Sangeeta Agarwal

Classics

4  

Sangeeta Agarwal

Classics

जंग

जंग

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दुनिया तमाशा है और हर आदमी यहां जोकर है जो ऊपर से सबको हंसाता है, पर अपने आंसूओं को दबाके, छिपा के क्योंकि वो बिल्कुल अकेला होता है।वो लड़का भी बिल्कुल अकेला था, राजन नाम रखा था मां बाप ने, बस यही याद था उसे, बाकी तो होश सम्भालते ही मां बाप की सहारा देती उंगलियां छिन गई थीं उससे।एक बड़ी बहिन थी, शादीशुदा, वो अपने पति और सास ससुर के व्यंग बाणों से आहत खुद को न बचा पाती , उसे क्या सहारा देती।

उस मासूम राजन की जिंदगी एक तिलमिलाहट पर आ ठहरी थी, पानी जब सिर से गुजरा तब एक दिन , दोस्तों के साथ पास की नदी पर नहाने गया।

कपड़े पास पेड़ पर टांग दिए, वहीं टँगे रह गए, लोगों को लगा, अनाथ लड़के को नदी ने अपने आगोश में हमेशा के लिये जगह दे दी शायद।चलो, एक बला थी , खत्म हुई।

लेकिन जिंदगी बला तो नहीं होती, वो तो हरपल करवट लेती है, नित नए रास्ते खोजती है, बहार लाने के, कुछ बेहतर होने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।

तो पढ़ते हैं इस कहानी में एक युवक की संघर्ष की कहानी, वो किन किन दौर से गुजरता है अपनी जिंदगी में, क्या जिंदगी उसके लिये कांटो का ताज बनी या उसके गले में फूलों का हार?? क्या वो कोई मुकाम पा सका या भटकता रहा यूँही अकेला, तन्हा, बेआसरा।

अजी सुनते हो...कितनी देर हो गई है, कब से आवाज़ लगा रही हूं, आज मछली पकड़ने नहीं जाओगे क्या?कुछ कमा के लाओगे तभी खाना बनेगा न, चंपा के बापू...रधिया तेज़ी से बोली तो रामु उठ कर खड़ा हो गया।

घड़ी भर बैठके चिलम भी नहीं पी सकता, ये लुगाइयाँ भी नाक में दम किये रहती हैं, घर से बाहर जाओ तो कहाँ घूमते फिरते हो, कहकर परेशान करती है और घर मे रहो तो भी जान साँसत्त में डाले रखेगी, रामु बड़बड़ाया।

पास ही रखी बुशर्ट शरीर पर पहनते गए, वो बुदबुदाये जा रहा था पर अपनी प्यारी राधा को नाराज़ भी नहीं कर सकता था।बहुत प्यार करता वो अपनी पत्नि राधा और बेटी चंपा से।ये दोनों उसकी जिंदगी का सहारा थीं।

कहने को राधा, दिनभर उसपर गुस्सा होती, उससे लड़ती झगड़ती पर दिल ही दिल मे उसपर जान देती थी।आजकल नदी में पानी ज्यादा था, मछली भरपूर मिल जातीं तो वो सोचती चार पैसे ही हाथ आएंगे, अगर चंपा के बापू, घर मे बैठ चिलम ही पीता रहेगा तो घर कैसे चलेगा?

प्यार मोहब्बत अपनी जगह होता है, एक हद तक ये सही है कि प्यार बिना जिंदगी नहीं चलती लेकिन पेट भरने के लिये रोटी हर युग मे पहली जरूरत ही रहेगी, उसकी जगह प्यार नहीं ले सकता।पहले पेट पूजा, उसके बाद कोई काम दूजा..

राधा और रामु भी अक्सर इसी बहस में उलझ जाते, उनकी बेटी चंपा भी अब बड़ी हो रही थी, रामु को लगता, राधा बिन बात परेशान रहती है, अभी दस बरस की ही तो है छोरी।

राधा को लगता, दस की हो गई, और दस साल बाद जवान हो जाएगी, उसका ब्याह, घरबार बसाना होगा, कैसे होगा सब, लड़की के माँ बाप, उसकी पैदाइश से ही चिंतातुर हो उठते हैं।चंपा का उठान भी अच्छा था, बहुत खूबसूरत और स्वस्थ बच्ची थी, राधा उसे अच्छे कपड़ो में ढक के रखती, आसपास वालों की चुभती निगाहों से बचाकर।चंपा तो बच्ची थी पर वो तो अनुभवी थी, खूब जानती थी जब कभी उसे अपने साथ, बड़ी हवेली में काम पर ले जाती तो वहां बड़े मालिक , चंपा को टॉफी, चॉकलेट देने के बहाने कैसे कभी उसके सिर पर , कभी कंधे पर हाथ फेरते थे और वो तिलमिला के रह जाती।

इसीलिये वो चाहती थी कि रामु कोई अच्छा काम करे जिससे चंपा का भविष्य सुरक्षित हो सके।

जा रहा हूँ भागवान, कुछ रोटी साथ बांध दी, तीन चार घण्टे लग जाएंगे..रामु ने कहा तो उसने मुस्कराते हुए उसके हाथ मे एक कपड़े में बंधी रोटी पकड़ा दीं।

सब तैयारी पहले कर रखी थी, रामु मुस्कराया और घर से बाहर चल दिया।

राधा ने चैन की सांस ली, चलो अब गया है तो कुछ तो लेकर आएगा ही, इतने मैं घर के काम निबटा लूं और उसके काम पर जाने का बखत भी हो रहा था।

रामु कब से जाल डाले बैठा था पर एकाध मछली ही पकड़ आई थी आज।कैसा मनहूस दिन है आज ..वो सोच रहा था, सोच था, आज कुछ ज्यादा मछली मिलेगीं पर नहीं आज तो रोज से बहुत कम मिलीं।वो परेशान हो जाने को हुआ तो नदी में उसे कुछ कपड़ा सा बहता दिखा।

उत्सुकतावश वो उधर बढ़ा तो लगा जैसे कोई है, वो नदी में कूद गया, अरे ये तो कोई डूब गया है शायद, उसने उस को नदी से बाहर निकाला।

ये तो कोई जवान लड़का है, उसके नाक के पास कञ लगाया तो पाया कि उसकी सांस धीमी चल रही थी, पेट और दबाब डाल पहले उसके अंदर से पानी बाहर निकाला रामू ने, फिर उसे सांस देने लगा मुंह से।फिर उसे लेकर वैद्य के पास दौड़ा।

थोड़ी देर में, उस लड़के की सांसे काबू में आ गईं लेकिन वो अभी भी बेहोश था, वैद्य जी ने कहा था, कुछ देर में होश आ जायेगा।

उसने पलभर सोचा, इसका क्या करूँ, घर ले जाऊंगा, राधा गुस्सा करेगी, यहीं छोड़ जाऊंगा तो ये मर जायेगा...

एक आवाज आई उसके अंदर से-मर जाये, तेरा कौन लगता है?

तभी दूसरी आवाज़ आई-मनुष्यता भी कुछ होती है, अगर मेरे हाथ लगा है तो कोई विशेष कारण होगा, भगवान ने भेजा है तो कोई बात जरूर होगी।

इसी उहापोह में उसे लिये, वो कब घर पहुंच गया।

राधा बेसब्री से उसका इंतजार कर रही थी।

उसके हाथ में कुछ दवाइयां, दूध और फल थे, थोड़ी बहुत मछली बेचकर बस वही हाथ लगा था।

ये कौन है तुम्हारे साथ, चंपा के बापू?राधा बोली

वो..वो..कोई डूब गया था, उसे बचाये हूँ..वो इतना कह मासूमियत से पत्नि को देखने लगा।

तुम्हारी अक्ल को क्या हुआ है, घर में बेटी है, खाने को पहले ही कमी थी अब एक और बीमार को उठा लाये, राधा बिफर उठी।

दो चार दिन में ठीक हो चला जायेगा बेचारा, ऐसा क्या खा लेगा?एक कोने में लेटा रहेगा, कुछ तो रहम खाओ, चंपा की माँ...रामु ने कहा।

उन्ह..राधा मुंह फेर के खड़ी हो गई।

तबतक रामु उसे कमरे में टूटी चारपाई पर लिटा चुका था।

राधा ने चोर निगाहों से देखा, कोई चौदह पंद्रह वर्ष का खूबसूरत, गोरा चिट्टा बांका जवान चारपाई पर था, किसी अच्छे घर से ही लग रहा था, कहने को शरीर पर अंगवस्त्र के अलावा कुछ न था पर सीधे हाथ में पहनी सोने की अंगूठी और चेहरे की कोमलता और रुआब बता रही थी कि वो किसी बड़े खानदान से था।

अचानक उस लड़के ने कराहते हुए आंखे खोलने का उपक्रम किया तो राधा चौंक गई।

उधर वो लड़का बुदबुदाया-पानी, पानी...

रामु के चेहरे पर संतोष के भाव तैर गए और वो उसके पास को गया उसे पानी देने।

रामु ने उस लड़के को थोड़ा पानी पिलाया, उसने धीरे से आंख खोली और कमजोर आवाज़ में बोला-मैं कहाँ हूँ?आप लोग कौन हैं?

रामु ने देखा वो बहुत कमजोरी में लग रहा था, उसने उस लड़के के सिर पर हाथ फेरा और बोला-घबराओ मत बिटबा, तुम सुरक्षित हो।

थोड़ी देर में , वो लड़का कुछ स्वस्थ नज़र आने लगा, उसने आंखे चारों ओर दौड़ाई जैसे कुछ ढूंढ रहा हो।

अब तक राधा की ममता भी उसके लिये जाग उठी, उसे लगा कि उसका बेटा होता तो वो भी आज इतना बड़ा होता जो आज से 15 साल पहले बाढ़ की भेंट चढ़ चुका था।

वो उसके पास आई हल्दी वाला दूध लेकर , वो उसके हाथ मे गिलास देते हुए बोली-लो बेटा, पी जाओ इसे।

लड़के ने कृतज्ञता से भरकर उसको देखा और चुपचाप बिना विरोध सारा दूध एक सांस में पी गया।

तुम्हारा नाम क्या है?तुम पानी मे कैसे डूबे?कहाँ से हो?एक साथ राधा ने इतने प्रश्न पूछे तो वो घबरा सा गया।

अरे भागवान, उसे अच्छा हो जाने दे, फिर जो चाहे पूछ लेना...  . रामु बोला

लड़के ने दिमाग पर जोर देकर बताया-राजन नाम है मेरा, नदी में दोस्तो साथ नहाने आया था, तेज बहाव में बहता चला गया, फिर बेहोश हो गया, आगे कुछ याद नहीं।

राधा-तो तुम्हारा घर कहाँ है?तुम्हारे मां बापू परेशान होंगे, उन्हें तो खबर कर दें।

राजन का मुंह पलभर को सफेद पड़ गया, वो दुखी स्वर में बोला-मेरा कोई नहीं है, मैं बिल्कुल अकेला हूँ।

अरे, रे, ये तो बहुत दुख की बात है, बरबस ही रामु के मुंह से निकला।

उधर राधा को फिक्र हुई, एक तो वैसे ही घर मे पैसे की किल्लत रहती थी अब एक और मुंह आ गया खाने के लिये।एक अनार, सौ बीमार।अकेला रामु कमाने वाला , बाकी खाने वाले।

जहां तक बात राधा के काम करने की थी, उसके काम मे भी क्या होता था, कहने को हवेली जाती, बड़े मालिक, मालकिन की बड़ी कृपा थी उसपर जो काम पर रखा था उसे, पर उस सबसे उनका ही गुजारा मुश्किल से होता, फिर वो कैसे भूल जाती कि उसकी चंपा भी जवानी की दहलीज पर कदम रखने वाली थी, इस अजनबी लड़के को घर मे आसरा देना उसे किसी भी तरह से जँचा नहीं।

रामु जैसे उसके दिल की बात समझ गया था, बोला-काहे फिकर करती हो चंपा की अम्मा, सब हो जाएगा, ये हमारा बेटा ही है, जान लो, भगवान ने फिर से हमें हमारा बेटा लौटा दिया।

चलो, काफी रात हो गई है, अब सब सो जाते हैं, सुबह सोचेंगे, आगे क्या करना है।

मन मे सैकड़ों फिक्र समेटे, राधा सोने चल दी, चंपा को उसने अपने सीने से चिपका लिया था, चंपा ने उससे जानना भी चाहा कि ये कौन है उनके घर, कब तक रहेगा?

उसने चंपा को बहला फुसला के सुला दिया कि तुम्हारे बापू के दोस्त का बेटा है, कुछ दिनों में चला जायेगा, जब उसकी तबियत पूरी तरह से ठीक हो जाएगी।

सुबह होने की आहट हो चुकी थी, दूर कहीं मुर्गे की बांग सुनाई दी, ठंडी, मधुर हवा बह रही थी, राजन की आंख बहुत जल्दी खुल गई, उठा तो घर मे सब सो रहे थे।उसने चारो ओर निगाह घुमाई, घर की जीर्ण शीर्ण हालत देखकर उसे उन लोगों पर बहुत तरस आया, फिर उसके मन में संकोच भर गया कि मैं इनपर बोझ कैसे बन सकता हूँ।

बेचारे राजन को समझ नहीं आ रहा था कि उसने कैसी तकदीर पाई है, लोग कहते थे, अभागा है जो बचपन मे ही मां बाप नहीं रहे।बड़ी शादीशुदा बहिन अपने साथ ले गई तो उसके ससुराल वालों ने उसकी बहिन से दुर्व्यवहार शुरू कर दिया, खूब ताने मारते, छोटा सा बच्चा गुमसुम हो जाता जब कोई भी कह देता, घर जंवाई या बहन के घर भाई...दोनों का आत्मसम्मान नहीं होता।

अपनी जीजी से इसका मतलब जानना चाहता तो वो रो देती बस और बेबसी से उसे देखती रहती।फिर एक दिन रात को उसकी आंख खुल गई जब उसके जीजा, उसकी जीजी को शायद पीट रहे थे, जीजी के सुबकने की आवाज़ आ रही थीं और वो अनुनय कर रही थी कि आप मुझे कुछ भी कह लें पर मेरे भाई को घर से न निकाले, बच्चा है वो कहाँ जायेगा?

उस क्षण वो बहुत डर गया था, छोटी सी उम्र में इतना तो समझ ही गया था कि इस भरी दुनिया मे उसका कोई नहीं है, जहां भी वो जाता है, सबको परेशान कर देता है।अब यहां नहीं रहूंगा, जीजी को बिना बताए, अगले दिन , बहुत तड़के वो वहां से भाग आया था किसी नई जगह के लिये।

दिल ने उसे रोकना चाहा था कि अपनी बहन का तो कुछ सोच, वो कितना रोयेगी जब तुझे नहीं देखेगी, फिर दिमाग ने दिल को समझाया, इस बात से तो कुछ दिन रो धो के भूल जाएगी लेकिन रुक गया तो उसके घरवाले मेरी बहन को पूरी जिंदगी खून के आंसू रुलायेंगे।

बहुत गहन सोच में था वो जब राधा उसके पास आ गई और बोली-लो बिटवा, कलेवा कर लो तनिक...

अरे, कितना दिन चढ़ आया था, चारो ओर धूप खिल रही थी।उसने उठना चाहा लेकिन लड़खड़ा गया।

इतने में रामु भी आ गया, कहीं न जाने देंगे तुम्हे, समझे तुम...

मैं आप पर बोझ नहीं बनना चाहता काका, वो दृढ़ता से बोला।

तो पहले ठीक हो जाओ, फिर कोई काम धंधा कर लेना, तुम्हें भी किसी अपने की जरूरत है और हमें भी तुम्हारे रूप में अपना बेटा मिला है, तुम अब कहीं नहीं जाओगे, ये मेरा आदेश है,

रामु ने कहा तो राजन की आंखे गीली हो गईं, राधा ने बढ़कर उसके माथे को चूम लिया और बरबस उसके मुंह से निकला-माँ, तुम कितनी अच्छी हो।

राधा विह्वल हो उठी, रामु भी पास में आ गया, चंपा दूर खड़ी टुकुर टुकुर ये अद्भुत मिलन देख रही थी।रामु ने इशारे से उसे पास बुलाया और वो चारो आपस मे लिपट कर गंगा जमुना बहाने लगे।खुशी और भावुकता से सबके गले अवरुद्ध थे लेकिन आंखों की भाषा मे वो कई जन्मों के रिश्तों की प्यास शांत कर रहे थे।

राजन बहुत जल्दी उन सबसे घुल मिल गया था, बाहर का कोई अजनबी ये पहचान ही नहीं सकता था कि वो उनका सगा बेटा नहीं था।जब से रामु और राधा को पता चला था कि वो मेट्रिक पास है और आगे भी पढ़ना चाहता है तो उन्होंने उसे बिना रोक टोक आगे पढ़ने दिया।वो दिन भर रामु के साथ रहता, उसका हुनर जल्द ही सीख लिया था राजन ने, इसके अलावा भी वो दूसरे छोटे मोटे कामों से घर की आमदनी बढ़ा रहा था।

छोटी बहन चंपा को मन लगाकर पढ़ाता और उसपर इसका असर साफ दिखने लगा था।गांव के सभी लोगों से उसका व्यवहार बहुत अच्छा था, सब उसके मधुर व्यवहार और वाक कुशलता से परिचित होने लगे थे।

अच्छा खाना पीना, घर का प्यार दुलार, गांव के शांत वातावरण में राजन का असली रूप निखर आया था, वो बहुत स्मार्ट, शिक्षित और समझदार युवक था जो हरेक की सहायता करने को हरवक्त तत्पर रहता।

उस दिन, राधा को काम से लौटने में बड़ी देर हो गई तो राजन अपनी फटफटिया पर , माँ को लेने हवेली चला गया, वहां पहली बार उसने मालकिन के दर्शन किये।बड़ी सह्रदय महिला थीं वो, राजन ने भी जाकर उनके चरण स्पर्श कर लिये, बस गदगद हो उठीं।

राधा से बोलीं-अरे ये गबरू जवान कौन है तेरा?

