झगड़ा
झगड़ा
पारिवारिक झगड़े देशों के झगड़ों से कम नहीं होते। इनमें भी कारण हो सकते है; सीमा-विवाद,जल-विवाद,आर्थिक प्रतिद्वंदीता और नफरत। कई बार ये झगड़े देशों के झगडों से अधिक उलझे होते हैं।
पुराने शहरों में या किन्हीं शहरो के पुराने हिस्सों में अब भी कुछ संयुक्त परिवार पाये जाते हैं। अधिकतर परिवार छोटे मोटे मनमुटाव के साथ भी प्रेमपूर्वक रहते हैं।
कुछ परिवार जो वास्तव में अब संयुक्त नहीं हैं लेकिन एक ही मकान में रहते हैं। उनमें लोग मकान में आवश्यकतानुसार सीमा बिभाजन करके अपने अपने हिस्से में रहते है
ऐसी ही एक बस्ती की एक गली में दुर्गाप्रसाद का एक दुमंजला मकान था। उनकी बाज़ार में हार्डवेयर की दुकान थी। दो बेटे थे रमेश और श्याम। दोनों की उम्र में 8 वर्षों का अंतर था ।
रमेश की शादी रूपा से 21 वें वर्ष में हुई थी। तब श्याम 13 वर्ष का किशोर था। रूपा ने थोड़े दिनों में अपने बात व्यवहार से परिवार के सभी सदस्यों का दिल जीत लिया था। श्याम के रूप में उसे छोटे भाई जैसा देवर मिल गया था। श्याम भी भाभी को बहुत मान देता था। बाज़ार हाट का छोटा मोटा काम रूपा उसीसे करवाती थी और वह खुशी खुशी करता था।
समय बड़ी तेजी से गुजरता है। देखते देखते वह समय भी आ गया जब श्याम घोड़ी पर चढ़कर बिन्दू को व्याह लाया। घर में सब खुश थे। रूपा भी बहुत खुश थी। उसके लाडले भ्रातृस्वरूप देवर की शादी हुई थी।
कुछ महीने हंसी खुशी में बीत गये। रूपा बिन्दूको अधिक काम नहीं करने देती थी। सोचती थी थोड़े दिन मौज मस्ती करले फिर घर के काम तो सभी को करने होते हैं।
एक दिन शाम को श्याम और बिन्दू अपने कमरे मैं कुछ बातचीत कर रहे थे। तभी रूपा की आवाज आयी, “लाला जरा इधर आना।”
रूपा श्याम को अधिकतर लाला कहकर संबोधित करती थी।
रूपा की आवाज सुनकर श्याम बिन्दू को वहीं बैठा छोड़कर रूपा के पास चला गया।
रूपा रसोईघर में थी। श्याम ने जाकर पूछा, “क्या बात है भाभी ?”
रूपा ने कहा, “दूध खत्म हो गया है। बाज़ार से एक लीटर दूध ले आओ।”
श्याम बाज़ार चला गया।
बिन्दू अपने कमरे के दरवाजे पर खड़ी कान लगा कर इन लोगों की बातचीत सुन रही थी।
श्याम के जाते ही वह रूपा के पास पहुंची और गुस्से से बोली, “ दीदी पहले आप इनसे जैसा भी व्यवहार करतीं रही हो सो मुझे पता नहीं। अब मैं आ गयी हूँ इस घर पर सिर्फ आपका राज नहीं चलेगा।”
रूपा चौंक गयी, उसने बिन्दू की ओर देखा और कहा, “ ये अचानक राज की बात कहाँ से आ गयी ?”
बिन्दू ने कहा, “आप जब चाहे मेरे पति पर हुकुम चलाती हो यह मुझे पसंद नहीं।”
रूपा ने बिन्दू को समझाने की कोशिश की, “ इसमें हुकुम चलाने जैसी क्या बात है ? घर का काम तो सभी करते हैं।”
बिन्दू ने जैसे न समझने की कसम खा रखी थी।
अगले कुछ दिनों में उसने इस बात को इतना बढ़ाया कि दुर्गाप्रसाद और उनकी पत्नी सरला ने अपने दुमंजले मकान को दो हिस्सों में बाँट दिया। ऊपर के हिस्से में बिन्दू और श्याम और नीचे के हिस्से में रूपा और रमेश रहने लगे।
नीचे के हिस्से में ही एक कमरा दुर्गाप्रसाद ने अपने और अपनी पत्नी के लिये रखा।
कुछ दिन शांति रही फिर एक दिन सुबह सुबह लोग अभी ठीक से जागे भी नहीं थे दोनों बहुओं में घमासान छिड़ गया। अड़ोस पड़ोस के लोग भी बाहर निकल आये ।
पता चला जल बंटबारे का विवाद था।पानी की मोटर खराब हो गयी थी। अतः पानी ऊपर नहीं चढ़ा था। रूपा ने आवाज देकर बिन्दू को सूचना दे दी थी किन्तु शायद वह सो रही थी या उसने सुना नहीं।
बिन्दू स्वभाव से उग्र और शक्की स्वभाव की थी। उसे लगा जेठानी ने उसे परेशान करने के लिये कुछ शरारत की है और उसका पारा चढ़ गया। वो ऊपर छज्जे पर आकर रूपा को कोसने लगी। जवाब देने के लिये रूपा को बाहर आना पड़ा। शोर सुनकर दुर्गाप्रसाद भी बाहर निकाल आये। उनके आते ही दोनों बहुएं अंदर चली गयीं। उनका इतना लिहाज तो अभी था।
सर्दियां आयीं तो सीमा विवाद शुरू हो गया। मकान की बनावट ऐसी थी कि नीचे के हिस्से में धूप कम आती थी। ऊपर छत पर धूप आती थी। वहाँ बिन्दू अपने परिवार के धुले हुए कपड़े सुखाती थी। रूपा भी छत पे कपड़े सुखाने और धूप लेने चली जाती थी।
बिन्दू को ये नागवार था वह ऊपर के हिस्से में अपना पूर्ण अधिकार चाहती थी। रूपा और बाकी सब मानते थे छत सबके के लिए है।
अंततोगत्वा दुर्गाप्रसाद ने छत के बीचों बीच पेंट से एक सीमा रेखा खिंचवा दी।
रूपा को सबसे अधिक दुख इस बात का था कि अपने छोटे भाई जैसे देवर से वो बात करने के लिये आज़ाद न थी।