Sunil Kumar

Drama Tragedy Others

4.7  

Sunil Kumar

Drama Tragedy Others

एक कहानी मेरे गांव की निशानी

एक कहानी मेरे गांव की निशानी

8 mins
850


जहाँ गाड़ियों के शोर से नहींं पंछियो की चहचहाहट से दिन की शुरुआत हो, जिसके हर कोने में देवी-देवताओं का वास हो, वो शख्स मुश्किलों में भी मुस्कुराता है जिसका उत्तराखण्ड आवास हो !

उस दिन भी कुछ ऐसा ही था सुबह गाड़ियों का शोर नहींं था।

मनोज ने अपनी मम्मी से बोला– मम्मी क्या सुबह-सुबह डिस्कवरी चेनल लगा दिया।

मनोज की मम्मी– अरे बेटा बाहर आ के देख हम लोग दिल्ली नहीं आज कल उत्तराखण्ड में आए है यहाँ तुम लाईव देखो अपना डिस्कवरी चेनल ...

मनोज- अरे मम्मी क्या सुबह सुबह मजाक कर रही हो।

इतना कहते ही मनोज बाहर आया और बाहर आकर वो सब देखता ही रह गया।

ये क्या सच है मम्मी ? ये सन राइज, ये हरे पेड़, ये देखो मम्मी बर्ड्स कितनी अच्छी आवाज निकाल रही है।

मम्मी- मैं क्या देखूँ ये सब तो मैं बचपन से देखती आ रही हूँ, ये सन राइज, ये हरे पेड़, ये बर्फिली हवाएँ, इन पंछियों की चहचहाहट, इन मुर्गीयो की कुकुडु-कु, वो पानी का गधेरा, ये ऊँचे पहाड़ ....अब तुम देखो मेरे वो दिन, वो समय, वो साथ अब नहींं है।

मनोज जो बचपन से दिल्ली रहा वो 2 महीने के लिए अपने पहाड़ घूमने आया। उसने ये सब इनटरनेट पर देखा था, उत्तराखण्ड भी विडीयो में ही देखा था उसके लिए उत्तराखण्ड मतलब बस केदारनाथ, बद्रीनाथ था जिनके बारे में अक्सर चर्चा इनटरनेट पर होती रहती है !

मनोज- और बताओ मम्मी कुछ यहाँ के बारे में और ये इतना अच्छा है तो हम यहाँ क्यों नहीं रहते आप और पापा दिल्ली क्यों गए ?

मम्मी – अरे क्या बताओ तुझे ये उत्तराखण्ड जितना बाहर से अच्छा दिखता है अंदर से ये उतना ही रुलाता है। यहाँ एक दो दिन के लिए रहना स्वर्ग समान तो महीनों, सालों रहना नरक समान है।

हम लोग इसीलिए गए उत्तराखण्ड छोड़कर क्योंकि हम यह नहीं चाहते थे कि जितनी परेशानियाँ हमने झेली है वो तुम या तुम्हारी आने वाली जनरेशन को न झेलना पड़े।

मनोज – मम्मी थोड़ा तो बताओ आप वरना मुझे कैसे पता चलेगा कि इस सुंदर, शांत जगह को छोड़ कर हम उस भीड़-भाड़ की दुनिया में क्यों गए ?

मम्मी – वो एक ऐसा दौर था जब ये सुनसान पहाड़ भी सुबह–सुबह गाया करता था, सुबह कोई आलर्म नहीं हम लोग इन पंछियो की आवाज से जगते थे, तेरे मामा, मैं, मेरी सहेलिया स्कूल जाने से पहले दो-दो बर्तन पानी लाते थे, गधेरे से फिर तेरी नानी हमें तैयार कर के स्कुल को भगाया करती थी।

