ठंडक का अहसास
ठंडक का अहसास
मधु ने ,अपने पड़ोसी रमाकांत जी कों , पीछे के सीमेंटेड आंगन में, पानी की बौछार करते हुए देखा तो पूछ लिया
“अंकल नमस्ते, यह फर्श कब बनवाया?”
“अरे! छह महीने पहले ही बनवाया बिटिया, इस बीच तुम आई नहीं शायद”
“ हाँ अंकल घर गृहस्थी से फुर्सत कहाँ मिलती है। मैं तो आपके आम के बगीचे से गिरने वाली अंबिया को याद कर रही थी । आप के पेड़ों से हमारी छत और आंगन में खूब अंबिया टपकती थी । उन पेड़ों के फल भी मैंने खूब खाएं है।
“हाँ बेटा अंबिया, फल तो ठीक है मगर बाकी समय बगीचे में बहुत पत्ते हो जाते थे । घास निकलती थी । बार बार सफाई करानी पड़ती थी इसीलिए पेड़ कटवा दिए।
“वैसे आप के पेड़ के आम बहुत मीठे और रसीले थे, गुठली भी कितनी पतली थी, शायद दशहरी थे”
“हाँ बेटा मलिहाबाद से पेड़ लाकर, लगवाए थे मेरे पिताजी ने और सुनाओ बेटा, दिल्ली के मौसम का क्या हाल है?”
“अरे अंकल कुछ न पूछिए, हर साल गर्मी बढ़ती जा रही है”
“लखनऊ का ही हाल देख लो बेटा, कितनी गर्मी बढ़ गई है तभी तो मैं शाम होते ही इस फर्श को पानी से भिगो देता हूँ । जिससे गर्मी से राहत मिले”
“वैसे अंकल एक बात बताये ? जो ठंडक आम के बगीचे की थी क्या वो आपकों फर्श पर पानी का छिड़काव करने से मिल जाती है या केवल ठंडक का अहसास ही मिल पाता है?”