ज़िंदगी के ताने बाने
ज़िंदगी के ताने बाने


सुबह के आठ बजकर तीस मिनिट हो गये थे। विनय घड़ी की तरफ़ नज़र घुमाता है और जल्दी - जल्दी तैयार होते हुए मन ही मन अपने आपको कोस रहा था कि अलार्म के बजने पर उसे बंद कर फिर क्यों सो गया। तभी माँ ने कमरे में प्रवेश किया। विनय उन्हें देखकर भी अनदेखा कर अपने काम में लगा रहा क्योंकि उसे मालूम था कि माँ सुबह सुबह कमरे में आई है तो कुछ बताने वाली है। माँ ने कहा बेटा आज बुआ सालों बाद अपने घर आ रही है माँ की बात अभी पूरी भी नहीं हुई विनय ने कहा माँ मुझे देर हो रही है बॉस के साथ अर्जेंट मीटिंग है ऑलरेडी मैं लेट हो गया हूँ रात को देर से आऊँगा मेरे लिए इंतज़ार नहीं करना , और भागता हुआ बिना पीछे मुड़े ही चला गया।
माँ निराश होकर वहीं पलंग पर बैठ गई और सोचने लगी पिछले महीने जब बहन आई थी तब भी इसका यही हाल था।पिछले हफ़्ते तो हद ही हो गई थी विनय के पापा को अचानक रात को हार्टअटॉक आ गया था उन्हें सँभालते - सँभालते ही विनय को ऑफ़िस में फ़ोन लगाया तो उसने कहा माँ मैं बहुत
व्यस्त हूँ बॉस के साथ दूसरे शहर में हूँ आ नहीं सकता पड़ोसियों की मदद ले लो और फ़ोन कट कर दिया। पड़ोसियों का भी तो यही हाल है किसी तरह पहचान वाले टेक्सी ड्राईवर की मदद से उन्हें अस्पताल पहुँचाया। पापा के घर पहुँचने के चार दिन बाद आकर कहता है सब ठीक है न।
पुरानी बातों को सोचते हुए माँ की नज़र छत पर जाले बुन रही उस मकड़ी पर पड़ी जो जाला के ताने बाने के बुनने में इतनी व्यस्त हो गई कि उसे महसूस भी नहीं हुआ कि वह तो अकेली है। माँ सिहर गई कहीं विनय भी
दोस्तों यह एक कहानी नहीं हक़ीक़त है ज़िंदगी की हक़ीक़त है। हम भी अपने निजी ज़िंदगी में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि हमारे रिश्तों की तरफ़ नज़र भी नहीं डालना चाहते। दोस्तों ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा पैसा ही सब कुछ नहीं है , अपने व्यस्त जीवन के कुछ पल अपने रिश्ते नातों परिवार को भी दीजिए ताकि अंत में उस मकड़ी की तरह अपने आप में सिमटकर न रहना पड़े। याद रखिए कुछ पाने के लिए कुछ देना भी पड़ता है।