोनों माँ -बेटी मिलकर भाभी की बुराई कर रहे हैं और उनके ससुराल लौटने पर भाभी माँ से अपनी नाराज़गी न जताये । "

वह इस बात का भी विशेष ध्यान रखती थी कि," भाभी को कभी भी यह न लगे कि कामिनी दीदी हमेशा अपनी माँ का ही पक्ष लेती हैं। " यह सोचकर वह कभी माँ का सही पक्ष भी भाभी के सामने नहीं रख पायी थी।

हर किसी का अपना तरीका होता है, माँ के भी कुछ तौर तरीके थे जो भाभी ने बदल दिए थे। एक उम्र के बाद बदलाव सुहाते नहीं है तो माँ को छोटी -मोटी शिकायतें रहती थी। बस कामिनी जी के सुनने से उन्हें शांति मिल जाती थी। कामिनी जी जी उन ननदों में से तो थी नहीं जो कि माँ की शिकायत पर भाभी को फटकारे। वह तो हमेशा यही कोशिश करती रह गयी कि माँ और भाभी का रिश्ता सही बना रहे। वह तो दोनों के रिश्ते में संतुलन ही बनाते रह गयी थी ।

वह अपनी माँ को ही समझाती थी कि, "अपनी दो रोटी खाकर, भगवान् का भजन कर और मस्त रह। कौन क्या कर रहा है ?इस में दिमाग मत लगा। "

कभी उन्होंने अपनी भाभी को नहीं समझाया कि, "माँ दिल की बुरी नहीं हैं, कभी -कभी उनकी २ बातें सुन लिया करो। "उनकी अपनी भाभी को समझाने कि कभी हिम्मत ही नहीं होती थी।

कामिनी जी ने, अपने पीहर में शांति बनी रहे तथा उनके भाई को माँ और बीवी के बीच में पीसना न पड़े, इसलिए अपनी माँ के पास अकेले बैठना कम ही कर दिया था। ज्यादातर वक़्त तो भाभी के साथ ही बिताती थी।

उन्हें आज भी याद है; उनकी माँ अपने अंतिम समय में कुछ बीमार रहने लग गयी थी। कामिनी जी माँ से मिलने गयी थी। घर के सब लोग AC में बैठे थे और माँ के रूम में कूलर तक बंद था। तब माँ ने ही बताया था कि "भाभी केवल रात को ही सोते समय कूलर चलाने देती है। "उनकी आँखों के कोर गीले हो गए थे, माँ कुछ और बोलती, इतने में भाभी ने चाय पीने के लिए आवाज़ लगा ली थी और कामिनी जी माँ की बात सुने बिना ही चली गयी थी। उसके बाद अपनी आदतानुसार वह भैया -भाभी से ही बातें करती रही और अगले दिन वापस अपने घर चली आयी थी। घर लौटने के एक सप्ताह बाद ही तो उनकी माँ इस दुनिया से चली गयी थी।

आज भी कामिनी जी के मन में एक टीस सी उठ जाती है कि, "वह अंतिम समय में भी अपनी माँ की बात बिना सुने ही आ गयी। "आज जब दिव्या से वह अपने दिल की सारी बातें नहीं कर पाती हैं तो अपनी माँ की पीड़ा को और समझ सकती हैं।

उन्हें कई बार लगता है कि, "क्या उनकी यह सोच गलत थी कि उन्होंने घर में कलह न हो, मात्र इस डर से अपनी माँ से कभी खुलकर बात नहीं की ? क्या भाभी कभी उन्हें कह नहीं सकती थी कि दीदी अम्माजी आपको बहुत याद करती हैं, कुछ वक़्त उनके पास भी बैठ जाया करो। एक बहिन और ननद का फ़र्ज़ निभाते -निभाते वे ही शायद बेटी का फ़र्ज़ भूल गयी थी। "

उनकी माँ कितना कहती थी कि, "तुझे दिल की सारी बातें बता देने से और अपनी भड़ास निकाल देने से मेरा मन हल्का हो जाता है और बेटा अपनी बहु किसे बुरी लगती है । "

लेकिन कामिनी जी अपनी माँ का बुढ़ापा खराब करना नहीं चाहती थी। वह अपनी बेटी होने की सीमाओं को जानती थी, वह चाहकर भी अपनी माँ को अपने घर तो ला नहीं सकती थी। इसलिए उनको लगता था कि उनकी वजह से कहीं भाभी नाराज़ होकर उनकी खुन्नस माँ पर न निकाले। भाभी की भी अपनी कुंठाएं थी, हम सभी महिलाओं की होती है। अपना सब कुछ देने के बाद भी श्रेय तो दूर कि बात है, प्रशंसा तक नहीं मिल पाती।

वह जानती थी कि घर में दो बर्तन होंगे तो खड़केंगे, लेकिन उनकी कोशिश तो उन बर्तनों को टूटने से बचाने की थी। उन्होंने अपनी समझ से वही किया, जो उस समय तो उन्हें ठीक लगा था। बस एक ही कसक रह गयी, माँ से उनके दिल की सब बातें न कर पाने की। काश वह उस वक़्त में लौटकर अपनी माँ को वही ख़ुशी दे पाती, जो आज उन्हें अपनी बेटी दिव्या से घंटों बात करके मिलती है।


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