झिझिया, टेशू का प्यार
झिझिया, टेशू का प्यार
बुआ पापा बताते है कि आप सभी लोग मिलकर पहले बहुत झिझिया, टेशू खेलते थे। तो क्या आप इस बार भी खेलेंगी ?
झिझिया और टेशू विवाह और पूजा बुंदेलखण्ड में किया जाने वाला एक सांस्कृतिक कार्यक्रम है। जिसे प्रिया की दस साल की भतीजी निया अपनी बुआ से खेलने के लिये पूछ रही थी।
पर प्रिया का तो जैसे कुछ भी करने का मन ही नहीं था। मन होता भी कैसे आखिर उसकी जिन्दगी में बचा ही क्या था।
इतनी छोटी सी उम्र में क्या कुछ नहीं देख लिया था उसने। पांच साल पहले कितनी खुश थी वो। पढ़ाई करने के तुरन्त बाद ही 'टीईटी' पास कर वो टीचर बन गई थी। छोटे - छोटे बच्चों के साथ प्रिया भी छोटी बच्ची बन जाती।
अभी वो अपनी जिन्दगी के खूबसूरत पड़ाव को जी ही रही थी कि उसके पापा ने उसके लिये एक अफसर लड़का देख लिया। प्रिया का मन नहीं था अभी शादी करने का वो तो अभी जिन्दगी के मजे लेना चाहती थी। पर पापा और भाई ने समझा बुझा कर उसे मना ही लिया।
कुछ ही दिनों में रोहित और उसके परिवार वालों से मिलकर रिश्ता पक्का हो गया। और चट मंगनी पट ब्याह हो प्रिया रोहित की दुल्हन बन अपनी ससुराल पहुँच गई।
नौकरी और ससुराल दोनों को संभालने में प्रिया को थोड़ी परेशानी तो हुई। पर फिर भी उसने सब संभाल लिया।
नहीं संभाल सकी तो अपने पति को। पहले दिन से ही रोहित उसके तरफ से उखड़े - उखड़े से रहते थे। उसने जानने की बहुत कोशिश की कि क्या परेशानी है ? पर हर बार रोहित प्रिया को बहला देता।
दो साल तक तो रोहित यूँ ही अनमने मन से आते जाते रहे। पर दो साल बाद ऐसे गये कि रोहित ने फिर लौट कर प्रिया की खैर खबर न ली। प्रिया रोहित के इंतजार में आँखें बिछाये बैठी रही।
फिर पता चला कि रोहित पहले से ही किसी और से प्यार करता था। उसने ये बात अपने घरवालों से भी छुपाई थी । प्रिया के लिये शादी जैसे बंधन से यूँ छलावे की उम्मीद न थी। वो अन्दर से टूट गई।
फिर भी वो ससुराल में रहकर ही रोहित का इंतजार करती रही बस इसी उम्मीद में कि शायद रोहित वापिस आ जाये। पर वो नहीं आया थक हार कर प्रिया के सास, ससुर ने अपने बेटे को अपनी जायदाद से बेदखल कर उससे सारे रिश्ते तोड़ लिये। और प्रिया को ही अपना वारिस बना दिया।
पर इस सब में प्रिया कहीं खत्म सी हो गई थी। वो जिंदा तो थी पर भावनाएं जैसे मर गई थी। उसकी ऐसी हालत देखकर ही उसके ससुर जी ने उसे कुछ महीनों के लिये मायके भेज दिया था। जहाँ उसकी भतीजी और परिवार के सभी लोग उसे खुश रखने की पूरी कोशिश कर रहे है।
कुछ देर तक जब प्रिया ने निया को कोई जबाव नहीं दिया तो प्रिया के भाई ने उसके सर पर हाथ रखते हुये कहा..... "खेल लो न प्रिया। इससे तुम्हें तुम्हारा बचपन याद आ जायेगा और निया को भी पता चल जायेगा कि झिझिया टेशू क्या होता है ?? हमारे बड़े होने के बाद तो जैसे बच्चों ने इसे खेलना ही छोड़ दिया।
तुम्हें याद है....तुम्हारा और कबीर का जन्मदिन शरद पूर्णिमा के दिन ही होता था। उसी दिन झिझिया टेशू की शादी भी होती है। वो तुम्हें कितना चिड़ाता था। ये बोल कर कि .....
