रोजी

रोजी

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'जनता सड़कों पर उतरे, सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाए संविधान बचाना है ',जैसे भड़काऊ शब्द माहौल को मुखर करते थे।चारों तरफ हाय तौबा मची हुई थी।सरकारी संपत्ति यानी जनता की संपत्ति को सरेयाम फूंका जा रहा था।

जन प्रतिनिधि गिरफ्तारियां देकर मशहूर हो रहे थे।हिंसा के कतिपय आरोपी देशद्रोह जैसी दुरूह दफाओं में कैद थे।पुलिसिया छानबीन में दंगा फैलाने,आगजनी करने में मशगूल युवक युवतियां किसी न किसी राजनेता के घर परिवार से जुड़े मिलते थे। हां, नेता यानी प्रतिपक्ष वाले नेता। सत्ता पक्ष शांत था।उसके लोग स्थिति को शांत करने और लोगों को समझाने का प्रयास कर रहे थे।प्रदर्शन करने आए युवकों से अख़बार वाले ने पूछा," किसलिए हो हंगामा है ?"

" पता नही।"

" फिर क्यों आए हो ?"

" सरकार का विरोध करने।"

" किसलिए?"

" पूछकर बताऊंगा।"

" किससे ?"

" ऐं ऐंजिसने भेजा है उससे।"

"कौन हैं वे लोग ?"

"विपक्ष वाले।और कौन?सरकार अपना काम करती है,विपक्ष अपना।"

" विपक्ष केवल विरोध के लिए है ? मुद्दा क्या है ?"

" पता करेंगे। अभी तो अपने को रोजी मिल गई है।"

" रोजी?"

" और क्या ? पैसे मिलेंगे;चाहे इधर से,या उधर से"

और भी युवक युवतियां उसी तरह के जवाब देते।चल पड़ते।

विदेशी पत्रकार ने घरेलू पत्रकार पर तंज कसा," यार हमारे यहां तो धरना प्रदर्शन करनेवालों को मुद्दे पता होते हैं,पर यहां तो।"

" क्या?"

" कुछ पता ही नहीं। हां,यहां धरना भी रोजगार हो गया है।"

देशी पत्रकार ने माथा पीट लिया।


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