मेरा मुंहबोला बेटा है मालकिन, राधा ने प्यार से राजन को निहारते हुए कहा।

बड़ा भला लड़का है, मालकिन बोलीं।

पढा लिखा भी है मालकिन, इसी साल बड़ी परीक्षा पास की है..क्या नाम है रे राजू...उसने पूछा बेटे से

कुछ नहीं मालकिन, ग्रैजुएशन कर रहा हूँ, शर्माते हुए वो बोला।

मालकिन की निगाहों में आश्चर्य और तारीफ के भाव आ गए, इतने में ही मालिक विजय प्रताप वहां आ गए।

जब उन्हें राजन के बारे में पता चला , वो बहुत खुश हुए, गाड़ी चलाना भी जानता है क्या?वो बोले

चलाई है थोड़ी बहुत, थोड़े दिनों में सीख जाऊंगा सरकार, राजन सकुचाते हुए बोला।

राधा फटी आंखों से उसे देखने लगी और मन ही मन अपने लाल की नज़र उतारी, ये तो हरफनमौला है।

मुझे बहुत समय से किसी विश्वसनीय आदमी की तलाश थी, रुक्मणि जी, क्यों न इस नवयुवक को अपने पास रखा जाए, वो अपनी पत्नि से बोले।

रुक्मणि की तो जैसे मन की बात किसी ने छीन ली हो, मुस्कराते हुए बोली, बिल्कुल जी, कल से ही इसे बुला लेते हैं।

शुभ काम मे देर कैसी?आज ही इसे कम समझा देते हैं, विजय बोले।

राधा और राजन भौचक्के से होकर उनकी बातें सुनते रहे लेकिन ये बात तय हो गई कि अब वो विजय प्रताप जी के साथ काम करेगा, उनका ड्राइवर बनकर, उनका असिस्टेंट बनकर।

उस दिन राधा बहुत खुश थी, अचानक से उन सबके दिन पलट जाएंगे, इस तरह खुशियां उनके दरवाजे दस्तक देंगी, उसने सोचा न था।सारे मोहल्ले में उसने मिठाई बंटवाई, राजन ने उसे कह दिया था कि अब वो कोई काम नहीं करेगी, उसका जवान बेटा है, उसके रहते , उसकी मां काम करे, ये उसे पसन्द नहीं।

धीरे धीरे, राजन , विजय प्रताप का बहुत चहेता बन गया, वो बड़ी मेहनत और ईमानदारी से काम करता था, उसपर वो अपने व्यापार का कामकाज भी सौंपने लगे थे।उनकी दो बेटियां थीं जो शहर में पढ़ रही थीं, दूर दूर तक इतना फैला व्यापार संभालने में वो अकेले दिक्कत महसूस करते पर जब से राजन उनके साथ काम करने लगा था, वो निश्चिन्त हो गए थे।

उस दिन उन्होंने, राजन को शहर भेजा गाड़ी लेकर, दरअसल उनकी बड़ी बेटी को एयरपोर्ट से लेकर आना था जो पूना से दिल्ली आ रही थी।

राजन को उन्होंने उसका एक फोटो दिखा दिया था, उससे ही पहचान करनी थी उसकी, उधर उनकी लड़की रिया भी राजन को नहीं जानती

थी।उसे अपनी गाड़ी का ही पता था।

एयरपोर्ट जाकर राजन को पता चला, वो फ्लाइट थोड़ी लेट है, वो निश्चिंतता से इधर उधर घूमने लगा, बहुत समय बाद शहर की चकाचौंध उसे लुभा रही थी, ऊंची ऊंची बिल्डिंग्स, चमचमाती गाड़ियां, फैशनेबल लड़कियां सब कुछ देखकर वो कहीं खो सा गया था।

अचानक एक सुरीली आवाज़ से वो चौंक गया-तुम राजन हो?

उसने पलट के देखा तो एकटक देखता ही रह गया, सामने एक बहुत खूबसूरत, मॉडर्न लड़की

खड़ी थी...

उसके आगे चुटकी बजाती वो फिर बोली-ए मिस्टर, मैं रिया हूँ, शायद तुम मुझे लेने ही आये हो यहां?

ओह!सॉरी मैडम, वो शर्म से लाल हो गया, आप रिया मेमसाब है..

वो मुस्कराई, अरे..तुम तो शर्म से लाल पड़ गए, कोई बात नहीं..चलो अब गाड़ी घर की तरफ घुमाओ और चलो...

राजन हड़बड़ा के ड्राइविंग सीट पर बैठ गया, पता नहीं रिया को देखते ही उसे क्या हुआ कि उसका दिल अपने बस में नहीं रहा और वो नर्वस होता जा रहा था।

गाड़ी पूरी रफ्तार से चिकनी सड़क पर फिसलती जा रही थी, रिया खुश थी कि उसके पापा ने इस बार बहुत एक्सपर्ट ड्राइवर रखा है लेकिन राजन की स्मार्टनेस से उसे ये यकीन कम हो पा रहा था कि वो ड्राइवर है। वो कनखियों से एक नज़र उसपर डाल लेती, गोरा रंग, ऊंचा कद, हल्की सी मूंछे, घुंघराले काले बाल और गठीला बदन, सब कुछ उसे बहुत आकर्षक बना रहे थे।रिया को अखर रही थी तो वो उसकी चुप्पी थी।

रिया एक बातूनी लड़की, इतना चुप तो वो कभी रह ही नहीं सकती, बहुत सोच के उसने बात शुरू की-तुम कब से हो हमारे यहां?

जी..जी...वो हड़बड़ा गया अचानक पूछे गए सवाल से, कोई छह माह से...वो गम्भीरता से बोला।

तुम्हारी उम्र तो इतनी ज्यादा नहीं लग रही जितने तुम गम्भीर दिख रहे हो, रिया बेतकल्लुफी से बोली।

सॉरी, आपने मुझसे कुछ कहा, उसके माथे पर पसीने की बूंदे उभर आईं।

तुम इतना घबरा क्यों रहे हो?ए सी तेज़ कर लो थोड़ा, देखो कितना पसीना आ रहा है, रिया बोली

ओह थैंक्स!वो नर्वस सा हो उठा और ए सी फुल कर दिया।

तुम पढ़े लिखे लगते हो मुझे, क्या किया है तुमने, रिया ने पूछा।

ग्रैजुएशन किया है, वो सामने देखते हुए बोला।

ओह माय गॉड!रिया इतनी तेज चिल्लाई कि उसके हाथ से स्टेरियिंग हिल गया...

उसने नज़रों ही नज़रों में उझसे रिक्वेस्ट की जैसे प्लीज् मुझे ड्राइव करने दें, एक तो रिया के इतने पास होने से वैसे ही उसकी धड़कने बेकाबू थीं, उसपर लगातार उसका उससे बोलना उसे असहज कर रहा था।

राजन अपनी सीमाएं भलीभांति जानता था, वो मालिक की बेटी हैं और वो उनका नौकर, वो कुछ भी कर सकती हैं, हँसी मजाक, डांट भी सकती हैं लेकिन उसे तो अपनी हदें ध्यान रखनी है न।

वो ये सब सोच ही रहा था कि रिया ने कहा-सुनो, रास्ते में कोई कैफ़े हो तो रोकना, चाय, कॉफ़ी की तलब हो रही है।

ठीक है मैम, वो शालीनता से बोला।

मैम...., रिया फिर बहुत तेज खिलखिलाई, इतना फॉर्मल होने की जरूरत नहीं , तुम मुझे रिया कह सकते हो।

उसने पहली बार रिया को चौंक के देखा, रिया उसकी तरफ ही देख रही थी, दोनों की नज़रे एक दूसरे से टकराई और राजन ने ही झेंप के नज़रे झुका लीं।

रिया पहली बार गम्भीर होके उससे बोली-देखो, हम हमउम्र हैं, आज के ज़माने के हैं, मम्मी पापा से फोन पर तुम्हारे बारे में बहुत जान चुकी हूं, क्या हम अच्छे दोस्त नहीं बन सकते?

राजन भी उसी गम्भीरता से बोला-दोस्ती अपनी हैसियत देखकर की जाए तो अच्छा लगता है रिया जी।

ओह फिर रिया जी..., यार तुम्हारा स्क्रू ढीला है क्या, कॉल मी रिया ओनली...

ओके, रिया जी, ओह सॉरी, रिया...वो सहज हो मुस्कराया।

ये हुई न बात, रिया ने अपना हाथ दोस्ती के लिये उसकी तरफ बढ़ा दिया।

राजन कांप उठा उसका नाजुक गोरा हाथ अपने हाथ मे लेते हुए, शायद उसकी जिंदगी का ये पहला अनुभव होगा जब वो किसी लड़की, और वो भी वो लड़की जिसे देखते ही उसका दिल बेतहाशा धड़क उठा था, उसका हाथ अपने हाथ मे ले रहा था।

कितना नरम, रुई सा स्पर्श था उसका, राजन के पूरे शरीर मे झुरझुरी सी दौड़ गई, वो जल्दी ही उसे छोड़ना चाहता था पर रिया की तेज पकड़ से ऐसा न कर पाया।

रिया, पता नहीं क्या क्या बोलती रही दोस्ती और उसके उसूलों के बारे में पर राजन को कुछ सुनाई नहीं आ रहा था, उसे उस हाथ की कोमलता और खूबसूरती ने जैसे मदहोश कर दिया था।

पता नहीं कब वो गुनगुनाने लग गया...

प्यार दीवाना होता है, मस्ताना होता है...

हर खुशी से, हर गम से, अनजाना होता है।

रिया फिर चहकी-अरे, तुम तो बहुत सुंदर गाते हो, कितनी मीठी आवाज है तुम्हारी...मेरे पास माउथ ऑर्गन है, क्या तुम जानते हो उसे बजाना?

राजन ने फिर मुस्कराते हुए कहा-दोस्तों के साथ थोड़ा बहुत बजाया है कभी कभी, अब तो शायद भूल गया हूँ।

रिया ने अपने बैग से वो निकाल के उसे दिखाया फिर दोनों ने तय किया कि वो कहीं रुकेंगे, फ्रेश होंगे, फिर वो उसे कुछ बजा के दिखायेगा।

रिया और राजन काफी खुल गए थे एक दूसरे से, रिया का स्वभाव ही ऐसा था कि कोई उससे ज्यादा देर कम बोलकर नहीं रह सकता था।

जब वो कॉफ़ी पीकर बाहर निकले, राजन गाड़ी की तरफ बढ़ा कि अब घर चलते हैं, उसे डर था, घर पहुंचने में देर हो जाएगी तो मालिक गुस्सा करेंगे, वैसे भी वो दिन ही दिन में घर पहुँचना चाहता था।

रिया को आज मौसम बहुत सुहाना लग रहा था, अचानक हुई बारिश की हल्की फुहारों ने मौसम को खुशनुमा बना दिया था।वहीं पास कोई पार्क था और उसमें बहुत सारे लोग घूमने आए थे, रिया बच्चों की तरह मचल गई कि हम भी वहां जाएंगे, कुछ देर रुक कर ही आगे जाएंगे।

मजबूरन राजन को उसकी बात माननी पड़ी।वो चुपचाप उसके पीछे चलने लगा।

एक जगह, बहुत सुंदर झरना था, उसके चारों ओर फूलों की छटा देखते ही बनती थी।सब लोग वहां सेल्फी ले रहे थे।

रिया ने राजन से कहा, चलो तुम मेरी कुछ फोटो लो..

राजन हकबका गया-मैं??मुझसे अच्छी नहीं खिचेंगी..प्लीज्...

अब नखरे न दिखाओ, जल्दी से खींचो, रिया ने उसका हाथ फिर पकड़ लिया और बच्चों की तरह ज़िद करने लगी।

फिर तो उसने कितने ही पोज़ बना के अपने फोटो खिंचवाए, थोड़ी देर में राजन को भी मज़ा आने लगा, उन दोनों ने खूब बोटिंग की, पास ही एक शॉप पर निशाना लगा कर चीजे जीतने का मौका मिल रहा था।

रिया का निशाना बड़ा पक्का था, उसने एक बार भी निशाना न चूका, वो हँसती, खिलखलाती और राजन को सब कुछ एक सपने सा ही लगता।

फिर राजन ने घड़ी देखी, शाम के चार बजे रहे थे, उसने सख्ती से रिया से कहा-अब मैं मिनट भर भी नहीं रुकूँगा यहां, आपको चलना होगा।

उसकी घबराहट देखकर रिया शरारत से बोली-जो मैं न गई तो...क्या कर लोगे?

मालकिन को फोन करके बता दूंगा, राजन ने कहा।

बता दो फिर, मैं भी कह दूंगी, कि तुम बहाना बना के मुझे इधर उधर घुमा रहे हो, हम रास्ता भटक गए हैं शायद...सोच लो, किसकी बात पर यकीन करेंगी माँ...वो शरारत से बोली।

अजीब मुसीबत है, ये कहाँ फंस गया मैं?वो मन ही मन बुदबुदाया

रिया को उसपर तरस आ गया और बोली-अच्छा चलो, अब लौट चलते हैं, तुम भी क्या याद रखोगे किस दरियादिल से पाला पड़ा था।

राजन की जान में जान आई, चलो किसी भी तरह मानी तो, वो जल्द ही गाड़ी स्टार्ट करके चल दिया, वो चाहता था कि जल्दी से घर पहुंच जाएं।

इतनी उछल कूद करने से , सुबह जल्दी उठने की वजह से शायद रिया थक गई थी, कार की आरामदायक सीट पर बैठते ही उसकी आंख लग गई और वो सो गई।

सोते हुए कितनी प्यारी लग रही थी वो, राजन ने नज़र भर के पहली बार उसे इत्मीनान से देखा, कितनी मासूमियत थी उसके चेहरे पर, कोई कह सकता था कि अभी जो लड़की आफत की पुड़िया बनी हुई थी वो इतनी मासूम दिख सकती है, उसके चेहरे पर मुस्कराहट तैर गई।

राजन ने देखा, रिया की गर्दन एक तरफ को झुक रही थी, उसकी बालों की लट उसके होठों को चूमने को बेताब थी जिसे वो बार बार हटाती, नींद में होने की वजह से वो कुछ परेशान हो रही थी, राजन का मन हुआ कि वो उसे ठीक कर दे पर वो रुक गया, डर गया था कहीं वो बुरा न मान जाए, उसने गाड़ी हल्की कर, उसे बड़ी गद्दी से सहारा लगा दिया और आराम से सुला दिया।

वो सोती हुई उसे शांत परी दिख रही थी और वो धीमे धीमे फिर गुनगुनाने लगा

मेरे घर आई एक नन्हीं परी

चांदनी के हसीन रथ पे सवार...

घर काफी पास आ गया था, राजन को खुशी थी कि वो सही सलामत, वक्त से , घर पहुंच गए थे।

जैसे ही वो लोग पहुंचे, रिया की माँ दरवाजे पर इंतजार करती मिलीं।

कितनी देर लग गई तुम्हे आने में, वो चिंता से बोलीं

अरे मां, आज बहुत ट्रैफिक जाम था, दुगना वक्त लगा हमे आने में, रिया ने राजन के कुछ बोलने से पहले बोला तो वो उसे अचरज से देखने लगा।

रिया ने फिर शरारत से उसे देखा और दौड़ती हुई घर मे घुस गई-डैडी...कहती वो अपने पिता के गले मे झूल गई।

मेरी प्रिंसेस को कोई परेशानी तो नहीं हुई, विजय प्रताप ने पूछा तो वो बोली-आप क्यों नहीं आये मुझे लेने एयरपोर्ट?