"प्रिया मेरी झिझिया और मैं उसका टेशू" और उसकी ये बात सुन मैं उसके पीछे मारने के लिये दौड़ता था। पर कितनी भी लड़ाई हो जाये तुम्हारी झिझिया की शादी वो अपने टेशू के साथ ही करवाता था। "
कबीर का नाम सुनकर वर्षों बाद प्रिया के चेहरे पर फूलों जैसी मुस्कान खिल गई। आवाज में जैसे एक खनक सी आ गई। और उसी रॉ में हँसते हुये बोली......
"वो कौआ (कबीर) हमेशा मेरे पीछे - पीछे घूमता रहता। यहाँ तक कि कभी अगर आप उसे खेलने के लिये अपनी टीम में आने को बोलते, तो वो हमेशा मना करके मेरी टीम में आ जाता।
ये बोल कर कि " मैं तो हमेशा प्रिया के साथ ही रहूँगा" और इस बात पर आप विचारे की पिटाई कर देते। उस टाइम तो वो गुस्से में चला जाता। पर सुबह फिर आ जाता मेरे आगे पीछे काँव - काँव करने। "
बुआ और अपने पापा की बचपन की बातें सुनकर निया खुश हो रही थी। वहीं प्रिया के मम्मी पापा भी अपनी बेटी को मुस्कराते देख गीली हुई आँखों को पोंछते हुये उसकी मुस्कराहट यूँ ही बने रहने की प्रार्थना कर रहे थे।
बुआ की रजामंदी से निया ने अपनी सहेलियों को इकट्ठा करके दशहरे के दिन से शरद पूर्णिमा तक रोज झिझिया खेली जिसमें प्रिया ने निया को इस में गाये जाने वाले गानों से लेकर चौक पूरने तक की सारी बातें बताई अब झिझिया की शादी थी तो टेशू की बारात कौन लायगा इसपर विचार हो रहा था। तभी एक बच्चा प्रिया के हाथ में एक कार्ड पकड़ा गया।
जिसमें लिखा था............
"प्रिया तुम्हारी झिझिया को तो मेरा टेशू ही लेने आयेगा।
* तुम्हारा कौआ*
इतने दिनों बाद कबीर के सामने आने की बात सोच कर ही पता नहीं क्यों प्रिया के पेट में कुछ गोल गोल सा घूम गया। वो तुरन्त अपने भाई के पास गई और उस कार्ड के बारे में बताया। तो भाई ने मुस्कराते हुये कहा.....
" उसे मैंने ही बुलाया है। मैंने सोचा जब खेल ही रहे है तो साथ में पुरानी यादें भी ताजा कर लेते है।"
भाई की बात सुन प्रिया हूँ .... करके अपने कमरे में चली गई। मेरे और कबीर के बीच कभी कुछ नहीं रहा फिर क्यों मुझे उसके आने की खबर सुन इतनी बेचैनी हो रही है। इसी उहा पोही में सुबह हो गई।
सभी ने उसे जन्मदिन की बधाई दी। प्रिया को सब कुछ यूं लग रहा था जैसे शादी से पहले लगता था। आज पता नहीं क्यों भूल जाना चाहती थी कि वो शादी शुदा है।
शाम की तैयारी में दिन कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। शाम को झिझिया के साथ सारे बच्चे तैयार थे टेशू की बारात के स्वागत के लिये।
तभी सामने से टेशू के जगमगाते दियो के साथ कबीर आता दिखा। वही सांवला रूप, ऊँचा लंबा कद, और चेहरे पर वही चिर परचित सी मुस्कान। सामने प्रिया को देख भौहों को हिला कंधे उचका - उचका के डांस करने लगा।
प्रिया को उसके यूँ देखने से अन्दर एक हलचल सी हो गई। और वो वहाँ खड़े सभी लोगों के पीछे लगभग खुद को छुपाते हुये खड़ी हो गई।
तभी उसे अपने हाथ के पास किसी जानी पहचानी छुअन का एहसास हुआ। उसने तुरंत अपना हाथ हटाना चाहा। पर तब तक देर हो चुकी थी। उस हाथ की उंगलियों ने उसकी उंगलियों को गिरफ्त में लेकर कैंची की तरह फसा लिया था।
प्रिया ने चेहरा ऊपर किया तो सामने कबीर खड़ा मुस्करा रहा था। प्रिया ने अचकचा कर अपना हाथ छुड़ाना चाहा।
पर कबीर ने उसी हाथ को अपनी तरफ खींच कर प्रिया को और पास कर लिया। और उसके कानों के पास अपना मुँह लाकर बोला......
