जीवन संघर्ष
जीवन संघर्ष


आजकल परेश(काल्पनिक नाम) काफी खुश रहता था और हों भी क्युं ना इतने दिनों बाद घर में खुशियां जो आने वाली थी, जी हां परेश पापा बनने वाला था। उसके सपनों में अभी से पंख लग रहे थे, वो रोज अपने सपने को नई-नई उड़ान देने में व्यस्त रहता था। और अंततः वो दिन भी आ ही गया, जब परेश हर रोज की तरह सुबह-सुबह तैयार होकर दफ्तर के लिए निकला, अभी आफिस पहुंचा ही था कि हास्पिटल से फोन आ गया, बात खत्म होते ही परेश आनन- फानन में वहां से निकल पड़ा। दफ्तर से हास्पिटल पहुंचने तक के क्रम में परेश को उसके अलावा कोई नहीं दिख रहा था, उसके पांव आसमान को छू रहे थे, अंदर ही अंदर खुशियाँ उसे गुदगुदा रही थी और परेश हल्कि सी मुस्कान लिए अपने सपनों को साकार होते देख रहा था, कि तभी आवाज आई साहब अस्पताल आ गया, इतना सुनते ही परेश अपने भावना को विराम देकर आटो वाले को पैसा दिया और तेजी से हास्पिटल के तरफ अपना कदम बढ़ाने लगा।
अंदर पहुंचते ही उसकी नज़र अपनी पत्नी को ढूंढने लगी, उसने पास आते नर्स से कुछ बातें की और दौड़ता हुआ आपरेशन वार्ड के करीब पहुंच गया, परेश की सांसें तेज थी एक तरफ अपने बच्चे के आने के खुशी थी वहीं दूसरी ओर अपनी पत्नी को लेकर वो परेशान हो रहा था। आते- जाते नर्स को वो उम्मीद भरी नजर से निहार रहा था कि तभी कुछ वक्त बाद वो घड़ी भी आ गई , जब डाक्टर ने परेश को बाहर आकर उसके बच्चे के लिए मुबारक बाद दिया। फिर क्या था परेश दौड़कर अदंर गया, उसकी आंखें नम थी और होंठों पर खुशी की मुस्कराहट।
उसने अपनी पत्नी और बच्ची को गले से लगा लिया। अब परेश अपनी जिंदगी में अपनी बेटी जिसे वो "परी"के नाम से बुलाता था के संग खुशी-खुशी बिताने लगा मगर कुछ महीने बाद ही परेश को ऐसा लगा जैसे कि परी मे
ं कुछ शारीरिक दोष है सो उसने एक अच्छे डाक्टर से सम्पर्क किया और परी को ले गया वहां डाक्टर ने परी को देखा और जांच पड़ताल के बाद कहा कि ये विकलांग है और इसकी विकलांगता ठीक नहीं हो पाएगी, इतना सुनते ही परेश सन्न सा हो गया। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या ऐसा करें कि सब ठीक हो जाए, पर होनी को कोई टाल नहीं सकता और परेश को ये सच्चाई स्वीकारना ही होगा। खैर , परेश निराशा के चादर में लिपटा हुआ अपने घर पहुंचा और अपनी पत्नी को सारी बात बताई उसकी पत्नी भी सुन कर हैरान हो गई। दोनों रात भर अपनी बेटी के उज्जवल भविष्य के लिए सोचते रह गए। दूसरे सुबह सूरज की पहली किरण जब परेश के घर में झांक रही थी तो उसे ऐसा लगा मानो कोई साकारात्मक ऊर्जा जो सिर्फ आज उसके लिए ईश्वर ने भेजा है जो उस किरण से आ रही है,
उसने अपनी पत्नी को आवाज लगाया और कहा कि तुम चिंता मत करो मैं परी को इतना काबिल बना दूंगा कि उसकी कमजोरी उसकी ताकत बन जाएगी। धीरे-धीरेे वक्त बिताया गया और परी भी वक्त के साथ बड़ी होती गई। परेश ने अपनी बेटी को हर तरह से काबिल बना दिया था जो लोग कल तक उसे देख कर दया कि भावना दिखाते थे वो आज परी को देख आश्चर्य करते। परी आज प्रोफेसर के पद पर नियुक्त है। उसने अपने कदम आगे बढ़ाने के लिए भले ही बैसाखी या व्हील चेयर इस्तमाल किया परन्तु कदम को आगे बढ़ाने का हौसला उसके पापा ने दिया। यकीनन बाधा तो कदम कदम पर था पर परेश के हौसले ने उन बाधा को भी तुच्छ सा बना दिया। शरीर से तो बहुत लोग विकलांग हो जाते हैं परन्तु याद रखने वाली बात ये है कि हमें कभी भी मन से विकलांग नही बनना है। आपके जीवन में जितना संघर्ष होगा यकिन मानिये आप उतने ही परिपक्व बनेंगे ठीक वैसे ही जैसे सोना आग में पकने से निखरता है।