Sunil Kumar

Classics Others

5.0  

Sunil Kumar

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जर्नी टू पौडी गढ़वाल

जर्नी टू पौडी गढ़वाल

11 mins
400


पहला दिन - 21- मार्च - 2016

करीब 4 साल बाद पहाड़ जाने की खुशी कुछ ओर ही थी उस दिन, सुबह 3:00 बजे की रवानगी थी, में 2 बजे ही उठ के तैयार था उस दिन कुछ ज्यादा ही जल्दी थी गांव जाने की। होली की छुट्टी मे देवभूमि की यात्रा का मन पहले से ही बना के रखा था !

पापा ने मुझे सुबह 3:00बजे जाने वाली कुमाऊँ आदर्श की बस मे बैठा दिया जो रामनगर से देघाट तक का सफर तय करती, मुझे भी 2 दिन देघाट मे मामा के घर रुकना था, मामा वहीं टीचर हैं !

सुबह 3 बजे ठण्डी हवा चल रही थी ड्राइवर चाचा ने सारी लाइट बंद कर दी अब सब लोग कुछ देर के लिए सो गये,...

सुबह 5:00 बजे जब आंख खुली तो गाडी रुकी मरचुला मे ड्राइवर चाचा बोले यहां 15 मिनट रुकेगी गाडी सब लोग चाय पी लो तब तक।

मरचुला जो की एक विभाजन है यहां से कुमाऊँ मंडल और गढवाल मंडल के लिए रास्ते अलग अलग हो जाते है ! सुबह 5:00 बजे बड़े बड़े पहाड़ के पीछे से सूर्य अपनी किरण के साथ चमकता हुआ निकल रहा था क्या नजारा था।         

हिमालय की गोद मे बसा उत्तराखण्ड अपनी इसी खुबसुरती के लिए जाना जाता है !

अब सब लोग बस बैठे चाचा ने भी गाडी भगा ली आगे की ओर।

क़रीब 4 घन्टे मे बस डोटीयाल पहूंची जहां से मुझे मेरा गांव दिख रहा था वो देखते ही मेरी आंख नम हो गयी अपने जन्म स्थान को देख के मेने अपनी खुशी ड्राइवर चाचा से जताई,

चाचा ये देखो मेरा गांव मेरा जन्म यही हुआ है फिर चाचा ने बोला तो तुम यहां क्यु नी उतर जाते हो,, मेने बोला चाचा अब कोई नहीं रहता मेरे गांव मे हमारी यादों के अलावा।          

मैं मामा के घर देघाट जा रहा हूं !

अभी 3 घन्टे का सफर और बचा था अब मे खिडकी से सुन्द्ऱता के मजे ले रहा था.. पहाड़ की सडके बहुत खतरनाक होती है जंगल के बीच से, नीचे हजारो फीट गहरी खाई ड्राईवर की एक चूक और यात्रीयो की जान जाना पक्का हुआ पर यहां के ड्राईवर भी बहुत निपुण होते है !ळगभग 11 बजे मे देघाट पहुंच गया मामी लेने आयी थी, देघाट भी एक बड़ा बाजार है यहां एक मैला भी लगता है हर साल बैशाख के महिने मे, यहां नहर, नदी भी है लोगो का कहना है यहां की मछलिया बड़ी बढिया होती है !

1 बजे खाना खा के मे सो गया, शाम को मामा ने बाजार घुमाया क्या लोग थे वहां हर कोई इज्ज्त से कहता -आओ बेटा आपको क्या दूं !

रात होने को थी अब मामा और में घर चल दिए दिन भर की थकान की वजह से नीन्द भी बहुत आ रही थी ! आज का दिन बस यूं ही सफर मे निकल गया मामी ने कहा मे तुझे कल पूरा देघाट घुमा दूंगी अभी सो जा थका है तू !

फिर मे भी सो गया !

दिन-दूसरा

22-मार्च-2016

सुबह 10 बजे नींद खुली, मामा जा चुके थे, मामी ने खाना खिलाया, और बोली जल्दी नहा ले चलना है ! देघाट भी पहाड़ का जाना माना इलाका था, यहां की पुल, मैदान, और बाजार इस जगह को और भी रोचक बनाता है !11 बजे हम चल दिए घुमने मे वहां की सुन्द्ऱता देख के हैरान था, जगह -जगह उन लम्हो को मेने अपने कैमरे मे कैद करता गया ! 

फिर वहां के लोगो ने मुझसे पुछा बेटा नए दिख रहे हो कहां से हो ?

मामी ने उन्हे बोला -ये मेरा भान्जा है जो यहां घुमने आया है

फिर क्या था मे भी गप्पे मारने लगा उनसे, उन्होंने बताया बेटा यहां कुछ नहीं है, न पढाई होती है स्कूल मे, न लाइट आती है, मे भी उनकी बाते सुन के भावुक हुआ ! 

