Ankita kulshrestha

Romance

4.3  

Ankita kulshrestha

Romance

इश्क़ तारी है

इश्क़ तारी है

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आकांक्षा पेंशन ऑफिस में अपने पापा के साथ पेंशन रिन्यूअल के लिए आई थी। पीछे मुड़कर देखा तो कुछ जाना पहचाना अनजाना सा चेहरा दिखा, साथ में कोई बुजुर्ग थीं, शायद वो लोग भी पेंशन रिन्यूअल के काम से आए थे। ट्रेनिंग के वक़्त इंस्टीट्यूट में देखा था एकाध बार, शायद जूनियर है, पूछती हूँ वेरिफिकेशन कब तक होगा, शायद पता हो इसे, आकांक्षा ने सोचा और पीछे मुड़ी, वो उसे ही गौर से देख रहा था, सकपका गया।

आकांक्षा ने फॉर्मल स्माइल के साथ- हैलो बोला, पर उसकी चेहरे पर चिपकी निगाहें कुछ अलग सी लगीं। आकांक्षा ने पूछा, "कहाँ हुई तुम्हारी पोस्टिंग ?"

"जी घर से बहुत दूर मिली है मैम।" उसने कहा।

मैम संबोधन से आकांक्षा आश्वस्त हो गई कि जूनियर ही है। तभी पापा फार्म सबमिट करके आ गए। आकांक्षा ने बताया- ये मेरे जूनियर हैं, इनकी पोस्टिंग स्वास्थ्य विभाग में हमारे साथ ही हुई है। दोनों में अभिवादन और कुछेक बातें हुईं।

"अच्छा वेरिफिकेशन का कुछ पता है ? वेरिफिकेशन हो तो सेलेरी शुरू हो आधा साल गुजर गया।" आकांक्षा ने पूछा।

"जी, फिलहाल तो ख़बर नहीं, जब कुछ इन्फार्मेशन होगी तो बता देंगे, आप चाहें तो नंबर दे दीजिए।" उसने बहुत सौम्यता से कहा।

"नंबर मैं देता हूँ तुम ये जीरॉक्स करा लाओ बेटा, बाहर निकलते ही बायीं ओर दुकान है।" पापा ने कहा।

आकांक्षा कागज लेकर चल दी। वापस आते वक्त वो बाइक से लौटता हुआ दिखा, उसने बाइक रोक कर नाम पूछा, "मैम ,आपका नाम बताएंगे ?"

"जी ,आकांक्षा..और तुम्हारा ?"

"फैज़ान, ये मेरी फूफी हैं, इन्हीं के काम से आया था।"

"नमस्ते आंटी, आकांक्षा ने मुस्कुराकर अभिवादन किया और बाय बोलकर ऑफिस में आ गई। रात को फुरसत में बैठकर आकांक्षा ने वाट्सएप चेक किया तो एक अननोन नंबर से मैसेज पड़ा था, "हैलो, गुड इवनिंग मैम, दिस इज़ फैज़ान।"

ओह्ह पापा ने गलती से वाट्सएप नंबर दे दिया, आकांक्षा ने सोचा और वापस लिखा, "हैलो" और वापस अपने आर्टीकल्स में बिजी हो गई। सात आठ दिन बाद फैज़ान का मैसेज पड़ा था, "मैम इट्स रियली अर्जेंट.. प्लीज कॉल इफ पोसिबल।"

अगली सुबह जॉब के लिए निकलते वक़्त आकांक्षा ने फैज़ान को फोन किया।

"हैलो, मैम.."

"जी, फैज़ान, कहिए क्या अर्जेंट काम है ?"

"माशाअल्लाह..."फैज़ान ने धीमे से कहा।

"क्या ?" तेजी से कदम बढ़ाते हुए आकांक्षा ने हल्का झुंझलाते हुए कहा।

"आपकी आवाज़ बहुत प्यारी है।"

जवाब सुनकर आकांक्षा ने थोड़ा तल्खी से कहा,

"ये आपका अर्जेंट काम है ?"

"सौरी, आपकी आवाज़ सुनकर अच्छा लगा, दरअसल मेरी एक पैट है ..जिनी ...बिल्ली है.." फैज़ान ने शुरू किया। आकांक्षा मन ही मन बहुत झुंझला रही थी कि फोन ही क्यों किया। अर्जेंट लिखा देखा बस फोन कर लिया.. "तो ?

