मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

Abstract

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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

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जीवन बीमा

जीवन बीमा

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सामने पति की लाश पड़ी थी और पूनम चुपचाप गुमसुम सी निहारे जा रही थी। उसके आंसू न जाने कौन पी गया...। अभी उसके हाथों पर लगी मेहंदी का रंग भी फीका न पड़ा, कि एक भयानक रोड एक्सीडेंट में रमन को पूनम से हमेशा- हमेशा के लिए जुदा कर दिया।

कुछ दिन बाद विधवा पूनम को उसके ससुराल वाले तरह-तरह के ताने मारने लगे। उपेक्षाओं की शिकार पूनम हृदय पर पत्थर रखकर सब सहने लगी।

एक दिन पूनम के माता-पिता ने उसके ससुराल वालों से पूनम के छोटे देवर के साथ विवाह की बात चलाई ही थी, कि पूनम की सास ने हंगामा खड़ा कर दिया -

‍‌‍‍ ‘अरे इस डायन ने शादी के तीन दिन बाद ही मेरा बेटा खा लिया और अब छोटे बेटे की भी बलि चढ़वा दूं... हम तो इस अशुभ लुगाई को किसी भी कीमत पर घर में न रखेंगे।’

पूनम के माता -पिता ने लाख हाथ -पैर जोड़े पर बात न बन सकी।

एक दिन अचानक से पूनम के ससुराल वालों का व्यवहार बदलने लगा। पता चला कि रमन ने एक बीमा पॉलिसी खरीद रखी थी। उसी जीवन बीमा की राशि बारह लाख पूनम को मिलने वाले थे...।


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