हर साल नेता वोट मांगने आते है बड़े बड़े वादे करते है पर कोई भी अपने वादे पूरा नहीं करता ! बेटा -बहू सब शहर जा चुके है और हम अपने बुढापे के अंतिम दिन यहां गिन रहे हैये हर गांव की कहानी है देवभूमि है फसल होती नहीं बारिश होती नहीं, सारे नौजवान रोजगार के लिए शहर को बस गये है !

अब कल हमे मेरे नैनिहाल जाना था जहां मामा अपनी होली की छुट्टी बिताना चाह रहे थे !

मेरा नैनिहाल पौडी गढवाल और अल्मोडा की सीमा मे है सराईखेत !

मुझसे अब रहा नहीं जा रहा था क्योकी लगभग 7 साल बाद मे अपने नैनिहाल जा रहा था !

दिन -तीस

23-मार्च-2016

सुबह 4 बजे निकालना था, मामा ने टाटा सूमो कार बुक करी थी जो हमे देघाट से उफरेखाल, पौडी गढवाल तक छोडती !

अंधेरे मे हम निकल पड़े घने जंगल के बीच, टूटा हुआ रास्ता मेरी तो सांसे अटके थी एक तो टूटा रास्ता और नीचे गहरी खाई ! मामा ने बोला तु सो जा वरना तु खुद तो डर रहा है और साथ-साथ हमे भी डरा रहा है।

5 बजे नींद खुली तो हम उफरेखाल पहूंच गये थे, क्या नजारा था वहां मेरी ऑख खुली ही रह गयी हम चोटी पर थे वहां से सीढीदार खेतो की हरियाली सूरज के प्रकाश से और भी ज्यादा चमक रही थी, 

चिडिया की आवाज, पहाड़ से आती हवाएं, जंगल मे पेड मानो झुला झुल रहे हों !अब यहां से 2 घन्टे का रास्ता और था मेरे नैनिहाल का करीब 30 मिनिट के इंतजार के बाद बस आई जो हमे आगे तक छोड्ती।।

मेरे मन मे कुछ लाइन और आई "ऊंचा निशा डाणडयों का टेडा मे बाटा""मतलब ऊंचे नीचे पहाड़ के टेडे मेडे रास्ते !

देखते देखते मे नैनिहाल पहूंच ही गया ! 50 घरो से मिला हुआ गाँव एक बड़ा और मजेदार है मेरे मामा के गाँव में मेरे को बहुत कम लोग ने पहचाना क्योकी मे 7-8 साल बाद गया था लेकिन जब मेने अपनी मम्मी का नाम बता के कहा की मे उनका बेटा हूं इतना सुन के सारे लोग जिनमे कोई मेरी नानी, मौसी, मामी, भाई तो कोई मेरे मामा लगते है उन्होने मुझे गले लगाया गया मुझे चुमने लगे ! कितना बड़ा हो गया तु हमने तुझे गोद मे खुब खिलाया है ! पता नी कितनी बाते याद दिला डाली सभी ने ! इतना अपनापन देख कर खुशी का ढिकाना नहीं था मतलब हर कोई मुझे पकड़ के कह रहा चल हमारे घर खाना खाने ! बड़ी मुश्किल से उनसे छुटा यह कह कर की अभी 2-3दिन यही हूं सबके घर मिलने आऊंगाअब गांव मे यहां सबके पास गाय और भैस था सबके घर 1 गिलास दुध तो पिया ही उपर से चाय,

अब मुझे मम्मी की याद रही थी क्योकी वहां जिसके घर जाता सब मम्मी के बचपन की कहानी बताते ! उनके इतना सब कहने से मुझे पता चला की मम्मी से इतने लोग प्यार करते है !

गांव मे पलायन की वजह कुछ ही लोग मेरी उम्र के थे तो में उनके साथ अगले दिन होली के लिए गुलाल लेने गांव की दुकान मे गया वो लोग मुझसे भी छोटे थे तो उनके साथ मजे करते करते पता ही नहीं चला की कब हम 3 km चल कर वापिस आ चुके है !

आज तक हमेशा शहर की होली देखी थी अब गांव मे होली कैसे मनाते है लोग ये जानने की बहुत जल्दी थी !

करीब 9 बजे आधा गांव घुम कर घर आया ! देखा कुछ गांव के लोग मुझे मिलने आये थे दरअसल वो मेरी मां के बचपन के दोस्त थे मेरी सारी मौसी ।

फिर जो अपनी मां के बारे मे जाना वो सुन कर ऐसा लगा की मे तो कम शैतान हूं असली तो मां थी अपनी सहेलियों के साथ।

रात बहुत हो गयी खाना खा के सोने की तैयारी करने लगे तभी बाहर से आवाज आयी मेरे मामा के लिए -अरे किशोर सुबेर जल्दी उठ ज्यां भोल होली छन"।

सोने से पहले अगले दिन का न्योता यह सुन कर नींद और जल्दी आने लगी की कल तो जल्दी उठना है !

