कलेक्टर साहब का भाषण
कलेक्टर साहब का भाषण
जैसे ही कलेक्टर साहब का आदेश मिला। बुलडोजर भूं-भूं कर चलने लगी। देखते ही देखते पूरी आदिवासी बस्ती तहस-नहस हो गई। कुछ आदिवासी झुंड बनाकर शिकायत करने आगे बढ़े तो पुलिस ने सरकारी डंडों से उन्हें लहूलुहान कर दिया। दूर अधनंगे आदिवासी बच्चे व स्त्रियां हाथ जोड़े गिड़गिड़ा रहे थे। रहम की कहीं कोई गुंजाइश नहीं।
आदिवासी आंसुओं का कोई मूल्य नहीं... आदिवासी आंसुओं से जुड़ी खबर का मीडिया में कोई अता पता नहीं।
आदिवासी बस्ती के उजड़ने की घटना आई- गई हो गई। कुछ दिन बाद शहर में कार्यरत संस्था आदिवासी सेवा संघ ने अपने वार्षिक उत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम में उसी कलेक्टर को मुख्य अतिथि आमंत्रित किया, क्योंकि कलेक्टर साहब आदिवासी समुदाय से ही थे। उनके सम्मान में संस्था ने खूब चिल्ल पौं मचाई।
माइक पर घड़ियाली आंसू बहाते हुए कलेक्टर साहब बोल रहे थे, ‘मेरे प्यारे, मेरे अपने गरीब भाइयों -बहिनों मैं आपके हक- अधिकारों के लिए सरकार से हमेशा लड़ता रहूंगा। मैं आपकी खातिर अपनी जान भी दांव पर लगा दूंगा।’
कलेक्टर साहब का भाषण सुनकर पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।