ज़िदबाजी और हिंदुस्तान
ज़िदबाजी और हिंदुस्तान


एक समुद्री यात्री वास्कोडिगामा 20 मई 1498 को यूरोप से मसाले का व्यापार करने के लिए हिंदुस्तान के कालीकट बंदरगाह पर क्या पहुंचा कि 15 अगस्त 1947 को विश्व की सोने की चिड़िया के रूप में प्रसिद्ध हिंदुस्तान भारत-पाकिस्तान बन गए।
सच मानिए ब्रितानी हुकूमत यदि जुल्म की इंतेहा पार ना करती तो हिंदुस्तान बुलंदियों के आकाश को कब का फतह कर लेता। जब भोग विलासिता में डूबे राजा और बादशाहों के जमीर पर ब्रिटिश हंटर के जख्म नासूर बनने लगे, तब हिंदुस्तानी माटी में आजादी के परवानों की फसल लहराने लगी। कोई खेतों में बंदूक की गोली बोने लगा तो कोई अपने खून से ही फसल को सींचने लगा। किसी ने तन से कपड़े त्याग दिए तो किसी ने सिर पर कफन बांध लिए। अहिंसा और हिंसा के जबरदस्त तालमेल के चलते हिंदुस्तानी हवाओं में आजादी की ऐसी गूंज उठी कि अंग्रेजों ने भारत छोड़ना ही उचित समझा। लेकिन दुर्भाग्य बस इतना कि ज़िदबाजी के चलते वो मुल्क हिंदुस्तान जो दुनिया में सोने की चिड़िया के नाम से जाना जाता था, जो कभी एकता के सूत्र में तरीके से बंधा ही नहीं और वो भारत-पाकिस्तान हो गया। बेमतलब की जिदबाजी में धूमिल होती दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सांस्कृतिक विरासत के बीच सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी नए दौर में लिखेंगे हम, मिलकर नई कहानी।
बुलंद भारत की बुनियाद रखने वाले प्रथम प्रधानमंत्री पं। जवाहरलाल नेहरू और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रबंधन और प्रस्तुतीकरण के बीच भविष्य की वैश्विक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है भारत। बाकी तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच विचारकों और आलोचकों का कहना ही क्या ?