हमारा स्कूल घर से 6 किलोमीटर दूर होता था जंगल से भरा हुआ...हम लोग दौड़ लगा कर जाते थे। न गिरने का डर था न तेरी नानी से पिटने का, स्कूल जाते ही हम लोग प्रार्थना करते थे, दिन में लंच में सब दौड़ने वाला खेल खेलते थे। हम सारे साथ जाते थे स्कूल से साथ आते थे क्योंकि एक तो इतनी दूर उपर से जगंल का रास्ता था, हम लोग आते वक्त भाग कर आते थे और अपने से छोटे भाइयों का बेग हम लेकर आते थे क्योंकि उनसे अपना वजन लाया नहीं जाता था। वो बेग क्या ही लाते वापस .... स्कूल आते ही तेरी नानी खाना तैयार रखती थी उस समय दाल, चावल, सब्जी सब हमारे खेतों में ही होता था, खाना खा कर हम सो जाते, शाम को मैं और मेरी सहेलियाँ घास लेने खेत जाती थी और तेरे मामा और उनकी मंडली गाय-बकरी चराने जंगल जाते थे। उसके बाद सब पानी लेने पंदेरे जाते थे जो कि घर से 3 किलोमीटर दूर है। वहाँ 3 गांव से लोग आते थे और पानी बहुत कम आता था। लम्बा इंतजार करना पड़ता था जिससे रोज घर डांट खाते थे हम लेकिन वो एक गगरी पानी भरने के लिए जो इंतजार होता था वो बहुत अच्छा था। सारे दोस्त मिक लेते थे सारी दुनिया भर की गप्पे हम लोग उस समय मारते थे मानो हमने एक गांव वही बसाया हो। घर आते ही तेरी नानी ड्न्डा लेकर खड़ी रहती कि हमने इतनी देर क्यों लगी लेकिन हमें मेरी दादी हमेशा बचाती थी। उसके बाद हम खाना खाकर थोड़ा किताब देखते थे उसके बाद मेरी दादी हमें कहानी सुनाती थी फिर हम सो जाते थे बस रोज ऐसा ही था हमारा।

मनोज – वाओ मम्मा ये तो बहुत अच्छी लाइफ थी।

मम्मी- हाँ सुनने में अच्छा लगता है लेकिन परेशानियाँ भी उतनी ही होती थी ..तेरे नाना हमारे साथ नहींं रहते थे वो दिल्ली में छोटी सी नौकरी करते थे क्योकि खेती से उतना घर नहींं चलता था। न बिजली थी, न पानी, न स्कूल में कुछ सीखने को मिले मिलता भी कहाँ से हमारे स्कुल में 4 टीचर थे। बस इंग्लिश का कोई टीचर ही नहीं, लड़का 10 पास हुआ या फेल उसके बाद वो गांव छोड़कर दिल्ली नौकरी करने चला जाता था, लड़की पास हो या फेल उसकी शादी हो जाती थी, एक समय था जब ये गांव भरा रह्ता था लेकिन आज यहाँ कोई नहीं क्योंकि यहाँ है इन खुबसूरत पहाड़ों के अलावा, कुछ भी खरीदना हो तो 5 किलोमीटर दूर मार्केट जाओ, अस्पाताल तो यहाँ से 30 किलोमीटर दूर है जहाँ डाक्टर नहीं, सड़क 4 किलोमीटर दूर वो भी चढ़ाई का रास्ता कोई बीमार होता तो लोग उसे डोली में लेकर सड़क तक ले जाते थे उसके बाद गाड़ी का इंतजार करो, यहाँ शहर की हर 2 मिनट में टेक्सी नहीं मिलती, 2 घण्टो में एक बस आती थी। इन सब बेचारा मरीच अस्पताल जाने से पहले दम तोड़ देते थे।

अब सोचो उस समय जब गांव में सब रहते थे तब ये हालत थी तो कौन झेलता और कब तक झेलता ... अब क्या फायदा इस लाईट का जिसको जलाने वाला यहाँ कोई नहींं, क्या फायदा अब इन सड़कों का जिसमें चलने वाला कोई नहींं।

मनोज- तो मम्मी अब यहाँ वापस क्यो नहीं आते लोग जब सडके और लाईट्स आ गयी है तो ...

मम्मी- इससे क्या होगा ,जब खेत में अनाज नहीं, पीने के लिए पानी नहींं, स्कुलस में टीचर ही नहीं, घर चलाने के लिए रोजगार ही नहीं तो यहाँ जिया कैसे जाएगा ?

मनोज – मम्मी यहाँ की सरकार कुछ नहींं करती यहाँ के लिए ?

मम्मी- सरकार करती है न,बद्री, केदार, नैनीताल, हल्द्वानी, देहरादून ,अल्मोड़ा मुख्य जगह पर जहाँ वो घूमने आते हैं, उन्हें क्या मालूम गांव के बारे में, यहाँ का ग्राम प्रधान जो 5 साल में एक ही सड़क को बार बार बनाकर बजट देता है, चुनाव के समय में तो बडे नेता भी आते हैं‘’ आप हमें वोट दो हम आपने गांव में ऐसा करेंगे हम वैसा करेंगे, सरकार 100 गांव में 10 गांव में थोड़ा काम करके जताती है हम आपके लिए काम करेंगे उनके हिसाब से। अभी 50 साल और लग सकते हैं विकसित जगह के बराबर पहुंचने में।

मनोज- मम्मी जब यहाँ की सरकार इतनी देर करती है तो यहाँ के लोग उन्हें वोट क्यों देते हैं, जब ये अब तक बिना सरकार की मदद से अपना जीवन बिता रहे हैं तो आगे क्यों नहीं ?

