मुआवजा
मुआवजा
शाम के सात बज चुके थे।छग्गू जल्दी जल्दी हाथ चलाकर पुताई कर रहा था। आज काम का अंतिम दिन था।जल्दी काम कर लेगा तो कहीं और कुछ काम पकड़ लेगा। घर में तंगहाली से बुरे हालात थे।
महीनों से बिस्तर पकड़े मरणासन्न पिता, तपेदिक की मारी पत्नी और सरकारी विद्यालय में पढ़ रहे तीन बच्चों के लिए दो जून की रोटी जुटाना किसी युद्ध से कम नहीं था।वर्मा जी सोफे पर बैठे टीवी देख रहे थे।छग्गू ,वर्मा जी के घर से दो गली पीछे वाली झुग्गियों में रहता था।
अचानक,टीवी पर ख़बर आई , "शहर के एक व्यस्त बाजार में निर्माणाधीन इमारत के अचानक गिरने से कई लोग दबे।"
मृतकों को एक लाख और घायलों को पचास हजार के मुआवजे की ख़बर लगातार सुनाई दे रही थी।
पुताई करते छग्गू का हाथ सहसा ठहरा, वर्मा जी से बोला,"बाबूजी, मुझे घर पर सब्जी पहुंचानी है, अभी आता हूँ।"
करीब आधे घंटे बाद छग्गू वापस आकर अपने काम पर लग गया।कुछ ही देर हुई थी कि छग्गू का छोटा सा फोन तेज आवाज़ में घनघना उठा। उधर से छग्गू का पड़ोसी मगनलाल हड़बड़ाते हुए बोल रहा था," छग्गू, तू जहाँ भी है तुरंत चला आ, एक इमारत गिरी है भरभराकर किराना बाजार में, बचाव दल को तेरे पिताजी की लाश मिली है मलबे से।जल्दी आजा..।"
छग्गू ने चलते-चलते वर्मा जी से कहा," मेरे पिताजी नहीं रहे ।"
टीवी पर अभी भी खबर आ रही थी- "हादसे में मृत लोगों के परिवारीजनों को एक लाख का 'मुआवजा।"