दिन-चौथा

24-मार्च-2016

आज सुबह न मुर्गी की आवाज से नींद खुली और ना कबूतर की आज तो गांव वालो के शोर से नींद खुल गयी !

सुबह 7 बजे 15 लोगो के गुटों मे 30 लोग पूरे गांव को उठाने के लिये पूरे गांव मे घूम रहे थे ! ळगभग 8:30 बजे पूरा गांव इकठ्ठा हो गया ऐसा लग रहा था मानो किसी की बारात हो रही हो।।

अब क्या था पहले गाँव के सबसे बड़े नाना ने सबको तिलक किया फिर रंग का खेल शुरु हो गया, रंग लगाने के लिये कोई किसी के पीछे खेतो तक भागता तो कोई घरो के अंदर जाके गुलाल लगाकर गाल लाल करता ! फिर मेने सोचा इससे पहले कोई मेरा नक्शा बिगाडे मे खुद बिगाड़ लेता हूं मेने अपना मुहं लाल कर दिया फिर भीड मे जाकर सबको पकड़-पकड़ कर लाल कियामेरा गुलाल खत्म होने को था फिर मेने तव्वे पर हाथ काले किए फिर जो सामने आता उसे काला किया।

गुलाल का खेल खत्म होने के बाद नाच-गाने की बारी थी !

गाँव का बैण्ड़ बजा ही था कि पूरा गाँव झुमने लगा, गढवाली गानों को सुन कर मेरा मन भी बिना नशे के झुमने को किया !गढरत्न श्री नरेन्द्र नेगी जी के गानों से ये होली कुछ और ही मजा दे गयी।।

अभी ये सब खत्म नी हुआ था अब बारी थी दूसरे गाँव मे जाने की।

उत्तराखण्ड देवभूमि मे त्योहार मे बड़े गाँव के लोग छोटे गाँव मे जाकर उन्हे भी खुशियां बांटते है !आधा से ज्यादा गाँव बैण्ड़ बाजा ले कर चल दिया दूसरे गाँव।में भी उनके साथ चल पड़ा मुझे भी इन लम्हो को बटोरना था

नाचते हुए गाते हुए एक गाँव से दूसरे गाँव, दूसरे से तीसरे गाँव जाकर होली मनाई !

1 बजे सब वापिस अपने घर पहूंचे ! गाँव नदी, गधेरो मे ही सब नहाने जाते थे फिर सब लोग गधेरे गये नहाने, इतना ठण्डा पानी था वो मानो बर्फ की शिल्ली तोङ कर उसमे हाथ लगा रहे हो !

"ठण्डो रे ठण्डो मेरो पहाडे की हवा ठण्डी पानी ठण्डो"

ये गीत गाते हुए पानी के ठण्डे होने का पता ही नहीं चला ! 

2 बजे खाना खा कर मे दिन मे सो गया 6 बजे उठ कर अपने गाँव के सफर को और भी यादगार बनाने गांव से थोडा ऊपर सड़क पर एक भाई के साथ घुमने निकल पड़ाऊपर से पूरा गाँव दिख रहा था, बड़े-बड़े पहाड दिख रहे थे ! बहुत ही यादगार पल था ! वहां से दूर पहाडो पर एक बड़ा विशाल मंदिर है माता कलिनका मंदिर जहां का सफर मुझे अगले दिन करना थासड़क, पहाड देख कर मेरा मन यही रहने को कर रहा था 

लेकिन अब कुछ ही बचे हैं वापिस जाने के यह सोच कर हर लम्हे जी भर के जी रहा था ! समय का पता नहीं चलता कब कैसे निकल जाए।

फिर मुझे उत्तराखण्ड की लोक गायिका कबूतरी देवी जी की कुछ लाइन याद आयी "" आज पनी ज्यों-ज्यों, भोल पनी ज्यों-ज्यों,पोरिखिन त न्हे जोंला, पछिल वीरान हवें ज्योंला""( आज और कल जाने की जल्दी मे निकल जायेगा और परसों तो चले ही जाना है फिर सब वीरान हो ही जाना है )..

यह सोचते -सोचते हुए मे गांव चला आया आज भी 4-5 घरो मे थोडा-थोडा खाना खा कर मेरा हाल खराब हो गया था

अब तो बस बिसतर चाहिये था सोने के लिए

देवभूमि मे मौसम इतना सुहाना रहता है हर वक्त की नींद तोह बस पलक झपक कर ही आ जाए ! कुछ देर लेटे-लेटे मुझे नींद आ गयी !