"तो मैम, एक बिल्ली का बच्चा मुझे कल रास्ते में मिला ..उसे कुत्ते परेशान कर रहे थे, मैं उसे घर ले आया.. "इसमें मैं क्या कर सकती हूँ ?" आकांक्षा की त्योरियां चढ़ रही थीं।

"अब मेरी 'जिनी' इस बच्चे को परेशान कर रही है, मुझे नौकरी पर भी जाना होता है , अगर कोई इस बच्चे की देखभाल कर सके ..मेरा मतलब है कि जिसे बिल्लियों का शौक हो.. "देखिए फैज़ान, आकांक्षा ने बात काटकर कहा, मेरे यहाँ बिल्लियों को भगाया जाता है तो मैं तो नहीं रख सकती, अगर कोई इंट्रेस्टेड होगा तो बता दूँगी, अभी रखती हूँ।"

"शुक्रिया, खुदा हाफिज़।" फैज़ान की आवाज़ आते -आते कॉल डिसकनेक्ट हो गयी।

आकांक्षा सोच रही थी कितना अजीब है, अपनी सीनियर को अर्जेंट बात करने के लिए कहता है और फिजूल की बात करता है, इस सब के लिए इसके दोस्त नहीं थे क्या..पागल कहीं का...अब नहीं करुँगी फोन..कितना भी अर्जेंट हो।

आकांक्षा अनजान थी कुछ किस्से फिजूल मगर बातचीत का जरिया होते हैं। शायद ,फैज़ान को भी उसके तल्ख़ अंदाज़ का अहसास था इसलिए उसने भी फिर कोई मैसेज या फोन नहीं किया। ये दिसंबर की खुशनुमा शाम थी, आकांक्षा टेरिस पर शरतचंद्र को पढ़ रही थी कि फोन बज उठा...

"फैज़ान कॉलिंग" उठाऊँ या रहने दूँ...इस बार भी बकवास की तो.. इसी सोच में थी कि तीसरी बार कॉल आना शुरू हो गया.. इस बार आकांक्षा ने कॉल पिक कर ही ली।

"हाँ..." "मैम..."

"बोलो,सुन रही हूँ..."

"वेरिफिकेशन शुरू हो गए हैं, कल ऑफिस पहुंचना है, एफिडेविट और डाक्यूमेंट्स के साथ और दो हजार रूपये भी लगेंगे।"

"ठीक है, कितने बजे पहुंचना है ?"

"दस बजे"

"अच्छा मैं तुम्हारी पापा से बात कराती हूँ, वही आएंगे शायद.. आकांक्षा ने फोन लाउडस्पीकर पर डाला और पास में बैठे पापा को दे दिया,

"पापा, फैज़ान, वेरिफिकेशन के बारे में कुछ बता रहे हैं।"

"हाँ बेटा, क्या खबर है।"

"जी अंकल, गुड इवनिंग।"

फैज़ान की हकलाती सी आवाज सुनकर आकांक्षा को हल्की सी हँसी आ गयी जो उसने होठों में दबा ली। बाद में तय हुआ कि आकांक्षा ही जाएगी ऑफिस, पापा को जरूरी काम से जाना था।

"ऑफिस में फैज़ान से मिल लेना, मेरी बात हो गई है, उसे पता है कैसे क्या करना है..किसे रूपये थमाने हैं, पापा ने समझाया। आकांक्षा के घर से ऑफिस की दूरी एक घंटे लगभग थी। बस में बैठकर उसने पहले पापा को फोन किया फिर फैज़ान को।

"हैलो,फैज़ान.. मुझे एक घंटा लगेगा अभी।"

"ठीक है मैम, आप कचहरी पहुंचिएगा.. पहले एफिडेविट बनवाना है, मैं आता हूँ बस स्टैंड आपको लेने।"

"कचहरी.. ठीक है..तुम मत आना मैं खुद आ जाऊँगी।" अपने हरे ऊनी दुपट्टे को संभालती, कचहरी में आकांक्षा की नजरें फैज़ान को ढूंढ रही थीं, काफी भीड़ थी, ठंड से उसकी नाक हमेशा की तरह गुलाबी हो गई थी। आकांक्षा ने जैसे ही फोन हाथ में लिया, पीछे से आवाज आई..

"हैलो मैम" आकांक्षा ने पलटकर देखा, छ: फुटिया, एकदम दूधिया रंगत और सुनहरे वालों वाला मुस्कराता चेहरा सामने था। वही बड़ी बड़ी चेहरे पर ठहरी निगाहें। ब्लू जींस, व्हाइट शर्ट पर हाफ जैकेट। मोगरे के इत्र की हल्की खुश़्बू। हाँ..अच्छा लग रहा था फैज़ान। सबसे बड़ी बात चेहरे पर मासूमियत और भोलापन था जो उसे बाकी भीड़ से अलग कर रहा था। पहली बार इतने गौर से आकांक्षा ने देखा उसे।