तुम जानती हो बेटा, पापा को कितने काम रहते हैं, अब मैं कुछ दिन सिर्फ अपनी बेटी के साथ समय बिताऊंगा।

प्रॉमिस...वो चहकी।

पक्का प्रॉमिस..दोनों बाप बेटी का प्यार देख राजन की आंखे गीली हो गईं, शायद उसे अपने माँ बाप की याद आ गई थी जिनकी कल्पना वो अक्सर ख्वाबो में करता, हालांकि रामु और राधा उसे अपने बच्चे जैसा प्यार देते थे पर असली मां बाप की जगह कोई दूसरा नहीं ले सकता।

उस दिन वो घर लौटा तो बहुत उदास था, राधा ने पूछा भी कि आज इतनी देर कैसे हो गई, वो गुमसुम क्यों है?

पर राजन चुपचाप सोने चला गया बहाना बनके कि बहुत थक गया हूँ, नींद आ रही है।

छत पर अपनी चारपाई पर लेटा वो आसमान ताकने लगा और तारों भरे आकाश में अपनी माँ को याद करने लगा।पता नहीं क्यों आज, उसे बहुत समय बाद, पहली बार, अपनी असली मां की बहुत याद आ रही थी।वो अपने दिल की बात किसी से कहना चाहता था, जानता था कि उसे जो पसन्द आई है वो उसके लिये आसमान के तारे के समान है जो उसे कभी नहीं मिलेगी, उसके लिये सोचना भी फिजूल है पर अपने दिल को कैसे समझाए जो बार बार वहीं जा रहा था।

कहने को वो ये बात राधा मां से भी बता सकता था पर बेवजह वो लोग उसे पागल न समझ लें, कुछ बाते सिर्फ बहुत अपनो से की जा सकती हैं, वो ये सोच कर दुखी हो रहा था, आंसू थे कि आंखों से झरझर बह रहे थे।जाने कब उसकी आंख लग गई।

राजन, राजू..उठ बेटा, दो बार फोन आ गया मालिक का, तुझे बुलाया है उन्होंने जल्दी, राधा ने उसे झिंझोड़ा तो वो चौंक के उठ गया।

अरे, आज इतना दिन चढ़ आया और मुझे पता ही न चला।वो हड़बड़ा के उठ बैठा, रात को देर से नींद आई , कुछ पता ही नहीं चला।

जल्दी ही नहा धो के , तैय्यार होकर वो वहां पहुंच गया, पहुंचते ही उसकी निगाह इधर उधर घूमने लगी, वो बेचैनी से रिया को देखना चाह रहा था।

अचानक एक दरवाजे से उसे वो दिखी, लेकिन कितनी बदली हुई सी लगी, वो हल्के से मुस्कराया पर वो आश्चर्य से उसे देख रही थी जैसे पहचान ही न रही हो। कल वाली बिंदास रिया, रातोंरात इतनी सीधी सी कैसे हो गई, उसकी ड्रेस, चंचलता कहाँ गायब हो गई?

वो अभी सोच ही रह था कि मालकिन अंदर से आईं, आ गया राजू तू, देख मालिक कब से तेरा इंतजार कर रहे हैं...

अरे, इसे क्या आंखे फाड़ के देख रहा है, ये रिया नहीं है, पिया है, उसकी जुड़वा बहन, कल ही अपनी बुआ जी के साथ आई है।

ओह..तो ये बात है, राजन के मुंह से बेसाख्ता निकला, मैं भी आश्चर्य में था कि ये चमत्कार कैसे हुआ।वो बुदबुदाया।

उन्होंने उसे बताया कि रिया और पिया उनकी जुड़वां बेटियां हैं, पिया को बचपन से ही उसकी बुआ जी ने पाला है, वो कल ही आई हैं यहां...

किसको सारी दास्तान सुनाई जा रही है...कहते हुए एक प्रौढ़ महिला ने कमरे में प्रवेश किया।

आओ जीजी, ये हमारे यहां ही काम करता है, बड़ा ही ईमानदार, होनहार लड़का है। वो बोली।

बस करो...तुम लोगों को सब अच्छे ही लगते हैं, कहा है कितनी बार इन लोगों से दूरी बनके रखा करो, ये कब सिर पर चढ़कर नाचना शुरू कर दें, कौन जानता है।

प्रणाम बुआ जी, लेकिन मैं ऐसा बिल्कुल नहीं करूंगा, राजू बोला, उसको उनकी बातें बहुत चुभ रही थीं।

इतने में विजय प्रताप की आवाज़ आई-आज चलना नहीं है क्या??...गाड़ी निकालो राजन।

जी सर, कहता हुआ वो तेजी से बाहर चला गया।

पीछे बुआ जी  रुक्मणि को समझा रही थीं, बहुत सिर चढ़ा रखा है तुमने दो टके के नौकर को...

नहीं जीजी, ऐसी कोई बात नहीं, ये ऐसा नहीं है, राधा को भी ये कहीं बहता हुआ मिला था , किसी अचछे घर की औलाद है शायद...

तुम हमेशा इमोशनल फूल ही रहोगी, न जात का अतापता, बस शक्ल देखी और कर लिया विश्वास...बुआ जी गुस्से से बोलीं।

आप भी कैसी बातें करती हो जीजी?रुक्मणि खिसिया गई।

तभी, अन्दर से रिया आई-गुडमॉर्निंग एवरीवन, चाय मिलेगी माँ अभी नहीं, आज बहुत देर से उठी मैं..रात को नींद नहीं आई पूरी।

अरे बुआ जी नमस्ते, आप कब आई, मेरे सोने के बाद शायद..

पिया कैसी है, वो कहीं दिखाई नहीं दे रही, इतना कहते वो अंदर चली।

सामने से पिया आ रही थी, दोनों टकरा गई और फिर दोनों एक दूसरे से कसकर लिपट गईं।

कितने दिन बाद मिल रहे हैं आज, इस कोरोना जैसी भयंकर बीमारी के बाद पहली बार मिले हैं।

रिया-कल खूब धूम मचाएंगे...

पिया ने पूछा-कल क्या खासियत है ऐसी?

'अरे कल हमारा जन्मदिन है बुद्धू, भूल गई क्या ...मैंने पापा से कह दिया है कल बहुत बड़ी पार्टी करेंगे।तुझे अपनर कोई खास दोस्त को बुलाना हो तो कह देना।

दोनों भाग के अंदर गईं, चलो लिस्ट बनाते हैं फिर फोन कर देंगे।

बुआ जी और रुक्मणि उन्हें देखकर मुस्कराई, दोनों मिल जाये एक साथ तो बच्ची बन जाती हैं।

पूरी हवेली आज बहुत जगमग हो रही थी, सुन्दर लाइट्स और झालरों से सजी दीवारें, दरवाजे चमक रहे थे, रास्ते मे सुन्दर लाल कालीन, चारो ओर कनात, मधुर संगीत सारे माहौल को बहुत मस्त बना रहा था।

कितने ही मेहमानों से पूरा हॉल खचाखच भरा हुआ था, लाल सफेद ड्रेस पहन बैरे लोगों को कोल्ड ड्रिंक्स, सॉफ्ट ड्रिंक्स, स्नैक्स सर्व कर रहे थे।

छोटे बच्चे झूलों का मजा ले रहे थे, एक तरफ चेयर रेस हो रही थी, दूसरी तरफ कोई ग़ज़ल गायिका लोगों की पसन्द की गजलें सुना रही थी।

हर और मस्ती का माहौल था, तभी घर के अंदर से रिया और पिया, बर्थ डे गर्ल्स आती दिखाई दीं, दोनों ने सफेद रंग का सुन्दर गाउन जिसपर गुलाबी फ्रिल लगी थी, बीच मे वैसे ही सुन्दर फूल थे, खुले स्ट्रेट सिल्की बाल, हाई हील्स...जैसे आसमान से उतरी दो सुन्दर परियां हों।

सबने क्लेप करके उनका स्वागत किया और उन्होंने मोमबती बुझा के अपना बर्थडे केक काटा, सारे में हैप्पी बर्थडे टू यू बोथ...की मधुर स्वरलहरियां गूंज उठीं।

पॉर्श्व में किसी ने गीत लगा दिया था..

तुम जिओ हज़ारों साल, साल में दिन हो पचास हज़ार...हैप्पी बर्थडे टू यू....

रिया पिया के कितने ही दोस्त थे, सब उन्हें बधाइयां दे रहे थे, लोग उन्हें गिफ्ट्स दे रहे थे और थोड़ी देर में वहां गिफ्ट्स का ऊंचा ढेर लग गया।

राजन एक कोने में चुपचाप खड़ा ये सब देख रहा था, रिया की खूबसूरती का तो वो पहले से ही कायल था और आज तो वो कयामत ढहा रही थी पर वो अपने इतने दोस्तों से घिरी हुई थी कि उनके बीच जाकर वो उपहास का पात्र नहीं बनना चाहता था।

फिर चला खाने का दौर, सभी ग्रुप बनाकर खा रहे थे, कुछ और डांस फ्लोर पर डांस में बिज़ी थे।पिया तो फिर भी शांत थी पर रिया सबसे घुलमिल कर जिस तरह हंस बोल रही थी, कभी किसी के साथ डांस करती, कभी किसी का जूठा खा कर मुस्कराती, राजन का दिल बैठा जा रहा था, क्या ये सबसे ऐसे ही करती है?क्या इसके ऐसे बहुत से दोस्त हैं?

एक लड़का था करन, जो रिया के आसपास ही मंडरा रहा था, उसने सबसे पहले रिया के चेहरे पर केक मल दिया था, वो रिया के इतने करीब जाता और उसके गोरे हाथों को कसकर पकड़ लेता और रिया बस खिलखिलाती रहती, राजन को ये सब बर्दाश्त नहीं हो पा रहा था, उसका मन हो रहा था कि वो उससे कहे-तुम्हे तमीज़ नहीं है कि लड़कियों से कैसा व्यवहार करना चाहिए पर दुख इस बात का था कि रिया या कोई और इसपर आपत्ति नहीं कर रहा था फिर भला राजन कौन होता है ये सब टोकने वाला...बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना वाली कहावत चरितार्थ हो जाती फिर...

आखिरकार, वो रिया को अपने संग डांस फ्लोर पर ले गया और दोनों काफी करीब आकर डांस करने लगे, राजन का धैर्य अब जबाव देने लगा था और वो वहां से जाने को पलटा, लड़खड़ाते कदमो से वो लौटने लगा तभी रुक्मणि देवी ने उसे आवाज़ लगाई, अरे, राजन बेटा, कहां जा रहे हो?खाना खाया तुमने?

वो हकला गया, जी, जी..अभी खा ही रहा हूँ।

अब तक रिया भी उधर आने लगी थी..जैसे ही उसने राजन को देखा, वो चिल्लाई-ओ हीरो, कहाँ चला, मेरा गिफ्ट तो देता जा...

राजन ने सकुचाते हुए उसे लाल रेफर में लिपटी एक गुलाब की कली पकड़ा दी, उसके हाथ कांप रहे थे, कुछ तो संकोच था कि कहां सब बड़े बड़े गिफ्ट दे रहे हैं और कहाँ वो एक छोटी सी फूल की कली लाया था, दूसरे उसे बहुत झिझक आ रही थी...

रिया ने बहुत फ्रेंकली उससे वो कली ली और वहीं रैपर खोल चिल्लाई-अहा, कितनी प्यारी है, मेरे बालों में लगा दो प्लीज्, उसने राजन से कहा तो वो भौचक्का रह गया और घबरा के वहां से दूर चला गया, उसके कानों में रिया की हंसी की खनखनाहट देर तक गूंजती रही।

थोड़ी देर बाद, विजय प्रताप ने माइक सम्भाला और एक एनाउंसमेन्ट किया-

दोस्तों, आज के हसीन मौके पर एक घोषणा करना चाहता हूं, मैं, मेरी बड़ी बेटी रिया की इंग्गेजमेंट अपने उद्योगपति दोस्त रोशन सिंह के सुपुत्र करन से करूंगा।

लोगों ने तालियां बजा के इस खबर का स्वागत किया और राजन को सहसा अपने कानों पर विश्वास न हुआ, ओह!, तो ये बात थी कि वो इसके इतने करीब आ रहा था, मैंने खामखां कल से लाखों सपने सज़ा लिये थे, कितना मूर्ख हूँ मैं भी, ग्लानि से उसका मन भर गया।

राजन , उसी वक्त वो महफिल छोड़ के अपने घर आ गया, उसका दिल बुरी तरह टूट गया था, उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि वो अपनी औकात क्यों भूला?उसने कैसे सोच लिया कि वो मालिक की लड़की के ख़्वाब भी अपनी आंखों में बसा सकता है।

अगले दिन वो काम पर गया तो सुबह सीधे रिया से ही सामना हुआ।बहुत खुश थी वो, आज हल्की सी ज्वैलरी भी पहने थी, अभी अभी नहा के ही आई थी शायद, उसके बालों की लटों से पानी की बूंदे रेशम की तरह चमक रही थीं और उसकी स्माइल कमाल की थी, उसे देखते ही चहक के बोली-कल कहाँ चले गए थे तुम, मैं ढूंढ रही थी तुम्हे?

क्यों?मुझसे ऐसा क्या काम था?, वो ठंडे स्वर में बोला।

ओह!तुम्हारी आँखों से लग रहा है जैसे कल रात सोए ही न हो, कोई परेशानी है तुम्हे?चिंता से वो बोली।

राजन ने एक पल उसकी आँखों मे झांका, कितनी मासूम है ये...मैं इसे चाहता हूं, ये कैसे जाने?फिर इसमें इसकी क्या गलती है?

वो मुस्कराया और बोला, नहीं ऐसे ही नींद नहीं आई...

इतने में बुआ जी आ गईं, अरे लड़के, क्या बातों में लग जाता है सबसे...विजय बुला रहा है तुझे वहां...उनकी आंखों में राजन के लिये गुस्सा था।

जी बुआजी, जाता हूँ, कहकर राजन वहां से चला जाता है।

उसकी और रिया की बात फिर अधूरी रह गई, उसे लगा कि रिया जैसे उसे कुछ बताना चाह रही थी पर ये बुआ जी पता नहीं क्यों उससे इतनी नफरत करती थीं।

दोपहर में उसपर रिया का मैसेज आया कि वो आज करन के साथ डेट पर जा रही थी इसलिये वो बहुत खुश थी, ओहो..तो यही बताना चाह रही थी वो...राजन ने सोचा, लेकिन उसके दिल मे एक हुक सी उठी और वो चाह के भी मुस्करा न पाया इस बार।

लेकिन उसने मन मारकर रिया को लाइक का इमोजी भेज दिया, साथ ही मैसेज किया, एन्जॉय...

रिया उसके रेस्पॉन्स से खुश थी शायद, उसने फिर एक मैसेज किया राजन को, जिसमे एक बहुत सुंदर ब्रेसलेट की तस्वीर थी, गिफ्ट बाय करन ऑन माय बर्थडे...

बहुत मंहगा था वो, सुन्दर तो था ही, राजन ने फिर लिखा-ग्रेट, यू आर टू लकी...

फिर वो अपने काम मे लग गया और कुछ समय रिया उसके दिमाग से निकल गई, उसे ये लग गया था कि जब वो उसके साथ इतनी खुश है तो उसके बारे में सोचने का न कोई फायदा है न धर्म...उसे अपना मन उधर से हटाना चाहिए।

देर रात वो विजय प्रताप को उनके घर छोड़ के लौट रहा था तो गेट से बाहर निकलते हुए किसी ने उसे अंधेरे में अपनी तरफ खींच लिया।

वो हड़बड़ा गया, ये कौन है...उसने देखा कि ये किसी लड़की के नाजुक हाथ थे, वो चौंक गया और फुसफुसाया-कौन?कौन है?प्लीज बताओ...

राजन के आश्चर्य की सीमा न रही जब उसने देखा कि ये रिया थी जो उसे अंधेरे में अपने साथ आने को कह रही थी।

उसने पूछा-क्या हुआ..

रिया ने झट अपना हाथ उसके मुंह पर रख दिया, श..., चुप... वो फुसफुसाई, मुझे तुमसे कुछ बात करनी थी, चलो कहीं बाहर चलते हैं, कहकर वो राजन को घसीटती बाहर निकल गई।

ऐसी भी क्या बात है जो इसी वक्त बतानी है और ऐसे चोरों की तरह...राजन डर रहा था कि कोई देख लेगा तो सब उसे ही गलत समझेंगे।

तुम मेरे अच्छे दोस्त हो न, वो प्यार से बोली।

राजन ने सहमति में सिर हिला दिया।फिर यकायक उसे ध्यान आया, आज तो आप करन जी के साथ गई होंगी, कैसा रहा?

रिया की आंखों में आंसू आ गए-करन वैसा नहीं है जैसा मैं समझती थी...

