जादुई सुरमा
जादुई सुरमा
कमेटी का चक्कर
"भाबी जी घर पर है ?" कहते हुए मनमोहन तिवारी विभूति नारायण मिश्रा के घर में आ घुसा लेकिन सोफे पर अनीता भाबी को न पाकर निराशा हुई।
सोफे पर विभूति नारायण मिश्रा पैर फैलाए पड़ा था और वो मनमोहन तिवारी को देख कर सुलग उठा और बोला, "अबे कच्छा बनियान मार्का इंसान क्या मुँह उठाए घुसा आ रहा है घर में? क्या चाहिए तुझे?"
"तमीज से बात करो भभूति जी मै कोई भिखारी नहीं हूँ जो तुम्हारे जैसे फटीचर इंसान से भीख मांगने आऊँगा, अब सीधे-सीधे बता दो कि भाबी जी कहाँ है?" मनमोहन तिवारी बोला।
"नहीं बताऊँ तो?" विभूति नारायण मिश्रा सोफे पर लेटे-लेटे बोला।
"तो तुमको आज पूरे एक लाख का नुक्सान हो जाएगा........" मनमोहन तिवारी बोला।
"अबे एक लाख तेरे सपने में भी आये है कभी......चल निकल पतली गली से।" विभूति
नारायण मिश्रा सोफे पर लेटे-लेटे बोला।
"बेटे हम तुम्हारे जैसे नल्ले नहीं है हम तो रोज लाखो में खेलते है......लेकिन तुम्हारे जैसे मुँहजोर आदमी से बकवास करने से अच्छा है कि दीवारों से सर फोड़ लिया जाए.....जब भाबी जी आये तो उन्हें बता देना उनकी एक लाख की कमेटी पूरी हो गई है.......जल्दी जाकर कमेटी उठा ले नहीं तो कमेटी चलाने वाली रूना लैला पैसा किसी को ब्याज पर दे देगी फिर लगाते रहना उसके घर के चक्कर।" मनमोहन तिवारी बोला।
"अरे तिवारी जी बैठो यार; मै चलता हूँ तुम्हारे साथ कमेटी उठाने........"
"तिवारी जी...... अरे वाह पैसे का जिक्र आते ही बातचीत का लहजा बदल गया। तुम्हे कमेटी नहीं मिलेगी।"
"क्यों नहीं मिलेगी?"
"क्योकि तुमने कमेटी की मंथली किश्त नहीं भरी है.....अब बताओ भाबी जी कहाँ है?"
"अरे यार अनु तो चार दिन के सेमीनार में दिल्ली गई है......वहाँ लीला में ठहरी हुई है और मेरे पास तो दिल्ली जाने तक का किराया नहीं है।" कहते हुए विभूति नारायण मिश्रा फिर से सोफे पर लेट गया।
"तो सड़ जाओ यहीं पड़े-पड़े......." कहते हुए मनमोहन तिवारी भाबी जी और नल्ले के घर से बाहर निकल गया।
विजिटिंग कार्ड वाला फकीर
दरवाजे से निकलते ही वो हरा लबादा पहने एक फकीर से टकरा गया और गुर्रा कर बोला, "अबे अँधा है क्या?"
"अँधा तो तू है......जो तुझे अपना बुरा वक़्त नजर नहीं आ रहा......." वो फ़क़ीर मनमोहन तिवारी की तरफ गौर से देखते हुए बोला।
"बकवास मत कर.....चल फूट यहाँ से......" मनमोहन तिवारी गुस्से से बोला।
"सुन बेटे आधे घंटे के अंदर तुझे सिपहियों की मार पड़ेगी और कल सुबह दस बजे से पहले तुझे बेभाव जूते पड़ेंगे ।" वो फ़क़ीर मनमोहन तिवारी की तरफ गौर से देखते हुए बोला।
"अबे फकीर के बच्चे किस पुलिस वाले की औकात है जो हाथ लगा दे मुझे........अगर तेरी ये बात सच हुई तो तेरे चरणों में लेट जाऊँगा।" मनमोहन तिवारी गुस्से से बोला।
"तो पकड़ मेरा विजिटिंग कार्ड......." कहते हुए फकीर ने मनमोहन तिवारी को अपना विजिटिंग कार्ड पकड़ाया और वहां से चला गया।
फ़क़ीर की बात से डरा हुआ मनमोहन तिवारी अपने घर की तरफ बढ़ा और बंद दरवाजा देख कर झल्ला उठा और गुस्से बोला, "ये पगली कहाँ चली गई अब?"