"चलिए एफिडेविट बनवाते हैं.." एफिडेविट बन रहे थे, आकांक्षा की एफिडेविट पर टिकी नजरों का फायदा उठाकर फैज़ान की नजरें एकटक उसके चेहरे पर चिपकी हुई थीं। अचानक पेन नीचे गिरा और दोनों एक साथ नीचे झुके, इसी सब में आकांक्षा का हाथ फैजा़न के सर से टकराया ..आकांक्षा के पैरों में पड़े पेन को उठाते हुए फैज़ान ने हँसकर कहा "पैरीपैंदा माताजी..आशीर्वाद के लिए थैंक्यू।"

पहली बार आकांक्षा को हँसते देखा उसने।

"चलें ऑफिस..मैं बाइक निकालता हूँ पार्किंग से.." "नहीं मैं बाइक पर नहीं बैठती, थैंक्स ..जरा दूर है ऑफिस.. मैं रिक्शा ले लेती हूँ। आकांक्षा अपना स्टूपिड रिजोल्यूशन तो नहीं बता सकती कि बाइक पर सिर्फ़ अपने हसबैंड के साथ बैठेगी। तभी वहां एक लड़की आई और फैज़ान से लिफ्ट मांगने लगी, उसके हाँ कहते ही वो झट बाइक पर बैठ गयी, फैजा़न ने सामने खड़ी आकांक्षा को देखकर बुरा सा मुंह बनाया और चुप खड़ी आकांक्षा हँस पड़ी।

फैज़ान ने भी मुस्कराकर उसका साथ दिया। कभी ट्रेनिंग कभी ऑफीशियल कामों से मिलना होते-होते एक प्यारी सी दोस्ती का रिश्ता कायम हो गया दोनों के दरम्यान। अक्सर ही वाट्सएप से दिनभर की खोज खबर ली जाती, अपनी मुश्किलें ,परेशानियां, खुशियाँ शेयर की जातीं। आकांक्षा ने इतने दिन में जान लिया था कि फैजा़न बहुत नेक और प्यारा इंसान है जो अपने आसपास हर किसी का ध्यान रखता है। कभी किसी जरूरतमंद की मदद करना, घायल को अस्पताल ले जाकर तीमारदारी करना, असहाय पशु-पक्षियों की सेवा करना, उसके सारे काम नेकी के थे, बस अपना ही ख्याल नहीं रखता था।

आकांक्षा को अपना ये नेक दोस्त और उसका साथ अच्छा लगने लगा था। एक दिन अचानक आकांक्षा के मोबाइल ने काम करना बंद कर दिया, रिपेयर के लिए देकर आई तो अगले दिन जाकर मिला। रात को टाइम मिलते ही वाट्सएप देखा तो वहां फैजा़न के कितने ही मैसेज पड़े थे। शायद वो परेशान हो गया था मैसेज न पहुंचने की वजह। आकांक्षा ने तुरंत फोन खराब होने की बात लिखी। फैजा़न जैसे हाथ में फोन लेकर मैसेज का वेट ही कर रहा था, उसने तुरंत लिखा,

"मुझे आपसे बात करनी है प्लीज दो मिनट.."

"पर इस वक़्त ?" आकांक्षा ने कुछ हिचकिचाते हुए लिखा।

"बस दो मिनट शहजादी, प्लीज... आपको मेरी कसम.." फैजा़न ने अगला मैसेज किया।

वो उसे अक्सर शहजादी ही कहने लगा था। आकांक्षा ने देखा सब सोए हुए हैं घर पर, फिर वो उठकर बाहर लॉन में आई और फैजा़न को फोन मिलाया।

"हैलो..आकांक्षा... "

जी फैजा़न.. इतना क्यों परेशान हैं आप ? मैं ठीक हूँ बस फोन खराब था।"

"शहजादी .. बस दो मिनट मेरी बात सुन लें बिना कुछ कहे और वादा करें नाराज नहीं होंगी।" फैजा़न की आवाज कांप रही थी।

आकांक्षा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि फैजा़न इतना परेशान सा क्यों है। उसने नाराज न होने का वादा किया।

"आकांक्षा... फैजा़न की आवाज़ से लग रहा था उसकी धड़कनें बहुत तेज रफ्तार से दौड़ रही थीं।

"आय लव यू..आय लव यू मोर दैन एनीथिंग..यू आर सच अ डिवाइन पर्सन.. आय एम इन लव फॉर यू.."

फैजा़न एक झटके में बोल गया। अब दोनों तरफ शांति थी। फैजा़न इंतज़ार में था कि आकांक्षा का क्या जवाब रहेगा। उधर आकांक्षा बुत सी बन गयी थी। कुछ सूझ नहीं रहा था, दिमाग जैसे काम करना बंद कर चुका था। आकांक्षा ने बिना जवाब दिए कॉल डिसकनेक्ट की और भागती हुई धड़कनों को संभालती बिस्तर पर आ गिरी। दोनों तरफ नींद का नामोनिशान नहीं था। दोनों ही बैचेन थे। अलसुबह आकांक्षा ने देखा फैजा़न ने मैसेज में लिखा था..