" एक बार छोड़ कर जा चुकी हो अब तुम्हें कभी अपने से दूर नहीं होने दूंगा। "
ये बोलते हुये कबीर का गला रुद्द सा गया। जिसे प्रिया ने बहुत शिद्दत से महसूस किया। पर फिर भी फुसफुसा कर बोली.....
" कबीर छोड़ो मुझे। यहाँ इतने लोग है किसी ने देख लिया तो बेकार ही बात का बतंगड़ बनेगा। "
इस बार कबीर वहीं सभी के बीच में अपने घुटनों पर बैठ गया और प्रिया का हाथ पकड़े - पकड़े ही बोला......
"प्रिया तेरे मेरे प्यार का तुझे छोड़ पूरे मोहल्ले को मालूम है। मैं तो तुझसे बचपन से प्यार करता था। मैं तुझे बताता तब तक तुम्हारी नौकरी लग गई पर मेरी नहीं लगी। जब तक मेरी नौकरी लगी तब तक तुम्हारी शादी हो गई।
सच में प्रिया तेरी शादी के बाद मुझे ऐसा लगा कि कुछ नहीं बचा जिंदगी में। अगर उस समय मुझे अपने माँ बाबा का ख्याल न होता तो कब का ये दुनिया छोड़ चुका होता।
पर भगवान ने हमें एक और मौका दिया है। तो इस बार अपने टेशू को मत छोड़ना। प्लीज मेरी अंधेरी जिन्दगी में झिझिया बनकर रोशनी भर दो। "
सभी की नजरे टेशू और झिझिया को छोड़कर प्रिया और कबीर को देखने लगे थे। इस सब में प्रिया अपने आपको बहुत असहज महसूस कर रही थी। तभी प्रिया के भाई ने पीछे से प्रिया के कन्धों को पकड़ कर कहा.....
" बोल दे प्रिया हाँ बोल दे। तुम दोनों के प्यार को मैंने बचपन में ही महसूस कर लिया था। इसीलिये इस कौए को हमेशा तुमसे दूर रखना चाहता था। पर आज मैं ही तुम दोनों को पास लाना चाहता हूँ।
कल बाबूजी और तुम्हारे ससुर जी तेरी दूसरी शादी की बात कर रहे थे। तभी मैंने सोच लिया था कि इस बार ऐसे लड़के से तेरी शादी करूँगा जो तुझे हमेशा खुश रखे। और इस कबीर से ज्यादा तुझे कोई प्यार नहीं कर सकता। जिसने तेरी वजह से अभी तक शादी नहीं की।
और झिझिया तो हमेशा टेशू की ही होती है। "
ये सुन प्रिया की आँखों से बस आँसू बहे जा रहे थे। उसने कबीर की उंगलियों में फंसी अपनी उंगलियों को और कस के फसाते हुये हाँ में सर हिला दिया।
जिसे देख चारों तरफ खुशी की लहर दौड़ गई। सभी ने तालियां बजाकर उनके फैसले का स्वागत किया।
तभी कबीर चिल्ला चिल्ला के गाने लगा.... " टेशू अगड़ करे, टेशू झगड़ करे, टेशू लैई के टरे "!
सभी लोगों के साथ प्रिया भी कबीर की इस बचकानी हरकत पर खिलखिला कर हंस पड़ी। जिससे शरद पूर्णिमा की वो रात अब और भी चमकीली हो गई थी। आखिर झिझिया टेशू का प्यार अब पवित्र बंधन में बंधने जो जा रहा था।