लेकिन आप तो उसके साथ पढ़ती भी थीं, अभी तक नहीं पता था क्या?वो धीमे से बोला।

जब से पापा ने मेरी और उसकी शादी की घोषणा की है वो बदल गया, उसने अपने असली रंग आज दिखाए...वो सिसकते हुए बोली।

ऐसा क्या कर दिया, कुछ तो कहें...राजन को अभी भी विश्वास न था कि रिया जो कह रही है उसमें कुछ सच्चाई है, उसे लगा इनमें बहुत बचपना है, किसी भी बात पर ओवर रियेक्ट कर रही होंगी।

पता है जो ब्रेसलेट कल मैंने तुम्हें दिखाया था, वो टूट गया मुझसे, करन ने मुझे इतनी खरीखोटी सुनाई कि पूछो मत। रिया बोली।

तो वो तो रिपेयर हो जाएगा, इसमें क्या बड़ी बात है, राजन ने कहा।

यही मैंने भी कहा था पर वो मेरी सुनने को तैयार ही न था, रिया बोली, जब अभी उसका ये हाल है तो वो शादी के बाद क्या करेगा?

लेकिन आप इस बात को दिल से न लगाएं, कई दफा किसी चीज़ से हमे बहुत प्यार होता है और हम अपना आपा खो बैठते हैं, हो सकता है वो आपको कल सॉरी बोल दे।

अरे तौबा, तौबा, वो सॉरी बोलने वालों में नहीं, कहलाने वालों में है, कल मेरे पीछे लग गया कि मैं उसे सॉरी कहूँ...रिया बोली, एक तो डांट भी मैं सुनूं और सॉरी भी मैं बोलूं...

मेरे पापा ने आज तक मुझे कभी नहीं डांटा, यहां तक कभी ऊंची आवाज में भी नहीं बोले।

तो आप घर मे ये बात बता दें, राजन बोला।

बताई थी न , माँ ने ही कुछ सुना बाकी बुआजी तो बाबा रे बाबा, मेरे ही पीछे पड़ गईं और पापा ने भी सुनी अनसुनी कर दी।रिया ने बताया।

तो आप भी भूल जाओ इस बात को यहीं, राजन ने कहा।

मतलब तुम मेरी कोई मदद नहीं करोगे..रिया बोली।

में इसमें क्या कर सकता हूँ, प्लीज आप मुझे न घसीटें इस सब में, आपकी बुआजी वैसे ही मुझसे नाराज़ रहती हैं..राजन कातर होके बोला।

ठीक है, मैं जान गई, कोई मेरी सहायता नहीं करेगा..रिया निराश हो बोली।

लेकिन मुझे करना क्या है, राजन असहाय सा बोला।आप दो एक दिन देखो, जब उनका गुस्सा शांत होंगे वो आपको सॉरी जरूर बोलेंगे।

सच्ची में क्या?रिया बच्चों की तरह बोली।

राजन को उसकी इस अदा पर प्यार आ गया, हां, बिल्कुल सच...अब मैं जाऊं, किसी ने देख लिया तो गज़ब हो जाएगा।

अगले हो दिन, रिया ने उसे फिर बुलवा भेजा, वो फिर चहक रही थी कि करन से उसकी सुलह हो गई है, वो बहुत अफसोस कर रहा था उस दिन के लिये।इसी खुशी में वो उसके साथ आज मूवी देखने जा रही थी।

रिया ने स्टेटस लगाया था--

फीलिंग हैप्पी एंड ब्लेस्ड...

राजन मुस्करा दिया कि ये रिया भी गजब है, पल में गुस्सा होती है और अगले ही पल फिर खुश हो जाती है।

रिया और करन की शादी की डेट फिक्स हो गई थी, बहुत जोर शोर से तैयारियाँ चल रही थीं।एक दिन राजन को कुछ सामान पहुंचाने रिया की ससुराल जाना था।

वो वहां पहुंचा तो राजन के महलनुमा कोठी को देखकर चकित रह गया, वो लोग वाकई में बड़े लोग थे।उनका संयुक्त परिवार था, करन की ताई उसे बहुत अच्छी लगीं, पूरे घर में सिर्फ वो ही ऐसी थीं जो उससे बहुत प्यार से मिली थीं।

उसे उनसे मिलकर लगा जैसे कोई पिछले जन्म का रिश्ता हो, पता नहीं क्यों वो इतनी अपनी सी लगीं।वो जानता था कि ये लोग बहुत रईस और बड़े लोग हैं और वो ख़्वाब में भी नहीं सोच सकता इनसे बराबरी का , पर कोई बात थी जो उसे करन की ताई की तरफ खींच रही थी और ये उसकी समझ से बाहर था कि वो बात क्या है?

जिंदगी में जब आप कोई लक्ष्य बना के चलते हैं तो उसे पूरा करने के प्रयास भी हर सम्भव करने ही होते हैं, जहां आपके प्रयासों में जरा कमी आई, आपकी निगाह लक्ष्य से भटकी, आपकी मंजिल आपसे दूर होने लगती है।कुछ ऐसे ही आजकल राजन के साथ होने लगा था, वो अपनी पढ़ाई, मेहनत से दूर कुछ दिवास्वप्न आंखों में सज़ा बैठा था और अपने लक्ष्य से भटकता जा रहा था।

जब से वो रिया से मिला था, पढ़ाई में ध्यान कम हो चला था उसका, कितने ही कंपटेटिव एग्जेम्स में उसने फॉर्म भर रखे थे जिनके लिये रात रात जग कर तैयारी करनी थी।वो जानता था कि वो चांदी की चम्मच मुंह मे लेकर पैदा नहीं हुआ था, और तो और उससे तो बेसिक सुविधाएं और उसके माँ बाप भी कुदरत ने छीन लिए थे, उसे याद भी नहीं था कि वो कैसे थे, यहाँ तक की अपनी बहन की भी एक धुंधली तस्वीर उसके दिमाग में थी, कभी वो सोचता कितनी बदल गई होंगी वो, अब मिले तो पहचानेगा भी नहीं उन्हें, कोई फ़ोटो भी तो नहीं था उसके पास, उसे तो ये भी ध्यान नहीं वो किस शहर में हैं आजकल...

कितना अभागा था वो, हर रिश्ते से महरूम वो तो भला हो रामु, राधा, और चंदा का जिसने फिर से उसे अपनेपन और रिश्तों की पहचान कराई।उसे बहुत गिल्ट होने लगता जब वो सोचता कि उसने क्यों रिया को लेकर मन में झूठे सपने सजाए?कहाँ वो और कहां वो खुद...

उसकी बुआजी ठीक ही तो कहती हैं कि न जात का अतापता न स्टेटस, न घर परिवार..कोई आगे पीछे हो तभी तो लोग आपको सम्मान देते हैं।

लेकिन फिर उसके मन में विद्रोह पनपने लगा कि मैं इस प्रथा को तोड़ के दिखाऊंगा, मैं अपने बलबूते कुछ बन के दिखाऊंगा।अगर इरादे नेक और दृढ़ हों तो कामयाबी मिल कर रहेगी।अब मैं और अपने पथ से नहीं भटकूँगा, बहुत हुआ, बस अब और नहीं और एक न एक दिन अपना लक्ष्य यानि एक अच्छी जॉब, सम्मानीय जिंदगी जी कर रहूंगा जहां कोई मुझसे मेरी जात नहीं पूछेगा, सिर्फ काम देखेगा।

उस दिन वो देर रात तक कुछ तैय्यारियाँ कर रहा था, अगले दिन उसका बैंक का एग्जाम था, राधा, दूध का गिलास ले उसके पास आई-अरे बिटवा, ये पी लो, शाम से खाना भी नहीं खाये रहे हो..

अम्मा, मैं ले लेता, आप क्यों परेशान हो रही हैं वो बोला।

चलो अब चुपचाप यहां बैठो , मैं तुम्हारे सिर पर तेल मालिश कर देती हूं, राधा ने मीठी सी झिड़की लगाई उसे...

मां के हाथों की थपकी मिलते ही वो जल्दी वहीं सो गया, थक जो गया था देर तक पढ़ने के कारण।

राधा ने उसे ठीक से लिटा दिया और चुपचाप बत्ती बन्द करके चली गई।

दूसरी तरफ, रिया परेशान थी कि ये राजन बहुत दिनों से दिख नहीं रहा, फोन भी स्विच ऑफ जा रहा था उसका।

एक दिन उसने अपनी माँ से पूछ ही लिया-मॉम, ये राजन कहाँ है आजकल, मुझे कुछ शॉपिंग के लिये शहर जाना था उसके साथ।

बेटा, दूसरा ड्राइवर है बीनू, उसे बुला लो, राजन तो हफ्ता भर की छुट्टी लेके गया है।

उसकी तबियत तो ठीक है ?वो चिंता से बोली।

तुझे एक ड्राइवर से बड़ी हमदर्दी हो रही है..बुआ जी कमरे में घुसते बोलीं।लाली, अपनी शादी की फिक्र करो, इधर उधर से दिमाग हटा लो, अब कुँआरी नहीं रहने वाली, जो ऐसी बातें करो।

रिया का दिमाग खराब हो गया उनकी बात से, मन ही मन उसने सोचा-कुछ लोग जब भी मुंह खोलते हैं, ज़हर ही उगलते हैं और हमारी बुआजी उनमें से एक हैं।

क्या बड़बड़ा रही है लाली, बड़ों की बातें बहुत कड़वी लगती हैं , उनकी महत्ता तो बाद में ही पता चलती है, तेरे भले के लिये ही कह रही हूं मैं...

जी बुआजी, बिल्कुल ठीक, वो घबरा कर बोली।

उसका मूड उखड़ चुका था, उसे राजन की याद आ रही थी, ये बात तय थी, उसे झुंझलाहट आ रही थी कि वो क्यों उसे दिमाग से निकाल नहीं पा रही है?

तभी पिया, उसके पास आई-चल रिया, ड्राइवर तैय्यार है, जल्दी चलते हैं फिर शाम होने से पहले लौटना भी है।

रिया उसके संग चल दी।

क्या बात है, बहुत उदास लग रही हो, पिया बोली।

नहीं, बस यूँही..रिया बेमन से बोली।

यूँही क्या??करन से फिर झगड़ा हुआ क्या, पिया हँसी।

नहीं न, वैसे वो है गुस्सैल, नाक पर मक्खी नहीं बैठने देता, रिया अपनी धुन में बोलती गई...

कई बार मुझे बहुत डर लगता है कि ये शादी के बाद मुझे परेशान तो नहीं करेगा।अगर ऐसा हुआ तो मैं क्या करूंगी?

तुझे कोई और पसन्द है रिया, अभी भी वक्त है, मां को बता दे, अभी कुछ नहीं बिगड़ा है।

उन्ह..कुछ नहीं बिगड़ा है, बुआजी तो राशन पानी लेकर पीछे लग जाती हैं, कभी जातपात आड़े आ जाती है, कभी स्टेटस...ये दुनिया सच्चे प्यार करने वालों की शुरू से दुश्मन ही रही है।रिया खोई हुई सी बोलती रही।

इतने में दोनों बाजार पहुंच गई, वहां "महागुन"मॉल पर उन्होंने गाड़ी रुकवा ली और ड्राइवर को 3-4 घण्टे बाद आने को बोलकर चली गई।

फिर तो बहुत कुछ था जिसमें खरीदते, पसन्द करते, लेते, कब शाम हो गई, दोनों को पता ही न चला।

देर रात घर आईं तो पता चला, राजन आया था पीछे, रुक्मणि ने बताया कि उसका सिलेक्शन एस एस सी के माध्यम से सब इंस्पेक्टर के लिये हुआ है, वो मिठाई लेकर आया था और कल ही ट्रेनिंग के लिये निकल रहा है, इसलिये मिलने आया था।

रिया ने सुना तो वो धक से रह गई, मतलब राजन से मिलना है तो बस आज की रात ही बची है, क्या वो उसकी शादी में भी नहीं आएगा?उससे पहले ही चला जायेगा?

कितने ही प्रश्न उसके दिल में कुलबुला रहे थे, तभी उसके फोन की घण्टी बजी।

रिया ने जैसे ही देखा कि कॉल राजन की है उसका चेहरा खिल उठा, फोन उठाते ही वो बड़ी बेचैनी से बोली-कहाँ थे इतने दिनों?क्या दोस्ती का ये उसूल नहीं होता है कि अपने दोस्त को सारी बातें बताई जाएं, या मन मर्जी फोन स्विच ऑफ कर दिया जाए...

राजन ने कहना चाहा, मेरी बात तो सुनो...

अभी मेरी बात खत्म नहीं हुई, तुम बाद में बोलना, वो बोली।

ठीक है, बोलें आप, मैं सुन रहा हूँ...राजन ने कहा।

उधर से सिसकियों की आवाज़ आने लगी तो राजन घबरा गया, आप रो रही हैं, क्यों??मुझसे कोई गलती हुई है, प्लीज् आप मुझे ऐसे तो न भेजें यहां से, मैं कल जा रहा हूँ, आपकी शादी तक भी नहीं रुक पाऊंगा।सॉरी...

इतनी देर में रिया सम्भल गई थी, सुनो, मुझे कभी नहीं लगा था कि मैं तुम्हे इतना मिस करूंगी, लेकिन पिछले दिनों जब तुम नहीं आये तो पहली बार मुझे महसूस हुआ कि मैं....

बोलो रिया, अपनी बात पूरी करो..मैं कब से तुम्हारे मुंह से ये सुनना चाहता था...राजन को आश्चर्य हुआ कि वो रिया से ऐसे कैसे बोल गया, शायद उसकी जॉब का असर था या होठों से बात ऐसे ही फिसल गई थी।

दोनों ही फोन पर चुप थे लेकिन एक दूसरे की दिल की धड़कन सुन रहे थे, बहुत देर तक वो फोन पकड़े रहे, बिल्कुल शांत...लेकिन बहुत पास, बहुत नजदीक, खामोशी ही मानो उनके दिल के अनकहे जज्बात एक दूसरे को सुना रही थी..

कभी कभी, कुछ बातें कहने के लिये, जुबान की जरूरत नहीं होती, वो तो आमने सामने भी न थे जो उनकी आंखे बोल सुन पातीं पर दिल दोनों तरफ धड़क रहे थे और उसकी जुबाँ बहुत असरदायक थी।

आखिर राजन बोल पड़ा-हो सके तो मेरा इंतजार करना, मैं जल्द आऊंगा।

रिया ने गहरी सांस भरते हुए कहा-मरते दम तक इन आँखों को तुम्हारा इंतज़ार रहेगा...लव यू...

लव यू टू..कहकर राजन ने फोन काट दिया।

वो घबरा रहा था कि ये क्या कह दिया उस बेचारी से, वो क्या करेगी, कैसे अपनी शादी रुकवायेगी?बेवजह उसे इतने बड़े धर्मसंकट में डाल दिया...

उधर रिया भी यही सोच रही थी-कहने को तो कह दिया पर क्या करूँ?कैसे करन से अपनी शादी खत्म करूँ?

कभी कभी, व्यक्ति ऐसी सिचुएशन में फंस जाता है कि उससे बाहर निकलना उसके बस की बात नहीं होती लेकिन कहा ये भी जाता है कि कोई समस्या ऐसी नहीं होती जिसका समाधान न हो।बस जरूरत होती है एक बढ़िया स्ट्रेटजी की, उसपर अमल में लाने की दृढ़ता की और भगवान की कृपा की, फिर कुछ भी असम्भव नहीं।

रिया ने हर तरफ अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने शुरू किए, वो जानती थी कि उसके पापा और करन के पिता के व्यवसायिक सम्बन्ध थे और वो किसी हाल में इस रिश्ते को तोड़ना नहीं चाहेंगे।फिर ये तो कोई वजह भी न हुई रिश्ता तोड़ने की कि अब रिया को कोई दूसरा पसन्द आ गया था, ये तो साफ साफ जगहंसाई का विषय बन जाता।

क्या करूँ, किससे कहूँ?क्या माँ मेरी बात सुनेगी?बुआजी तो जान ही ले लेंगी..हे भगवान!आप ही कुछ करो, पिया को कुछ बताऊं क्या??

वो मेरी सगी बहिन है, मुझे जरूर समझेगी..ये सोचकर उसने पिया को बुलाया।

थोड़ी देर घुमा फिरा के उसने अपने दिल की बात उसे बता ही दी,

पिया मुस्कराई-पहले दिन से मुझे संदेह था इस बात का, याद है, मैंने आपको कहा भी था कि अभी कुछ नहीं बिगड़ा है, जब आपने कोई रेस्पॉन्स नही दिया मै चुप रही लेकिन अब समस्या ये है कि बिल्ली के गले मे घण्टी बांधेगा कौन?

पापा तो एक बार सुन भी लें, बुआजी तो तमाशा कर देंगी, आपको नज़रबंद न करवा दें।पिया ने कहा तो रिया के चेहरे पर चिंता के बादल मंडराने लगे।

दोनों बहुत देर सोचती रहीं...अचानक पिया के चेहरे पर गहरी मुस्कराहट आ गई और वो चिल्लाई-आईडिया..

