Mridula Mishra

Drama

5.0  

Mridula Mishra

Drama

झरोखा

झरोखा

4 mins
512


झमाझम पड़ती हुई बूंदों ने कहर बरपा रखा था। सब अपने-अपने घरों में कैद होकर रह गये थे। बिंदिया भी अपने बालकोनी में बैठी बूंदों को निहार रही थी । उसे भी लग रहा था कि वह बुक्का फाड़कर रो पड़े, बिल्कुल इस आसमानी आफ़त की तरह। शायद प्रकृति के पास भी कोई ऐसा ही गम हो जिसे बारिश के रुप में निकाल कर वह हल्की होना चाह रही हो।

इसी उधेड़बुन में वह बचपन की ओर दौड़ पड़ी।

वह एक संभ्रांत परिवार से आती थी। जब से होश संभाला था तब से घर की छोटी-छोटी ज़िम्मेदारियों को निभाने में उसे बहुत अच्छा लगता और जब माँ-बाबूजी उसकी प्रशंसा करते तो गर्व की अनुभूति होती। धीरे-धीरे स्कूल से काॅलेज, काॅलेज से यूनिवर्सिटी वह आगे बढ़ती गई घर में हमेशा साहित्यिक माहौल था उसके पिताजी एक नामी कवि थे और माँ भी बिदुषी महिला थीं। बिंदिया बचपन में ही एक से एक नामचीन कवियों से मिल चुकी थी। धीरे-धीरे उसे भी साहित्य से लगाव होता गया।

इधर उसके ख्वाबों में एक और चेहरा दस्तक देने लगा था। वह गाहे-बगाहे उसके बारे में सोचने लगी थी। शायद वह अपने बारे में सोचने लगी थी। स्त्री थी घर बसाने की अदम्य इच्छा तो उसमें भी थी पर, माँ-पिता की ढ़लती उम्र और उनकी बिमारियों ने उसे आगे बढ़ने से रोक रखा। भाई-बहनों ने अपनी-अपनी विवसता जताकर‌ कन्नी काट लिया । अब उसे ही माता-पिता की देखभाल करनी थी। उसने बाखूबी किया। बाद में माता-पिता भी उसे छोड़कर स्वर्गलोक को चले गये लेकिन एक छोटी बहन को छोड़कर। वो बहन बच्चों की तरह थी शरीर से भी और मन से भी और बिंदिया ने अपनी बच्ची की तरह उस बहन को अपने ममता की छाया में समेट लिया।

अब उसी के लिए जीना और उसी के लिए मरना उसकी रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल हो गया।

लेकिन अब वह तन-मन से थकने लगी थी। उसे गुस्सा भी बहुत आ जाता था। कभी-कभी तो उसे लगता सबने उसे ठगा है। उसकी जिम्मेदारी उठाने की भावना को जबर्दस्त तरीके से भूनाया है। अगर परिवार बाले जबरन उसकी शादी कर देते तो थोड़ा ना-नुकुर करके वह समझौता कर लेती।

कभी-कभी उसे यह भी लगता कि, अगर उसका प्रेमी मजबूत होता तो उसके साथ शादी कर लेता और वह भी उसके साथ सुखी रहती। इस विकट अकेलेपन से न जुझती। एक सुख-दुख का साथी उसके पास होता जिससे वह अपना सबकुछ बांटती।

ऐसा नहीं कि उसने अपना मनपसंद काम नहीं किया।

उसने एक पत्रकार की अद्भुत मिसाल पेश की। जिस विषय को सब बोलना भी पसंद नहीं करते थे उसे उसने एक पत्रिका का रुप दिया "सहेली"। वेश्याओं की जिंदगी को नजदीक से महसूस किया उनकी तक़लिफों को समझा। अपने काम की बजह से वह बहुत हद तक अपनी तकलिफ़ कम कर चुकी थी पर, मन का खाली कोना खाली ही रहा। कभी-कभी तो बहुत विकट परिस्थिति सामने आ जाती थी। उसे वेबजह गलत ठहराया जाता था।  शायद यही कारण रहा होगा उसके प्रेमी के पीछे हटने का। लेकिन,उसके स्वभाव में हार मानना कहाँ लिखा था।

उसके जुझारू मन ने हर अड़चन-बाधाओं को परे कर अठारह-बीस साल तक पत्रिका को अपने दम पर प्रकाशित करती रही। अब वह थकने लगी थी,बहन भी अक्सर बीमार रहती अतः उसने बहन को प्राथमिकता देना जरूरी समझा और अपना मनपसंद काम भी छोड़ दिया।

अचानक उसे एहसास हुआ कि पानी की बोछारों ने उसके शरीर को भींगा कर शीतल किया और बहते हुए आँसूओं ने मन की बोझिलता को कम किया।  उसे वो दिन याद आया जब वह एक दिन काॅलेज से आते समय बुरी तरह भीग गई थी और कोई बड़े मुग्ध भाव से उसे देखरहा था बड़ी देर तक जब उसे कोई सवारी घर जाने के लिए नहीं मिला तो वहीअपने मोटर साइकिल से उसे घर छोड़ आया और उसके उतरने के बाद कहां-बरसात के मौसम में छतरी लेकर निकलो ,दुनिया बुरी है। और जिस प्यार से उसे देखा वह शर्म से लाल हो गई थी। अचानक आइने पर नज़र पड़ी वह अब भी उसे यादकर के लाल थी। जिंदगी के यही गिने-चुने पल उसके अपने थे।

तभी छोटी बहन की चीख ने उसे वर्तमान में ला पटका और वह बहन से लाड़-लडा़ने चल दी। अपनी सोच को अपनी ज़ेहन से झटका और इंटरभ्यू के लिए कल कोई आने बाला था उसकी तैयारी में व्यस्त हो गईं। उन्हें अपार प्रसन्नता तब होती जब लोग गुगल आदि से सर्च कर उनसे मिलने आते। उनकी जिंदगी की यही सच्चाई थी कबतक अपनी जिंदगी को लेकर बिसुरतीं।


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