जेडीजे जानी दुश्मन : दि जज
जेडीजे जानी दुश्मन : दि जज
"जो हार जाये वो अनाड़ी और जीत जाये वो खिलाड़ी, जज साहिब! आइंदा अच्छी तैयारी करके आना ऐसे किसी मुआमले में!"
"जज तैयारी नहीं करते, तैयार रहते हैं अमरीश! तैयार तो अब तुम्हें रहना है... समझे!" यह कहकर जज ठाकुर ज्वाला प्रसाद ने ड्राइवर को कार चलाने हेतु इशारा किया। लाख कोशिशें करने के बाद भी छात्रा बिंदिया के बाद गौरी के वीभत्स सामूहिक बलात्कार केस में भी उन्हें दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा था।
जैसे ही वे अपने घर पहुंचे थे, उनकी पत्नी योगिता ने बताया था कि ससुराल से लौटी उनकी बिटिया रेश्मा का भी ख़ून हो गया गैंगरेप के बाद। घबराकर ठाकुर जब उसके कमरे में गये थे, तो विवाह वाले लाल जोड़े में मायके लौटी बेटी का ख़ून से लथपथ शव ज़मीन पर फेंका हुआ सा पड़ा था। ठाकुर के मुख से एक चीख निकली ही थी कि उनके छोटे भाई लखन ने खिड़की से उनकी छाती पर दो गोलियां दाग़ दीं थीं और तड़पते ठाकुर को देखकर बोला था, "हमें जो दौलत वग़ैरह पसंद आयी, वह तुमसे मैंने पहले हाथ जोड़कर माँगी थी; और जब तुमसे नहीं मिली, तो हमने गोलियां दाग़ कर हासिल कर ली, नामर्द जज!"
"लखन, ये तुमने अच्छा नहीं किया! जो मर्द होते हैं वे इंसाफ़ के लिए अपनी छाती पर वार तो सह लेते हैं, लेकिन दूसरों बेकसूरों की पीठ पर चुपके से यूँ गोलियां नहीं दागते, यूँ वार नहीं करते मूरख!" ये अंतिम शब्द थे ठाकुर ज्वाला प्रसाद के। उसकी दौलत और ख़ूबसूरत बेटी पर एक बड़े उद्योगपति की बुरी नज़र थी और उनका भाई लखन उसके हाथों की कठपुतली था।
एक वो दिन था, जब जज साहब की कोठी में दो ख़ून हुए थे और आज का वो दिन था जब इलाहाबाद कोर्ट में चार ख़ून हुए। नवविवाहिता चम्पा गैंगरेप के एक नये केस में नगर के राजनीतिक रसूखदार तीन आरोपियों को निर्दोष साबित करने का फ़ैसला दिया ही जाने वाला था कि एक अजीबोगरीब भयावह घटनाक्रम में नवनियुक्त जज और तीनों आरोपियों का क़त्ल हो गया था सब की मौजूदगी में।
शाम के अख़बारों में मुख्य पृष्ठ पर यही समाचार था कि कोर्ट में फैसला होने के ठीक पहले कोर्ट के दरवाज़े अपने आप बंद हो गये, बिज़ली गुल हो गई और जज श्री अमर मेहरा राक्षसी अट्टहास करते हुए तीनों आरोपियों पर झपट पड़े और उनकी गर्दनों से उनका ख़ून पीने लगे। जब तक गार्ड्स और पुलिस कोई हरक़त करती, जज पुनः अपने वास्तविक रूप में आकर ज़मीन पर गिर पड़े। पहले तो उन्हें बेहोश समझा गया। लेकिन कुछ ही मिनटों में पुष्टि हो गई कि उनकी भी मौत हो चुकी थी। चश्मदीद गवाहों से चौंका देने वाले तथ्य प्रकाश में आये। बताया गया कि जज आरोपियों को बाइज़्ज़त बरी करने वाला फैसला लिखने ही वाले थे कि उनका शरीर राक्षसी आकार लेने लगा और पल भर में एक झपटा मारते हुए तीनों आरोपियों को एक ही ज़ोरदार हमले से ज़मीन पर गिराकर वे उनकी गर्दन से ख़ून पीने लगे। भयावह दृश्य देखकर कुछ लोग वहीं बेहोश हो गए। खिड़की-दरवाज़े बंद हो जाने और बिज़ली गुल हो जाने की वज़ह से न तो कोई भाग सका, न ही अलार्म बज सका।
घटनास्थल पर जज साहब की टेबल पर काग़ज़ में ख़ूनी स्याही से सिर्फ़ इतना लिखा था - "जेडीजे - जानी दुश्मन : दि जज"। आरंभिक सबूतों और जाँच से यह पता नहीं चल सका कि नये जज अमर मेहरा की मौत हार्ट अटैक से हुई या किसी अदृश्य राक्षसी हमले से। उनके शरीर पर न तो किसी तरह के ज़ख़्म के निशान मिले और न ही दम घुटने का कोई प्रमाण। सभी को पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने की प्रतीक्षा थी।
जज साहब के परिवारजनों से चर्चा करते समय उनके अंधविश्वासी पिता जी ने कहा, "सही फैसला करते समय राक्षसी प्रहार हो गया हमारे बेटे पर।"