उसने रिया के कान में कुछ फुसफुसाया और वो उछल पड़ी-क्या ये सम्भव है?पकड़े गए तो?पापा बेबकूफ नहीं हैं?

पिया बोली-क्यों न माँ को भी अपनी योजना में शामिल कर लें, अगर वो मान गई तो फिर कोई माई का लाल नहीं जो हमे रोक सके।

जो भी करना था, जल्दी करना था, उनपर वक्त बहुत कम था, कुछ दिन बाद ही दोनों के रोकने का फंक्शन होना था, घर मे तैय्यारी शुरू हो चुकी थीं।

उस रात दोनों बहनें रुक्मणि के कमरे में जा पहुंचीं।

रिया-कितना थक जाती हैं आप माँ, सारे दिन काम करते करते..लाओ आपका सिर दबा दू...

पिया भी मां की हथेली पर प्रेशर पॉइंट्स दबाने लगी।

रुक्मणि को हँसी आ गई-क्या बात है, कुछ शॉपिंग में कमी रह गई, क्या चीज़ है जिसे लेने के लिये, मां को मस्का लगाया जा रहा है।

दोनों खिसिया के हँसने लगीं-पिया बोली-हमारी मां शरलॉक होम्स से भी बड़ी जासूस हैं रिया, मां की नज़र से कुछ भी छिपाना असम्भव ही नहीं , नामुमकिन है।

अब तक रुक्मणि समझ चुकी थीं कि बात कुछ संजीदा है, बताओ लड़कियों, क्या धमाल करना है?

पिया ने डरते हुए कहा-माँ, वचन दें कि आप नाराज़ नहीं होंगी।हमारी समस्या का समाधान बस आपके हाथों में है।

अब बोलो भी, तुम्हारी खामोशी मेरी जान ले लेगी।

माँ, रिया, ये शादी नहीं करना चाहती...पिया ने कहा तो रुक्मणि पर जैसे बम गिरा।

क्यों???उसका मुंह खुला रह गया।

क्यों नहीं, पहले पूछें, फिर किससे करना चाहती है, पिया ने सारी हिम्मत बटोर कह ही दिया।

माँ ने प्रश्नवाचक निगाहों से रिया को देखा, वो नज़रे झुकाए हुए थी।

राजन से, पिया धीमी आवाज़ में बोली।

रुक्मणि एक बार फिर बुरी तरह चौंकी..लेकिन ये सम्भव नहीं है बेटा..

उनकी आवाज़ से लगा जैसे उन्हें तो ज्यादा एतराज नहीं था इसपर लेकिन घरवालों को कैसे समझाएंगी।

सवाल ये नहीं है फिलहाल कि रिया किससे शादी करेगी लेकिन ये जरूर है कि अभी इस शादी को रुकवा दिया जाए।

कोई प्लान बनाया है तुम दोनों ने..मां ने पूछा

माँ इतनी जल्दी मान जाएगी, उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था, फिर भी उन्होंने अपना प्लान बताया कि रिया कुछ दिन तबियत खराब होने के ड्रामा करेगी जैसे उसे मिर्गी के दौरे पड़ते हों, बस रुक्मणि को ये करना है कि इस बात को खूब हवा दें बाकी वो दोनों देख लेंगी।

किसी तरह शादी रुक जाएगी, करन वैसे ही नकचढ़ा है, और उसे कौन लड़कियों की कमी है, रिया न सही कोई और सही..फिर वो रिया से कौन सा प्यार करता है।

माँ को इन सब बातों के पता चलते ही मन को संतोष हुआ कि दोनों जो करना चाह रही हैं, वो शायद ठीक ही है फिर राजन उन्हें भी बहुत पसंद था।बस डर इस बात का था कि कहीं उन सबका नाटक पकड़ा न जाये, रिया की शादी होगी नहों होगी इसका तो पता नहीं लेकिन उनका अपने पति से तलाक जरूर हो जाएगा, अगर उन्हें कुछ पता चल गया इसलिये हर कदम बहुत फूंक फूंक के रखना था।

सुबह का वक्त था, विजय प्रताप उस दिन के न्यूज़पेपर देख रहे थे और संग ही चाय की चुस्कियां भी ले रहे थे, उनकी धर्मपत्नि रुक्मणि, उनके पास बैठीं रिया की गोद भराई के लिये समान की लिस्ट बना रही थीं।

अचानक अंदर से पिया दौड़ती हुई आई, वो बहुत घबराई हुई थी, बोली-मां, पापा, देखना.. रिया की तबियत को क्या हो गया?वो जमीन पर लेट गई है और उसका सारा शरीर अकड़ सा रहा है...कहकर वो रोने लगी।

रुक्मणि बदहवास होकर अंदर दौड़ी-क्या हुआ मेरी बच्ची को...

विजय प्रताप भी घबरा के अंदर गए..देखा तो रिया जमीन पर लेटी थी, तड़प रही थी और उसका मुंह टेढ़ा हो रहा था।

विजय प्रताप ने झट अपना फोन लिया कि अपने फैमिली डॉक्टर को कॉल करता हूँ पर रुक्मणि ने उन्हें रोक दिया, क्या करते हैं आप?ये बात बाहर फैली तो अच्छा नहीं होगा, चार दिन में लड़की के रोकने का फंक्शन है..

विजय प्रताप क्षण भर को रुक गए पर फिर बोले, मेरी बच्ची की जिंदगी का सवाल है, डॉक्टर तो आएगा ही, शादी हो या न हो।

रुक्मिणी और पिया ने एक दूसरे को विजयी भाव से देखा, अगले ही क्षण, पिया ने रिया को जूता सुघाया और वो करवट ले उठ बैठी, वो बहुत कमजोर लग रही थी, पुनः लेट गई।

विजय प्रताप के चेहरे पर कुछ सुकून आया, उसे होश में देखकर।रिया ने कमजोर आवाज़ में कहा-पापा, आप फिक्र न करें, मैं ठीक हूँ।

रुक्मणि , रिया को दूध, नाश्ता देने चल दीं, ये लड़कियां आजकल देर रात तक जागती हैं, दिन भर शॉपिंग करती हैं, थक गई होगी, कमजोरी में बीमारी ने आ घेरा इसे।

विजय प्रताप कुछ सोचते, कहते, इससे पहले ही उनका इम्पोर्टेन्ट फोन कॉल आ गया, वो रुक्मणि से कह गए, बच्ची का ख्याल रखना, मैं आता हूँ कुछ देर में।

इस तरह की खबरें ज्यादा देर तक छिपी नहीं रहतीं, दोपहर में ही रिया की ससुराल से फोन आ गया कि उसकी तबियत कैसे खराब हुई, उसे किसीको दिखाया या नहीं, अब वो कैसी है?

उनकी बात में चिंता कम, वहम ज्यादा नज़र आ रहा था।करन का भी फोन आया रिया के पास...

कैसी हो, सुना है तुम बेहोश हो गई थीं, वो बोला

फिक्र न करें आप, मुझे तो बचपन से ही ये बीमारी है, रिया बोली।

क्या...वो आश्चर्यचकित हो गया, चलो बाद में बात करता हूँ, कहकर उसने फोन काट दिया।

रिया और पिया मुस्कराई, लगता है तीर सही निशाने पर लगा है पर प्रकट में चुप रहीं।

और फिर वही हुआ जिसकी उन्हें उम्मीद थी, अगले ही दिन, करन की मां का फोन आ गया, पहले रिया का इलाज कराएं, उन्हें बहुत फिक्र थी जैसे उसकी, शादी तो देर सवेर हो जाएगी पहले उसका स्वस्थ होना जरूरी है।

रुक्मणि बहुत खुश थीं, थोड़ी डरी हुई भी कि उनके पति को बच्चियों के नाटक की भनक तक न लगे नहीं तो सब गड़बड़ हो जाएगा।

विजय प्रताप को बहुत दुख था कि ये रिश्ता टूट गया था, रुक्मणि किसी वैद्य से बेटी का इलाज करवा रही थीं और उसमें दिन प्रति दिन सुधार भी आ रहा था।

जब भी वो रुक्मणि से पूछते कि अब बात फिर से चलाई जाए, वो इनकार कर देतीं, आखिर एक बार उन्होंने कहा ही दिया-असल मे रिया अब कारण से शादी नहीं करना चाहती, उसने इस दौरान उससे बहुत बेरुखी की है।

विजय प्रताप की बहुत लाडली थी रिया, उन्होंने कहा-कोई बात नहीं, मैं अपनी बेटी के लिये एक से बढ़िया एक रिश्तों की लाइन लगा दूंगा।रिया ने उनसे बहाना बनाया कि मैं अभी मास्टर्स करना चाहती हूं, अब कुछ समय बाद ही शादी का सोचूंगी जिसे वो कुछ नानुकुर के बाद मान गए।

अब रिया भी सीरियस होकर पढ़ाई में जुट गई थी, वो कुछ बनकर दिखाना चाहती थी जिससे अपने पापा से अपने दिल की बात आसानी से मनवा सके।

दूसरी तरफ राजन था, वो धीरे धीरे सफलता की सीढ़ियां चढ़ रहा था, उसने रामु, राधा और चंदा को भी अपने पास बुला लिया था, उसे सरकारी आवास भी मिल गया था।उसने मेहनत से, एग्जाम देकर कई प्रमोशन ले लिये थे लेकिन इस सफर में अभी वो रुकना नहीं चाहता था।

चंपा भी पढ़ लिख कर जॉब करने लगी थी, रामु और राधा मन ही मन उस पल को याद कर भावुक हो उठते जब राजन उनकी जिंदगी में आया था, तभी से उनका जैसे अच्छा वक्त शुरू हो गया था।

एक दिन, राजन घर लौटा तो उसके साथ एक सुदर्शन व्यक्तित्व वाला लड़का भी था, उसने बताया कि वो अभी नया ही उसके डिपार्टमेंट में आया था और उनकी बहुत अच्छी दोस्ती हो गई, आज वो उसे घर में सबसे मिलाने लाया है।

मृदुल नाम का वो लड़का सचमुच बहुत अच्छा व्यवहार वाला था, रामु और राधा तो उस पर रीझ गए, जवान बेटी के माँ बाप की आंखों में एक ही सपना रहता है कि उनकी बेटी को अच्छा घर वर मिल जाये, चंपा के लिये इससे अच्छा कौन होगा, फिर अब चंपा भी कोई साधारण लड़की नहीं थी, वो पढ़ लिख कर जहीन बन चुकी थी और एक स्कूल में पढ़ा रही थी।

उन्होंने मृदुल के जाते ही ये इच्छा राजन से बताई तो वो इनकार न कर सका और बोला-सच पूछे तो मेरे मन मे भी यही भाव आये थे पर पहले मृदुल से पूछना पड़ेगा और फिर चंपा से भी।

कहते हैं भगवान जब देता है तो छप्पर फाड़ के देता है, आप कितने ही बरस अभावों में रहे हों, फाके भी क्यों न किये हों आपने पर अगर दृढ़ विश्वास हो और इरादों में जान हो तो क्या सम्भव नहीं।

रामु, राधा और चंपा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि गांव में अभावों में जीने वाले वो लोग, कभी आरामदायक शहरी जिंदगी भी जिएंगे, चंपा को इतनी शिक्षा अर्जित करने का मौका मिलेगा कभी कि वो अपने पैरों पर खड़ी हो सकेगी।ये सब सम्भव हुआ था काफी कुछ राजन के अथक प्रयासों से, अगर राधा रामु ने उसे मुंह बोला बेटा बनाया था तो उसने भी उनके सगे पुत्र के सारे धर्म निभाये थे।

आज चंपा को देखने मृदुल और उसके परिवार वाले आ रहे थे।कहने को उनका घर छोटा ही था पर चंपा ने उसे बहुत सुरुचिपूर्ण तरीके से सजाया था।किसी का घर उसके व्यक्तित्व का आईना होता है, विशेषकर उस घर की स्त्रियों के व्यवहार, सोच का परिचायक होता है।

मृदुल के साथ, उसकी माँ और बहन आये थे, दोनों ही बहुत प्रशंसात्मक दृष्टि से उस छोटे से घर की साज सज्जा से प्रभावित हो रहे थे।

एक तरफ दीवार पर कुछ पेंटिंग्स थीं वो चंपा ने खुद बनाई हुई थीं जो उसके कलाकार मन को दर्शा रही थीं, दूसरी तरफ एक शेल्फ में कुछ साहित्यिक किताबें उन लोगों की बौद्धिक क्षमता को बतला रही थीं।रसोईघर से उठती सुगंध ये बता रही थी कि घर मे कुछ सात्विक पक रहा है जो वहां मंदिर होने का अहसास करा रहा था।

मेहमान लोग, इन्हीं बातों से काफी प्रभावित थे बाकी कसर चंपा के मधुर, सौम्य रूप और व्यवहार ने पूरी कर दी।

मृदुल की माँ ने फरमाइश की कि चंपा कुछ गा के सुनाए, पहले तो चंपा शर्मा गई फिर राजन के इसरार करने पर उसने जो गाना शुरू किया तो सब मंत्रमुग्ध रह गए।

तोरा मन दर्पण कहलाये, भले बुरे सारे कर्मो को देखे और दिखाए...

मृदुल की माँ बोलीं,  हम अकेले में , आपस मे कुछ बात करना चाहते हैं, फिर पांच मिनट में ही, उन्होंने अपने हाथ से सोने का छल्ला चंपा के हाथ मे पहना दिया कि आज से ये हमारी हुई, जल्द ही सब रस्मे करते हैं, कहकर हँसी खुशी वो लोग विदा हुए और चंपा के माँ बाप आज बहुत खुश थे, बेटी को इतना अच्छा घर वर मिल जाये , और भला क्या चाहिए।

उधर, विजय प्रताप परेशान थे कि उनकी बेटी रिया अब अपनी पढ़ाई भी पूरी करने वाल थी पर जब भी वो कभी छुट्टियों में घर आती और वो उसके रिश्ते की बात करते वो असहज हो उठती।

एक दिन उन्होंने अपनी पत्नि रुक्मणि को आड़े हाथों लिया, तुम लोग मुझसे कुछ छिपा रहे हो क्या?ये शादी को हमेशा मना क्यों कर देती है?

रुक्मणि नज़रे झुका के बोलीं-नहीं, ऐसा तो कुछ नहीं है, आजकल के बच्चों का मन पढ़ना बड़ा मुश्किल है।

मैं कुछ नहीं जानता, मुझे उसका जबाव चाहिए कि वो आखिर चाहती क्या है...वो बोले।

देखती हूँ मै कोशिश करके..रुक्मणि धीमे स्वर में बोलीं।

इससे फारिग हों तो पिया के लिये भी कोई लड़का देखते हैं और आजतक करन की भी शादी नहीं हुई, उनका अक्सर फोन आता है, उन्हें पिया भी पसन्द है..विजय ने कहा तो रुक्मणि टेंशन में आ गईं।

करन इसी घर मे आएगा तो कहीं उसे पता न चल जाये रिया ने नाटक किया था उससे शादी न करने का, उसे कोई मिर्गी के दौरे नहीं पड़ते।

रुक्मणि ने सोचा-इस बार रिया आएगी तो उससे पूछना ही पड़ेगा कि आखिर कब वो राजन को अपने पापा से मिलवायेगी, ये छूपन छुपाई अब और न चलेगी।

इससे पहले, वो खुद ही एक बार वहां जाकर राजन और उसके घरवालों से मिलना चाहती थी, उसने मन ही मन कुछ निश्चय किया और मुस्करा दी।

किसी बात का डर ही आपकी सबसे बड़ी कमजोरी होता है, ज्यादातर देखा गया है कि साहसिक कार्य करने वाले लोग ही जीवन में कुछ नया पा जाते हैं।आप किसी व्यक्ति, वस्तु की ख्वाहिश करते हैं लेकिन सिर्फ ख्यालों में ही डूबे रहें, उसे प्राप्त करने के कोई प्रयास न करें तो वो आपको कभी नहीं मिलती।

लगातार अथक प्रयासों से और तकदीर की मेहरबानी से आप अपना इच्छित पा सकते हैं।रुक्मणि अपनी बेटी रिया से खफा थी कि वो राजन के साथ जिंदगी बिताना तो चाहती थी पर अपने पापा के सामने हमेशा उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती और वो कोई न कोई बहाना बना बात टाल देती।

रुक्मणि ने सोचा कि माना उन दोनों को मिलाने की डगर कठिन थी, वो अपने पति को जानती थी वो स्टेटस का बहुत खयाल करते हैं, उन्हें मनाना बहुत कठिन काम था, लेकिन आप अपने काम के लिये कोई होमवर्क भी न करो पहले से और सफलता भी चाहो, ऐसा नहीं हो सकता।किसी भी बात को टालना उसका समाधान नहीं हो सकता।

उसने रिया की डायरी से राजन का एड्र्स लिया और चुपचाप एक दिन मौका देखकर जिस दिन विजय शहर से कहीं बाहर गए थे, वो कैब करके राजन के घर जा पहुंची।

दरवाजा राधा ने खोला था उसके लिये, एकाएक रुक्मणि को सामने देख वो पहचान नहीं पाई जब रुक्मणि ने उसे प्यार से पुकारा तो वो होश में आई और बोली-आप मालकिन ही हो न, मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा।

रुक्मणि ने राधा को आगे बढकर गले लगा लिया और वो चौंक गई, आखिर वो उनके यहां काम करती थी, लेकिन रुक्मणि के चेहरे पर मंद मुस्कान थी।

कैसे हो तुम सब?कहते हुए रुक्मणि घर के अंदर आई।

इतने में चंपा भी निकल आई, उसे देखकर रुक्मणि बहुत खुश हुई-अरे इसका तो काया कल्प ही हो गया..छोटी सी नाक पोंछती तुम्हारा पल्लू नहीं छोड़ती थी, आज इतनी बड़ी, सुन्दर हो गई ये चंपा...वो खुश हुई।

राजन ने तभी अंदर से आकर उनके पैर छू लिए और प्रणाम किया।

जुग जुग जिओ बेटा, गहरी निगाहों से राजन को देखते हुए वो बोलीं, कितना हैंडसम, स्मार्ट लग रहा था, उसका आत्म विश्वास और सरल स्वभाव उसे और सुन्दर बना रहे थे।

सबसे मिलकर, रुक्मणि बहुत खुश थी लेकिन एक टेंशन उसके दिमाग मे लगातार बनी हुई थी कि ये लोग कितने भी अच्छे से जी लें, सारी सुख सुविधाएं जुटा ले पर समाज मे नाम और स्थान बनाने में खानदान का भी योगदान नकारा नहीं जा सकता।मैं मान भी जाऊं पर रिया के पापा को कौन मनाएगा?वो तो सबसे पहले इसकी जातपात, आर्थिक मजबूती और स्टेटस ही देखेंगे फिर मैं क्या करूंगी?

