कांव कांव
कांव कांव
एक आदमी(नकाब में) :तेरे कान कौवे ले गए।
दूसरा:एं?
पहला:और क्या?वो देखो, कौवे उड़ते जा रहे हैं।
दूसरा व्यक्ति दो कौवों के पीछे दौड़ने लगा। उसके पीछे एक एक कर और लोग दौड़ने लगे। कारवां बन गया....गुबार देखते बनता था ... कारवां के पिछले हिस्से में दौड़ते हांफते लोग एक दूसरे से सवाल करते कि आखिर वे कहां जा रहे हैं,क्या कर रहे हैं? हां, आगे के हिस्से की आवाज में आवाज जरूर मिलाते कि ' वापस दो,वापस दो...।' कोई कोई तो ' वापस लो..वापस लो..' की भी आवाज उठाता।
भीड़ के पृष्ठ भाग में उड़ते दो कौवे आपस में बातें कर रहे थे।पहला," ये लोग कान वापस मांग रहे हैं या आंख़ें निकलवाने को आमादा हैं?"
दूसरा, " अरे भाई,जिन्हें अपने कान का पता नहीं,वे आंखें निकाले जाने पर भी क्या खाक समझेंगे।"
" .. कांव कांव... ।" फिर कांव - कांव की आवाज वातावरण में गूंज गई।लोग पीछे पीछे दौड़ने लगे।