उसने एक बार फिर अपनी घड़ी की तरफ देखा फकीर के दिए टाइम में से दस मिनट खत्म हो चुके थे। कुछ सोच कर उसने अपनी चप्पलें उतारी और अपने घर की चारदीवारी पर चढ़ने लगा।
अभी वो दीवार के ऊपर पहुँच भी नहीं पाया था कि एक मोटरसाइकिल की आवाज गली में गूँज उठी और कोई भद्दी सी गाली देते हुए बोला, "अबे दिनदहाड़े सेंध लगा रहा है किसी के घर में........?"
मनमोहन तिवारी ने पीछे मुड़ कर देखा, दो पुलिस के सिपाही हाथ में मोटे-मोटे डंडे लिए उसकी तरफ देख रहे थे। इससे पहले मनमोहन तिवारी उन्हें कुछ कह पाता उन्होंने उसे खींच कर दीवार से नीचे गिरा दिया और उसपर अपने डंडे बरसाने लगे। डंडों की मार से मनमोहन तिवारी घबरा उठा और रोता-पीटता गली से भाग निकला।
फकीर का दरबार
मुख्य सड़क पर पहुँच कर मनमोहन तिवारी ने डंडो से पिटे अपने बदन को सहलाया और उसे उस फकीर की भविष्यवाणी याद आ गई। उसने फकीर का विजिटिंग कार्ड अपनी जेब से निकाल कर देखा और उसपर लिखे पते पर जाने के लिए ऑटो वाले को हाथ देने लगा।
करीब एक घंटे में उसे उस फकीर का डेरा मिला, लेकिन डेरे पर फकीर नहीं था वहाँ फकीर से मिलने वालो की भीड़ लगी हुई थी। करीब दो घंटे बाद फ़क़ीर वापिस आया और मनमोहन तिवारी को देखते ही बोला, "क्यों बेटे डंडे पड़े पुलिस के?"
"पड़ गए बाबा.....बेभाव डंडे पड़े बाबा......." कहते हुए मनमोहन तिवारी फकीर के पैरो में पड़ गया।
"सब तकदीर का खेल है बेटे....उठ जा अभी तो सुबह तक बेभाव जूते भी पड़ेंगे...."
"बचा लो बाबा......" मनमोहन तिवारी रोते हुए बोला।
"बेटे तकदीर का लिखा आसानी से नहीं मिटता......."
"मिटाना पड़ेगा बाबा, मुझे बचा लो बाबा।" मनमोहन तिवारी रोते हुए बोला।
"तेरे जैसे आदमी का कोई भरोसा नहीं है लेकिन पता नहीं आज मुझे तुझ पर दया आ रही है......चल निकाल दस हजार रूपये......"
"दस हजार?"