इन्हीं विचारों में डूबती उतरती वो वहां से चल दी, उसे ये देखकर खुशी हुई कि राजन ने नई गाड़ी भी खरीद ली थी, बस अब तो उसका एक ही उद्देश्य रह गया था किसी तरह रिया के पापा को इस रिश्ते के लिये मना कर तैय्यार करना।

उसे लौटने में कुछ देर हो गई थी, शायद इसी वजह से जब वो घर पहुंची तो विजय प्रताप उसका बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।

कहाँ गई थीं तुम?तुम्हारा फोन भी बन्द जा रहा था..मैं कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ, वो बोले।

एकदम से पूछे गए प्रश्नों से रुक्मणि घबरा गईं और सीधे सरल मन उनके मुंह से निकल पड़ा-मैं राजन से मिलने उसके घर गई थी।

अच्छा..विजय खुश हुए, कैसे हैं वो लोग, सुना है बड़ा अफसर बन गया है, अपने सरकारी घर मे इन सबको भी बुला लिया है उसने।

रुक्मणि ने चैन की सांस ली, चलो खुश तो हुए..

तभी, विजय बोले-यूं अचानक जाने की कोई खास वजह..मेरे साथ चलतीं कभी, ऐसे क्यों गईं?

रुक्मणि का चेहरा फिर सफेद पड़ गया, उसके चेहरे के बदलते रंग देखकर विजय सशंकित हो गए।बोले-सच कहो..तुम मुझसे कुछ छुपा रही हो न, ऐसा तो रंग तुम्हारा कभी नहीं उड़ता।

रुक्मणि को लगा कि कभी न कभी तो बताना ही पड़ेगा इन्हें तो आज ही क्यों नहीं।झिझकते हुए वो बोली-दरअसल, रिया और राजन एक दूसरे को पसन्द करते हैं।

तो..रिया भी गई थी तुम्हारे साथ वहां, वो अधीरता से बोले।

आप मेरी बात तो पूरी होने दें, कहीं मेरी हिम्मत न टूट जाये आपको बताने की...

वो एक दूसरे से शादी करना चाहते हैं...रुक्मणि के शब्द सुनते ही विजय हल्के से चीखे-क्या......

होश में तो हो तुम, क्या अनाप शनाप बोल रही हो...

मैं सच कह रही हूं, वो बोली।रिया उसे बहुत प्यार करती है।

रिया तो नादान है, रूकमणि , पर तुम्हारी अक्ल को क्या हुआ है...तुम जानती हो उस लड़के के खानदान का कुछ अतापता नहीं है, फिर वो हमारा नौकर रह चुका है...

आजकल के बच्चे ये सब बातें नहीं मानते, प्यार में ये सब कौन देखता है?वो बोली।

क्या बच्चों सी बात करती हो, दो दिन में ये प्यार का बुखार उतर जायेगा तब सिर पकड़ के रोयेगी तुम्हारी लाडली...

वैसे राजन बहुत समझदार है, वो सम्भाल लेगा, रुक्मणि ने कहा।

मुझे आर्गुमेंट नहीं चाहिए, अपनी बेटी को समझा दीजिये कि ये सम्भव नहीं, कहते हुए विजय गुस्से में बाहर निकल गए।

इस बार रिया वीकेंड पर घर आई तो घर का माहौल थोड़ा गर्म सा लगा, पहले जहाँ वो लोग डाइनिंग टेबल पर हंसी मजाक करते थे, किसी राजनैतिक मुद्दे पर पापा से वो गर्मागर्म बहस करती, आज बिना बोले सबने चुपचाप खाना खाया।

खाने के बाद, विजय ने गम्भीर आवाज में वहां से उठके जाती बेटी को रोका-सुनो रिया...मुझे तुमसे बात करनी है..वो कड़क आवाज़ में बोले।

रिया-जी डैड..कहिये. .

ये लास्ट सेमेस्टर है तुम्हारा?वो बोले..आगे क्या करना है...करन के पेरेंट्स का फोन आया था।

लेकिन मुझे उससे शादी नहीं करनी, मैंने मां को बता चुकी हूं।

उसकी आवाज़ में विद्रोह और दृढ़ता थी, ये बात विजय ने नोटिस की।

फिर तुम चाहती क्या हो?वहां पिया की शादी कर दें...मैंने उन्हें वचन दिया है और उन्हें पिया भी पसन्द है।

अगर पिया को कोई आपत्ति न हो तो ये अच्छा रहेगा शायद, रिया कहकर जाने लगी।

अभी मेरी बात खत्म नहीं हुई, विजय बोले।

तुमने क्या सोचा है खुद के लिये??उन्होंने पूछा

मैं जॉब करना चाहती हूं, फिर सोचती हूँ इस बारे में...रिया बोली।

पर तुम्हारी माँ तो कोई और कहानी बता रही थीं, उन्होंने तंज कसा।

जब आप जान ही गए हैं तो अपना फैसला भी सुना दें, रिया बोली।

हरगिज़ नहीं, मेरी न है, सुना तुमने...

कोई बात नहीं, फिर मैं शादी कभी नहीं करूंगी..

धमकी दे रही हो...वो आवेश में आ गए।

हकीकत बता रही हूं पापा, मैं राजन को बहुत चाहती हूं, उसके साथ जिंदगी बिताना चाहती हूं।आगे आपकी मर्जी।

जवान लड़कियों को डांट डपट शोभा नहीं देती, जब वो पिता की आंखों में आंख डालकर बात करती है तो एक इज्जतदार पिता घबरा जाता है, उसपर ज्यादा ऑप्शंस बचते नहीं, या तो वो बेटी के मन की कर दे या जबरदस्ती उसके अरमानों का गला घोंट दे।

विजय प्रताप को लगा कि अभी इस बात को थोड़ा समय और देते हैं, वक्त से काफी बातों का समाधान खुद ही निकल आता है, हो सकता है कुछ समय मे रिया का दिमाग बदल जाये, उसे समझ आ जाये कि ये प्यार व्यार कुछ नहीं होता, वास्तविकता की जमीन बहुत पथरीली होती है, उसकी हकीकतों से रूबरू होते ही वो खुद लाइन पर आ जाये।

उन्होंने झट टॉपिक बदलते हुए कहा-रिया की मां..., पिया को बुलाओ और उसे पूछो कि क्या वो करन से शादी को तैय्यार है?ये बच्चे चंपन से संग खेले, बढ़े हैं, इनकी आपसी ट्यूनिंग अच्छी ही होनी चाहिए।

रिया समझ रही थी कि ये बात उसे माध्यम बना के कही जा रही थी पर वो जानबूझकर अनजान बनी रही और हंसते हुए पिया को फोन करने लगी।

पिया को कोई समस्या नहीं थी करन से शादी करने में, विजय प्रताप ने सुकून की सांस ली, चलो उनके सम्बन्ध अपने जिगरी दोस्त उमेश(करन के पिता)से बिगड़ेंगे नहीं।इन्हें लगा कि देर सबेर रिया को भी वो मना ही लेंगे कहीं और शादी के लिये।

घर मे एक बार फिर हँसी खुशी का माहौल हो गया।शादी जल्दी ही थी इसलिये तैयारियों में लग गए वो सब।खूब शॉपिंग चल रही थी, किसको बुलाना है, उसकी लिस्ट बन रही थी, शादी के कार्ड का डिज़ाइन भी तय किया जा रहा था।

उस दिन, करन की ताई अम्मा, उनके यहां आने वाली थीं, पिया के कुछ नाप लेने थे और वो शादी से पहले एक बार पिया को मिलना भी चाहती थीं।

संयोग की बात है कि उस दिन राजन भी वहां आ गया।असल में विजय प्रताप ने ही उसे बुलाया था, वो जानते थे कि राजन बहुत समझदार, संवेदनशील लड़का रहा है, उनके समझाने से समझ जाएगा और खुद रिया को अपने रिश्ते से इनकार कर देगा।

होनी बहुत बलवान होती है, आप सोचते कुछ हैं और हो कुछ और जाता है, कहते तो ये भी हैं कि जोड़ियां स्वर्ग में बनती हैं।वो अलग बात है कि आदमी हर जोड़तोड़ करता है एक अच्छा सम्बन्ध जोड़ने के लिये।सबको सर्वश्रेष्ठ चाहिए पर मिलता भगवान की मर्जी से ही है।

राजन जब उनके घर मे घुस रहा था, बिल्कुल उसी वक्त करन की ताई अम्मा आईं, वो राजन को देखकर बहुत खुश हुई, बोलीं-तुमसे तो पहले भी मिल चुकी हूं..कैसे हो बेटा?

राजन भी उन्हें देखकर बहुत खुश हुआ, पता नहीं कोई अनजान डोर थी जो उसे उनकी तरफ खींचती थी।

विजय प्रताप आश्चर्यचकित थे कि इन दोनों का ये परस्पर दोस्ताना कैसे है, खैर उन्हें क्या?वो लोग खुश ही तो हो रहे थे तो इसमें समस्या कैसी?उन्होंने सोचा।

ताई अम्मा ने अचानक राजन से पूछा-तुम्हारे हाथ मे ये सोने की अंगूठी कहाँ से आई?

पता नहीं, ये बचपन से मेरे हाथ मे है, लोग बताते हैं कि जब मैं उन्हें मिला था तब भी ये मेरे हाथ मे थी और मैं इसे अपनी जान से ज्यादा हिफाजत से रखता हूँ।वो बोला

तुम किस गांव के हो?उन्होंने पूछा

नहीं जानता, लेकिन अमहेड़ा गांव में रह हूँ कुछ समय, फिर नदी में बह गया और यहां आ गया, अब रामु और राधा अम्मा ही मेरे मां बाप हैं.  

क्या तुम्हारे माँ पिता के अलावा कोई और भी था?

मेरी एक बड़ी बहन थीं, वो शादीशुदा थीं लेकिन उनके ससुराल वाले नही चाहते थे कि वो मुझे अपने पास रखें इसलिए मैं भाग गया था वहां से...

तुम्हे ये सब याद है फिर उनका गांव कैसे भूल गए छोटे?ताई अम्मा ने कहा तो राजन ने चौंक के उन्हें देखा।

उन्होंने राजन जैसी दूसरी अँगूठी अपने हाथ से उतार के उसे दी और राजन फटी आंखों से कभी उन्हें तो कभी अंगूठी को देखने लगा।

ताई ने राजन को खींचकर अपने सीने से लगा लिया, तू मेरा खोया हुआ भाई है, कितना सा था तू, तुझे कहाँ कहाँ नही ढूंढा हमने...अब मिला है जाकर।

सब लोग आश्चर्य से उन दोनों का मिलाप देख रहे थे और वो दोनों सारी दुनिया से बेखबर इतने वर्षों की जुदाई के गम को भुलाने की कोशिश...

राजन को जब से पता चला था कि वो भी एक अच्छे खानदान से सम्बन्ध रखता है, उसे खुशी तो हुई ही थी पर साथ ही उसके मन में इस तथाकथित उच्च समाज के प्रति एक आक्रोश सा भर गया था।

उसने बचपन से ही बहुत उपेक्षित जीवन जिया था, कभी किसी की दया पर तो कभी किसी की सहानुभूति से अपने दिन काटे थे।उसने जी तोड़ मेहनत करके जिंदगी में एक मुकाम पाया भी था लेकिन आज भी उसे रिया से शादी करने के लिये अपने जन्म के प्रमाण पत्र दिए बिना स्वीकार तो नहीं किया जा रहा था।

कितना अजीब समाज है हमारा कि हम शादी ब्याह में लड़के के चरित्र से भी ज्यादा उसके घर परिवार का नाम, पैसा, शोहरत देखते हैं।अगर लड़का कुछ खराब भी हो, कम कमाता हो, पढा लिखा न हो तो पैसेवाले खानदान के नाम पर बेटियां वहां खुशी खुशी ब्याह दी जाती हैं, ये सोचकर कि लड़का शादी के बाद जिम्मेदारी सीख जाएगा।

लेकिन अगर लड़का जहीन है, मेहनती है, व्यवहार भी अच्छा है तो भी उसके खानदान के बिना उसे क्लीन चिट नहीं मिलती, यही बात राजन को अंदर ही अंदर खाये जा रही थी।

दूसरी तरफ, रुक्मणि बहुत खुश थीं, उनकी समस्या अब खत्म हो चुकी थी, वो अपने पति विजय से विजयी भाव से पूछ रही थीं-अब तो आपके सारे संदेह दूर हो गए राजन के बारे में...

विजय को भी थोड़ी कोफ्त थी कि उन्होंने राजन को पहले उसकी जाति न जानने की वजह से नकारा था, वो बोले-मैं जानता था वो बहुत होशयार और सुसंस्कृत लड़का है पर समाज को भी हमे जबाव देना होता है न...

रुक्मणि बोलीं-समाज भी तो हमी जैसे लोगों से बना है, हम समाज के नाम पर इतना डरते क्यों हैं?

विजय कहने लगे-तुम ठीक कह रही हो पर मत भूलो कि वो हमारे यहां ड्राइवर रह चुका था...

रुक्मणि-तो क्या?ड्राइवर क्या इंसान नहीं होते, आपने देखा कि वो अपने मुंह बोले मां बाप और बहन को कितना प्यार करता है..जान देता है उनपर..जो उन्हें इतना प्यार कर सकता है वो हमारी रिया को भी बहुत प्यार देगा।

विजय बोले-हम्म...शायद मुझे उसे समझने में गलती हो गई लेकिन अभी कौन सी देर हुई है, क्यों न, मैं उसकी बड़ी बहन से लगे हाथों , उसे अपनी रिया के लिये मांग लूं, दोनों बहनों की शादी एक ही साथ हो जाये तो क्या कहना...

रुक्मणि की आंखे चमक उठीं-क्या ऐसा सम्भव है?

क्यों नहीं, कोशिश तो की जा सकती है, विजय बोले, तुम नहीं जानती रुक्मणि , उनके जीजा शरत चंद बहुत बड़े पॉलिटिशियन हैं, उनसे जुड़ना ही बड़े गौरव की बात है।मैं आज ही जाकर उनसे बात करता हूँ।

रिया को भी उन्होंने इजाजत दे दी थी कि वो राजन से मिल सकती है, राजन आश्चर्यचकित था इस समाज के बदलते रंग ढंग देखकर।फिर उसने सोचा कि इसमें रिया की क्या गलती है, वो तो उसे पहले से ही प्यार करती थी, वो उसके प्रति कठोर क्यों हो?

उस दिन वो उससे मिली तो बहुत खुश थी, रिया ने राजन को बताया-सुनो, पापा तुम्हारे जीजाजी से मिलने जाएंगे हमारे रिश्ते की बात करने...

राजन को जैसे करंट लगा..जीजाजी से क्यों?मेरे माँ बाप तो अब रामु , राधा मां हैं, बहन के घर रहना होता तो क्या मैं पहले ही नहीं रहता वहां पर...

