Sheel Nigam

Tragedy

2  

Sheel Nigam

Tragedy

ज़ख्म

ज़ख्म

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127


(सामाजिक सरोकार प्रतियोगिता में 'अंधविश्वास' विषय के अंतर्गत)


अपने मन में ज़ख्मों की पोटली ले कर प्रशांत बूढ़े मोची के पास पहुँचा।

"बाबा मेरे ज़ख्म सिल दो।"

"ज़ख्म? कहीं और जाओ बेटा, मैं ज़ख्म नहीं सिलता। किसी अच्छे डॉक्टर के पास जाओ।" बूढ़े मोची ने आश्चर्य से उसे देखते हुए कहा।

"नहीं बाबा डॉक्टर तो हरे ज़ख्म सीते हैं, ये हँसते ज़ख्म हैं मेरे, जो ज़माने ने दिये। मैं पागल नहीं फ़िर भी ये मुझ पर हँसते हैं।"

प्रशांत की बात सुन कर मोची की बूढ़ी आँखों ने वह सब देख लिया जो ज़माना नहीं देख पाया।

प्रशांत की आँखों में आँसू देख कर मोची बाबा ने उसे दिलासा देते हुए कहा, "हँसने दो बेटा, इन ज़ख्मों को तुम पर। अगर ये ज़ख्म रोने लगे तो नासूर बन जायेंगे।

तभी एक पति-पत्नी का जोड़ा वहाँ से गुज़रा पत्नी की गोद में छोटा बच्चा था। प्रशांत ने लपक कर पत्नी की गोद से बच्चा छीन लिया।

" मेरा बच्चा, मेरा बच्चा, तू कहाँ चला गया था रे?" कह कर प्रशांत बच्चे को बेतहाशा चूमने लगा।

महिला सकपका गई। उसके पति ने बच्चा छीन कर महिला को दिया और प्रशांत को लातों-घूसों से पीटने लगा।

लोगों का हुजूम तमाशा देखने के लिये खड़ा हो गया। किसी ने प्रशांत को बचाने की कोशिश नहीं की।

उस भीड़ में खड़े युवक रोहित ने प्रशांत को पहचान लिया।

"अरे, इसे मत मारो। दीवाना हो गया है, अपने बच्चे के ग़म में। इसकी पत्नी बच्चे को लेकर अपने प्रेमी के साथ कहीं चली गई है।" कहते हुए रोहित ने उसे पिटने से छुड़ाया और ले चला डॉक्टर के पास, खून से रिसते ताज़े जख्मों को सिलवाने के लिये।

डॉक्टर के क्लीनिक पहुँचते-पहुँचते प्रशांत बेहोश होने लगा था। डॉक्टर ने एम्बुलेंस बुलवा कर दोनों को अस्पताल भिजवा दिया।

प्रशांत को अन्दरूनी गहरी चोटें लगी थीं। इलाज करीब एक महीने तक चला। इस बीच ख़बर हो जाने पर भी प्रशांत की पत्नी रेखा एक बार भी उसे देखने नहीं आई। प्रशांत रह-रह कर अपने बच्चे की याद में तड़पता रहा।

उसकी ऐसी हालत देख कर डॉकटरों ने उसकी काउंस्लिंग के साथ-साथ उसके गहन अवसाद को दूर करने के लिये भी दवाइयाँ दीं।

अस्पताल से छुट्टी मिल जाने के बाद रोहित अक्सर प्रशांत से मिलने उसके घर जाने लगा। प्रशांत की नौकरी छूट चुकी थी। दिन भर अकेला पड़ा अपनी किस्मत को कोसा करता। रोहित के लाख समझाने पर भी वह न तो किसी अन्य काम की तलाश करता और न ही अपनी बिखरी हुई ज़िन्दगी को समेटने की कोशिश करता।

आख़िर एक दिन रोहित के एक सवाल ने प्रशांत की दुखती रग को छेड़ ही दिया।

रोहित ने पूछा, "अच्छा यह तो बताओ दोस्त, भाभी क्यों छोड़ गई तुम को?"

