ज़िन्दा लाश
ज़िन्दा लाश
नित्य की तरह आज भी मैं गार्डन में टहलने के बाद बेंच में बैठते ही चारों तरफ़ नज़रें घुमाकर कोई परिचित चेहरा तलाशने लगी तभी ठीक मेरे सामने की बेंच में मुझे एक अपरिचित महिला नज़र आई, जिसे देखते ही अनायास मेरी आँखें उस पर थम सी गईं उसकी उम्र लगभग पचीस तीस के आसपास थी, उसके तीखे नैन नक्श, माथे पर बड़ी बिंदी और हल्के गुलाबी रंग की साड़ी में लिपटी एक आकर्षक छवि को देखकर किसी की भी नज़रों का थम जाना स्वाभाविक था l मेरी नज़रें उससे मिलते ही उसने मुस्कुरा दिया ! और उठकर मेरे पास आने लगी तो मुझे ऐसा लगा जैसे आँखों ने आँखों को आमंत्रित कर दिया हो पास आते ही मैंने जिज्ञासावश उससे पूछा - "क्या आप इस कॉलोनी में नयी नयी आयी हैं? "
तो नमस्ते करके उसने मुझे अपना परिचय देते हुए कहा कि - "जी मेरा नाम शशि है मुझे यहाँ आये तो दो तीन दिन ही हुए हैं, लेकिन मेरे पति यहाँ चार पाँच सालों से रह रहे हैं, और फ़िर सामने की बिल्डिंग की तरफ़ इशारा करते हुए उसने बताया -" वो सामने वाले 320 नंबर फ्लैट में वो रहते हैं !"
"और आप ! आप कहाँ रहती हैं?"
"जी, मैं तो गाँव में सास ससुर के साथ रहती हूँ मेरे पति कभी कभार तीज त्यौहार में गाँव आ जाते हैं l और फ़िर थोड़ी मायूसी से वो बोली -" मेरे पति तो यहाँ अपनी कम्पनी की बॉस के साथ रहते हैं !"
ये सुनते ही मैने हैरानी से कहा - "बॉस के साथ !"
"हाँ दीदी ऐसा मैंने देखा तो है वो दिन में कुछ घंटे लंच के बाद यहाँ मेरे पति के साथ रहती हैं, और फ़िर रात अपने घर में !"
"ये बात मुझे कुछ संदिग्ध सी लगी मैंने कहा -" आपने अपने पति से कहा नहीं कि वो रोज़ यहाँ ?"
तो मेरी बातों को पूरा होने से पहले ही उसने कहा - "अरे दीदी वो बहुत गुस्से वाले हैं हमारी शादी को पाँच साल हो गए, पर अब तक उन्होंने मुझसे पाँच बार भी बात नहीं की है ! मुझे तो इन्होनें यहाँ घर का काम करने के लिए लाया है l"
"हैं ! !" मैंने आश्चर्य से कहा
"दीदी, मेरे पति अभी जब मुझे गाँव लेने गये तो मैं बहुत ख़ुश थी पर मुझे तो यहाँ आकर पता चला कि इनकी काम वाली बाई एक महीने की छुट्टी पर गई हैइसलिए वो मुझे यहाँ लाये हैं, और एक गहरी स्वांस लेते हुएफ़िर उसने कहा कि -" कामवाली बाई के वापस आते ही मैं वापस गाँव चली जाऊँगी ! "
जाने क्यूँ उसकी बातें सुनते हुए मुझे ऐसा लगा जैसे वो अपना दर्द व्यक्त करने के लिए आतुर हो रही थी शायद इसीलिए वो अपनी बातों को विराम न देते हुए अपनी बातों का क्रम अनवरत आगे बढ़ाते हुए बोली -" जानती हैं दीदी, मेरे माँ बाप बहुत ग़रीब हैं मैं तीन बहनों में सबसे बड़ी हूँ l
शादी के बाद मैं पहली बार जैसे ही मायके गई मैंने माँ का हाथ थामा ही था कि माँ ने तुरंत मुझसे कहा - "बेटा,तेरी बहनों का भविष्य अब तेरे हाथो है और अब निर्णय तेरा है कि तू हमें क्या देना चाहती है ! !मुझे ऐसा लगा जैसे माँ को मेरे पति के बारे में सारी हकीक़त पहले से ही मालूम थी !
ये कहते हुए शशि की आँखों की कोरों से आँसू लुढ़क गये जिन्हें पोछते हुए वो बोली -" दीदी, आजतक मैंने किसी से भी अपने दिल की बात नहीं की थी, आपसे कहकर मेरे दिल का बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो सकता है दीदी ,ईश्वर ने मेरे भाग्य में यही लिखा हो ! ठीक है मैं चलती हूँ कहकर उसने मेरे हाथो को थामते हुए खिसियाकर मुस्कुराया और अपने फ्लैट की तरफ जाने लगी उसे जाते हुए देख मुझे ऐसा लगा जैसे कोई ज़िन्दा लाश चली जा रही है जिसके जिस्म से सारी संवेदनाओं को एक ने अपना बोझ उतारने के लिए नोच लिया तो दूसरे ने अपनी ज़रूरतों के लिए किसी वस्तु की तरह यहाँ से वहाँ उसकी जगहें बदल दी बोटी बोटी में बाँट दिया गया ये शरीर आख़िर किसके लिए जीवित है ?
इंसान की इंसान से ये किस तरह की दुश्मनी निकाली गयी संज्ञा शून्य सी मैं अनगिनत सवालों से घिरी हुई मैं घर लौट आयी, आज एक ऐसी शशि से मिलकर जिसे धकेल दिया गया है अमावस की काली अँधेरी रात में जिसकी सुहानी सुबह होने का दावा तो असंभव जान पड़ता है !