गुस्सा मत हो , राज डियर, किसी तरह पापा तैयार हुए हैं...प्लीज् तुम्हारे इस रवैय्ये से पलट न जाएं..वो बोली।

ओ हेलो मिस..उनका तो नहीं पता पर तुम अच्छे से सोच लेना, मुझसे जुड़ना है तो मेरा घर हमेशा यही रहेगा..वो तमतमा उठा।

रिया की आंखों से आंसू लुढ़क गए..कहीं तुम्हारी और पापा की ईगो में हमारे प्यार का क़त्ल न हो जाये, डरती हूँ...

उसके आंसूओं से राजन का दिल पिघल गया, उसने रिया को अपने पास खींच लिया, अच्छा अब रो ओ तो नहीं कहते हुए उसने उसका माथा चूम लिया, रिया सब कुछ भूलकर उसके सीने से लग गई।

राजन उस दिन जब घर पहुंचा, रामु और राधा बहुत खुश थे, दोनों के पांव जमीन पर सीधे नहीं पड़ रहे थे।

क्या बात हो गई, आज आप दोनों इतने खुश कैसे हैं?राजन बोला

लो मुंह मीठा करो, आज मालिक मालकिन आये थे और आपके रिश्ते की बात कर गए हैं...राधा ने कहा।

राजन को सुनकर अच्छा लगा, सोचने लगा वो, मैं न कहता था कि उन्हें यहीं आना चाहिये, आखिर उन्हें सद्बुद्धि हो ही गई।

फिर बहुत धूमधाम से राजन और रिया, करन और पिया की शादियां हो गई।

एक साथ दो बेटियों की विदाई करने से विजय और रुक्मणि का घर जैसे बिल्कुल सूना हो गया था लेकिन उन्हें संतोष था कि दोनों की शादी उनके मनपसंद घरों में हुईं।

कभी कभी जिंदगी में कुछ ऐसा घट जाता है कि जिंदगी बहुत हसीन बन जाती है, हर तरफ खुशियां, सितारे और चमक नज़र आने लगती है, यही कुछ रिया और राजन के साथ भी हो रहा था, दोनों के मन में ही आशंका थी कि वो कभी एक हो भी पाएंगे लेकिन जब हो गए थे एक दूसरे के तो दोनों ही एक दूसरे के प्यार में डूबे रहते, रिया ने राजन के छोटे से घर में एडजस्ट कर लिया था, हालांकि ये काम इतना आसान न था पर प्यार में बहुत ताकत होती है, फिर राधा और चंपा उसे पूरे प्यार, सम्मान से रखतीं, उसे बहु होने का एहसास ही न दिलातीं।राजन को भी ये रहता कि अभी नई नई है, धीरे धीरे सब सीख जाएगी।

उस दिन, रिया और राजन को रुक्मणि ने डिनर पर बुलाया था, काफी देर से वो तैयार हो रही थी, राजन लगातार उसे हॉर्न देकर बुला रहे थे कि अब आ भी जाओ, पिया और करन भी आ रहे थे, कहीं वो पहले पहुंच गए तो...

राजन अधीर हो रहा था कि सामने से रिया आती दिखाई दी...ओह!कितनी खूबसूरत गुलाबी परी नज़र आ रही थी वो..बहुत सुंदर साड़ी, खुले रेशमी बाल, पतली सी छरहरी काया, काले कजरारे नैन, गुलाबी होंठ...कयामत ढहा दोगी आज तुम...वो अस्फुट सुर में बोला

चलो, कहीं और चलते हैं आज, जहां बस मैं और तुम ही हो, वो शरारत से बोला तो रिया की कनपटियां भी गुलाबी हो उठीं।

धत..शैतान, अब देर नहीं हो रही आपको, चलें न..ऐसे भी न देखें मुझे...कहकर रिया ने अपना चेहरा अपनी कोमल हथेलियों में छिपा लिया।

अरेरे..इतनी देर से किया मेकअप बिगड़ जाएगा, कहीं फिर न घण्टा लगा दो..राजन ने उसे छेड़ा और हंसते हुए गाड़ी स्टार्ट कर दी।

दोनों जब वहां पहुंचे तो वाकई में देर हो गई थी, सब उनका इंतजार ही कर रहे थे।

करन और पिया , बुआजी, विजय प्रताप, रुक्मणि और कुछ खास मेहमान सभी थे।

बुआजी बड़े प्यार से राजन की तरफ मुखातिब हुई, और बेटा, घर मे सब ठीक हैं...

जी जी..राजन को उनसे उम्मीद नहीं थी, हमेशा हाथ धोकर पीछे पड़ने वाला कुछ प्यार से अप्रत्याशित पूछ लें तो ऐसा ही होता है।

मन मे सोचा राजन ने, क्या बात है, जरा सी पहचान क्या बदली, अब हमारे नीम पर भी आम आने लगे।

बुआ जी-कुछ कहा बेटा मुझसे...

नहीं नहीं, कोई शेर याद आ गया था बस..वो हंसा।

पिया बोली-इरशाद, इरशाद जीजू..

सबने जिद की तो राजन ने सुनाया...

जो न भेजते थे सलाम, उनके पैगाम आने लगे,

समय बदला तो मेरे नीम पर आम आने लगे।

वाह, वाह, क्या बात है..सबने खूब दाद दी और वहां अच्छी खासी महफिल जम गई।

अचानक बात उन दोनों कपल्स के हनीमून पर आ गई।शहर में फैली बीमारी के चलते वो लोग हनीमून पर नहीं जा पाए थे लेकिन अब हालात काबू में थे और विजय प्रताप ने दोनों बच्चियों को उपहार स्वरूप पेरिस के रिटर्न् टिकट दिए, रिया तो उछल गई खुशी से...

अपने पापा के गले मे बाहें डालकर झूल गई वो, पिया भी खुश थी पर राजन थोड़ा चुप सा हो गया उस वक्त।शुरू में रिया ने नोटिस नहीं किया लेकिन घर लौटते उसे ऐसा लगा कि राजन कुछ चुप चुप सा है।उसने पूछना भी चाहा पर वो टाल गया।

रिया परेशान थी कि अचानक राजन को क्या हो गया, कितना खुश था वो जब वहां गए थे, सब कुछ ठीक ही चल रहा था फिर ऐसी क्या बात हुई जो वो इतना उखड़ गया।

घर पहुंचते ही उसने खुद को स्टडी रूम में बंद कर लिया, ये कहकर कि कुछ जरूरी मीटिंग की तैयारी करनी है...

बहुत देर तक रिया उसका इंतजार करती रही पर वो न आया, आखिर थककर वो सो गई, सोचा सुबह उठकर उसे मना लूँगी, लेकिन सुबह उठी तो काफी देर हो गई थी, हड़बड़ा के उठी तो देखा कि राजन ऑफिस जा चुका था।

सारा दिन राजन को फोन लगाती रही लेकिन उसका फोन स्विच ऑफ जा रहा था।

शाम तक वो पूरी तरह परेशान हो चुकी थी, राजन घर आया और वो बिफर गई-ऐसा क्या हो गया जो मुझे कल से सजा दिये जा रहे हैं...कुछ पता तो चले कि आखिर हुआ क्या है?

राजन ने गम्भीरता से कहा-बैडरूम में आओ, एक कड़क चाय लेकर..

थोड़ी देर में, दोनों चाय पी रहे थे..

बताओ न, मुझसे क्या गलती हो गई प्लीज्, मैं आपका गुस्सा नहीं सह सकती, रिया बोली

अगर हम पेरिस न जाएं तो तुम्हे बुरा लगेगा...राजन ने उसकी आँखों मे झांकते हुए कहा।

लेकिन क्यों?रिया शॉक्ड हुई, पापा ने कितने प्यार से हमारे लिये टिकिट दिए हैं, आपकी समस्या क्या है?

बस मुझे इस तरह की बातें पसन्द नहीं, हमे जहां अच्छा लगेगा, हम खुद जाएंगे, मुझे किसी का एहसान नहीं लेना, वो बोला

इसमें एहसान कैसा, मम्मी पापा का सब कुछ हमारा ही तो है, फिर उन्होंने बड़े प्यार से दिया है..रिया ने आखिरी कोशिश की।

क्या तुम चाहती हो मैं बेमन से वहां जाऊं तो चलूंगा फिर..राजन बोला

नहीं नहीं, रिया झट बोली, क्या इसके अलावा कोई और बात भी हुई जो आप इतने अपसेट थे कल..

अब तक राजन का गुस्सा शांत हो गया था, वो रिया के करीब आया और बोला-तुम समझती नहीं, बहुत भोली हो..शादी के बाद, लड़कियों का असली घर उनका ससुराल होता है, वहां जैसा भी उन्हें मिले, उन्हें उसमें खुश रहना सीखना चाहिए...

लड़की की मायकेवाले अगर अमीर होते हैं वो दामाद को अपने प्रभाव से खरीदना चाहते हैं और मैं इन बातों के सख्त खिलाफ हूँ।

ओह समझ गई बाबा, अब चुप, उसने अपने हाथ से राजन का मुंह हल्के से बन्द कर दिया, राजन सुकून से उसकी गोद में सिर रख कर लेट गया और वो उसके बाल सहलाने लगी, जल्द ही राजन को झपकी लग गई और रिया मुस्करा दी..लगता है कल रात एक मिनट भी नहीं सोए...

राजन को बिस्तर पर लिटा दिया था उसने लेकिन दिल मे कहीं गहरे वो डर गई थी राजन के स्वभाव से..उसे समझ आ रहा था कि राजन को बचपन से लोगों ने सहानुभूति कर पाला है, उसके मन मे काम्प्लेक्स आ गया है, उसे किसी का प्यार भी दया दिखाना लगता है लेकिन वो राजन से बहुत प्यार करती थी और उसकी बेरूखी बर्दाश्त करने की हिम्मत उसमे नहीं थी ।

रिया अब बहुत कॉन्शियस रहती, हर वक्त ध्यान रखती कि राजन को कुछ बुरा न लग जाये।

अपने ही घर में वो बहुत डरी हुई रहती, कहीं उसकी कोई भी बात, राजन को ऐसी लग जाती कि वो उसकी मुंह बोली माँ पिता या बहन का अपमान तो नहीं कर रही।

कहाँ रिया इतनी चुलबुली, हर वक्त हँसी मजाक करने वाली, कहाँ वो अब डरी हुई रहने लगी थी, एक बात जरूर थी कि राजन उससे खुश रहता और वो उसी से संतुष्ट थी।

कुछ दिनों बाद, एक दिन अचानक रुक्मणि शाम के वक्त उनके घर आई, अचानक मां को सामने देख, रिया उनसे लिपट गई और उसकी दोनों आंखे गंगा जमना बन गईं

माँ की अनुभवी आंखें उसकी परेशानी पढ़ गई, फिर भी क्या विशेष कारण था जो वो इतनी डिस्टर्ब थी, रुक्मणि जानना चाहती थीं।

जब बार बार पूछने पर भी उसने कुछ न बताया तो रुक्मणि परेशान हो गई, उन्होंने सोचा कि वो राजन से इस बारे में बात करेंगी पर रिया ने अपनी कसम देकर उन्हें चुप करा दिया।

उस दिन, रुक्मणि अपने घर लौटीं तो बहुत डिस्टर्ब थीं, उन्हें पहली बार एहसास हुआ कि कोरे प्यार से रिया कब तक अपनी जिंदगी की गाड़ी चला पाएगी, शायद उन लोगो की भूल थी कि उन्होंने रिया की बात मानकर उसकी शादी राजन से कर दी।वो जानती थी कि राजन बुरा व्यक्ति नहीं है पर अपने आदर्शों के खिलाफ कुछ भी सुनना उसे पसन्द नहीं था।

विजय ने उनसे पूछना चाहा कि वो कुछ परेशान सी दिख रही हैं पर वो उनसे छुपा गई, उन्हें डर था कि वो फिर शुरू हो जाएंगे और उन्हें रोकना नामुमकिन हो जाएगा।

रिया जितनी ज्यादा कोशिश करती कि राजन और उसके बीच कोई मिसण्डरस्टैंडिंग न पैदा हो, परिस्थितियां उतनी ही उलझती जा रही थीं और उन दोनों के बीच दीवार बना रही थीं।

उस दिन, रिया का जन्मदिन था और राजन बहुत खुश था, दोनों ने बाहर जाकर मूवी देखने, डिनर का प्रोग्रेम बनाया था, राजन उसके लिये बहुत कीमती डायमंड रिंग भी लाया था और रिया खुशी से फूली नहीं समा रही थी।

वो लोग घर से निकलने वाले ही थे कि रिया के फोन की रिंग बजी..वो खुशी से बोली-ओह, देखो दिल से दिल को राह होती है, मैं मम्मी को याद कर रही थी और उनका फोन आ गया।

कैसी हो मम्मी, फोन उठाते ही वो चहकी। उसने फोन स्पीकर पर कर दिया।

मैं और तेरे पापा, दस मिनट को तुमसे मिलने आ जाये अगर तुम घर पर हो?उन्होंने पूछा तो उसने राजन की तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखा।

वो महसूस कर रही थी कि वो कुछ असहज हो गया है पर तुरंत मुस्कराते हुए वो बोला-ये भी कोई पूछने की बात है, मोस्ट वेलकम.. 

थोड़ी देर में वो दोनों वहां उन लोगो के साथ गपशप कर रहे थे।काफी मौज मस्ती के बाद वो जब जाने को हुए तो उन्होंने रिया को उसका बर्थडे गिफ्ट देना चाहा, रिया नहीं जानती थी कि एक बड़े लिफाफे में वो क्या दे गए, उसने चुपचाप उनसे वो ले लिया।

और एक बार फिर, उस रात, राजन ने हंगामा बरपा दिया, जब उन्होंने लिफाफे को खोला तो उसमें एक फ्लैट की रजिस्ट्री के कागज़ थे जो उन्होंने रिया के नाम कर दी थी, ये फ्लैट शहर के पॉश इलाके में था और बहुत मंहगा था।

राजन-तुम्हारे मां बाप को शौक है मुझे जलील करने का..वो ये देकर क्या जताना चाहते थे?

रिया-आप गलत समझ रहे हैं राज, पापा, अपने जीते जी अपनी प्रोपर्टी हम बहनों को दे कर जाना चाहते हैं बस इसलिए..

राजन -कहीं वो तुम्हे ये तो नहीं समझा गए कि तुम अब इस फ्लैट में शिफ्ट हो जाओ, इस छोटे सरकारी घर मे तुम्हारा दम घुटता हो शायद...

कैसी दिल जलाने वाली बात कर देते हैं आप कभी कभी...रिया रुआंसी हो गई।

अगर ऐसा ही समझती हो तो उन्हें ये वापिस कर दो, नहीं चाहिए मुझे उनका एहसान..राजन ने कठोरता से कहा और घर के बाहर निकल गया।

रिया अपनी किस्मत को कोस रही थी और उस घड़ी को जब उसने बिना पूछे वो लिफाफा रखा था अपने पास।उसे मन ही मन मम्मी पापा पर गुस्सा भी आ रहा था कि उन्हें क्या जरूरत थी मेरा दिन बर्बाद करने की।

अगले दिन, ऑफिस जाते हुए, राजन उसे खास हिदायत देकर गया कि उसके आने से पहले वो अपने घर जाकर इस गिफ्ट को लौटा आये और उन लोगों को अच्छे से समझा दे, कि मेरा पति इतना कमा लेता है जिसमें सबका गुजारा हो जाता है, रोज रोज के इस ड्रामे को वो कतई बर्दाश्त नहीं करेगा।

रिया अपनी मां के घर जाती हुई सोच रही थी, क्या अजीब बात है, ज्यादातर लड़कियों को उनके ससुराल वाले परेशान करते हैं कि वो ये नहीं लाई, वो नहीं लाई और मेरे यहाँ उल्टा ही हिसाब है..

क्या किस्मत पाई है मैंने?वो समझ नहीं पा रही थी कि अपनी किस्मत पर हँसे या रोये...वो कुछ भी करे लेकिन एक बात तो तय थी कि जिंदगी में चैन कहीं नहीं..वो गुनगुनाने लगी ...

कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता

कहीं जमीं तो कहीं आसमा नहीं मिलता।

रिया की शुरू से ये आदत थी वो जब भी तनाव में होती वो गुनगुनाने लगती जिससे थोड़ी रिलैक्स हो जाये।इतने में ही उसका घर आ गया और वो गाड़ी से उतर गई।

रुक्मणि, रिया को आते देख बहुत खुश हुईं, दामाद जी कहाँ हैं, छोड़ के चले गए क्या बाहर से?तू अकेली कैसे आई है?