फ़िर जो ज्वालामुखी फूटा प्रशांत की जुबानी, रोहित को अंदर तक पिघला गया। कान सुन्न पड़ गये। अविश्वास भरी नज़रों से देखता रह गया। सोचता रह गया कि कोई लड़की ऐसा भी कर सकती है? जैसा रेखा ने प्रशांत के साथ किया।

रोहित के प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रशांत ने कहा, " विवाह के बाद तीन महीने बहुत ख़ुशियों भरे थे हम दोनों के। रेखा मेरे जीवन में आई पहली लड़की थी सो दिल भर के चाहा उसे। बहुत प्यार किया मैंने उसे।"

कहते कहते प्रशांत रूआँसा हो गया। आगे बोला, "दिन खूबसूरत थे रातें हसीन। इस बीच रेखा गर्भवती हो गई। वह मायके जाना चाहती थी। पर मैं उससे जुदा नहीं होना चाहता था। मुझे लगा कि अगर वह चली गई तो मेरी जान ही निकल जायेगी। किसी तरह अपने प्यार का वास्ता दे कर उसे मायके जाने से रोक लिया।"

पानी के दो घूँट गले से उतार कर प्रशांत ने कहा, "पर क्या मिला मुझे उसे मायके जाने से रोक कर? गर्भवती होने के बाद उसका मिशन पूरा हो चुका था।"

"मिशन! कैसा मिशन?" रोहित की उत्सुकता बढ़ गई।

"हाँ मिशन ही तो था मुझे बर्बाद करने का।"

"वो कैसै?"

"एक दिन ऑफ़िस में कुछ काम न होने के कारण मैं दोपहर जल्दी घर आ गया। सोचा, रेखा को सरप्राइज़ दूँगा। पर उसने ही मुझे सरप्राइज़ दे दिया।"

"कैसा सरप्राइज़?"

"अपनी चाबी से ताला खोल कर जब मैं बेडरूम में पहुँचा तो देखा, रेखा बिस्तर पर लेटी किसी से बात कर रही थी मोबाइल पर। मुझे देखकर उसने मोबाइल का स्विच ऑफ़ कर दिया।"

"फ़िर?"

"मैंने हँसते हुए रेखा से पूछा, " किससे बातें हो रहीं है?"

रेखा ने कहा, "अपने प्रेमी से।"

"क्यों मज़ाक कर रही हो रेखा? तुम्हारा प्रेमी तो मैं हूँ।"

"तुम? तुम तो मेरे पति हो। मैंने शादी ज़रूर की है तुमसे पर प्रेम मैं उसी से करती हूँ।"

"मुझे फिर भी लगा कि वह मुझे चिढ़ाने के लिये कोई खेल खेल रही है। पर बाद में समझ में आया कि वाकई में वह मेरी ज़िन्दगी से खेल रही थी और जब उसका खेल ख़तम हो गया, वह चली गई मुझे तड़पता हुआ छोड़ कर, मुझे मेरी बर्बादी का रास्ता दिखा कर। मेरे बच्चे को भी ले गई अपने साथ। अब मैं किसके लिये ज़िन्दा रहूँ?"

कहते कहते प्रशांत फफक कर रो पड़ा।

"हादसे तो ज़िन्दगी में होते ही रहते हैं, प्रशांत। सब ठीक हो जायेगा। धीरज रखो।" रोहित ने प्रशांत को ढाढस बँधाने की कोशिश की।

"कुछ ठीक न होगा अब। जो होना था सो हो चुका।"

"कैसे नहीं होगा दोस्त? अभी से हिम्मत हार बैठे? ज़िन्दगी थोड़े ही ख़त्म हो गई।" रोहित ने समझाने की कोशिश की।

"ख़त्म ही समझो रोहित। यह शादी मेरे लिये बर्बादी का सबब बन गई। मेरी नौकरी गई, मेरे बच्चे को मुझ से छीन कर रेखा अपने प्रेमी के साथ..." आगे न बोला गया प्रशांत से।

थोड़ा संयत होकर प्रशांत ने कहा, "रोहित, तुम मेरी बातों पर विश्वास करो न करो, पर यह सच है कि रेखा और उसके घरवालों ने मिलकर मुझे बलि की बकरा बनाया है। कोई और बताता तो शायद मैं नहीं मानता, पर घर छोड़ने से पहले रेखा ने मुझे खुद बताया।"

"क्या?" रोहित की उत्सुकता अब चरम सीमा पर थी।

" यही कि रेखा जिससे प्यार करती थी, अगर उससे शादी करती तो वह या तो मर जाता या बर्बाद हो जाता। क्योंकि रेखा मंगली है। इसलिये पंडितों की सलाह पर रेखा के घरवालों ने मुझसे उसकी शादी कर दी।"

अपने आँसू पोंछते हुए प्रशांत ने आगे कहा, "और उसके मंगली होने का दुष्प्रभाव मुझ पर आ गया। रेखा न कभी मेरी थी और न कभी मेरे पास वापस आयेगी। अपने प्रेमी के साथ बिना विवाह के भी ख़ुश है रेखा।"

घर लौटते समय रोहित सोच रहा था कि दोष किसका है? रेखा का या भाग्य रेखा का?



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