Deepa Pandey

Romance

5.0  

Deepa Pandey

Romance

जब दिल बसंती हो गया

जब दिल बसंती हो गया

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उम्र का सोलहवां साल, सखियाँ छेड़ती, मैं सोलह बरस की तू कितने बरस की ? ज़िम्मेदारी से दूर, न हाईस्कूल के बोर्ड की चिंता न ही ईंटर के बोर्ड की फिक्र, दसवी फ़र्स्ट क्लास पास हो गयी थी और हम ग्यारवी कक्षा में, चहकते घूमते।लोग प्यार मुहौब्बत की बातें करते तो लगता,' पागल हैं ' भला ऐसा कैसे हो सकता हैं कि नज़रे मिली, दिल धड़का .....

।खूब मखौल बनाते।

फरवरी की गुलाबी ठंड में, पड़ोसी की बारात में लखनऊ से सीतापुर जाने का मौका मिला। बारात की बस में, सयाने तो गिने चुने ही थे जबकि युवा वर्ग का बोलबाला था।फिर क्या था पूरी बस दो टीमों में बदल गयी और अंताक्षरी शुरू हो गयी। हम तो ताली पीटने वालों में शामिल थे।अचानक सन्नाटा छा गया, हमारी टीम हार रही थी टिक टिक 1, टिक टिक 2 शुरू हो गया।ल से गाना था और लगभग सारे नये गाने गाये जा चुके थे अचानक दिमाग में बिजली सी कौंधी और मैं शुरू हो गयी " लग जा गले कि फिर ये हंसी रात हो न हो, शायद फिर इस जन्म में मुलाक़ात हो न हो "। चारों तरफ से शोर मच गया कि ये निकला हमारा तुरुप का इक्का।शोर शराबे के कारण, अंताक्षरी को विराम दे दिया गया।मगर मैं सभी की, नज़रों में आ चुकी थी।

सुबह विदाई की, तैयारी हो रही थी तो हम जैसे लापरवाह युवा, सरसों के खेतों में, सेल्फ़ी लेने निकल पड़े।

चिड़ियों की चहचहाहट, फूलों पे मंडराती तितलियाँ, भवरे, दूर रंभाती गाय, नथुनो में समाती मादक गंध, एक अजीब सी कशिश महसूस कराने लगी।

ये क्या, अचानक पैर फिसला और इससे पहले कि मैं पानी से गीले हुए, सरसों के खेत में गिरती, दो बलिष्ट भुजाओं ने अपने आगोश में थाम लिया।नज़रें मिली, दिल धड़का, मेरी धड़कन ने तेज रफ्तार पकड़ ली।

"अरे लगता हैं आप बहुत डर गयी हैं।"

मुझे लगा, दिल उछल कर, बाहर ही न गिर जायें।

शर्मिंदगी से वहाँ से दौड़ पड़ी, पीछे से मधुर स्वर गूंज उठा "लग जा गले कि फिर ये हंसी सुबह हो न हो, शायद फिर इस जनम में, मुलाक़ात हो न हो।"

उसकी आंखे जैसे पीछा कर रही थी।वापसी में सभी बेहद थके होने के कारण, जल्द ही नीद के आगोश में समा गए।मगर हम दोनों की आंखो से नीद कोसों दूर थी।कुछ दूरी पे जाकर बस खराब हो गयी।लोग उतर कर इधर उधर चहल कदमी करने लगे।हम महिला वर्ग, बस में ही दुबका रहा।मैं बस की खिड़की से, सामने फैले आम के बगीचे को निहार रही थी।तभी मेरी नजर उस पर पड़ी,वो पेड़ की आड़ में सिगरेट सुलगा रहा था, उसकी नज़रों से सामना होते ही वो मानों सब समझ गया।उसने सिगरेट के पैकेट को कूच कर रख दिया।उसकी इस हरकत पे, मैं मुस्कुरा उठी।

मौका पाकर, उसने फोन नंबर का आदान प्रदान करना चाहा मगर मैंने मना कर दिया।उससे फिर कभी मुलाक़ात न हो सकी।

बरसों बीत गये मगर आज भी वो गाना सुनती हूँ तो दिल बसंती हो उठता हैं।कामदेव का तीर दिल में गहरे, बहुत गहरे उतर चुका हैं।


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