"मुझे माफ कर दीजिए.. सौरी.. मैने आपका दिल दुखाया है..मैं आपके लायक ही नहीं हूँ, पर आपने वादा किया था कि नाराज नहीं होंगी..प्लीज दोस्ती नहीं तोड़िए..मैं आपके जैसी अच्छी दोस्त नहीं खोना चाहता.."

आकांक्षा रात भर में काफी कुछ सोच चुकी थी। वो भी अपने अच्छे दोस्त को नहीं खोना चाहती थी। उसने फैजा़न को फोन किया। "सौरी आकांक्षा.." फोन उठते ही आवाज आई, आवाज से लग रहा था कि वो रोकर चुका है।

"फैजा़न, सौरी की कोई बात नहीं.. मैंने वादा किया था कि नाराज नहीं होऊँगी.. तो मैं नाराज नहीं हूँ पर आपको भी सोचना चाहिए कि अच्छी भली दोस्ती में प्यार की जरूरत कहाँ से आ गई ?

"आकांक्षा, दरअसल आपको पूरा सच नहीं पता.. ये प्यार अब का नहीं है बल्कि आज से दो साल पहले जब हमारा कोर्स शुरु हुआ था तब का है और मैं आपका जूनियर नहीं सहपाठी ही हूँ। आपको मैंने जब पहली बार देखा था तब से आपका दीवान हो गया था। झुकी नजरें, तहजीब, सादगी..वो पहली तस्वीर मेरे जेहन में आज तक है। हाँ आपने तो कभी मुझे देखा ही नहीं क्योंकि आप अपने आप में ही खोई रहती थीं और हमारे सब्जेक्ट्स भी अलग थे, लेकिन मैं आपको देखने का मौका नहीं छोड़ता था..बहुत पसंद थीं आप मुझे पर कभी कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया और कोर्स खतम होने के बाद दुबारा मिलने की उम्मीद भी खतम हो गई।

वो तो उस दिन पेंशन ऑफिस में आप मिलीं तो लगा किस्मत मेहरबान हो उठी है, लेकिन मेरी तो किस्मत ही खराब है न .."

आकांक्षा आश्चर्य में फैली आंखों से सब सुन रही थी..कुछ सेकंड तो कुछ बोल ही नहीं पाई..फिर खुद को संभाल कर बोली..

"फैजा़न, मैं आपकी भावनाओं की कद्र करती हूँ आप बहुत अच्छे हो लेकिन समाज को ये सब स्वीकार नहीं है न..दो अलग मजहब के लोग एक नहीं हो सकते..ना ही हम सेलीब्रिटी हैं कोई कुछ न कहे..जब हमारे प्यार को हम मंजिल पर ही नहीं पहुंचा सकते तो अधूरे प्यार के दर्द को क्यों झेलें.. हम दोस्त ही बेहतर हैं..आप समझ रहे हैं न.."

"अरे प्यार तो बहुत ताकतवर है.. हम कौमी एकता की मिसाल बनेंगे.."फैजा़न ने अपनी बात रखी। आकांक्षा को हँसी आ गई कौमी एकता की बात सुनकर। उसने हँसते हुए कहा.. "कौमी एकता कुछ नहीं ,दंगे हो जाएंगे दंगे.. फिर अपना शहर भारत पाकिस्तान का बॉर्डर बन जाएगा..."

फिर संजीदा होकर आकांक्षा ने कहा आप मेरे दोस्त हैं और दोस्त ही रहेंगे ..किताबी और फिल्मी बातें असल जिंदगी में साबित नहीं होतीं..हम खुद को मुश्किलों में क्यों डालें। "शुक्रिया ,कम से कम दोस्ती तो कायम रखी, वरना मुझे तो लगा था कि.... खैर आप दोस्ती रखिए , हम प्यार निभाएंगे.. जो जगह आपके लिए दो साल से बनी हुई है वो बदल कैसे सकती है और हाँ..आपको कोई शिकायत का मौका या मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा मेरे इश्क़ की वजह... "

फैजा़न ने भी संजीदगी से कहा।

"वो मुझे पता है.. आप बहुत अच्छे और समझदार इंसान हैं अपने दोस्तों को परेशान कैसे कर सकते हैं.." आकांक्षा ने मुस्कराकर कहा।

दोनों निभा रहे हैं, एक दोस्ती दूसरा इश्क़.. पाक इश्क़..।

"हासिल-खोना, हँसना-रोना इनसे हटकर कुछ रूहानी बेहद प्यार किया है हमने अपनी-अपनी हदों में रहकर।"


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