उनकी माताजी ने भावुक होकर रोते हुए कहा, "धर्म का रिश्ता जन्म के रिश्ते से बड़ा होता है! लेकिन पता नहीं कौन सी शक्ति ने इतना अजीबोगरीब कांड करवा दिया।"
मीडिया पर नेताओं और बुद्धिजीवियों में बहस छिड़ गई कि इस कांड में सत्ताधारी राजनीतिक दल और किसी औद्योगिक घराने का हाथ है; साज़िश है। नयी विज्ञान युग की सदी में दानवों द्वारा फ़िल्मी अंदाज़ में इस तरह क़त्लेआम नहीं हो सकता। जिन लोगों को कोर्ट में जज साहब का शरीर 'राक्षसी' होता दिखा, वे दरअसल चम्पा के वीभत्स सामूहिक बलात्कार और मर्डर की ख़बरों के कारण अपना मानसिक संतुलन खो चुके होंगे।
इस घटना के बाद मुश्किल से दस-बारह दिन ही गुजरे होंगे कि स्वर्गीय जज ठाकुर ज्वाला प्रसाद की वफ़ादार नौकरानी नथुनिया ने खोजी पत्रकारों को यह बता कर हंगामा खड़ा कर दिया कि हर रात को ठाकुर ज्वाला प्रसाद अपनी छत से होते हुए अपने कमरे में जाते हैं और अपनी स्वर्गीय बेटी का एलबम देखकर अपनी कुछ फाइलें पढ़ते हैं। ठकुराइन ने भी यह बताया कि ठाकुर साहब के कमरे के बाहर नौकरानी नथुनिया एक-दो बार बेहोश पड़ी मिली। लगता है कि हमारा बंगला अब भूत बंगला हो गया है। हमारे रहने की दूसरी व्यवस्था शीघ्र की जाये।
शहर में बढ़ रहे गैंगरेप और मर्डर केसों के साथ भूतों के अंधविश्वासों के मामले मीडिया के लिए गर्म मसाले बन गये थे। अंधविश्वासी लोग और कर्मचारी कोर्ट में प्रवेश करने से डरने लगे थे। कुछ लोग ऐसा कहते भी पाये गये कि शायद यह कोई ईश्वरीय या देवीय चमत्कार है बलात्कार पर.नियंत्रण करने हेतु। लेकिन जाँच ऐजेंसियों और खोजी पत्रकारों की नींद हराम हो चुकी थी। मीडिया में परम्परा अनुसार डिबेट और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप चल रहे थे।
एक पत्रकार ने जब एक सीनियर कॉलेज स्टूडेंट से घटनाक्रम, शासन-प्रशासन, क़ानून और संविधान पर राय जाननी चाही तो फ़िल्मी डायलॉग मारते हुए उसने कहा, "जानी दुश्मन समझ लूं, ऐसी नहीं है सरकार; मगर मैंनें जो समझा था वैसी भी नहीं है अबकी सरकार!"
जब एक शिक्षित महिला से कहा गया कि गैंगरेप आरोपियों को बाइज़्ज़त बरी किये जाने से तो महिलाओं की ज़िन्दगी ख़तरे में ही रहेगी। "क्या कहना चाहेंगी आप?" यह पूछे जाने पर वह रोते हुए फ़िल्मी अंदाज़ में बोली, "ये सब कुछ सुनने के बाद मौत हमारे लिए ईनाम होगी और ज़िन्दगी सज़ा!... दिल दुख की आग में जलता है, तो आँसू बनकर बहने लगता है! ... और क्या कहूँ? समझ में नहीं आ रहा कि जब इंसान ही दानव बन चुके हैं, तो हॉरर मूवी वाले जानी दुश्मन हम महिलाओं को इंसाफ़ दिलाने आये हैं! वाह, जेडीजे जानी दुश्मन : दि जज!"
शहर में रैलियां और धरने आयोजित होने लगे।
"तेरे हाथों में पहना दें चूड़ियाँ!"
"चलो रे हथियार उठाओ जवान, महिला संगठन की रुत आई!"
"सारे रिश्ते-नाते-क़ानून छोड़ के आ गये, लो ये बलात्कारी बरी हो के आ गये!"
इस तरह की तख़्तियाँँ, बैनर और स्लोगन शहर में छाये हुए थे। नवनियुक्त टी.आई. शक्ति कपूर और ज़िलाधीश डॉ. अरुणा दुर्रानी ने छात्रों और नागरिकों को रहस्यमयी ताक़तों पर अँधविश्वास न करने की समझाइश देते हुए सीबीआई जाँच कराने और सुरक्षा व्यवस्थाओं पर सख़्ती बरतने का आश्वासन दिया।
लेकिन ठाकुर ज्वाला प्रसाद के वकील बेटे जीतेन्द्र का यकायक लापता हो जाना पुलिस और प्रशासन के लिए एक गुत्थी बन गया था। ठकुराइन ने अपने बयानों में बताया कि एक रात जीतेंद्र का चेहरा मुझे राक्षसों जैसा दिखा था और वह बड़बड़ा रहा था, "किसी दबाव मे आकर यदि बलात्कारियों को कोर्ट और क़ानून सज़ा न देगा, तो पिताजी आपकी तरह मैं उनका काम तमाम करता रहूंगा। हम चूड़ियाँ और कंगन पहने नहीं बैठे रहेंगे।" .........
(1979 की हिट हॉरर मूवी "जानी दुश्मन" के पात्रों, पात्र नामों और हिट संवादों से प्रेरित व कल्पना आधारित)