चोर

चोर

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गाँव में चोरों का प्रकोप बढ़ रहा था। लोग परेशान थे। आये दिन किसी-न-किसी घर में चोरी हो जा रही थी। ग्राम प्रधान ने नई योजना बनाई। पूरा गाँव स्थिति से निपटने को तैयार था।रात चढ़े कालू सेठ के घर चोर पहुँचे। घर का मौन उन्हें ज्यादा मुखर लगा, कालू सेठ का चिर परिचित खर्राटा जो सुनने को नहीं मिला। वे भागने लगे।पूरा गाँव होहकारा देकर पीछे पड़ गया। पर चोर तो चोर थे।निकल गए दूर तक, चोरोंवाले गाँव की तरफ। प्रधान जी के नेतृत्व में उनके गाँव का जत्था आगे बढ़ता जा रहा था।पर यह क्या ? थोड़ा ही आगे जाने पर वे चौंक गए। एक दूसरा जत्था इन लोगों की तरफ 'चोरों को गिरफ्तार कराओ, ....चोरों को हवालात पहुँचाओ' जैसे नारे लगाता आ रहा था। जत्थे में शामिल लोग जाने-पहचाने थे। कई बार हवालात की हवा खा चुके थे। चोरी के मुक़दमे चल रहे थे उनपर।प्रधान जी का जत्था भौंचक था। उधर वाले जत्थे से आवाज आई,

-कुछ करो प्रधान जी,चोरी रुक नहीं रही।

-हाँ, कोशिश तो है गंगू।

-बड़ी हसरत से आपको चुना था हमने।क्यूँ भई ?', उसने अपने गिरोहियों को संबोधित कर कहा।

-हाँ,हाँ,' समवेत स्वर गूँज गया।

-तुम्हारे भरोसे को टूटने नहीं दूँगा, गंगू,' प्रधानजी की भृकुटि पर बल आ गया।

गंगू की रामनामी गमछी लहराते हुए दारोगाजी ने गंगू की तरफ हथकड़ी बढ़ा दी।कालू सेठ के यहाँ वह गमछी अभी-अभी मिली थी।

गंगू का भेदिया जफर प्रधानजी की टोली में खड़ा मंद मंद मुस्कुरा रहा था।


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