ज़रूरी है
ज़रूरी है


कितने दूर हो गए हम अब ,
तन्हाई में पता चलता है ,
जब दिन रात गुजर जाते हैं ,
और ख्यालों का वक़्त भी ,
कम पड़ने लगता है।
मैं ये रोज़ सोचा करती हूँ ,
कि आज तुम्हे बुला ही लूँगी ,
अपने प्यासे अरमानों मे ,
तुम्हारे अरमानों को मिला ,
एक नई हवा दूँगी।
पर ये वक़्त भाग जाता है ,
और मैं हाथ मल रह जाती हूँ ,
और फिर घिर कर तन्हाई में ,
तेरे साथ बिताए उन लम्हों को ,
अपने भीतर ही खींच लेती हूँ।
प्यार में मिलना ज़रूरी है ,
नहीं तो बढ़ जाती एक दूरी है ,
फिर तन्हाई में ही ढूंढते रह जाते हैं ,
उन खोए हुए लम्हों को ,
जिनकी सुगंध अभी भी अधूरी है।