जब जागे तभी सवेरा
जब जागे तभी सवेरा


आहिस्ता आहिस्ता चलते हुए बरामदा पार करके पारस दरवाज़े तक पहुंचा, फिर बरामदे में रखी बेंत की कुर्सी पर बैठ गया और लंबी लंबी सांसे लेने लगा।घर तक आते समय रास्ता भी कितना लंबा लग रहा था। गला सूख चुका था, किंतु पानी पीने की हिम्मत नहीं हो रही थी।
डॉक्टर से मिलकर आ रहा था। डॉक्टर ने कहा," बढ़ते वायु प्रदूषण से एकमात्र बचाव है, मास्क लगाना। जल प्रदूषण से बचने के लिए पानी फिल्टर करके पीजिए।"
मां बाहर ही बैठी थीं, जल्दी से सीमा को आवाज़ लगाई,"बेटा, पारस आ गया है, एक गिलास पानी लाना।"
पानी शब्द सुनते ही पारस बोल उठा,"पानी, नहीं पानी नहीं। कल ही टीवी पर देखा था, जल प्रदूषण ने छोटे-बड़े सभी शहरों को प्रभावित किया है। पीने के पानी के नमूने दिखाए जा रहे थे। पीला , मटमैला पानी।"
"मां, मैंने सोच लिया है,प्रदूषण से लड़ना है।" "एक प्रदूषण हो तो इंसान कमर कस लें, किस - किस प्रदूषण से बचाव करे,और कहां तक,बेटा, अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।"
"देखिए जी, निशी कह रही थी अभी तक हम जिस दूध को स्वस्थ रहने का मानक समझ रहे थे, कुछ दिन पहले ही उसके अध्यापक ने बताया कि उसमें भी मिलावट का जोर है। लोग यूरिया घोलकर दूध तैयार कर रहे हैं। अब क्या दूध पीना छोड़ दिया जाए?"
"क्यों नहीं, अब से हम फल और हरी ताजी सब्जियां ज्यादा खायेंगे।" पारस कुछ ज्यादा ही जोश में आ गया था।
मां मंद- मंद मुस्कुरा उठी,"बेटा, पहली बात तो यह की केवल फल और सब्जियों से पेट नहीं भरता। मगर क्या तुम नहीं जानते फल और सब्जियों में केमिकल्स मिलाए जा रहे हैं और पानी कि कमी के चलते उन्हें गंदे नालों में उगाया जा रहा है?"
"मां, सुनता और पढ़ता तो बहुत कुछ हूं। यह भी सुना था कि सरकार वन टाइम यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा रही है ,बावजूद इसके धड़ल्ले से लोग प्लास्टिक का इस्तेमाल कर रहे हैं। कुछ दिन सख़्ती रही।" पारस की आवाज़ में उदासी घुली थी।
"ये न्यायालय, राष्ट्रीय हरित क्रांति, केंद्र सरकार ,राज्य सरकारें, अन्य एजेंसियां क्या कर रही हैं? गलत कार्यों पर दंडित क्यों नहीं करती?"अभी सुधा कह रही थी छोटी - छोटी बातों में सुप्रीम कोर्ट आदेश देता है, फिर यह तो जनता के स्वास्थ्य से संबंधित अहम मामला है।" सीमा ने कहा।
"सीमा, देखो, डॉक्टर ने चेकअप के बाद ये ढेरों दवाइयाँ लिख दीं। दवाइयों से कुछ लाभ होगा कह नहीं सकते। आजकल दवाइयाँ भी तो नकली बन जाती हैं।" पारस ने संशय जताया मगर सोचने पर विवश हो गया।
इस समस्या पर नियंत्रण कैसे हो? जल और वायु यह जीवन देने के स्थान पर शनै- शनै हमें मार रहे हैं। क्या यह प्राकृतिक संसाधनों का दोष है या हम,ये पूरा समाज जिम्मेदार हैं ?
जब तक व्यक्तिगत समस्या होती है ,हम मुखर हो उठते हैं ,विरोध करते हैं, मगर सामूहिक समस्या होती है, तो हम एक-दूसरे का मुंह देखते हैं कि सब बोले, अकेले बोलने से क्या होगा?हम पर्यावरण दिवस का आयोजन करते हैं, लंबे चौड़े भाषण देते हैं, होता क्या है ?क्या समस्या पर नियंत्रण हो पाया? प्रशासन से सख्ती की आकांक्षा रखते हैं, तो जन सहभागिता की सक्रियता क्यों नहीं? हम प्रशासन से त्वरित कार्यवाही की अपेक्षा रखते हैं तो हम खुद के कर्तव्यों पर गौर क्यों नहीं करते?
"बस अब तो मैने सोच लिया है, भावी पीढ़ी को अगर बचाना है, तो सबसे पहला प्रयास होगा ,जल और वायु को बचाना। इसके लिए मुहिम छेड़नी होगी। इनका कम उपभोग करना होगा। स्वयं आगे बढ़ना होगा, यह नहीं सोचना होगा कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। एक शुरुआत करेगा तो एक और एक ग्यारह हो जाएंगे।
तो क्यों ना आज से, बल्कि अभी से शुरुआत की जाए? जब जागे तभी सवेरा। क्यों मां, सीमा क्या कहती हो?"