किसान की दुर्दशा
किसान की दुर्दशा


भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की अर्थव्यवस्था का मूल आधार कृषि है। एक किसान राष्ट्र की आत्मा होता है, हमारे राष्ट्रपति श्री लाल बहादुर शास्त्री ने नारा दिया था 'जय जवान जय किसान',त्याग और तपस्या का दूसरा नाम है किसान। जीवन भर वह मिट्टी से सोना उत्पन्न करने की तपस्या करता रहता है। चाहे फिर उसे तपती धूप, या फिर कड़ाके की ठंड, तथा मूसलधार बारिश हो, यह सब कुदरती आफतोके बावजूद उसकी इस साधना को तोड़ नहीं पाते, भारत देश की लगभग 70% आबादी आज भी गांवों में निवास करती है, जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि है।
वर्तमान समय में किसान आधुनिक विष्णु का रूप है। जो देश भर को अन्न, फल ,साग -सब्जी आदि दे रहा है, लेकिन बदले में उसे उसका पारिश्रमिक नहीं मिल पाता, उसकी सबसे बड़ी आवश्यकता पानी है, जब समय पर वर्षा नहीं होती है तो किसान निराश हो जाता है। अशिक्षा अंधविश्वास तथा समाज की कुरीतियां उसके साथी कहलाते हैं, बड़े कर्मचारी जैसे कि सरकारी लोग, बड़े जमींदार, बिचौलिया, तथा व्यापारी, यह सब जीवन भर उसका शोषण करते हैं।
प्रातः काल होने के साथ सायं काल सूरज डूबने तक किसान खेतों में काम करता है। भारतीय किसान की वर्तमान स्थिति काफी दयनीय है, 50% से अधिक किसान आर्थिक शोषण का शिकार है।रुपए के अभाव ने उन्हें गरीबी के मुंह में धकेल दिया है जमींदारों के कर्ज में डूबा उसका जीवन काल तो कभी महामारी तो कभी बाढ़ या सूखे की चपेट में आ जाता है।कर्ज के कारण उसका जीवन एक बंधुआ मजदूर के जीवन से कुछ कम नहीं होता ।देखा जाए तो वह कर्ज में ही पैदा होता है और कर्ज में ही मर जाता है। परिश्रम से तैयार करी हुई फसल खलिहान तक पहुंचने से पहले ही उस का बंटवारा हो जाता है, स्वयं अनाज उपजाने के बाद भी उसे तथा उसके परिवार को भरपेट खाने को अन्न नहीं मिलता। मुश्किलों के साथ-साथ सिंचाई के साधनों के अभाव में भी उसे बरसात के मौसम पर निर्भर रहना पड़ता है। शिक्षा और गरीबी के कारण उसका जीवन कठिनाई से गुजरता है।
कृषको की स्थिति को ध्यान में रखते हुए सरकार ने अपनी बहुत सी योजनाएं प्रदान की है...किसान के पैरों में कभी जूते नहीं होते, शरीर पर पूरे कपड़े नहीं होते, उसके चेहरे पर रौनक नहीं दिखाई देती, वह अन्नदाता होते हुए भी स्वयं भूखा और अधनंगा रहता है,भारतीय किसान के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, किसानों गुरु उद्योग जैसे की कपड़े सिलना, रस्सी बनाना, टोकरी बनाना, पशुपालन तथा अन्य उद्योग धंधों की शिक्षा मिलनी चाहिए जिससे वह अपने समय का सदुपयोग करके अपनी आर्थिक उन्नति कर सकें।