जिंदगी का कारवाँ...
जिंदगी का कारवाँ...


जिंदगी का कारवाँ यूं ही चलता गया...
तुम " ओर " मैं " से " हम " बन गए...
बस था तो सिर्फ हमारे बीच मे एक
प्यार ओर विश्वास की नाजुक डोर...
थे कितने ही हमारे बीच में भी अनेक
गिला शिकवा न जाने कोन सी डोर थी...
जिसने यूं बांधे रखा हमें जैसे हों हम
एक डाल के पंछी कभी झगडते तो
कभी एक दुजे पर इतना प्यार आता कि
मानो अभी अभी तो जिंदगी बनी हो...
कभी कभी लडखडाए पर जो हाथ थामा था
वो हाथ कभी छुडाया नही, बस यूं ही थामे
कारवां प्यार भरे लम्हों से चला जा रहा है...
जिंदगीका कारवाँ जो यूं ही चलता गया...