" जद्दोजहद "
" जद्दोजहद "
क्या बात है दीदी, बहुत कलम चल रही है आजकल राजनीति पर....फोन था निधि को उनके बहनोई का।
क्यों? अजय बाबू ...अपने विचारों को लिख देना कोई जुर्म है क्या? हमें भी अभिव्यक्ति की आज़ादी है, आपके नेता तो विदेश में जाकर अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं। देश की छवि को धूल-धूसरित किए पड़े हैं। टी वी वाले दिन रात बहस कराके टी आर पी काट रहें हैं। हम दो शब्द अपने मन की लिख दें तो बवाल मचायेंगे ?
हँसते हुई निधि ने कहा।
बवाल कहाँ मचा रहे हैं दीदी, लेकिन आप लेखन की जमात वाले खाली अपने कलम के बल-बूते हजार वोट इधर से उधर कर लेते हैं। जरा हमारे पापी पेट का भी ख्याल रखिए, हमारे पक्ष में कलम चलाइए, आखिर हैं तो हमारी ही।
ज़रूर, क्यों नही ? अजय बाबू, बढ़िया काम कर दिखाए,
यही कलम आपके लिए भी चलेगी। मन की लिख रहे हैं, किसी से हमारी दुश्मनी नहीं न है।
थोड़ी दया दृष्टि रखना दीदी, कुछ हमारे खिलाफ मत लिख दीजिएगा।
फोन रखकर निधि ने लंबी सांस ली। बहुत दिन से दिल-दिमाग में एक जद्दोजहद मची हुई थी। आज आखिर समाधान मिल गया। लिखना है देश हित में, लिखना है समाज हित में, सत्य अगर कड़वा भी है तो क्या?
जो जितना दलदल में फँसा होगा, वह उतना ही कोसेगा।
कहाँ लिखा है यह इतिहास, कि बिना लड़े सत्य विजयी हुआ है। चलने लगी दिल-दिमाग में यह पंक्तियाँ .....
कब आसान रही है डगर पनघट की,
उड़ते परिंदे के पर काटने तैयार है सैयाद !
तो क्या छोड़ दो हौसलों की उड़ान,
नहीं, खोलो खिड़की, सामने है आसमान !!