मम्मी- आशा बेटा आशा, यहाँ के लोग बहुत भोले होते हैं, हर बार हम सोचते हैं उस बार ये नेता जरुर कुछ करेगा, इसीलिए वोट देते हैं, लेकिन अब सब यहाँ छोड़कर जा चुके हैं तो अब फर्क नहीं पड़ता किसी को, अब यहाँ कभी-कभी आना है और घूम कर चले जाना है।

मनोज – लेकिन मम्मी आपकी बात सुन कर ये लगता है कि यहाँ के लोग ये जिंद्गी बहुत मिस करते होंगे।

मम्मी- मिस ? अंदर ही अन्दर रोता है वो हर एक इंसान जिसने यहाँ वो समय बिताया है, यहाँ आज भी जब लोग गर्मीयों की छुट्टी में घर आते हैं तो आते मुस्कुराते हुए है लेकिन जाते आँसू बहाकर, उत्तराखण्ड बाहर वालों के लिए केदार,नैनीताल, हल्द्वानी, देहरादून तक ही है लेकिन उत्तराखण्ड वालों के लिए ये खेत, ये जंगल, वो पर्वत, वो पानी का पंदेरा, वो जंगलो में गाय चराना, वो घास के लिए दूर खेतों में जाना, वो उंची चढ़ाई चढ़ कर स्कूल जाना, वो रातो में पूरे गांव के साथ गाना बजाना, वो होली में एक दूसरे के गांव जाकर रंग लगाना, वो दूसरों के खेतों से ककड़ी चुराना, वो सरसो के साग और मक्के की रोटी खाना, वो सिसोंड/कंड्ली/बिछु घास से लोगों को डराना, पहाड़ी नमक के साथ सारे फल चट कर जाना है।” जहाँ परायो से भी अपनो जैसा प्यार मिलता है वो है उत्तराखण्ड”

नमस्कार,,, जी हाँ जहाँ गाड़ियों के शोर से नहींं पंछियों की चहचहाहट से दिन की शुरुआत हो, जिसके हर कोने में देवी-देवताओ का वास हो, वो शक्स मुश्किलों में भी मुस्कुराता है जिसका उत्तराखण्ड आवास हो, यह एक सच्च है लेकिन इतनी खूबसूरती के बाद भी यहाँ जीवन जीना उतना ही मुश्किल है जितना की यहाँ का आवरण है। न स्कूल, न बाजार, न अस्पताल, न सडक, न पानी और है भी तो इतनी दूर की जाते जाते इंसान हिम्मत ही हार जाए। इसके लिए सरकार जिम्मेदार हो सकती है तो हर पांच साल में न जाने कितने गलत वादे करते हैं लेकिन पूरा करने की केवल आशा ही देते हैं चाहे वो किसी की भी सरकार पहाड़ों का हाल हमेशा यही है क्योंकि यहाँ कोई मीडिया नहीं आती, कोई नेता नहीं आता, कोई ट्विटर, कोई युट्युब वाला नहीं जो यहाँ की बात उच्च तौर पर आगे पहुंचाए।

उत्तराखण्ड को केदारनारथ, बद्रीनाथ, नैनीताल, देहरादून आदि विकसित जगहों की वजह से आज सब जान रहे हैं जबकि उत्तराखण्ड ऐसे कई गांव से जाना जाता है जहाँ आज किसी की नजर नहीं, यही रहती है संस्कृति उत्तराखण्ड की आज भी, यही आज भी उन देवी-देवताओं का वास है जिसकी वजह से उत्तराखण्ड को देवभूमि के नाम से पूरी दूनिया जानती है।

यहाँ भी यदि अच्छे स्कूल हो, स्कूलो में टीचर हो, अस्पताल नजदीक हो, बाजार नजदीक हो, अच्छी सड़कें हो, अच्छा रोजगार हो हर वो सुविधा हो विकसित जगह में है तो यह कहना गलत नहींं होगा कि उत्तराखण्ड अब पलायन नहींं होता। मैंने भी अपने बचपन के दिन गांव में बिताए हैं, ये सब मैंने खुद देखा है और मेरी भी वजह थी गांव  से आने की अच्छी पढ़ाई जो मुझे वहाँ नहींं मिली।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama