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Lokanath Rath

Tragedy Inspirational

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Lokanath Rath

Tragedy Inspirational

जंग - ममता और जिंदगी की ...........

जंग - ममता और जिंदगी की ...........

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इतने बड़े शहर में वो अकेली अपनी जिंदगी बिता रही थी। रास्ता के किनारे एक रहने की जगह देख के अपनी छोटी सी झोंपड़ी में अपनी गरीबी और लाचारी के साथ जीने की तमन्ना ले के संघर्ष कर रही थी। क्या नाम है किसी को पता नहीं। कभी किसी से वो भीख नहीं मांगती थी। कहाँ से आयी ये भी किसी को मालूम नहीं है। सुबह और शाम को एक प्लास्टिक का बोरा ले के वो निकल पड़ती और फेंके हुए प्लास्टिक की बोतलें, छोटी छोटी झोले और कुछ प्लास्टिक की चीज़ उसकी बोर में भर भर के वो ले जाती और उसे बेच के जो पैसे मिलते उसमें अपनी जिंदगी की जरूरतें पूरा करती। उस पैसे से कुछ बच के भी रखती खुद के शरीर के देख भाल के लिए। उसे इस सरकारी शहर में आते हुए ज्यादा दिन भी नहीं हुए। यहाँ की भाषा भी वो नहीं जानती और उसकी भाषा समझने के लिए भी बड़ा मुश्किल है। आने के तीन महीने बाद उसे पता चला की वो माँ बनने वाली है। वो बहुत खुश हुई। फिर

दवाखाना जा के सरकारी डाक्टर साहब से सारी जाँच कर ली। डाक्टर साहब को भी बहुत दिक्कत हुआ उसकी भाषा समझने के लिए। जैसे भी हो वो इतना समझ ली की अभी उसको उसकी साथ साथ अपनी पेट में पल रहा बच्चे के लिए थोड़ा सावधानी से रहना होगा। वो अपने मन में माँ बनने की ख़ुशी को किसी के सामने बोल तो नहीं सकती थी पर उसके वो अंदर की ममता सब समझ सकती थी। कभी कभी रोज के काम करते करते वो थक जाती थी और साथ में लिए हुए पानी की बॉटल से पानी पी लेती थी और एक जगा में थोड़ी विश्राम ले के फिर अपने काम में लग जाती थी। अभी वो आगे से थोड़ा अपनी खान पान में ज्यादा ध्यान देने लगी है। क्यों की खुद को तो जीना है और अपनी बच्चे को भी जनम देना है। कभी कभी बारिश की पानी से वो बचने के लिए भी इंतज़ाम कर रखी है। आस पास की लोग और कुछ दुकानदार उसे रोज़ देखते है और उनको भी कुछ समझ नहीं आता की ये कहाँ से है। वो बिलकुल चुप चाप रहती और अपना काम करते जाती। जब उसको छँटवा महीना की याद आयी तो उसने डाक्टर साहब के पास गयी और सारी सलाह ली। उस समाये से अपनी आने वाला बच्चे के लिए कुछ जरूरत का सामान भी खरीद के रखने लगी। बच्चे के लिए छोटे छोटे गदा, तकिये ,चादर और कुछ छोटे छोटे छोटे चीज़ आहिस्ते आहिस्ते खरीद के रखने लगी, उसके वही रास्ते की किनारे वाला झोंपड़ी में। कभी कभी रात को दर्द से भी वो चिल्लाती

थी ,कोई सुनने वाला नहीं था। वो सच में बड़ी हिम्मत वाली थी। अकेले सब कुछ सहन कर लेती थी। इस अनजान शहर में बिना किसी को जाने ,बिना यहाँ की भाषा जाने और एकदम अकेले अपने आप खुद को कहते रही ये समाज के गंदे लोग और उनकी गन्दी नज़रें से। उसको अकेली समझ के कई बार कुछ शराबी भी उसे तंग करते थे ,पर उसने सब की कड़ा मुकाबला करती थी। कभी कभी रात को पुलिस बाबू भी आ के बेचारी को बहुत तंग करते है। एक दो बार उसको थाने में भी रात गुजरने पड़ी। फिर भी वो हिम्मत नहीं हारी। उसकी मान में और दिल में छुपी हुई ममता और जिंदगी जीने की बीच

