जयचंद की धोखेबाजी की कीमत
जयचंद की धोखेबाजी की कीमत
संयुक्ता (संयोगिता) कन्नौज के राजा जयचंद्र की बेटी थीं। पृथ्वीराज से जयचंद्र की शत्रुता थी। जयचंद ने संयोगिता की शादी के लिए स्वयंवर का आयोजन किया और देश भर के राजाओं को आमंत्रित किया, किन्तु पृथ्वीराज को नहीं बुलाया। उन्हें नीचा दिखाने के लिये द्वारपाल की जगह उनकी मूर्ति लगा दी। पृथ्वीराज बहुत वीर थे। पृथ्वीराज ने स्वयंवर में पहुंच कर संयोगिता की सहमति से उनका अपहरण कर लिया।
मीलों का सफर घोड़े पर तय कर दोनों अपनी राजधानी पहुँचे और विवाह कर लिया।इस घटना से दोनों राजाओं में इतनी अधिक शत्रुता पैदा हो गई कि जयचन्द्र ने मुहम्मद ग़ोरी से हाथ मिलाकर उसे पृथ्वीराज चौहान पर हमला करने का निमंत्रण दे दिया।
1192 ई. में तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुए। कहते हैं कि पृथ्वीराज ने 17 बार मुहम्मद ग़ोरी को परास्त किया तथा क्षमा करके छोड़ दिया। 18वीं बार धोखे से मुहम्मद ग़ोरी ने पृथ्वीराज को क़ैद कर लिया तथा उन्हें बंदी बना लिया और पृथ्वीराज के साथ अत्यन्त ही बुरा सलूक किया गया। उनकी आँखें गरम सलाखों से जला दीं ।अंत में पृथ्वीराज के अभिन्न सखा और दरबारी चंदबरदाई ने एक योजना बनाई। पृथ्वीराज चौहान शब्द भेदी बाण छोड़ने में माहिर थे। चंदबरदाई ने ग़ोरी तक इस कला के प्रदर्शन की बात पहुँचाई। ग़ोरी ने मंजूरी दे दी। प्रदर्शन के दौरान ग़ोरी के एक लफ्ज के उद्घोष के साथ ही भरी महफिल में अंधे पृथ्वीराज चौहान ने ग़ोरी को शब्दभेदी बाण से मार गिराया तथा इसके पश्चात् दुश्मन के हाथ दुर्गति से बचने के लिए दोनों ने एक-दूसरे का वध कर दिया। जब संयोगिता को इसकी जानकारी मिली तो वे सती हो गईं।
हालांकि,दो वर्ष बाद सन 1194 ई. में चन्दावर के युद्ध में मुहम्मद ग़ोरी ने जयचन्द्र को भी हराया और मार डाला।