"हाँ बेटे दस हजार, जो मै तुझे दस हजार में दूँगा वो तुझे कोई दस लाख में भी नहीं देगा।"
मनमोहन तिवारी ने रोतड़े मुँह से बाबा की तरफ देखा और उसके हाथ पर दस हजार रख दिए।
"अपनी आँखे खोल, मै इनमें एक जादुई सुरमा डालूँगा; सुरमा डालते ही तू सुबह दस बजे तक के लिए अदृश्य हो जाएगा यानी मिस्टर इंडिया हो जाएगा। गायब होते ही अपने घर जाकर लेट जा और कल सुबह अपने सर पर जूते पड़ने का टाइम गुजर जाने के बाद तू फिर दुनिया को दिखने लगेगा। लेकिन तूने इस शक्ति के मिलने के बाद इसका दुरुपयोग किया तो बेटे जूतों के साथ डंडे भी पड़ेंगे तुझे।" कहकर फकीर ने उसकी आँखों में सुरमा लगा दिया।
लीला होटल दिल्ली
अदृश्य होने के बाद मनमोहन तिवारी का मन भाबी जी मिलने को तड़फ उठा, असल में तो उनके साथ वो मस्ती नहीं कर सकता था लेकिन अदृश्य होने के बाद तो मस्ती की ही जा सकती थी; सोचते-सोचते वो बिना टिकट राजधानी एक्सप्रेस में बैठ दिल्ली जा पहुँचा और फ्री में मेट्रो में बैठ कर लीला होटल भी जा पहुँचा। अब सवाल ये था कि इतने बड़े होटल में उसे भाबी जी कहाँ मिलेगी? वो किसी सेमिनार में आई है तो किसी कॉन्फ्रेंस रूम में ही मिलनी चाहिए; थोड़ा तलाश करने के बाद भाबी जी उसे एक कॉन्फ्रेंस रूम में मिल गई। वो वही से उनका पीछा करते हुए उनके रूम तक जा पहुँचा।
रूम में भाबी जी के साथ एक रूममेट भी थी भाबी से दूगनी लंबी-चौड़ी। दोनों ने बहुत देर तक गप्पे मारे और फिर दोनों बिस्तर पर फ़ैल कर सो गई।
सोती हुई भाबी जी बहुत खूबसूरत लग रही थी, मनचले मनमोहन तिवारी ने मोके का फायदा उठाते हुए भाबी जी को हाथ लगाने की कोशिश की लेकिन तभी उसके मुँह पर भाबी जी का जोरदार थप्पड़ पड़ा और भाबी जी नींद में बड़बड़ाई, "विभु आज अगर तुमने मुझे हाथ भी लगाया तो मै तुम्हारा मुँह नोच लूँगी।"
उसके बाद मनमोहन तिवारी ने जितनी बार सोती ही भाबी जी को छूने की कोशिश की उतनी बार ही उसके मुँह पर सोती हुई भाबी जी के जोरदार थप्पड़ पड़े। थप्पड़ खाते-खाते जब तिवारी का अदृश्य मुँह भी सूजने लगा तो उसने घड़ी देखी; अरे ये तो सुबह होने को जा रही है, अब दिन निकलने पर ही भाबी जी को छेड़ा जाएगा सोचकर मनमोहन तिवारी रूम में पड़े सोफे पर ही लेट गया और लेटते ही गहरी नींद में सो गया।
सुबह दस बजे
गहरी नींद में सोया तिवारी जब जागा तो सुबह के दस बज चुके थे। फकीर के सुरमे का असर खत्म हो चुका था अब वो अदृश्य नहीं रह गया था। भाबी जी और उनकी रूममेट उस कमरे से जा चुकी थी।
थोड़ी देर बाद सफाई स्टाफ के महिला-पुरुष उस रूम की सफाई करने आये तो सोफे पर लेटे हुए मनमोहन तिवारी को देखकर भड़क उठे क्योकि रूम के गेस्ट चेक आउट करके जा चुके थे और उसे रूम में पाकर सफाई स्टाफ ने उसे चोर-उचक्का ही समझा। पहले उन्होंने तिवारी से बहुत से सवाल पूछे जैसे कि वो कौन था, उस रूम में क्या कर रहा था? मनमोहन तिवारी के पास किसी सवाल का कोई जवाब नहीं था। होटल में पुलिस लाना उचित नहीं था इसलिए सफाई स्टाफ के मुस्टंडे जूते और डंडे लेकर उसपर टूट पड़े। पाँच मिनट बात जब मनमोहन तिवारी उस रूम से निकला तो जूते और डंडे की पिटाई से उसके अंजार-पंजर ढीले हो चुके थे।
फकीर की हर भविष्यवाणी सच साबित हुई सोचते हुए मनमोहन तिवारी रेलवे स्टेशन की तरफ चल पड़ा ताकि ट्रेन पकड़ कर वापिस कानपूर जा सके।