कितने ही प्रश्नों की झड़ी एक साथ लगा दी उन्होंने, रिया का उतरा चेहरा देखकर वो तड़प उठीं।

क्या हुआ बेटा, इतनी उदास क्यों हो?राजन से लड़ाई हुई क्या?उन्होंने पुचकार के पूछा तो रिया ज्यादा देर न टाल सकी।

माँ की अनुभवी आंखे सब पढ़ गईं और उसकी हमदर्दी पाकर वो टूट गई, मां से लिपट कर रोने लगी।

रुक्मणि ने सोचा, चलो दिल का बोझ हल्का हो जाएगा, थोड़ा रो लेना चाहिये लेकिन जब उसकी सिसकियां रुकी नहीं, मां का माथा ठनका-क्या हुआ लाड़ो..आज से पहले तू कभी इतनी टेंशन में नही रही, तेरे पापा तेरा दुख पलभर भी बर्दाश्त न कर सकेंगे।

मुझे साफ साफ बता, क्या बात है?

और रिया ने उन्हें सारी बाते बता दीं, रुक्मणि अवाक रह गईं, किसी बात को गलत ढंग से जज करने के क्या नुकसान हो सकते थे, वो साफ देख रही थीं।

उन्हें दुख था कि राजन ने अपने गलत दृष्टिकोण की वजह से उनकी भावनाओ पर भी ठेस पहुंचाई थी, मां बाप अपनी बच्चियों को अपनी हैसियत अनुसार देते ही हैं, इसका मतलब ये तो नहीं कि वो उन्हें अलग होने को कह रहे हैं...

फिर जैसे जैसे परिवार बढ़ेगा, उन्हें बड़ा घर चाहिए, ये किसने कहा कि इसके लिये परिवार अलग अलग रहे।

रुक्मणि को बहुत दुख और गुस्सा भी था राजन पर इस बार, उन्होंने ठान लिया था कि इस बार वो विजय से बात करेंगी इस बारे में, अब अपनी बेटी को उस मिराकी आदमी के पास तब तक नहीं भेजेंगी जब तक वो अपनी गलती नहीं मान लेता।

रिया को डर था कि मां उसे वापिस नहीं जाने देंगी और वही हुआ।रुक्मणि अड़ गई थीं कि जब तक राजन से खुल कर बात नहीं होगी वो उसे जाने नहीं देंगी।

पिया और करन भी वहीं आये हुए थे, थोड़ी देर में वो दोनों आ गए, करन के साथ पिया बहुत खुश थी, वो अभी कहीं से घूम के आये थे।

माँ ने दोनों बेटियों को देखा , शादी के बाद दोनों की तकदीरें बिल्कुल बदल गई थीं, पिया बुआजी के कड़े अनुशासन में बहुत दबी ढकी रहती थी वो अब बहुत मुखर और बिंदास रहने लगी थी, दूसरी तरफ रिया का केस उससे उल्टा था।

रुक्मणि की आंखे भर आईं पर वो दृढ़ निश्चय कर बैठी थीं कि इस बार नहीं झुकेगी और राजन से बात करके रहेंगीं।

उस दिन उन्होंने ज़िद करके, रिया को घर रोक लिया, बहुत देर तक रिया उनकी गोद में सिर रखे लेटी रही, उन्होंने उसके तेल मालिश की और वो बेखबर हो नन्हीं बच्ची की तरह सो गई जैसे बहुत समय बाद चैन की नींद सोई हो।

उन्होंने खुद राजन को कई बार फोन किया जो बन्द ही आ रहा था, हार कर उन्होंने उसके घर लैंडलाइन पर रिंग कर उसकी माँ को बता दिया कि रिया अभी नही आ पाएगी क्योंकि उसकी तबियत खराब है।

बहुत लेट नाईट, राजन का फोन आया था रिया के फोन पर तो रुक्मणि ने उसकी कॉल डिटेल्स तक हटा दीं और रिया को कुछ न बताया इस बारे में, उनका गुस्सा थमने का नाम ही नहीं ले रहा था।

उधर रिया ने सुबह उठकर सबसे पहले फोन चैक किया, राजन की कॉल न देखकर वो निराश हो गई, उसे मेरी जरा भी फिक्र नहीं है, कैसा हो गया है ये...वो सोचने लगी..

शायद मां ही सच कहती हैं, वो मेरे प्यार की कद्र नहीं करता, इतना एगोईस्ट होना भी ठीक नहीं...अब जब वो मुझे मनाने आएगा तभी जाऊंगी।

दूसरी तरफ, राजन का पारा सातवें आसमान पर था, मेरी कॉल का जबाव नहीं दिया, न ही सुबह मुझे कॉल की, समझती क्या है खुद को?अपनी अमीरी का रौब मुझपे चलाना चाहती है...मैं भी अब बात नहीं करूंगा।

दोनों तरफ ही तलवारें खिंच चुकी थीं, बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगती, जरा सी बात का ये रुख हो जाएगा, किसी ने सोचा न था।कहते हैं घर की लड़ाई जैसे ही घर की चारदीवारी से बाहर निकलती है, फिर जंग में तब्दील हो जाती है।बिना सोचे समझे, हम अपने अहम को हवा देने लगते हैं और तिल का ताड बनते फिर देर नहीं लगती।

विजय और रुक्मणि, रिया का उदास चेहरा देखकर दुखी जरूर होते थे पर फिर उनका अहंकार हावी हो जाता था कि हमारी लड़की कोई सड़क से उठा के नहीं ले गए थे दामाद जी, उसके मा बाप जिंदा हैं अभी...

और वहां राजन बात बात पर झुंझलाने लगा था, राधा मां पूछना चाहती, कुछ कहती कि मैं ले आऊं बहु रानी को वो अपनी कसम दे उन्हें रोक देता।

पता नहीं कब ये जंग रुकने वाली थी, या अभी और तेज़ होनी थी, ये तो समय ही तय करने वाला था अब....

अहम अच्छे से अच्छे मजबूत रिश्ते की नींव को हिला देता है, इसीलिए कहते हैं कि प्यार में, ईगो और शक वगैरह से दूर ही रहना चाहिए, ऐसा नहीं है राजन को रिया पर कोई शक था पर उसका काम्प्लेक्स कि वो जो रिया के घर कभी मुलाजिम हुआ करता था, वो, जिसे लोगों ने दया कर पाला था, कभी कभी उसे भूखों भी सोना पड़ता था, जब चाहे कोई झिड़क के भगा दे, जब चाहे पुचकार दे, इन सब बातों से राजन की बुद्धि कभी भी सनक जाती थी और वो अजीबोगरीब हरकतें करता।

आप जिसे सबसे ज्यादा प्यार करते हैं उसी पर आपका गुस्सा भी सबसे ज्यादा होता है, शायद इसी कारण अब राजन को रिया की जुदाई और बेरुखी बिल्कुल सहन नहीं हो रही थी पर उसकी ईगो ने उसके पैरों में ज़ंजीर डाल दी थीं।

ठीक वैसा ही हाल रिया का था, वो राजन के बिना जल बिन मछली सी तड़पती पर मां और बहन के सामने सामान्य होने की एक्टिंग करती, आखिर सेल्फ रेस्पेक्ट भी कोई मायने रखती है जिंदगी में...

राजन ने उसके प्यार की परवाह न की थी, उसे गलत समझा था और उसे ये एहसास कराना बहुत जरूरी था नहीं तो वो दिनोदिन इस तरह के काम बढ़ाता चला जाता।

अब समस्या ये थी कि राजन को उसकी गलती के बारे में कौन समझाए?कभी कभी, हमें हमारी गलती नज़त नहीं आती और सामने वाला ही गलत नज़र आता है ....ऐसे में बहुत जरूरी होता है किसी थर्ड पर्सन का हस्तक्षेप।

करन ने पिया से कहा-क्यों न ताई जी को ये समस्या बताई जाए, वो उनकी बहन भी हैं, शायद उनका कहा मान लें राजन..

लेकिन अगर बुरा मान गए तो कि तुमने मेरी बहन से शिकायत की...पिया ने आशंका जताई

उन्हें कुछ कह कर क्यों बुलाया जाए, किसी आयोजन में बुलवा लेते हैं। करन बोला।

ये ठीक रहेगा, पिया की आंखों में चमक आ गई।

फिर एक योजना के अनुसार, घर मे एक पार्टी रखी गई और करन की ताई और राजन की बहन सीमा देवी को निमंत्रण भेजा गया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

उस दिन वो आईं तो सबसे पहले उन्होंने रिया से राजन के लिये पूछा।

रिया ने बताया-काम मे व्यस्तता की वजह से वो नहीं आ पा रहे हैं शायद...

अरे, ये क्या बात हुई, लाओ मुझे फोन दो, मैं बात करती हूं।उन्होंने फोन लगाया और उधर मुस्तेदी से राजन ने उनसे बात की।

उनके आगे राजन की कोई चाल न काम आई और उसने तुरंत वहां आने का वायदा किया।

सीमा देवी ने रिया से कहा-ये क्या हालत बना रखी है, चलो जाओ अच्छे से तैय्यार हो कर आओ, वो आने वाला है।

रुक्मणि ने सीमा जी को इस दौरान कु छ हिंट दे दिया था राजन के बारे में, वो मंद मंद मुस्कराई, अब तुम सब मुझ पर छोड़ दो।

सीमा ने राजन को कहा, तुम साथ मे अपने माँ, बापू और बहन को भी लाना।

थोड़ी देर में, पार्टी अपने पूरे शबाब पर थी। सब कुछ सीमा जी की योजनानुसार चल रहा था, राजन अपने परिवार सहित आया था और उसकी निगाहें चारो ओर बेचैनी से रिया को ढूंढ रही थीं जी कहीं नजर नहीं आ रही थी।

उसने एक बार पिया से पूछा भी तो उसने मुस्करा के जबाव दिया, यहीं किसी काम मे व्यस्त होगी , आ जायेगी अभी...

राजन को बहुत हर्ट हुआ पर वो समझ रहा था कि कुछ गलती उसकी भी थी जो उसने पिछले दिनों रिया की बिल्कुल सुध नहीं ली, अब रिया की गैर मौजूदगी उसे क्यों अखर रही थी?

वो इन्हीं विचारों में उलझा हुआ था कि वहां स्टेज पर किसी ने घोषणा की कि अब रिया आपके लिये एक ग़ज़ल गाएंगी...सबने तालियों से इसका स्वागत किया और वातावरण में रिया की दर्दभरी स्वरलहरी गूंजने लगी...

वो चुप रहें तो मेरे दिल के दाग जलते हैं...

जो बात करलें तो बुझते चिराग जलते हैं...

उसने कितने समय बाद रिया को देखा था, कहने को वो बहुत सुंदर हल्के आसमानी कलर की साड़ी जो राजन को बहुत प्रिय थी, पहने थी, हल्का सा मेकअप उसे और सुन्दर बना रहा था पर उसकी आँखों मे , आवाज़ में दर्द तैरता हुआ साफ नजर आ रहा था।

वो गाती रही और लोग वाह, वाह करते रहे, गाना खत्म होते ही लोगों ने उसे घेर लिया, राजन छटपटा रहा था, ये मैंने कैसा अहंकार दिखाया, मैं जैसे इसके लिये अजनबी हो गया..मुझे तो कोई वैल्यू ही नहीं दी जा रही...उसे फिर से क्रोध आने लगा था।

तभी उसकी बड़ी बहन सीमा जी ने उसे आवाज़ दी और वो भारी कदमो से उनकी तरफ चल दिया।

राजन अपनी बड़ी बहन सीमा के पास पहुंचा तो उसका मुंह उतरा हुआ था, जबरदस्ती से ओढ़ी गयी उसकी मुस्कान उसके दिल की बेचैनी को छुपा सकने में नाकाम थी।सीमा ने गहरी नज़रों से उसे देखते हुए अपने पास बैठा लिया।

क्या हुआ राजू, बहुत उदास लग रहे हो..उन्होंने पूछा।

कुछ नहीं जीजी, बस आफिस में वर्कलोड ज्यादा है आजकल..

तो क्या तुम अपना ऑफिस हर वक्त अपने सिर पर लादे घूमते हो, मैंने धूप में बाल सफेद नहीं किये बेटा. .अगर कुछ है तो मुझसे शेयर कर सकते हो...वो राजन को मौका देना चाहती थी कि वो खुद कुछ कहे।

राजन समझ नहीं पा रहा था कि वो उन्हें क्या बताये, क्या ये कि उसे सास ससुर के दिये गिफ्ट्स पसन्द नहीं, या ये कि वो इन सबका जिम्मेदार रिया को ठहरा के उससे गुस्सा है...

किस सोच में पड़ गया राजू.. अभी पिछली बार जब तू मिला था तो कितना खुश था, क्या इतनी जल्दी खुश रहने के कारण खत्म हो जाते हैं...तेरी अभी नई नई शादी हुई है, कहीं से भी तेरी शक्ल देखकर ऐसा नहीं लगता, इतना बेज़ार से दिखता है जिंदगी से...शक्ल देखी है अपनी आईने में...

वो जीजी..बात...वो हकला गया।

बता न भाई, क्या बात है, अब बोला क्यों नहीं जा रहा, पानी कहाँ मर रहा है, तूने अपनी पसंद की लड़की से शादी की थी न...

हां..वो नज़रें झुका के बोला

मेरी आँखों मे देखकर बात कर, सीमा जी कड़ाई से बोलीं।

रिया से कोई प्रॉब्लम है, वो घर मे कोई बदतमीजी करती है?

नहीं, नहीं जीजी, वो तो बहुत अच्छी है...

फिर क्या कारण है तुम्हारे मुंह फुलाने का, रुक्मणि और विजय जी से नाराज़ हो किसी बात पर...

असल में, वो बोलते बोलते रुक गया...

बताओ राजू, मैं सुनना चाहती हूं तुम्हारे मुंह से, आज खुल कर बोल ही दो...

वो जिस तरह, रिया को कभी बाहर घूमने के टिकट, चीजें, घर आदि देते हैं उससे मेरे स्वाभिमान पर चोट लगती है जैसे वो मुझे एहसास कराते हैं कि मैं इन सबके लायक नहीं।

सीमा बड़े प्यार और गर्व से अपने भाई को देखने लगीं लेकिन प्रकट में उसके पास आई और उसका हाथ अपने हाथ मे लेकर कहने लगीं-

भाई, तूने शुरू से मां बाप का प्यार नहीं देखा, परिवार क्या होता है , तू नहीं जानता, शायद इसीलिए तुझे ये सब किसी दूसरे का फेवर लगता है लेकिन ऐसा नहीं है।

मैंने उन्हें भी ये बात समझाई थी और वो आगे से वही करेंगे जो तुम चाहते हो लेकिन इन बातों को लेकर कोई मतभेद न पालो, रिया ने भी तुम्हारे अनुसार रहने की कसम खाई है पर उससे कभी नाराज मत होना, बहुत संवेदनशील लड़की है, उसकी परेशानी से ही चिढ़ गए थे वो लोग।

वो बोलती गईं, अच्छा ये बता जब तू उनके साथ ड्राइवर था, कभी उनके व्यवहार में कोई कमी देखी?नहीं न, वो लोग ऐसे बिल्कुल नहीं है बल्कि ये तो उनका बड़प्पन है कि वो तुझे कभी ऐसा महसूस नहीं कराते।

उनकी दो ही लड़कियां हैं , सब कुछ उन्हीं का तो है, अगर कभी कुछ दे दिया तो इसका गलत मतलब क्यों लगाया जाए?

राजन को अपनी जीजी की बात सही लग रही थीं और वो बहुत शर्मिंदा महसूस कर रहा था, फिर अब क्या करूँ, वो अस्फुट सा बोला।

तुझे पता है, रिया तेरे व्यवहार से कितनी आहत है, सारे दिन रोती है, वो तुझसे जुदा होकर पलभर भी नहीं रह पा रही।

तो मैं भी कहाँ खुश हूं??वो बरबस बोल पड़ा।

तो पीछे मुड़ के देख फिर...सीमा जी ने कहा।

राजन ने देखा कि रिया चुपचाप कब आकर वहां पीछे बैठी थी, अरे तुम...कैसी हो?

आपके बिना कैसी हो सकती हूं, शिकायती स्वर में वो धीरे से बोली।

राजन का मन हुआ कि वो उसे अपने सीने से लगा ले और उसके सारे गिले शिकवे डोर कर दे पर जीजी की उपस्थिति उसे रोक रही थी।

सीमा मुस्कराती हुई बोलीं-जा रही हूं अब यहां से, दोनों अपने सारे गिले दूर कर लेना और खबरदार आगे से कभी लड़े तो...

और इस तरह, एक बड़ी जंग के खत्म होने के आसार साफ दिखने लगे, जंग हमेशा लड़ी जाती रही हैं, घर मे और बाहर भी, अपनी जिंदगी को सही पटरी पर लाने में जो जंग लड़नी पड़ती है वो ठीक है, लेकिन अपने ईगो, क्रोध, लालच के कारण जो जंग हम लड़ते हैं उनसे हर सम्भव बचने की कोशिश करना ही हम सबकी प्राथमिकता होनी चाहिए।


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