मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

Others

4  

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

Others

झीलों की नगरी उदयपुर

झीलों की नगरी उदयपुर

3 mins
266



राजस्थान राज्य का जिला उदयपुर एक बहुत ही खूबसूरत शहर है । यह शहर एक प्रमुख पर्यटन स्थल है । इसकी संस्कृति व इतिहास बेमिसाल है । यहां की भाषा हिंदी व मेवाड़ी है । उदयपुर का प्रारंभिक इतिहास सिसोदिया राजवंश से जुड़ा हुआ है । उदयपुर को झीलों के शहर के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि सुंदर झीलों से घिरा हुआ है ।


पिछोला झील ऐतिहासिक है । सिटी पैलेस प्रसिद्ध व शानदार है । इसके साथ ही जग निवास द्वीप, जग मंदिर, शिल्प ग्राम, सज्जनगढ़, फतेहसागर, मोती मगरी, बाहुबली हिल्स, एकलिंग जी मंदिर, सहेलियों की बाड़ी आदि प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल हैं ।


उदयपुर को महाराज उदय सिंह ने 1559 ईस्वी में स्थापित किया था । इसे पूर्व का वेनिस और भारत का दूसरा कश्मीर माना जाता है । खूबसूरत वादियों से घिरा यह शहर सूर्योदय का शहर कहा जाता है । 


उदयपुर शहर की यात्रा का सौभाग्य मुझे 8 सितंबर 2023 को मिला । उदयपुर शहर की मेरी यह पहली यात्रा थी और इस यात्रा का श्रेय जाता है डॉ. नरेश कुमार सिहाग एडवोकेट व डॉ. विकास शर्मा जी को । आगरा छावनी से शाम को मेरी यात्रा प्रारंभ हुई । भारतीय रेल की रेलमपेल व्यवस्था का आनंद लेते हुए सुबह सूर्य भगवान के प्रकट होने से ठीक पहले दिनांक 9 सितंबर को मैं उदयपुर सिटी रेलवे स्टेशन पर अपने कदम रख चुका था । ऑटो रिक्शा व सिटी बस द्वारा अपने गंतव्य तक पहुंच गया । जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के द्वार पर डॉ. नरेश जी मुझे मेरा इंतजार करते हुए मिले । उनके साथ विश्राम स्थल पहुंचा। दैनिक क्रियाकर्मों से फ्री हुआ । कुछ विश्राम किया तब तक डॉ. सिहाग जी व डॉ. शर्मा जी नहाधोकर तैयार हो गए । शर्मा जी कार्यक्रम की रूपरेखा बनाने में व्यस्त थे तब तक मैं व डॉ. सिहाग जी घूमने बाहर निकल गये। हमने स्वादिष्ट पोहा का लुफ्त उठाया । घूमघाम कर पुनः अपने कमरे में आ गये । कुछ समय बाद हम तीनों महाशय निकल पड़े ऑनलाइन व ऑफलाइन सेमिनार आयोजन स्थल की तरफ । शर्मा जी ने कार्यक्रम की तैयारी के संबंध में जानकारी जुटाई, सब कुछ ठीक था । मैं व डॉ. सिहाग जी विद्यापीठ के हरे भरे व सुंदर परिसर में घूमने निकल गये । ऊंचे -ऊंचे पहाड़ों के बीच स्थित राजस्थान विद्यापीठ काफी खूबसूरत है । 


सारा दिन कार्यक्रम चलता रहा । शाम को खाना खाकर मैं व डॉ . सिहाग जी निकल गये घूमने । रास्ते में ठंडी आइस्क्रीम का लुफ्त उठाया । डॉ. शर्मा जी ने फोन किया और हम अपने रैन-बसेरे की तरफ लौट आये । रात को नींद बहुत गहरी आई । सुबह कब हो गई पता ही नहीं चला । हम फटाफट तैयार हुए, नाश्ता किया और निकल पड़े विद्यापीठ के विशाल सभागार की ओर ... रंगारंग कार्यक्रम का शुभारंभ हो चुका था । सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने व अन्य प्रस्तुतियों ने दर्शकों को खूब बांधे रखा । शाम तक कार्यक्रम चलता रहा ।


रात को मुझे वापिस घर लौटना था । कमरे पर आये जाने की तैयारियां की । डॉ. रिखब जी की गाड़ी व मेरी एक ही थी, सो हम दोनों ने साथ-साथ निकलने का प्लान बनाया । डॉ. सिहाग व डॉ. शर्मा जी ने दूसरे दिन सुबह निकलने का प्लान बनाया । हमें वे विद्यापीठ के गेट तक छोड़ने आये । सड़कों पर भारी जाम था । ऑटो रिक्शा नहीं मिला, मैं व डॉ. रिखब जी कुछ दूर पैदल ही चले । कुछ देर बाद एक ऑटो रिक्शा मिल गया । रेलवे स्टेशन पर हम एक घंटा पहले पहुंच गये । डॉ. रिखब जी ने पानी वाले बताशों का आर्डर किया और हमने पांच तरह का अलग-अलग स्वाद चखा। डॉ. रिखब जी का सफर जयपुर तक था और मेरा आगरा तक । 11 सितंबर सुबह 10:00 बजे आगरा कैंट यानी कि अपने गृह जनपद में मेरे कदम पड़ चुके थे ।



Rate this content
Log in