पहल
पहल
" पापा आप ये अखबार ,सुबह से , कितनी बार देख चुके हैं फिर भी हर बार रो पड़ते हैं "
" बेटा विस्थापन का दुख वही समझ सकता हैं जिसने इसे भुगता हो "
" पापा आप तो हमेशा से पहाड़ों पर ही रहे, फिर आप कैसे कह सकते हैं "
" बेटा जो टिहरी बांध आज तुम पानी से लबालब भरा देख रहे हो उसके नीचे मेरा गाँव ,घर ,स्कूल ,बाजार सब डूबा हुआ हैं। वहाँ से विस्थापित हो जोशीमठ में आ गये, यहाँ नये सिरे से अपनी जड़े जमानी शुरू की । छोटी सी किराना दुकान से ,एक बड़े होटल को बना कर, अपनी सुख संपत्ति के साधन जोड़े और एक बार फिर से, सब यही छोड़कर जाना पड़ेगा "
" हाँ मेरी टीचर भी कह रही थी अगले हफ्ते से स्कूल बंद हो रहे हैं स्कूल में कई जगह से दरारें आ गई हैं बिल्कुल हमारे घर और होटल की तरह "
"हाँ अखबार में उसी को लेकर विस्तृत रिपोर्ट छपी हैं क्या तुमने पढ़ी ? "
" हाँ पापा ,मैंने पढ़ी भी हैं और समझी भी "
"क्या समझी ?"
"यही कि हम इंसानों ने ही जंगलों को काट दिया ,नदियों के किनारों पर कब्जा कर के बड़े ,बड़े मकान और होटल बना दिये । इसीसे हल्के भूकंप भी यह धरती नहीं झेल पाती हैं और दरारें फूट पड़ती हैं । सब हमारे लालच की वजह से हुआ हैं "
" कैसा लालच ? मैं कुछ समझा नहीं ,क्या रोजगार के साधन जुटाना, अपना परिवार पालना लालच हैं ?"
"नहीं प्रकृति से उतना ही दोहन करना चाहिये जितना भौगोलिक संतुलन न बिगड़े । जैसे बड़ी इमारतों की जगह ,छोटे छोटे घर बनाने चाहिये ,पुराने जंगल को बचाने के साथ, नये जंगल भी रोपित करने चाहिये "
" क्या तुम्हें इस जगह को छोड़कर जाने का कोई दुख नहीं हैं ?"
" बहुत दुख हैं मगर इस धरती के लिये ,जिसके हृदय में दरारें फट गई हैं । मैंने सोच लिया हैं पापा ,अब अपना नया घर ईकोफ्रेंडली बनाऊँगा "रोहन आत्मविश्वास से बोला ।
"सही कहा बेटा ,लेकिन अकेले तुम्हारे सोचने और करने से यह प्रकृति विनाश लीला नहीं रुकेगी " मम्मी भी उनकी बातों में शामिल हो चुकी थी ।
रोहन मुस्कुराया और बोला " किसी को तो पहल करनी ही होगी फिर हम क्यों नहीं ?"