में बहुत बार जंग भी होता था ,उसको भी वो संभल लेती थी। उसको ये पता था की उसकी ममता के लिए उसे जिंदगी जीनी होगी। जितनी भी तकलीफ आएगा सब कुछ वो सहन कर लेगी। उसके पास न तो धन था , न रहने के लिए कोई छत, न सहारा देने के लिए कोई अपना। पर उसके पास थी अपनी मन की विश्वास और दिल में छुपी हुयी ममता।

रोज रोज जैसे उठ के वो अपनी काम के निकलती थी, उस दिन भी वो निकलने के लिए तैयार हुई। पानी की बॉटल भी साथ में रखी। पर थोड़ा कुछ पेट में दर्द होने लगा। तब शायद उसकी नवा महीना चल रहा था । ये उसको इतना ख्याल भी नहीं था। उस दिन थोड़ा रुक के वो हिम्मत करके अपने काम के लिए निकल गयी। उस दिन भी सुबह पेट भर के वो खाना खा ली थी। पहेली बार उस दिन उसने ऊपरवाले के तरफ देखी और हाथ जोड़ के कुछ बोली, उसकी आँखों से भी आंसू टपक रहा था। वो आंसू उसकी पेट की दर्द या मन की दुःख की ,ये सिर्फ वो और ऊपरवाले ही जानते थे। कुछ दूर जाने के बाद उसकी दर्द बढ़ने लगी। वो पास की एक गली में जाके एक कोने में लेट गयी। धीरे धीरे उसकी दर्द बढ़ते जा रही थी। वो सहन कर रही थी। उसे लगने लगा शायद अभी उसके बच्चे का बहार आने का समय हो गया। जब दर्द बढ़ने लगा और बर्दाश्त की बहार हुई तो वो एक बड़ी आवाज दी। उसकी आँखों से आंसू बाह रहे थे वो दर्द से मारे छटपटा रही थी। उसकी आवाज से पास के लोग बहार आये और समझने के कोशिश कर रहे थे की उसको क्या हो रहा है। इस बीच उस दर्द के साथ एक बहुत बड़ा आवाज उसने दी , जो की बहुत दर्द भरा थी और एक बच्चे को जनम दे दी। फिर कुछ समय के लिए उसने शान्त हो गयी। खुद बड़ी मुश्किल से उठी और अपने बच्चे को अपनी हाथ में ली। सारे दर्द भूल गई ,उसकी ओठों पे ख़ुशी की मुसकान थी। सारे शरीर से खून बहा रहा था पर उसकी ममता की ख़ुशी उसकी आँखों में दिख रहा था। इतने से पड़ोस की एक महिला ने एक चादर लाके दी बच्चे को उसमें ढँकने के लिए। पहेली बार वो किसी का दिया हुआ चीज़ ली और अपनी बच्चे को ढँक दी। वो उस महिला को कुछ अपनी भाषा में बोल रही थी। शायद उनको शुक्रिया बोल रही थी। फिर वो बच्चे को एक किनारे रख के घुटनों पे जाके अपने बोर को ली और पास में पड़ा हुआ कुछ खाली प्लास्टिक की बॉटल भी ले के उसमें रखी। ये सब देख के बड़ा अजीब सा लगता था पर ये उसकी लिए एक सच्चाई थी की अभी उसकी बच्चे के लिए उसे और बहुत कुछ करना

होगा। वो उसकी और बच्चे की जिंदगी और अपना ममता के बीच जंग को जीतना चाहती थी। वो अपने ममता और दोनों की जिंदगी को बचाना और बेहतर करने की कोशिश इस हालत में भी करना चाहती थी। तब पास ले लोगों ने एम्बुलेंस को बुला लिया था। एम्बुलेंस आया और दोनों को ले के हॉस्पिटल गया। उस समय वो अपने बच्चे को अपने साइड में लगा के अपनी आँखों से सबको शुक्रिया बोल रही थी। वो ये बोल रही थी की उसकी जंग अभी है और वो उसे जीत जाएगी। उसकी हिम्मत और उसकी साहस उसकी सबसे बड़ा हथियार है और उसे जीना है और उसकी ममता को भी। .......



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