दिन- पांचवां

25- मार्च -2016

सुबह जल्दी लगभग 5 बजे ही उठ गया, जल्दी नहा के मंदिर की ओर रवाना हो गया !

इस सफर मे मेरे साथ 12 साल का एक लड़का जो रिश्ते मे भाई लगता है जिसका नाम रोहित है वो भी मंदिर तक चलने के मेरे साथ चल दिय। कलिनका माता का मंदिर एक विशाल मंदिर है जो लखोराखाल (पौडी गढवाल) मे स्थित है ! यह अल्मोडा व पौडी गढवाल की सीमा के करीब है !

यहां हर तीन साल बाद एक भव्य मैला आयोजित होता है जिसमे लाखो की संख्या मे लोग आते है जो की कलिनका ज्तोडा के नाम से जाना जाता है !

मेरे नेनिहाल से वहां का रास्ता लगभग 3 घण्टे पैदल है वो भी नाक की चडाई वाला रास्ता ..

अब मेरी आदत नहीं थी इतना पैदल चलने की मे हर 15 मिनट मे आराम करने बैठ जा रहा था ! 

रोहित को रोज की आदत थी तो वो बार-बार कहता कि - कि होया भैजी थक ग्यो तुम (क्या हुआ भाई थक गये तुम)

उसकी ये बात सुन कर बार-बार मे भी जल्दी उठ जाता।

3 घण्टे वो जंगल का रास्ता बड़ा ही थकान भरा था !लगभग 4 घण्टे मे जैसे -तैसे अंत मे हम मंदिर तक पहुंच ही गये।

हम 1 घण्टे तक वही घुमते रहे 

फिर मेने ऊपर से देखा की कितना रास्ता नापा आज !

अब बारी नीचे वापिसी की थी अब सुकून भरा रास्ता था इसीलिये हम रुक रुक कर फोटोस लेते हुए आ रहे थे।

मंदिर से थोडा नीचे एक पहाड से रसियामहादेव का पहाडी दिखती है।

बहुत ही सुंदर नजारा था।

नीचे आते हुए हमे सिर्फ 1:30 घण्टा लगा।

अब नीचे हमने गाँव के गधेरे मे नहाने का मन बनाया, गढवाल मे इसे रोल कहते है।

गाँव के कुछ लोग पहले से वहा थे जिनसे हमे नहाने का सामान मिल गया।

करीब 2 बजे घर पहुंचे।मामा, मामी ने सफर के बारे मे पूछा और फिर खाना खिलाया।

अब मेरी हालत ऐसी थी की मेरे पैर हिल नहीं पा रहे थे आज से पहले कभी इतनी चडाई नहीं चडी थी !

2-3 घण्टे आराम के बाद अब मे सबसे मिलने सबके घर बारी-बारी से गया क्योकी अब से कुछ घण्टो बाद मुझे इस जगह से, इन लोगो से विदाई लेनी थी।

इतना प्यार इतना अपनापन देख कर मुझे इस जगह से प्यार होने लगा !

रात के 10 बजे सबसे मिलने के बाद में पेकिंग करने लगा

मुझे ऐसा लगा की कोई रोक रहा है मुझे ये सब करने से

वो थी यहां की यादें ! मुझे पूरी रात नींद नहींं आयी, रात भर अपने बीते 5 दिनों की स्मृतियों को याद करते रहा !

दिन -छठ्ठा

26- मार्च-2016

क्योकी में कल सबको बता के आया था तो आधे से ज़्यादा गाँव सुबह मेरे घर मुझे अंतिम बार मिलने पहूंचा हुआ था !8 बजे मे निकलने लगा मे अपने घर रामनगर को !

मेने सबको प्राणाम किया, कुछ लोग ने मुझे वही विदा किया और कुछ मुझे आधे रास्ते तक छोडने आये ! मेने पीछे पलट के देखा तो कुछ लोग रो रहे थे मेरे जाने से,जिसने  उनके साथ खेला, उनके साथ अपना बचपना गुजारा उसी का बेटा वापिस जा रहा है यह सोच रहे थे वें सब !

ये देख कर मेरी भी आंख नम हो गयी लेकिन मे ज़्यादा और देखता पीछे तो शायद ही मेरे कदम बढ़ते ! अब में भी चल पड़ा रोल (छोटी नदी) पार कर के।

10 बजे की गाडी से मे रामनगर के लिए निकल पड़ा ! ये थी मेरी 6 दिन देवभुमि की यात्रा की कहानी मैंने आते हुए सोच लिया था कभी समय हुआ तो ज़रूर वापिस आउंगा इन वादियों में।


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