मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

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मां पीतांबरा पीठ दतिया दर्शन

मां पीतांबरा पीठ दतिया दर्शन

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पिछले कुछ महीनों से जीवन में अशांति ने आ घेरा है । मैं शांति प्राप्ति के लिए अक्सर धार्मिक साहित्य का अध्ययन तो हमेशा से ही करता रहा हूं और आज भी करता हूं । मैंने सनातन- वैदिक साहित्य के अलावा अन्य धर्मों के साहित्य का भी खूब अध्ययन किया है, इसलिए मैं इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं मानता । मैं शुद्ध -सरल, प्रेमपूर्ण शान्ति प्रिय जीवन जीने की हमेशा कोशिश करता हूं । परंतु कभी-कभी ऐसा समय आ जाता है, जब घोर अशांति मुझे आ घेरती है । पिछले काफी दिनों से आस -पड़ोस के विधर्मियों ने बहुत परेशान किया । इस बीच मुझे अपनी शांति, प्रेम, भाईचारे को खूंटी पर टांगने के लिए मजबूर होना पड़ा । विधर्मियों को उन्हीं की भाषा में समझाना पड़ा । उक्त घटनाक्रम के कारण मन कुछ -कुछ अशांत था, इसलिए एक धार्मिक यात्रा की योजना बनाई ।


मैं सपत्नीक 24 अगस्त 2023 को आगरा छावनी से दोपहर को वीरांगना लक्ष्मीबाई झांसी मेमू एक्सप्रेस से अपनी धार्मिक यात्रा के लिए मध्य प्रदेश के दतिया शहर के सफर पर निकल पड़ा । रेलगाड़ी में भीड़भाड़ कम ही थी, इसलिए सफर आसान और आनंदमय हो गया था । प्रकृति के सुंदर नजारों का लुफ्त उठाते हुए हमारी यात्रा हो रही थी । करीब 8 बजे हम दतिया शहर पहुंच गये । अंधेरा हो चुका था । हमने स्टेशन से बाहर निकलकर ऑटो की तलाश की, एक ऑटो वाले भाई साहब ने जानकारी दी कि 5 मिनट की दूरी पर आपको रात्रि विश्राम के लिए होटल या धर्मशाला मिल जायेगी । हम पैदल ही चल पड़े... स्टेशन रोड पर श्री गोविंद धर्मशाला दिखी। मैं बात करने अंदर चला गया और बात बन गई । कमरा संख्या 11 खाली था और अंतिम कमरा बचा था । सुबह 10 बजे तक हम कमरे के मालिक बन गये । हाथ,पैर, मुंह धोकर हम निकल पड़े भोजन की तलाश में । ठीक धर्मशाला के सामने एक शुद्ध शाकाहारी ढाबे पर भोजन किया । और वापिस अपने कमरे में आ गये । सुबह 5 बजे नींद से जाग गए । दैनिक क्रियाओं से फ्री होकर हम तैयार हो गये मां पीतांबरा के सुंदर दर्शन करने के लिए । सुबह 7 बजे हमने धर्मशाला छोड़ दी और एक ई रिक्शा पकड़कर मॉं पीतांबरा के श्रीचरणों की ओर निकल पड़े ।


कुछ ही समय में मां के धाम हम पहुंच गये, भीड़भाड़ कम थी । गिने-चुने भक्त ही नजर आ रहे थे । प्रसाद व पूजा सामग्री लेकर हम पंक्ति में लग गये। पीले परिधान में मां पीतांबरा के दर्शन करके आत्मा को एक असीम शांति प्राप्त हुई । धाम के अंदर हम काफी समय तक घूमते रहे । धाम की सुंदरता व भव्यता को देखकर मन गदगद हो गया । श्री पीतांबरा पीठ का इतिहास प्राचीन है । मां धूमावती की सुंदर छवि भक्तों का हृदय प्रफुल्लित कर देती है । पौराणिक कथाओं व मान्यताओं के अनुसार इस पीठ में अधिकतर राजनीति से जुड़े लोग आते हैं । वैसे सामान्य भक्त भी अनगिनत आते हैं । यह पीठ एक ध्यान स्थान (तपस्थली) के तौर पर अधिक प्रचलित है । यहां स्थित श्री वनखंडेश्वर शिवलिंग को महाभारत काल के समकालीन माना जाता है। पीतांबरा पीठ की स्थापना एक सिद्ध संत स्वामी महाराज जी ने 1935 ई. में दतिया के राजा शत्रु जीत सिंह बुंदेला के सहयोग से की थी । माना जाता है कि कभी पीठ के स्थान पर शमशान हुआ करता था । पीठ का राष्ट्र भक्ति व राष्ट्र सेवा से जुड़े कई किस्से प्रचलित हैं । श्री मां पीतांबरा जी को पीला रंग बहुत पसंद है । राजसत्ता सुख प्राप्ति के लिए भक्तों का हमेशा तांता लगा रहता है ।


श्री पीतांबरा माई के दर्शन करके हम निकल पड़े बस स्टैंड की तरफ । वहां से हमने श्री बालाजी धाम उनाव के लिए बस पकड़ ली । दतिया के ग्रामीणक्षेत्र के दर्शन करते हुए हम सफर का आनंद ले रहे थे । बरसात का मौसम होने के कारण चहुंओर हरियाली ही हरियाली थी । धान के खेत अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे । ग्रामीण जीवन के दर्शन करते हुए हम कब उनाव पहुंच गये पता ही नहीं चला । श्री बालाजी की पूजा अर्चना की और धाम के दर्शन किये । यहां की मान्यता है कि यहां आने से हर तरह का चर्म रोग ठीक हो जाता है । श्री बालाजी धाम उनाव का इतिहास इस प्रकार है - दतिया शहर से 17 किमी दूर स्थित है । यह एक बहुत पुराना मंदिर है। इसे उनाव बालाजी सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है । यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं ।यह धाम 400 वर्ष पुराने इतिहास के लिए जाना जाता है । कहा जाता है कि मंदिर प्रागैतिहासिक काल का है । पहुंज नदी के किनारे पर आकर्षक और सुरम्य पहाड़ियों में स्थित इस सूर्य मंदिर पर सूर्योदय की पहली किरण सीधे मंदिर के गर्भागृह में स्थित मूर्ति पर पड़ती है । यहां आषाढ़ शुक्ल एकादशी को रथ यात्रा का भव्य आयोजन किया जाता है । प्रत्येक रविवार को मेला भी लगता है ।


 दर्शन करके हम भोजन की तलाश करते हुए उनाव शहर की गलियों में आ गये । एक हलवाई की दुकान पर नाश्ता किया और चढ़ गए बस में, 1 घंटे बाद हम दतिया बस स्टैंड पर थे । वहां से ऑटो रिक्शा में बैठकर सीधे पहुंच गए रेलवे स्टेशन । दोपहर को आगरा की ट्रेन पकड़ी और भीड़भाड़ का लुफ्त उठाते हुए हम शाम को अपने गृह जनपद आगरा के आगरा कैंट पर पहुंच गये। हमारी यह धार्मिक यात्रा पूर्णतः सफल रही। इस यात्रा से हृदय को असीम शांति की प्राप्ति हुई ।




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